Dr. Varsha Singh |
स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के साहित्यकार लोकनाथ मिश्र "मीत" पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....
सागर : साहित्य एवं चिंतन
सहज अभिव्यक्ति के उल्लेखनीय कवि लोकनाथ मिश्र ‘मीत’
- डॉ. वर्षा सिंह
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परिचय :- लोकनाथ मिश्र ‘मीत’
जन्म :- 03 दिसम्बर 1949
जन्म स्थान :- सागर, मध्यप्रदेश
माता-पिता :- श्रीमती भागवती मिश्र एवं स्व. बाबूलाल मिश्र
शिक्षा :- एम.ए. (गणित), बी.एड., संगीत प्रभाकर
लेखन विधा :- पद्य
प्रकाशन :- दो काव्य संग्रह प्रकाशित
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बहुमुखी प्रतिभाएं अपने नगर का गौरव होती हैं। सागर नगर में भी बहुमुखी प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। एक ऐसे ही प्रतिभाशाली कवि जो नृत्य, संगीत, नाट्य जैसी साहित्यिक विधाओं के साथ ही जादू की कला में भी निपुण हैं, उनका नाम है लोकनाथ मिश्र। ये ‘मीत’ के उपनाम से कविताएं लिखते हैं। सागर नगर के मोहन नगर वार्ड में श्री बाबूलाल मिश्र एवं श्रीमती भागवती मिश्र की संतान के रूप में 03 दिसम्बर 1949 को लोकनाथ मिश्र का जन्म हुआ। माता-पिता की संगीत और साहित्य में गहन अभिरुचि थी। यह अभिरुचि लोकनाथ मिश्र में भी बाल्यावस्था से ही पुष्पित-पल्लवित होने लगी। पिताश्री धर्म-प्रवचन करते थे अतः धार्मिक ग्रंथों के प्रति लोकनाथ मिश्र की आरम्भ से ही जिज्ञासा रही। वे रुचि ले कर धार्मिक प्रसंगों को सुनते तथा उन पर चिंतन करते।
लोकनाथ मिश्र अपनी प्रारम्भिक शिक्षा के बारे में बताते हैं कि -‘‘जब प्राथमिक शाला चमेली चौक, सागर में प्रारम्भिक शिक्षा हेतु दाखिला हुआ तो कक्षा पहली में मेरे प्रथम गुरु पं. गौरी शंकर पंडा ने स्लेट पर ‘ग’ गणेश का लिखवा कर मेरी शिक्षा की नींव डाली।’’ वे अपने प्रथम गुरु की विशेषताओं के बारे में गर्व से चर्चा करते हुए कहते हैं कि -‘‘मेरे प्रथम गुरु पं. गौरी शंकर पंडा शहर के प्रसिद्ध कवि थे। जिन्होंने ‘‘शिव-शतक’’ नामक पुस्तक में शिव वंदना के सौ कवित्त बड़े ही अलंकारिक भाषा में लिखे। इस प्रकार मेरी प्राथमिक शिक्षा का सूत्रपात एक महान कवि गुरु के द्वारा हुआ। इसी परिणामस्वरूप आठवीं कक्षा में मैंने अपनी प्रथम कविता का सृजन किया।’’
बचपन में मिले साहित्य संस्कार के प्रभाव से लोकनाथ मिश्र सोलह-सत्रह वर्ष की आयु में कविताएं लिखने लगे जो समाचारपत्रों में प्रकाशित होने लगीं। सन् 1970 में कवि सम्मेलनों में जाना आरम्भ किया और शीघ्र ही लोकप्रियता भी मिलने लगी। इसके बाद उनकी भेंट सागर नगर के विद्वान समीक्षक एवं साहित्यकार डॉ. संतोष कुमार तिवारी से हुई। डॉ. तिवारी ने लोकनाथ मिश्र को अपनी कविताएं संकलित कर संग्रह के रूप में प्रकाशित कराने की प्रेरणा दी। इस प्रेरणा के परिणामस्वरूप सन् 1999 में उनका प्रथम कविता संग्रह ‘‘सभ्यता का फ़र्क़’’ प्रकाशित हुआ। इसके बाद साहित्यसृजन में उत्साहजनक गति आई और सन् 2005 में दूसरा संग्रह ‘अक्षर देवता’’ प्रकाशित हुआ। इस बीच धर्म मीमांसा की अपनी अभिरुचि के अनुरुप भगवान श्रीराम के जीवन पर आधारित शोधात्मक पुस्तक ‘‘मानस के सात भक्त’’ लिखी। इस पुस्तक के लेखन की प्रेरणा के संबंध में लोकनाथ मिश्र ‘मीत’ बताते हैं कि जब वे वृंदावन के प्रवास पर थे, तब उन दिनों अचानक उन्हें इस विषय पर शोधात्मक पुस्तक लिखने का विचार आया।
लोकनाथ मिश्र ‘मीत’ ने एकांकी लेखन भी किया है। वे अपनी एकांकियों के लेखन एवं मंचन के संबंध में बताते हैं कि -‘‘मेरे द्वारा रचित अनेक एकांकियों में ‘अनोखा चुनाव’ एकांकी बहुचर्चित रही। जिसका मंचन 07 दिसम्बर 1980 को सागर के एक छविगृह पारस टॉकीज़ में टिकट शो से हुआ। सन् 1990 के जनवरी माह में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के शासनकाल के दौरान यही एकांकी एक नुक्कड़ नाटक के रूप में सागर शहर के छः स्थानों पर अलग-अलग खेली गयी।’’
Sagar Sahitya Avam Chintan - Dr. Varsha Singh # Sahitya Varsha |
चूंकि लोकनाथ मिश्र ‘मीत’ के पिताश्री प्रवचनकार होने के साथ ही संगीत मर्मज्ञ थे अतः उनका सितारवादक रामजी हर्षे, तबला वादक करोड़ी लाल भट्ट, जलतरंग वादक जवाहर लाल भट्ट आदि संगीत क्षेत्र के स्वनामधन्य कलाकारों के साथ उठना-बैठना हुआ करता था। ये कलाकार उनके घर पर भी आया करते थे तथा आए दिन संगीतसभा का आयोजन होता रहता था। इनमें जवाहर लाल भट्ट लोकनाथ मिश्र के बचपन के मित्र थे। ऐसे संगीतमय पारिवारिक वातावरण ने लोकनाथ में संगीत के प्रति रुचि जगाई। वे अपने मित्र जवाहरलाल भट्ट की भांति संगीत में निपुण होना चाहते थे किन्तु संगीत उनके शौक तक सीमित हो कर रह गया और उन्होंने तबला एवं बांसुरी वादन तथा गायन का समुचित अभ्यास किया। तबले की शिक्षा उन्हें दिल्ली बाज घराने की परम्परा के तबलावादक करोड़ीलाल भट्ट से प्राप्त की। इसके बाद विधिवत् संगीत शिक्षा लेते हुए तबला वादन में प्रभाकर तथा संगीत में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। संगीत के मंचों पर सुविख्यात शास्त्रीय गायक गंगाप्रसाद पाठक, सितार वादक रामजी हर्षे एवं शरद गांगाधर सप्रे, जलतरंग वादक जवाहरलाल भट्ट के साथ संगत के रूप में तबला बजाने का अवसर मिला।
संगीत और साहित्य में समान रुचि के फलस्वरूप लोकनाथ मिश्र ‘मीत’ ने एक शोधात्मकग्रंथ लिखा जिसका नाम था-‘‘सम-संगीत एवं काव्य का मूल आधार’’। यह ग्रंथ सन् 2006 में प्रकाशित हुआ। संगीत शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से सन् 2009 में प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद (उ.प्र.) से मान्यता प्राप्त कर सागर नगर में श्री सरस्वती संगीत महाविद्यालय आरम्भ किया।
एक विशेष गुण जो लोकनाथ मिश्र को सागर के अन्य साहित्यकारों से अलग पहचान दिलाता है, वह है उनकी जादू की कला। उन्होंने न केवल मंचों पर अपनी जादू की कला का प्रदर्शन किया है अपितु वे बिहार राज्य के गया में आयोजित जादूकला पर आधारित कांफ्रेस में देश भर से एकत्र हुए बासठ जादूगरों के समक्ष अपने जादू का प्रदर्शन कर के वाहवाही प्राप्त कर चुके हैं। उल्लेखनीय है कि उन्होंने सन् 2013 में दिल्ली पब्लिक स्कूल सागर में एक निश्चित पाठ्यक्रम बना कर छः माह तक विद्यार्थियों को जादू कला का प्रशिक्षण दिया जिससे 565 छात्रों ने जादू कला सीखी। लेकिन वे जादूकला को अंधश्रद्धा एवं छल-कपट से दूर रखने में विश्वास रखते हैं। इस तारतम्य में उन्होंने सन् 1996 में राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सानिध्य में बैंगलुरु में ‘‘अंधश्रद्धा के विरुद्ध तथा वैज्ञानिक सोच जागृत करने के लिए’’ एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में नेहरु युवक केन्द्र संगठन के लगभग सौ अधिकारियों को चमत्कारों की वैज्ञानिक व्याख्या संबंधी प्रशिक्षण दिया। कवि लोकनाथ मिश्र को चिकित्सा संबंधी ज्ञान भी है। वे एक्यूप्रेशर, चुंबक चिकित्सा, पिरामिड चिकित्सा, रंग चिकित्सा, न्यूरो थेरेपी, म्यूजिक थेरेपी एवं विद्युत चिकित्सा के द्वारा रोगियों का इलाज भी करते हैं।
बहुआयामी प्रतिभा से युक्त लोकनाथ मिश्र का साहित्य सर्जक पक्ष भी महत्वपूर्ण है। उनकी कविताओं में जहां एक ओर गंभीर चिंतन रहता है वहीं दूसरी ओर हास्य-व्यंग का पुट भी पाया जाता है। समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं स्वार्थपरता की राजनीति पर कटाक्ष करते हुए वे लिखते हैं
प्रश्न अनसुलझे बहुत हैं, और तुमसे क्या कहें।
आप भी उलझे बहुत हैं, और तुमसे कया कहें।
भूख कब से द्वार पर बैठी हुई है गांव के
हाथ में छाले बहुत हैं, और तुमसे क्या कहें।
अब उजाले में मुखौटे, पहन कर निकला न कर
आईने बाहर बहुत हैं, और तुमसे क्या कहें।
जब से तुम सत्ता में आए, दूर दिल्ली हो गई
काम भी काले बहुत हैं, और तुमसे क्या कहें।
क्या करोगे एक रावण को जला कर, रामजी
देश में रावण बहुत हैं, और तुमसे क्या कहें।
साहित्यकार लोकनाथ मिश्र |
तंगहाल इंसानों और परेशान किसानों के प्रति संवेदना के भाव उमड़ना स्वाभाविक है। विपरीत परिस्थितियां और उनके कारणों को टटोलने पर परिस्थितियों की अनेक पर्त्तें खुलती दिखाई देती हैं। कुछ यही भाव लोकनाथ मिश्र ‘मीत’ की इस काव्य रचना में परिलक्षित होते हैं-
रात को जुगनूं से चमके और दिन में खो गये।
ऐसे सूरज इस जहां में बेतहाशा हो गये।
फसल सारी बो रहे हैं कल्पना के खेत में
बागवां ऐसे जहां में ढेर सारे हो गये।
पांव के छालों ने खींचा, अनुभवों का मानचित्र
रास्ते अब साफ़ सारे, मंज़िलों तक हो गये।
आज तक तो हाल न पूछा किसी ने मीत का
आखिरी जब सांस टूटी, यार सारे रो गये।
एक बहुत ही हृदयस्पर्शी एवं कोमल भावनाओं की कविता है -‘जन्म दिवस पर’, जिसमें कवि ‘मीत’ ने एक पुत्र की नींद के बहाने उस भावना को व्यक्त किया है जो अपनी संतान के सुख को ले कर माता-पिता के हृदय में मौजूद रहती है। यह कविता देखिए-
शी...ई... शोर मत करो/कुछ मत बोलो,
मेरे बेटे की पलकों पर
छाई गहरी नींद मत खोलो
क्योंकि! तमु नहीं जानते कि
आज मेरे बेटे का जन्मदिन है
उसके सुनहरे जीवन में /रस ही रस है
मैं नहीं चाहता कि कम से कम आज के दिन
उसकी आंखों से/एक भी आंसू बह जाए
या उसका कोई भी स्वप्न
अचानक नींद टूटने पर अधूरा रह जाए।
कवि लोकनाथ मिश्र ‘मीत’ अपनी कविताओं में भावनाओं एवं विचारों को जिस सहज भाव से पिरोते हैं, उनकी यह शैली उन्हें सहज अभिव्यक्ति का उल्लेखनीय कवि बनाती है।
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( दैनिक, आचरण दि. 30.07.2019)
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