Friday, May 3, 2019

3 मई यानी विश्‍व प्रेस स्‍वतंत्रता दिवस (World Press Freedom day) और सागर में पत्रकारिता के रत्न- डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
प्रेस की आज़ादी का अर्थ है नागरिक अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी।
 भारत में पत्रकारिता का गौरवशाली इतिहास है। स्वतंत्रता आंदोलन में पत्रकारों की अहम भूमिका रही।
प्रेस की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को परिभाषित करता है ।

दुनिया भर में 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे) मनाया जाता है. प्रेस स्वतंत्रता दिवस का उद्देश्य प्रेस की आजादी के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखना रखना है.

साल 1991 में अफ्रीका के पत्रकारों ने प्रेस की आजादी के लिए आवाज उठाई थी. उन पत्रकारों ने 3 मई को प्रेस की आजादी के सिद्धांतों से संबंधित ‘डिक्लेरेशन ऑफ विंडहोक’ नामक बयान जारी किया था. जिसके बाद साल1993 में संयुक्त राष्ट्र ने प्रेस दिवस मनाने की घोषणा की थी.

पत्रकार समाज के हित में सजग रहते हैं। भारत में आपातकाल के दौरान जब प्रेस की आज़ादी पर आँच आई थी तब पत्रकारों ने धैर्य और साहस से सामना किया।
मध्यप्रदेश के सागर नगर में पत्रकारिता का लम्बा इतिहास है।

वर्तमान में प्रेस की स्वतंत्रता पर परोक्ष रूप से अंकुश लगाया जाता है। पत्रकारिता के मूल्यों का क्षरण हो रहा है। वह दौर था जब देश की स्वतंत्रता में पत्रकारिता की अहम भूमिका थी और सागर में भाई अब्दुल गनी, मास्टर बल्देव प्रसाद, ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी, पं. पद्मनाभ तैलंग, पं. महेश दत्त दुबे, शिवकुमार श्रीवास्तव आदि पत्रकार रहे, जिन्होंने इसमें अहम भूमिका निभाई।
सन् 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में बुन्देलखण्ड का एक विशेष योगदान रहा। ब्रिटिश शासन ने इसे शक्तिहीन एवं विखण्डित करने की योजना बनाई। जन असंतोष लगातार बढ़ रहा था। इसे मुखर करने हेतु समाचार पत्रों का प्रकाशन हैण्ड प्रेस तथा लिथो प्रेस से प्रारम्भ हुआ। साइक्लोस्टाइल मशीनें भी यत्र-तत्र उपलब्ध थीं। बुन्देलखण्ड का प्रथम समाचार पत्र कहां से व कब छपा अनिर्णीत है। उपलब्ध जानकारी के आधार पर सन् 1871 ई. में बुन्देलखण्ड  में "विचार वहन' मासिक सागर से प्रकाशित हुआ। इसके सम्पादक श्री नारायण बालकृष्ण - थियोसफी विचारधारा- से प्रभावित थे। सन् 1894 ई. में साप्ताहिक पंच झांसी से प्रकाशित हुआ।

सागर में भाई अब्दुल गनी ने साम्प्रदायिक एकता को बढ़ावा देने के लिए  "समालोचक' पत्र निकाला।
श्री गोविन्द प्रसाद सिलाकारी ने सन् 1922 में सागर से "भृगु' पत्रिका का सम्पादन किया। जैन समाज ने सागर से "गोलपुर जैन' का प्रकाशन किया।
सन् 1923 ई. में सागर से "दैनिक प्रकाश' का प्रकाशन भगवान प्रिंटिंग प्रेस से प्रारम्भ हुआ। इसके सम्पादक मास्टर बलदेव प्रसाद जी थे तथा संस्थापक एवं प्रकाशक  प्रेमनारायण शर्मा थे। मुख्य शीर्ष में निम्न पंक्तियां थीं।

"देश दशा दर्शन देता, यह मनोभाव नित करे विकास।
राष्ट्रप्रेम, स्वतंत्र मानव हित, पढ़िये दैनिक पत्र प्रकाश।'

लगभग 100 अंक प्रकाशित होने के बाद यह पत्र बंद हो गया।

सागर शहर में पत्रकारिता के पितृपुरुष स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,समाजसेवी और साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रतीक थे सागर के भाई अब्दुल गनी ।अपनी निर्भीक कलम से स्वतंत्रता संग्राम के दौरान फिरंगियों के विरुद्ध लिखने वाले वे सागर में पत्रकारिता के पितृपुरुषों मे से एक थे ।अपने आन्दोलनों और पत्रकारिता के कारण उन्हें अपने जीवन के कई अनमोल वर्ष अंग्रेजों की जेल में गुजारना पड़े । यहाँ तक कि उनकी पत्नी और बेटी का जेलयात्रा के दौरान देहान्त हो गया किन्तु वे माफी माँगने को तैयार न हुये और उनके अन्तिम संस्कार से वंचित रहे।
 
सागर पत्रकारिता के रत्न भाई अब्दुल गनी # साहित्य वर्षा
                   सन् 1898 को सागर जिले की खुरई तहसील में जन्मे भाई अब्दुल गनी ने सागर शहर को समाज सेवा के लिये चुना था ।सन् 1916 में प्राइमरी स्कूल टीचर के रूप में सरकारी नौकरी ज्वाईन की परन्तु जब उन्हें सरकारी नौकरी समाज सेवा के क्षेत्र में बाधक लगी तो उन्होंने उसे छोड़ दिया ।सन् 1919 में रोलेट एक्ट के विरोध के साथ राष्ट्रीय आन्दोलन में शामिल हुये ।फिर उसके बाद स्वतँत्रता से संबंधित कोई आन्दोलन नहीं जिसमें उन्होंने बढ़-चढ़कर भाग न लिया हो ।अपने सेनानी रूप और लौह लेखनी के कारण वे एकाध बार नहीं वरन एक दर्जन बार जेल गये ।
                        सन् 1922 में पंडित सुन्दरलाल के अखबार दैनिक भविष्य एवं मूलचंद अग्रवाल के दैनिक विश्वमित्र से जुड़कर उन्होंने अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत की थी ।सन् 1924 में सागर से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र समालोचक का संपादन गनी साहब ने किया था ।वे कुछ वर्षों जबलपुर में रहे जहाँ से सन्1927 में साप्ताहिक हिन्दुस्तान का संपादन और प्रकाशन प्रारम्भ किया था ।सागर से सन् 1937 में साप्ताहिक समाचार पत्र "देहाती दुनिया " का प्रकाशन और संपादन प्रारंभ किया था जोकि मृत्यु पर्यन्त चला ।
                         एक विदेशी कंपनी ने सागर के पास रतौना में एक बड़ा यांत्रिक कत्लखाना खोलने का निश्चय किया था जिंसमें प्रतिदिन हजारों गायों और दूसरे पशुओं का कत्ल होता ।भाई अब्दुल गनी ने उसके विरुद्ध रतौना सत्याग्रह का नेतृत्व करके उसे एक जन आन्दोलन का रूप दिया और घोषणा कर दी कि कोई भी गाय को काटने से पहले उनकी गर्दन काटना पड़ेगी ।अपने अखबारों में भी उस कत्लखाने के विरुद्ध धुआँधार लेख लिखे ।देश के अन्य प्रतिष्ठित अखबार भी उनके पक्ष में हो गये।फलततः उस कम्पनी को कत्लखाना खोलने के विचार त्यागना पड़ा ।इस प्रकार गनी साहब के प्रयासों से एक गलत काम होने से रुक गया।
सागर पत्रकारिता के रत्न पण्डित ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी # साहित्य वर्षा

सन् 1920 ई. में सागर से आठ किमी. पश्चिम "रतौना' ग्राम में अंग्रेजों ने कसाईखाना खोलने का पट्टा कलकत्ता की डेवनपोर्ट कम्पनी को प्रदान किया। 1400 पशु काटने का उन्हें लाइसेन्स मिला। इसी प्रकार का एक कसाईखाना दमोह में भी स्वीकृत हुआ था। इनको बन्द कराने का बीड़ा समाचार पत्रों ने उठाया। साप्ताहिक प९ "कर्मवीर' जबलपुर के सम्पादक पं. माखनलाल चतुर्वेदी, "वन्देमातरम्' के सम्पादक लाल लाजपतराय, उर्दू के समचार पत्र "ताज' के सम्पादक श्री ताजुद्दीन तथा "श्री शारदा' ने आवाज बुलन्द की। पं. मदनमोहन मालवीय, श्री केशवराम चन्द्र खण्डेकर - सागर - स्वामी कृष्णानन्द आदि के संघर्षों से विवश होकर सरकार को कसाईखाना बन्द करना पड़ा। यह पत्रकारिता की महान विजय थी।
सागर से सन् 1938 ई. में श्री अब्दुल गनी ने "देहाती दुनिया' निकाला।

सागर से सन् 1946 ई. में श्री ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी ने साप्ताहिक "विन्ध्य केसरी', श्री रामकृष्ण पाण्डेय ने "पराक्रम' तथा दतिया से श्री जर्नादन प्रसाद पाण्डेय ने "किसान पंचायत' प्रकाशित किया।
       नागपुर विश्वविद्यालय से एम.ए. हिंदी में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान पर रहकर स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी ने राजनीति से कभी कोई लाभ अर्जित नहीं किया और न ही कभी अपने सिद्धांतों से समझौता किया।वे सच्चे गांधीवादी थे।

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