Thursday, May 2, 2019

सागर : साहित्य एवं चिंतन 49 ... साहित्य सृजन को गंभीरता से लेने वाले युवा कवि आदर्श दुबे - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के युवा कवि आदर्श दुबे पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

साहित्य सृजन को गंभीरता से लेने वाले युवा कवि आदर्श दुबे

                             - डॉ. वर्षा सिंह
                                         
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परिचय :- आदर्श दुबे
जन्म :-  03 जनवरी 2001
जन्म स्थान :- जैसीनगर, सागर (म.प्र.)
पिता एवं माताः- श्री श्यामशरण दुबे एवं श्रीमती ज्योति दुबे
शिक्षा :- 12वीं
लेखन विधा :- कविताएं
प्रकाशन :- विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में
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एक ओर जब युवावर्ग हिन्दी साहित्य से विरत होते जा रहा है, ऐसे समय जब कोई युवा को साहित्य सृजन को गंभीरता से लेते हुए दिखाई दे तो यह आश्वस्त करता है कि हिन्दी साहित्य में उतार-चढ़ाव भले ही आ रहे हों किन्तु स्थिति अभी शोचनीय नहीं हुई है। उचित दिशा मिलने पर ऐसे ही युवा रचनाकार हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में अपना योगदान दे सकते हैं, बशर्ते वे अपने संकल्प पर स्थायीभाव बनाएं रखें। यागर के साहित्य जगत् में विगत कुछ समय में कई युवाओं ने दस्तक दी है जिनमें से एक हैं आदर्श दुबे।
श्री श्यामशरण दुबे एवं श्रीमती ज्योति दुबे के घर 03 जनवरी 2001 को जन्में आदर्श दुबे को जीवनानुभव भले ही अभी अधिक नहीं है किन्तु उनकी विशेषता है कि वे जिज्ञासु हैं और अच्छे से अच्छा लिखने का प्रयास करते रहते हैं। यूं तो अभी उन्होंने औपचारिक शिक्षा के भी पर्याप्त सोपान नहीं चढ़े हैं किन्तु वे जीवन के प्रत्येक पक्ष को समझने का भरपूर प्रयास करते रहते हैं। आदर्श दुबे को साहित्य से बाल्यावस्था से ही लगाव रहा। सागर के जैसीनगर ब्लाक के ओरिया गांव में जहां दनका बचपन बीता वहां उन्हें पर्याप्त साहित्यिक किताबें तो नहीं मिलती थीं किन्तु जो भी किताबें मिलतीं उन्हें वे बड़े चाव से पढ़ते। विद्यालयीन स्तर पर भाषण प्रतियोगतिओं में भी वे बढ़-चढ़ कर भाग लेते जिसके कारण जहां एक ओर उनकी सृजन क्षमता का विकास हुआ, वहीं दूसरी ओर मंचों के प्रति लगाव भी जागा। आयु में कुछ परिपक्वता आने के साथ आदर्श दुबे का रुझान गजलों के प्रति हुआ। वे बताते हैं कि - ‘‘स्व. दुष्यंत कुमार और वसीम बरेलवी की गजलों उन्हें बहुत पसंद आयीं इन दोनों शायरों की गजलों के प्रभाव से धीरे-धीरे वे भी शेर कहने लगे और गजलों से उन्हें प्यार हो गया।’’
Sagar Sahitya Avam Chintan - Dr. Varsha Singh # Sahitya Varsha

गजलों के व्याकरण को भली-भांति समझने के लिये आदर्श दुबे को लगा कि उर्दू गजल को भी समझना चाहिये। इसीलिये उन्होंने उर्दू सीखने की ठानी। आदर्श दुबे इस छोटी सी उम्र में देश के अनेक कवि सम्मेलनों में काव्यपाठ कर चुके हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन से उन्होंने काव्यपाठ किया है तथा एक प्रतिष्ठित न्यूज चैनल के कार्यक्रम ‘‘कवि दरबार’’ में भी काव्यपाठ किया है। आदर्श दुबे कवि सम्मेलनों के एक कुशल संचालक भी हैं।
आदर्श दुबे की गजलों में कहन की जो गम्भीरता दिखाई देती है, वह उनकी गजलों को एक अलग ही जमीन देती है। वे बिम्बों का सिद्धहस्त तरीके से प्रयोग करते हैं। उनकी एक गजल के कुछ शेर देखें-
हम कहीं भी हों मगर ये चिट्ठियां रह जायेंगी।
गुल सभी ले जायेंगे पर पत्तियां रह जायेंगी।
काम करना हो जो कर लो आज की तारीख में
आंख नम हो जायेगी फिर सिसकियां रह जायेंगी।
इस नये कानून का मंजर यही दिखता है अब
पांव कट जायेगा लेकिन बेड़ियां रह जायेंगी।
सिर्फ लफ्जों को नहीं अंदाज भी अच्छा रखो
इस जगत में सिर्फ मीठी बोलियां रह जायेंगी।
आदर्श दुबे गजल की परम्परागत शैली को तो अपनाते हैं किन्तु नये प्रयोग करने से भी हिचकते नहीं हैं। उनकी यही सृजन क्षमता उनकी कई गजलों को वरिष्ठ गजलकारों के समकक्ष ला खड़ा करती है। बानगी देखिये -
तेरे आंसुओं का गुनहगार हूं मैं।
सुलगता हुआ एक अखबार हूं मैं।
मुसल्सल जमाने से बचता रहा हूं
मगर तेरे आगे खतावार हूं मैं।
खड़ा हूं सफों में गुलामों की देखो
पुराने कबीले का सरदार हूं मैं।

डॉ. वर्षा सिंह के दायें बैठे कवि आदर्श दुबे # साहित्य वर्षा

      युवा कवि आदर्श दुबे के कुछ शेर मंचों पर उनसे बार-बार सुने जाते हैं। जैसे कि ये कुछ शेर देखिये -
कड़कती ठंड में यारों निकल के देख लेना तुम।
चिलखती धूप में यारों पिघल के देख लेना तुम।
जरा महसूस तो करना हिफाजत कैसे होती है
कभी सरहद की वादी में टहल के देख लेना तुम।

नहीं कोई मिलेगा दूसरा तुमको जमाने में।
लगंगा वक्त अभी तो आशियां अपना बनाने में।
बिगड़ जाते हो तुम अक्सर मेरी छोटी सी गलती पर
गुजर जाये न मेरी ये उमर तुमको मनाने में।

बायें से :- आदर्श दुबे, डॉ. वर्षा सिंह # साहित्य वर्षा

गजलों में प्रेम के चित्रण को हमेशा से महत्व दिया जाता है। जब आज के दौर में श्थार्थवादी गजलें बड़े पैमाने में कही जा रही हैं वहीं इश्क मिजाजी भी अपनी जगह बनाए हुए है। आदर्श दुबे की गजलें भी इससे अछूती नहीं हैं-
सूना पछ़ा है दिल का मकां आपके बगैर।
हर सिम्त उठ रहा है धुआं आपके बगैर।
यूं तो खिले हैं फूल कई रंग के मगर
फीके पड़े हैं दोनो जहां आपके बगैर।
ये सोच कर मैं घम रहा हूं यहां वहां
राहत मिलेगी दिल को कहां आपके बगैर।
युवा कवि आदर्श दुबे अपनी गजलों से सागर के साहित्यिक जगत को सुखद सम्भावनाओं से परिपूर्ण करते हैं तथा इस बात का भी भरोसा दिलाते दिखाई देते हैं कि वे रचनाकर्म से इसी तरह गम्भीरता से जुड़े रहेंगे, यद्यपि आयु और जीवनानुभव की दृष्टि से उनकी यात्रा अभी बहुत लम्बी है। इस यात्रा में अनेक उतार चढ़ाव भी आयेंगे जिनसे गुजरते हुए उन्हें अपनी सृजन क्षमता को साधे रखना होगा।
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( दैनिक, आचरण  दि. 02.05.2019)
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