Monday, July 29, 2019

नामवर सिंह स्मृति समारोह... यानी एक दोपहर चर्चा नामवर पर - डॉ. वर्षा सिंह

   
Dr. Varsha Singh

मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग की साहित्य अकादमी भोपाल ने रविवार 28 जुलाई 2019 को सागर नगर स्थित आदर्श संगीत महाविद्यालय में नामवर सिंह स्मृति समारोह का आयोजन किया। समारोह में आलोचक नामवर सिंह की स्मृति समारोह में हिन्दी आलोचना और साहित्य पर चर्चा हुई। जिसमें नगर के प्रमुख साहित्यकारों सहित मैं यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह एवं प्रख्यात लेखिका डॉ. (सुश्री) शरद सिंह भी शामिल हुईं।

हिंदी आलोचना के शलाका पुरुष नामवर सिंह हिन्दी आलोचना की वाचिक परम्परा के आचार्य कहे जाते हैं। कहा जाता है कि नामवर सिंह के जीवन में जो समय संघर्ष का समय था वह हिंदी साहित्य के लिए सबसे मूल्यवान समय रहा, क्योंकि इसी समय में नामवर सिंह ने गहन अध्ययन किया.

नामवर सिंह का जन्म 28 जुलाई, 1926 को बनारस जिले की चंदौली तहसील, जो अब जिला बन गया है, के जीयनपुर गांव में हुआ था. नामवर सिंह ने  प्राथमिक शिक्षा बगल के गांव आवाजापुर में हासिल की. बगल के कस्बे कमालपुर से मिडिल पास किया.  बनारस के हीवेट क्षत्रिय स्कूल से मैट्रिक किया और उदयप्रताप कालेज से इंटरमीडिएट. 1941 में कविता से लेखकीय जीवन की शुरुआत की.

नामवर सिंह की पहली कविता बनारस की 'क्षत्रियमित्र’ पत्रिका में छपी. नामवर सिंह ने वर्ष 1949 में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से बी.ए. और 1951 में वहीं से हिंदी में एम.ए. किया. वर्ष 1953 में वह बीएचयू में ही टेंपरेरी लेक्चरर बन गए. 1956 में उन्होंने 'पृथ्वीराज रासो की भाषा' विषय पर पीएचडी की और 1959 में चकिया-चंदौली से लोकसभा का चुनाव लड़ा वह भी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर.


नामवर सिंह यह चुनाव हार गए और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से कार्यमुक्त कर दिए गए. वर्ष 1959-60 में वे सागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में सहायक अध्यापक हो गए. 1960 से 1965 तक बनारस में रहकर स्वतंत्र लेखन किया. फिर 1965 में 'जनयुग’ साप्ताहिक के संपादक के रूप में दिल्ली आ गए. इसी दौरान दो वर्षों तक राजकमल प्रकाशन के साहित्यिक सलाहकार भी रहे. 1967 से 'आलोचना’ त्रैमासिक का संपादन शुरू किया. 1970 में राजस्थान में जोधपुर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुए और हिंदी विभाग के अध्यक्ष बने.

1971 में 'कविता के नए प्रतिमान’ पुस्तक पर नामवर सिंह को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला. 1974 में थोड़े समय के लिए कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ  आगरा के निदेशक बने. उसी साल दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केंद्र में हिंदी के प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुए और 1992  तक वहीं बने रहे. वर्ष 1993 से 1996 तक राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन के अध्यक्ष रहे.



दो बार महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलाधिपति रहे. आलोचना त्रैमासिक के प्रधान संपादक के रूप में उनकी सेवाएं लंबे समय तक याद रखी जाएंगी.

हिंदी के लोकप्रिय साहित्यकार और समालोचक नामवर सिंह का निधन 92 वर्ष की आयु में दिनांक 19 फरवरी 2019  को हो गया. उन्होंने  दिल्ली के एम्स अस्पताल में मंगलवार रात 11.50 बजे अंतिम सांस ली. वह  के थे.
जैसा कि किसी विद्वत जन ने कहा था नामवर सिंह आधुनिकता में पारंपरिक हैं और पारंपरिकता में आधुनिक. उन्होंने पत्रकारिता, अनुवाद और लोकशिक्षण का महत्त्वपूर्ण कार्य किया, जिसका मूल्यांकन होना अभी शेष है.


 'हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग'' और ''पृथ्वीराज रासो की भाषा'' नामवर सिंह की शोधपरक रचनाएं हैं। उन्‍होंने ''आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ'', ''छायावाद'', ''इतिहास और आलोचना'', ''कहानी : नयी कहानी'', ''कविता के नये प्रतिमान'', ‘‘दूसरी परम्परा की खोज'' और ''वाद विवाद संवाद'' शीर्षक से आलोचना पर आधारित रचनाएं लिखीं । 90 वर्ष की आयु पूर्ण करने के अवसर पर प्रकाशित दो पुस्तकें आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की जययात्रा तथा हिन्दी समीक्षा और आचार्य शुक्ल वस्तुतः पूर्व प्रकाशित सामग्रियों का ही एकत्र प्रस्तुतिकरण हैं।



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