Wednesday, October 10, 2018

जीवेत् शरदः शतम् - डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh
  शारदीय  नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं   
  🙏 🌺🙏
      सागर शहर के सिद्ध क्षेत्र मां हरसिद्धि देवी बाघराज मंदिर परिसर में पूरे वर्ष भर अनेक मांगलिक कार्य सम्पन्न होते हैं। पिछले दिनों 02 अक्टूबर 2018 को बाघराज मंदिर परिसर में स्थित सिद्ध हनुमान मंदिर प्रांगण में सागर शहर के समस्त साहित्यकारों, कवियों, बुद्धिजीवियों ने मिल कर वरिष्ठ कवि मणिकांत चौबे "बेलिहाज" जी का 73 वां जन्मदिन समारोहपूर्वक मनाया। मैंने यानी आपकी इस मित्र डॉ. वर्षा सिंह और डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने भी इस गरिमामय आयोजन में सम्मिलित हो कर "बेलिहाज" जी को अपनी आत्मीय शुभकामनाएं दीं।
हरसिद्धि देवी, बाघराज, सागर, म.प्र.
 यह माना जाता है कि भारतीय दर्शन और साहित्य का आरंभ वेदों से हुआ है। वेद भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति, साहित्य आदि के मूल स्रोत हैं। वर्तमान समय में भी धार्मिक और सांस्कृतिक कृत्यों के अवसर पर वेद-मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।  वेद अनेक दर्शन और सम्प्रदाय का आधार हैं। वेद को हम दर्शन के चिंतन से उपजे काव्य साहित्य का संकलन हैं। उनमें प्राचीन भारतीय परिवेश के अनेक विषयों का समावेश है। अधिकांश भारतीय दर्शन वेदों को अपना आदिस्त्रोत मानते हैं। ये "आस्तिक दर्शन" कहलाते हैं। प्रसिद्ध षड्दर्शन इन्हीं के अंतर्गत हैं। जो दर्शनसंप्रदाय अपने को वैदिक परंपरा से स्वतंत्र मानते हैं वे भी कुछ सीमा तक वैदिक विचारधाराओं से प्रभावित हैं।वेद के 04 भाग हैं- ऋगवेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।
ऋग्वेद चारों वेदों में सबसे प्राचीन माना जाता है। यजुर्वेद में गद्य और पद्य दोनों ही हैं। इसमें यज्ञ कर्म की प्रधानता है। सामवेद गेय ग्रन्थ है। अथर्ववेद में गणित, विज्ञान, आयुर्वेद, समाज शास्त्र, कृषि विज्ञान, आदि अनेक विषय वर्णित हैं।
           भारतीय परम्परा के अनुसार जन्मदिन की शुभकामनाएं देते हुए "जीवेत् शरदः शतम् " की कामना की जाती है। वस्तुतः "जीवेम शरदः शतम्" अथर्ववेद का एक सूक्त है जिसमें मानव के सम्पूर्ण शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य सहित उसके दीर्घायु होने की कामना व्यक्त की गयी है । वस्तुतः यह सूक्त आठ मंत्रों का समुच्चय है, जो इस प्रकार हैं :-
पश्येम शरदः शतम् 
जीवेम शरदः शतम् 
बुद्धियेम शरदः शतम्
रोहेम शरदः शतम् 
पूषेम शरदः शतम् 
भवेम शरदः शतम् 
भूयेम शरदः शतम् 
भूयसीः शरदः शतम्
              (अथर्ववेद, काण्ड 19, सूक्त 67)



इन सूक्तों का अर्थ है – 
हम सौ शरदों तक अपनी दृष्टि से देखें,
सौ वर्षों तक हम जीवित रहें ,
सौ वर्षों तक बुद्धि से सक्षम बने रहें, 
सौ वर्षों तक वृद्धि करते रहें, 
सौ वर्षों तक पुष्टि प्राप्त करते रहें, 
सौ वर्षों तक बने रहें,
सौ वर्षों तक हम कुत्सित भावनाओं से मुक्त हो कर पवित्र बने रहें,  
सौ वर्षों से अधिक समय तक कल्याण होता रहे

           यहां शरद् शब्द ऋतु के साथ एक वर्ष का पर्याय है। इस सूक्त में एक शरद् का अर्थ एक वर्ष लिया गया है । षट ऋतुओं में शरद ऋतु का विशेष महत्व है। यह शरद  ऋतु पांच अन्य ऋतुओं के परिवर्तन समय में संधिकाल की ऋतु है। भारतीय कलैंडर में चैत्र एवं वैशाख मास में वसन्त,  ज्येष्ठ तथा आषाढ़ मास में ग्रीष्म,  श्रावण एवं भाद्रपद मास में वर्षा ऋतु , आश्विन तथा कार्तिक मास में शरद, मार्गशीर्ष एवं पौष मास में हेमन्त और माघ तथा फाल्गुन मास में शिशिर ऋतु होती है।
             दरअसल वैदिक काल में व्यक्ति लगभग सौ वर्ष की आयु से अधिक समय तक जीवित रहते थे। इसीलिए सौ वर्ष की आयु की कामना व्यक्त की गयी है, वह भी पूर्ण दैहिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ । इस सूक्त में पूर्ण स्वास्थ्य के साथ सौ वर्ष का सक्षम एवं सक्रिय इंद्रियों के साथ जीवन जीने की शुभकामनाएं व्यक्त की गई हैं।

         शरद ऋतु और देवी की आराधना पर्व नवरात्रि का भी आपसी संबंध है। ऋतु संधिकाल  में देवी उपासना उपवास और ध्यान के जरिये की जाती है। देवी उपासना के स्थल बाघराज मंदिर की अपनी ही विशेषता है। सागर शहर के मध्य से 03 कि.मी. दक्षिण दिशा में एक छोटी पहाड़ी पर मां हरसिद्धि देवी बाघराज मंदिर है। जनश्रुतियों के अनुसार 1600 ई. के आसपास इस घने जंगल से निकलने वाले एक मजदूर को देवी स्वरुप एक कन्या पहाड़ी के नीचे मिली। मजदूर इस बात से आश्चर्यचकित रह गया कि इस घने जंगल में लोग आने से डरते है, यह लड़की यहां क्या कर रही है। इसी बीच लड़की के कहने पर मजदूर उसे कंधे पर उठाकर पहाड़ी पर ले गया। मजदूर ने जैसे ही उस लड़की को कंधे से नीचे उतारा वह मूर्ति में परिवर्तित हो गई।
हरसिद्धि देवी, बाघराज, सागर

मां हरसिद्धि देवी, बाघराज देवी मंदिर, सागर

सिद्ध हनुमान, बाघराज देवी मंदिर

हरसिद्धि देवी बाघराज मंदिर, सागर
इसके अलावा यहां ऐसी कहावत भी प्रचलित है कि मंदिर में बनी एक गुफा में शेर रहता था जो माता हरसिद्धि देवी का पूजन करने मंदिर में आता था, इसलिये यह क्षेत्र बाघराज के नाम से विख्यात हो गया।




            चैत्र तथा आश्विन यानी क्वांर माह की नवरात्रि में यहाँ दुर्गा माँ की विशेष पूजा की जाती है तथा मेले का आयोजन किया जाता है। बाघराज में देवी मन्दिर के अलावा हनुमान मन्दिर , शिव मन्दिर तथा भैरव बाबा मन्दिर भी हैं।





2 comments:

  1. दीदी जी सुप्रभात,

    आप साक्षात देवी है, आपको पढ़कर बहुत अच्छा लगा। भगवान आपको और कामयाबी दें।
    संतोष तिवारी

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  2. Your writing about the saying, 'जीवेत (जीवेम) शरद: शतम' is very lucid and informative.Thank you!

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