Monday, April 29, 2019

अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस (29.04.2019 ) पर हार्दिक शुभकामनाएं - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

सदा सृष्टि में चलता रहता है, ऋतुओं का नर्तन।
नृत्य बिना सूना रहता है प्राणी मात्र का जीवन।

नृत्य सदा परिभाषित करता सुख-दुख के अनुभव को,
अपने सम्मोहन में रखता देव और दानव को,

धरा गगन को बांधे रहता, यह अदृश्य इक बंधन ।
नृत्य बिना सूना रहता है प्राणी मात्र का जीवन।

जड़-चेतन के बीच सेतु की भांति व्यापत रहता है,
नृत्य, जगत के दृश्य-पटल पर इक हलचल रखता है,

मुद्राओं के ताल मेल से खुलते सारे गोपन।
नृत्य बिना सूना रहता है प्राणी मात्र का जीवन।

नृत्य व्यक्त करता है मन की सारी मनोदशा को,
सूर्य, चन्द्रमा से संचालित करता दिवस, निशा को,

शिव का प्रिय, रसिया कान्हा का, नृत्य मर्म का दरपन।
नृत्य बिना सूना रहता है प्राणी मात्र का जीवन।
             - डॉ. वर्षा सिंह
   
             
           अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस प्रत्येक वर्ष 29 अप्रैल को विश्व स्तर पर मनाया जाता है।  इसकी शुरुआत 29 अप्रैल 1982 से हुई, जब यूनेस्को के अंतरराष्ट्रीय थिएटर इंस्टिट्यूट की अंतरराष्ट्रीय डांस कमेटी ने 29 अप्रैल को नृत्य दिवस के रूप में स्थापित किया।  यह दिन एक महान रिफॉर्मर जीन जार्ज नावेरे की स्मृति में अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।

इसको पूरे विश्व में मनाने का उद्देश्य जनसाधारण के बीच नृत्य के महत्व से परिचित कराना था और लोगों का ध्यान विश्वस्तर पर इस ओर आकर्षित करना था। ताकि लोगों में नृत्य के प्रति जागरुकता फैले।

          शासकीय स्तर पर भी पूरे विश्व में नृत्य की शिक्षा देने का प्रयास करना था। सन् 2005 में नृत्य दिवस को प्राथमिक शिक्षा के रूप में केंद्रित किया गया। विद्यालयों में अनेक प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया जिसमें बच्चों द्वारा नृत्य पर कई निबंध व चित्र भी बनाए गए। 2007 में नृत्य को बच्चों को समर्पित किया गया।

        नृत्य की उत्पत्ति के बारे में यह कहा जाता है कि 2000 वर्ष पूर्व त्रेतायुग में देवताओं के निवेदन पर ब्रह्माजी ने नृत्य वेद तैयार किया, तभी से नृत्य की उत्पत्ति संसार में हुई। इस नृत्य वेद में सामवेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद व ऋग्वेद की अनेक ऋचाओं को शामिल किया गया। जब नृत्य वेद की रचना पूरी हो गई, तब नृत्य करने का अभ्यास भरत मुनि के सौ पुत्रों ने किया।

         प्रत्येक देश की अपनी अलग संस्कृति और नृत्य संगीत होते हैं। अफ्रीका में कबीलियाई नृत्य का अपना अनोखा अंदाज़ रहता है। जबकि भारत में अनेक शास्त्रीय  नृत्य शैलियां प्रचलित हैं जैसे - कथकली, कथक, कुचिपुड़ी, भरतनाट्यम, ओडिसी, मोहनीअट्टम, मणिपुरी आदि।



         लोकशैलीबद्ध नृत्यों में राई, नौरता, बधाई, भीली, कालबेलिया नृत्य आदि प्रमुख हैं।
योरोपीय देशों में बेले, सालसा, स्टेप डांस प्रचलित हैं।




मेरे गीत को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 30 अप्रैल 2019 में स्थान मिला है। जो कि अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस (International Dance Day दि. 29.04.2019) पर लिखा गया था।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में मेरी ग़ज़ल इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...



4 comments:

  1. शिवम मिश्रा जी,
    ब्लॉग बुलेटिन में मेरा गीत शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏

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  2. शिव का प्रिय, रसिया कान्हा का, नृत्य मर्म का दरपन।
    नृत्य बिना सूना रहता है प्राणी मात्र का जीवन।
    बहुत सुंदर रचना, वर्षा दी।

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    1. ज्योति जी, बहुत बहुत आभार आपके प्रति 🙏

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  3. लाजवाब अति उत्तम नृत्य रचना बर्षा जी ,बधाई हो आपको

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