Thursday, August 6, 2020

शिखण्डी : स्त्री देह से परे | उपन्यास | डॉ. (सुश्री) शरद सिंह | चर्चा | डॉ. वर्षा सिंह

उसका अस्तित्व कैसा था ?
वह स्त्री था, पुरुष था अथवा तृतीय लिंगी ?
एक व्यक्ति से जुड़े अनेक प्रश्न  क्योंकि उसका अस्तित्व सामान्य नहीं था । वह शक्तिपुंज पात्र ‘महाभारत’ महाकाव्य का सबसे दृढ़ निश्चयी चरित्र है, जो अपने जीवन की प्रत्येक परत के साथ न केवल चैंकाता है वरन् अपनी ओर चुम्बकीय ढंग से आकर्षित भी करता है । वह पात्र है शिखण्डी, जिसका अस्तित्व भ्रान्तियों के संजाल में उलझा हुआ है । वहीं यह इतना प्रभावशाली पात्र है कि महर्षि वेदव्यास ने ‘महाभारत’ के सबसे इस्पाती पात्र भीष्म से ‘अम्बोपाख्यान’ कहलाया है, जो शिखण्डी की ही कथा है, जबकि भीष्म और शिखण्डी के मध्य वैमनस्यता का नाता रहा ।
इस अत्यन्त रोचक पात्र की जीवनगाथा अंतस को झकझोरने में सक्षम है । अत: शिखण्डी के सम्पूर्ण जीवन को नवीन दृष्टिकोण से जांचने, परखने और प्रस्तुत करने की आवश्यकता को अनदेखा नहीं किया जा सकता । जब शिखण्डी के जीवन की परतें खुलती हैं तो हमारे प्राचीन भारत में सुविकसित ज्ञान के उस पक्ष की भी परतेंं खुलकर सामने आने लगती हैं जहां शल्य चिकित्सा द्वारा लिंग परिवर्तन किए जाने के तथ्य उजागर होते हैं । इन तथ्यों का ही प्रतिफलन है यह उपन्यास ‘शिखण्डी : स्त्री देह से परे’ ।
       सागर मध्यप्रदेश में निवासरत डॉ. (सुश्री) शरद सिंह राष्ट्रीय स्तर की एक प्रतिष्ठित उपन्यासकार होने के साथ ही भारतीय इतिहास एवं परम्पराओं की अध्येता भी हैं । उनका ताज़ा उपन्यास "शिखण्डी : स्त्री देह से परे" इन दिनों चर्चा में है। अपने इस उपन्यास में उन्होंने ‘महाभारत’ के इस विशिष्ट पात्र शिखण्डी को, उसके जीवन की व्यापकता को, चमत्कृत कर देने वाले तथ्यों के साथ जिस रोचक ढंग से उजागर किया है, वह इस उपन्यास को अति विशिष्ट बना देता है ।
        "खजुराहो की मूर्तिकला” विषय में पीएचडी, सागर की प्रतिष्ठित साहित्यकार, कथा लेखिका, उपन्यासकार, स्तम्भकार एवं कवियत्री डाॅ. शरदसिंह वर्तमान में  स्वतंत्र लेखन कर रही है। इसके अलावा नई दिल्ली से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका ‘सामयिक सरस्वती’ में कार्यकारी सम्पादक का दायित्व भी निर्वाह कर रही है।सुुश्री शरद सिंह द्वारा लिखित विभिन्न विषयों पर करीब 50 से अधिक पुस्तकें छप चुकी है। इन्होंने शोषित, पीड़ित स्त्रियों के पक्ष में अपने लेखन के द्वारा आवाज उठाई है।

       डॉ. शरद की बुंदेलखंड की महिला बीड़ी श्रमिकों पर केंद्रित ‘पत्तों में कैद औरतें’, स्त्री विमर्श पुस्तक ‘औरत तीन तस्वीरें’, राष्ट्रवादी व्यक्तित्वों पर 6 महापुरुषों की जीवनियां एवं 'थर्ड जेंडर विमर्श' पुस्तकें मनोरमा ईयर बुक में शामिल की जा चुकी है। बेड़िया स्त्रियों पर केंद्रित ‘पिछले पन्ने की औरतें' तथा लिव इन रिलेशन पर ‘कस्बाई सिमोन’ नामक इनके उपन्यासों को अनेक सम्मान मिल चुके हैं। इनका एक और उपन्यास ‘पचकौड़ी’ राजनीतिक और पत्रकारिता जगत की परतों को बारिकी से विश्लेषित करता है।
 उपन्यास ‘शिखण्डी : स्त्री देह से परे’ पर प्रबुद्ध पाठकों की कुछ प्रतिक्रियाएं देखें -
सामयिक प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित यह उपन्यास "शिखण्डी..." अमेजन पर भी उपलब्ध है...


इसके साथ ही इस उपन्यास "शिखण्डी : स्त्री देह से परे" को निम्नलिखित लिंक्स पर जा कर उपलब्ध किया जा सकता है -

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