Dr. Varsha Singh |
प्रगतिशील लेखक संघ, की मकरोनिया, सागर इकाई की पाक्षिक बैठक दिनांक 31 मार्च 2019 को सम्पन्न हुई।
जिसमें मैंने यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह एवं कवयित्री, लेखिका, समाजसेवी डॉ. (सुश्री) शरद सिंह सहित उपस्थित कवियों ने अपनी कविताएं सुनाईंं।
साहित्य वर्षा : डॉ. वर्षा सिंह |
साहित्य वर्षा : डॉ. वर्षा सिंह |
साहित्य वर्षा : डॉ. वर्षा सिंह |
साहित्य वर्षा : डॉ. सुश्री शरद सिंह |
मेरे द्वारा पढ़ी गई ग़ज़ल यहां प्रस्तुत है....
वो शख़्स मुझे छोड़ मेरे हाल पर गया ।
उसको न कभी मुझसे कोई वास्ता रहा।
दरिया-ए-इश्क़ में जो डूबा न बच सका,
मंझधार में मुझे भी सहारा नहीं मिला।
कल शाम मेरा नाम पुकारा किसी ने था,
देखा जो मुड़ के शख़्स वहां पर कोई न था।
यूं तो निगाह जो भी उठी, थी सवालिया,
ये क्या हुआ कि रिश्ता बन कर बिगड़ गया।
"वर्षा" जवाब दूं क्या अब इस जहान को
मैं भूल गई मेरा अपना पता है क्या !
उसको न कभी मुझसे कोई वास्ता रहा।
दरिया-ए-इश्क़ में जो डूबा न बच सका,
मंझधार में मुझे भी सहारा नहीं मिला।
कल शाम मेरा नाम पुकारा किसी ने था,
देखा जो मुड़ के शख़्स वहां पर कोई न था।
यूं तो निगाह जो भी उठी, थी सवालिया,
ये क्या हुआ कि रिश्ता बन कर बिगड़ गया।
"वर्षा" जवाब दूं क्या अब इस जहान को
मैं भूल गई मेरा अपना पता है क्या !
साहित्य वर्षा : डॉ. वर्षा सिंह |
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साहित्य वर्षा : डॉ. वर्षा सिंह |
साहित्य वर्षा : डॉ. वर्षा सिंह |
साहित्य वर्षा : डॉ. वर्षा सिंह |
साहित्य वर्षा : डॉ. वर्षा सिंह |
साहित्य वर्षा : डॉ. सुश्री शरद सिंह |
साहित्य वर्षा : डॉ. सुश्री शरद सिंह |
साहित्य वर्षा : डॉ. सुश्री शरद सिंह |
साहित्य वर्षा : डॉ. सुश्री शरद सिंह |
साहित्य वर्षा : डॉ. सुश्री शरद सिंह |
साहित्य वर्षा : डॉ. सुश्री शरद सिंह |
साहित्य वर्षा : डॉ. वर्षा सिंह |
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