Saturday, August 8, 2020

हलषष्ठी | बलदेव जन्मोत्सव | डॉ. वर्षा सिंह

 

नीलाचलनिवासाय नित्याय परमात्मने ।

बलभद्रसुभद्राभ्यां जगन्नाथाय ते नमः ।।

       भगवान जगन्नाथ अर्थात् श्रीकृष्ण के साथ उनके अग्रज बलभद्र एवं बहन सुभद्रा को भी स्मरण नमन किया जाता है।

    बलभद्र, बलराम, बलदेव अथवा बलदाऊ जी का जन्म भाद्र मास के कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि को हुआ था अतः  भाद्र मास के कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि को हरछठ मनाया जाता है। इस व्रत - त्यौहार को हलषष्ठी, हलछठ , हरछठ व्रत, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ, ललही छठ, कमर छठ, या खमर छठ भी कहा जाता है। इस दिन को बलराम जयंती भी कहा जाता है। कुछ लोग बलराम जी को भगवान विष्णु का आठवां अवतार मानते हैं। जबकि कुछ इसके विपरित यह मानते हैं कि बलराम जी भगवान विष्णु के शेषनाग के अवतार हैं। जो हमेशा भगवान विष्णु की सेवा में रहते हैं।

       हलषष्ठी की प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। दरिद्रता के कारण घर-घर दूध बेचने को मजबूर थी। एक दिन उसकी संतान जन्म लेने वाली थी। लेकिन घर में दूध-दही बेचने के लिए रखा था। उसने सोचा अगर बच्चा हो गया तो वह दूध बेचने नहीं जा पाएगी। इसलिए वह घर से दूध बेचने के लिए निकल गई। वो गली-गली घूम कर दूध बेच रही थी। अचानक उसे प्रसव पीड़ा हुई तो वो झरबेरी के पेड़ के नीचे बैठ गई। वहीं उसने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। लेकिन उसके पास अभी बेचने के लिए दूध-दही बचा हुआ था। इसलिए वो अपने पुत्र को झरबेरी के पेड़ के नीचे छोड़ कर दूध बेचने के लिए चली गई। दूध नहीं बिक रहा था तो उसने सबको भैंस का दूध यह बोलकर बेच दिया कि यह गाय का दूध है। वह हलषष्ठी का दिन था। बलराम जी ग्वालिन के झूठ के कारण क्रोधित हो गए। झरबेरी के पेड़ के पास ही एक खेत था। वहां किसान अपने हल जोत रहा था। तभी अचानक हल ग्वालिन के बच्चे को जा लगा। हल लगने से उसके बच्चे के प्राण चले गए। ग्वालिन झूठ बोलकर दूध बेच कर खुश होते हुए आई। देखा तो बालक में प्राण नहीं थे। ग्वालिन को समझ आया कि उसने गांव वालों के साथ छल किया। उन्हें झूठ बोलकर भैंस का दूध गाय के दूध के दामों पर दिया है। इसलिए ही उसके पुत्र के साथ ऐसा हुआ। ग्वालिन रोती हुई वापस गांव गई। सभी गांव वालों को सच बताकर उनसे माफी मांगी। साथ ही भगवान बलराम से प्रार्थना की कि आज के दिन तो लोग पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत रखते हैं। आप मेरे पुत्र को मुझसे न छींने। बलराम जी ने उसके प्रायश्चित को स्वीकारा। इसके फल से उसका बेटा जीवित हो गया। इसीलिए महिलाएं अपने पुत्रों के दीर्घायु होने की कामना सहित हलषष्ठी का व्रत - पूजन करती हैं।


      महिलाएं संतान की लंबी आयु के लिए हरछठ का व्रत रखती हैं। यह पूजन सभी पुत्रवती महिलाएं करती हैं। इस व्रत को विशेष रूप से पुत्रों की दीर्घ आयु और उनकी सम्पन्नता के लिए किया जाता है। इस व्रत में महिलाएं प्रति पुत्र के हिसाब से छह छोटे मिट्टी या चीनी के वर्तनों में पांच या सात भुने हुए अनाज या मेवा भरतीं हैं। जारी (छोटी कांटेदार झाड़ी) की एक शाखा ,पलाश की एक शाखा और नारी (एक प्रकार की लता ) की एक शाखा को भूमि या किसी मिटटी भरे गमले में गाड़ कर पूजन किया जाता है। महिलाएं पड़िया वाली भैंस के दूध से बने दही और महुवा (सूखे फूल) को पलाश के पत्ते पर खा कर व्रत का समापन करतीं हैं।

       भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का अस्त्र हल होने की वजह से महिलाएं हल का पूजन करती है। महिलाएं तालाब बनाकर उसके चारो ओर छरबेड़ी, पलास और कांसी लगाकर पूजन करती हैं। साथ ही लाई, महुआ, चना, गेहूं चुकिया में रखकर प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है। हरछठ में बिना हल लगे अन्न और भैंस के दूध का उपयोग किया जाता है। इसके सेवन से ही व्रत का पारण किया जाता है।


       मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित पन्ना ज़िला मुख्यालय में श्रीकृष्ण भगवान के अग्रज बलदाऊ का जन्मदिन हलछठ का पर्व अनूठे अंदाज में मनाया जाता है। इस मौके पर यहां के भव्य श्री बल्देव जी मंदिर को विशेष तौर पर सजाया जाता है। पन्ना में इस विशाल मंदिर का निर्माण तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा रूद्रप्रताप सिंह ने 143 वर्ष पूर्व 1876 में करवाया था।

 

       बल्देव जी का मंदिर पूर्व और पश्चिम की स्थापत्य कला का अनूठा संगम है। बाहर से देखने पर यह मन्दिर लन्दन के सेन्टपॉल चर्च का प्रतिरूप नजर आता है। मन्दिर में प्रवेश हेतु 16 सोपान सीढ़ी, 16 झरोखे, 16 लघु गुम्बद व 16 स्तम्भ पर विशाल मंडप है।

 

   

 

 इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते कल 9 अगस्त 2020 को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए हलषष्ठी के दिन दोपहर 12.00 बजे श्री बल्देव जी मन्दिर, पन्ना सहित सागर आदि पूरे बुंदेलखंड में भगवान श्री हलधर का जन्म दिन हलछठ के रूप में मनाया जाएगा।

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