Wednesday, June 19, 2019

सागर : साहित्य एवं चिंतन 54 .... संवेदनशील एवं ऊर्जावान कवयित्री डॉ. चंचला दवे - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर की कवयित्री डॉ. चंचला दवे पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

संवेदनशील एवं ऊर्जावान कवयित्री डॉ. चंचला दवे
                     - डॉ. वर्षा सिंह
                     
-------------------------
परिचय :
नाम  :- डॉ. चंचला दवे
जन्म :-  13 मार्च 1952
जन्म स्थान :- चंद्रपुर (महाराष्ट्र)
माता-पिता :- स्व. सूरज बेन पंड्या एवं स्व. सोमनाथ पंड्या
शिक्षा  :- बी.एड., एम.ए., पी.एच. डी.
लेखन विधा :- काव्य।
------------------------------

        सागर के साहित्यिक जगत को जितना समृद्ध हिन्दी भाषियों ने किया है उतना ही समृद्ध किया है अहिन्दी भाषियों ने जिनमें महाकवि पद्माकर तेलगूभाषी थे। वर्तमान में डॉ. चंचला दवे इसका एक अनुपम उदाहरण हैं। डॉ. चंचला दवे बहुभाषी हैं। उनकी मातृभाषा गुजराती है। उनका जन्म 13 मार्च 1952 को महाराष्ट्र के चंद्रपुर में हुआ। जहां उन्हें मराठी भाषा का ज्ञान प्राप्त हुआ। अपनी अभिरुचि के अनुरुप उन्होंने हिन्दी का गहन अध्ययन किया और डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। तदोपरांत बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल से ' नई कविता के संदर्भ में भवानी प्रसाद मिश्र की कविताओं का अनुशीलन’ विषय में पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की। गुजराती, मराठी, और हिन्दी के साथ ही अंग्रेजी ओर संस्कृत का भी उन्हें पर्याप्त ज्ञान है।
         मृदुभाषी एवं आत्मीयता से परिपूर्ण डॉ चंचला दवे सन् 1972 से सागर में निवासरत हैं। उनके पति श्री सुशील दवे बैंककर्मी रहे हैं जिसके कारण उन्हें स्थानान्तरण का अनुभव होता रहा। सन् 1983 में उनके पति का स्थानांतरण सागर की खुरई तहसील स्थित बैंक शाखा में हो गया। डॉ चंचला दवे ने वहीं सन् 1983 से 1994 तक होली फैमिली कान्वेंट हायर सेकंडरी स्कूल में व्याख्याता के पद पर शिक्षण कार्य किया। इसके बाद अक्टूबर 1994 से 2012 तक श्रीवल्लभ दास माहेश्वरी महाविद्यालय खुरई जिसे कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय के नाम से भी जाना जाता है, में प्राध्यापक के पद पर रहते हुए शिक्षण कार्य किया। इस दौरान अनेक अवसर पर उन्हें प्रभारी प्राचार्य का दायित्व भी सम्हालना पड़ा। सेवा कार्य के साथ ही वे साहित्य सृजन से लगातार जुड़ी रहीं। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनकी लगभग 35 कविताओं का प्रकाशन हुआ। साहित्यिक पत्रिका ‘आकंठ’ में भी उनकी कविता प्रकाशित हुई। उन्होंने अनेक पुस्तकों की समीक्षाएं एवं आलेख लिखे जो देश की पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे। उन्हें अनेक राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठीयों में सहभागिता का भी अवसर मिला। डॉ. दवे ‘सृजन के स्वर’ नामक पुस्तक की सहायक संपादक रहीं। आकाशवाणी सागर, भोपाल से उनकी रचनाओं का प्रसारण होता रहता है।
         श्रीवल्लभ दास माहेश्वरी महाविद्यालय खुरई  से सन् 2012 मे सेवा निवृत्त हुईं डॉ. चंचला दवे सेवा निवृत्ति के उपरांत साहित्य सृजन में पुनः सक्रिय हो गईं। जिसका सुपरिणाम उनकी काव्यकृति ‘‘गुलमोहर’’ के रूप में सामने आया।
Sagar Sahitya Avam Chintan - Dr. Varsha Singh


        साहित्य सृजन के लिए उन्हें अब तक अनेक सम्मानों से विभूषित किया जा चुका है जिनमें प्रमुख हैं- गुजराती बाज खेडावाल समाज के रजत जयंती समारोह में 22 जून 2018 को राज्यपाल श्रीमती आनंदी बेन पटेल म प्र द्वारा साहित्य सम्मान, सन् 2018 में ही संभागीय साहित्यकार सम्मेलन सागर द्वारा सुधारानी डालचंद जैन सम्मान, 14 सितम्बर 2017 को श्यामलम् संस्था, सागर द्वारा स्व. डॉ सरोज तिवारी स्मृति में, ‘नारी प्रतिभा सम्मान’। इससे पूर्व हिंदी साहित्य संमेलन प्रयाग द्वारा प्रज्ञा भारती की मानद उपाधि, हिंदी साहित्य संमेलन प्रयाग द्वारा महादेवी वर्मा की जन्म शती पर सारस्वत सम्मान, महिला सम्मान सागर,  जे एम डी पब्लिकेशन नईदिल्ली द्वारा, हिंदी सेवी सम्मान, विचार संस्था सागर सागर गौरवसम्मान, डालचंद जैन की स्मृति में साहित्यकार सम्मान भी उन्हें प्राप्त हो चुका है। वे अनेक सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक समारोहों का सफल मंच संचालन कर चुकी हैं। वे सामाजिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं की सदस्य भी हैं जैसे एलांयंस क्लब इंटरनेशनल, समर्पण सागर क्लब, सरस्वती शिशु मंदिर विद्वत परिषद, म प्र लेखिका संघ, लायंस क्लब सागर झील। वे स्थानीय संगीत श्रोता समाज की उपाध्यक्ष भी हैं।
         अपने जीवनानुभव एवं रचनाकर्म के बारे में डॉ चंचला दवे का कहना है कि -‘‘ कविताएं लिखने का शौक स्कूल के दिनो से ही था, बचपन में पिता को खो देने के बाद,उन पर भाईयो पर कविता लिखते रहे, महाविद्यालय में भी यह शौक जारी रहा। मेरा विवाह 19 वर्ष में हो गया था। बी.ए. के बाद सारा अध्ययन विवाहोपरांत हुआ। राष्ट्र, समाज, नगर में घटित होने वाली  घटनाएं मेरी आत्मा को प्रभावित करती रहती है। इसी अन्तर्मथन से जो भाव शब्द बनकर निकलते है, कविता का रूप ले लेते है.अधिकांश कवितांएं मेरे जीवन में घटित होने वाली ,घटनाओं की परिणती है। मेरे जीवन का स्वर्ण काल खुरई में व्यतीत हुआ। वही मेरी कर्म भूमि रही। मातृभाषा गुजराती होने के बाद सृजन हिंदी में ही होता रहा। अभी गुजराती पुस्तक का हिंदी अनुवाद कर रही हूं। कुछ गुजराती कविताओं का हिंदी अनुवाद जारी है। मेरी कुछ कविताओं का मराठी अनुवाद, डॉ संध्या टिकेकर कर रही है।’’
          डॉ. चंचला दवे की कविताओं में समाज में व्याप्त विद्रूपताओं का मार्मिक दृश्य देखने को मिलता है जो एक अतिसंवेदनशील कवयित्री के रूप में उनकी पहचान स्थापित करता है। लड़कियों पर लगाई जाने वाली बंदिशें और उनके प्रति होने वाले अपराध कवयित्री के मन को कचोटते हैं और उनकी ‘‘सुरक्षा कवच’’ शीर्षक से यह कविता सामने आती है-
ऐसा न हो
कल, फिर से बेटियों को
रखने लगे/ पर्दो में
लौटने लगे/मुगलों की प्रवृति
शेर चीते,भालू,लोमड़ी,सियार
घूमने लगे आस पास
सांसे लेना हो जाएं दूभर
केवल दिखे फौज/नरभक्षियों की
बेटियों का रोना चीखना
उसकी करूण पुकार
क्यों बहरे हो गये हैं हम?
आइए हम बनते है/सुरक्षा कवच
अपनी बेटियों का/बचाते हैं,उन्हे
नर भक्षी भेडियों से।
बायें से : डॉ.वर्षा सिंह, डॉ. चंचला दवे, डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, श्रीमती चौधरी एवं श्रीमती सीमा दुबे

         डॉ. चंचला दवे की रचनाशीलता की यह विशेषता है कि वे जीवन के कठोर पक्ष का आकलन तो करती ही हैं साथ ही, जीवन के कोमन पक्ष को भी बड़ी सुंदरता से अपनी अभिव्यक्ति में शामिल करती हैं। जैसे उनकी एक कविता है ‘‘मेरे मन के चांद हुए’’। इस कविता में प्रेमाभिव्यक्ति का मधुर रूप परिलक्षित होता है-
तुम मेरी
अनदेखी अनजानी प्रीत हो
दिल में तुम/आन बसे हो
जब से मिले हो/तुम
रंग मेरे मकरंद हुए
जब से सुना है/तुम को
साजो के सुर/मंद हुये
सपनों का तुम रूप/मनोहर
मेरे मन के चांद हुये
अधरों के स्वर/सूख गये
लेखन का रंग/लाल हुआ
नदिया की तुम/निर्मल धारा
जीवन का तुम गान हुए
शब्द सभी/निःशब्द हुए
मेरा तुम/ विश्वास हुए

           मनुष्य ने अपने जीवन को समयबद्ध करने के लिए घंटे, मिनट और वर्ष बनाए। नए वर्ष का आगमन और पुराने वर्ष का गमन एक समयमापी प्रक्रिया ही तो है किन्तु मनुष्य अपने बनाए सांचों  अथवा मानवों के प्रति किस प्रकार अनुरक्त हो जाता है कि वह समय के गुजरने की आहट को भी ठीक से सुन नहीं पाता है। डॉ चंचला दवे ने अपनी कविता ‘‘नया साल’’ में इसी तथ्य को व्यावहारिक ढंग से उठाया है-
आज 19 दिसंबर है
2018 को जाने में
बाकी है पूरे 12 दिन
फिर आयेगा, नया साल
आज का/साल बीता हो जायेगा
अतीत में/केलेंडर की तरह
फड़फडाती जिन्दगी
हवा में/उड़ती रहेगी
न पंख होंगे/ उड़ने को
और न बतियाने जीभ
काटने के लिये, नहीं होंगे/दांत
होगी तो केवल
जेहन में याद करने/स्मृतियां।

          डॉ. चंचला दवे एक ऊर्जावान कवयित्री हैं। भले ही अपने पारिवारिक दायित्वों के कारण उनकी सृजनशीलता की गति धीमी रही किन्तु अब वे एक बार फिर काव्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की ओर लौट आई हैं। यही आशा है कि उनका काव्य सृजन सागर नगर के साहित्यिक संपदा में निरंतर श्रीवृद्धि करेगा।
 
                   --------------
   
( दैनिक, आचरण  दि. 19.06.2019)
#आचरण #सागर_साहित्य_एवं_चिंतन #वर्षासिंह #मेरा_कॉलम #MyColumn #Varsha_Singh #Sagar_Sahitya_Evam_Chintan #Sagar #Aacharan #Daily

कवयित्री चंचला दवे की whatsapp पर टिप्पणी का स्क्रीन शॉट....

# साहित्य वर्षा

No comments:

Post a Comment