Tuesday, February 11, 2020

एक मुलाकात शायर डॉ. मधुर नज़्मी से - डॉ. वर्षा सिंह


शे'र जब उभरते हैं सन्दली ख़यालों से
शाइरी महकती है तब नये सवालों से

अब अदब के गुलशन में फूल कम ही खिलते हैं
ज़ह्र फैलते हैं अब बे-अदब रिसालों में

छा रहा है सूरज पर अब्र का नया टुकड़ा
दूर कर न दे हमको तीरगी उजालों से

बेपरों की परवाज़ें बे-असर ही ठहरेंगी
पस्तियाँ ही आएँगी आपकी उछालों से

नफ़रतों का क़द शायद छोटा होने वाला है
लोग हो गए वाक़िफ़ रहबरों की चालों से

क्यों चला नहीं जाता, पाँव रुक गये हैं क्यों
हर जवाब मिल जाता पूछते जो छालों से

ऐ 'मधुर' अब उम्मीदें ख़ाक हो गयीं सारी
वक़्त का मछेरा ही घिर गया है जालों से

- मधुर नज़्मी

 विगत जनवरी 2020 में देश के प्रख्यात शायर मधुर नज़्मी जी का मोहम्मदाबाद गोहना, मऊ (उ.प्र.) से मेरे शहर सागर आए।  इस दौरान मैंने उन्हें अपने  पांचवें ग़ज़ल संग्रह "दिल बंजारा" की प्रति भेंट की तथा मैंने और मेरी बहन डॉ शरद सिंह ने उनसे साहित्यिक चर्चाएं कीं। उसी तारतम्य में मैंने उनका एक अनौपचारिक साक्षात्कार लिया जिसका मुख्य अंश यहां प्रस्तुत है -
*डॉ. वर्षा सिंह -* आप इतने बड़े ग़ज़लगो हैं, आप ग़ज़ल के वर्तमान परिदृश्य को कैसा पाते हैं?
*डॉ. मधुर नज़्मी-* ग़ज़ल का वर्तमान परिदृश्य चिन्ताजनक है क्योंकि सोशल मीडिया पर कथित शायरों की बाढ़ आ जाने से ग़ज़ल की गम्भीरता नष्ट हो रही है। आप लोगों जैसे शायरों की ग़ज़ल के प्रति प्रतिबद्धता यह भरोसा दिलाती है कि इस विधा को गम्भीरता से लेने वाले लोग अभी शेष हैं और ग़ज़ल की श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए कृतसंकल्प हैं।

*डॉ. वर्षा सिंह -* अक्सर यह सुनने में आता है कि साहित्य के प्रति अब लोगों मैं पहले जैसी रुचि नहीं रही। खुले मंच चुटकुलेबाजी का अड्डा बनते जा रहे हैं, आपका इस बारे में क्या कहना है?
*डॉ. मधुर नज़्मी-* आपका कहना सच है कि मंचों का स्तर अब पहले जैसा नहीं रहा। लेकिन मैं निराश नहीं हूं। साहित्य में बहुत ताकत होती है यदि  ईमानदारी से अपनाया जाए तो साहित्य सारी दुनिया से जोड़ने की ताकत रखता है। मैं मुफ़लिसी में पैदा हुआ लेकिन मेरी शायरी ने दस देशों में जा कर मुशायरे पढ़ने का मौका दिया।
*डॉ. वर्षा सिंह -* उर्दू ग़ज़ल और हिन्दी ग़ज़ल, इन दो भाषाई नामों पर भी अक्सर बहसें होती रहती हैं। क्या आप इस बंटवारे को उचित मानते हैं?
*डॉ. मधुर नज़्मी-* मैं ग़ज़ल विधा के संदर्भ में भाषाई विवाद को तरज़ीह नहीं देता हूं। ग़ज़ल तो वह है जो दिल से कही जाए और सुनने वाले के दिल को छू जाए।
*डॉ. वर्षा सिंह -* सागर आ कर आपको कैसा महसूस हो रहा है?
*डॉ. मधुर नज़्मी-* जी, सागर आ कर मुझे बहुत अच्छा लगा। सागर को मैं त्रिलोचन शास्त्री जी के सागर प्रवास के कारण जानता था, फिर आपके नाम से इसे जाना। यहां के लोग बहुत मिलनसार हैं।
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तीनबत्ती न्यूज़.कॉम
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