Friday, October 12, 2018

मनुष्यता का पर्याय है क्षमा - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

      जैन दर्शन में पर्यूषण या दशलक्षण पर्व आध्यात्मिक तत्वों की आराधना का पर्व है। इसकी समाप्ति के ठीक एक दिन बाद मनाया जाने वाला पर्व क्षमावाणी पर्व कहलाता है।  डॉ. हरी सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सागर स्थित इंडियन काफी हाउस में रोटरी क्लब आफ सागर सेंट्रल एवं इनरव्हील क्लब, सागर द्वारा दिनांक 07.10.2018 को क्षमावाणी महापर्व समारोह 2018 के अंतर्गत एक गरिमामय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें मैंने यानी  डॉ वर्षा सिंह और मेरी बहन डॉ.(सुश्री) शरद सिंह सहित प्रमुख स्थानीय कवियों ने काव्यपाठ किया। इस अवसर पर रोटरी क्लब आफ सागर सेंट्रल की ओर से स्मृतिचिन्ह प्रदान कर सम्मानित भी किया गया।
डॉ. हरी सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सागर स्थित इंडियन काफी हाउस में क्षमावाणी महापर्व एवं कविसम्मेलन

डॉ. वर्षा सिंह स्मृति चिन्ह स्वीकार करते हुए

डॉ. (सुश्री) शरद सिंह स्मृति चिन्ह स्वीकार करते हुए

क्षमा वीरस्य भूषणम् अर्थात क्षमा वीरों का आभूषण होता है।  मानव जीवन में क्षमा का विशेष महत्व है। इसके दो रूप हैं - क्षमायाचना और क्षमादान। एक मांगने वाला और दूसरा देने वाला। परस्पर की जाने वाली क्षमायाचना और क्षमादान अपमान की भावना का निवारण करते हैं। क्षमा की शक्ति अतुलनीय होती है।
सनातन धर्म में क्षमा याचना का सुंदर उदाहरण दुर्गा सप्तशती में मिलता है । दुर्गा शक्ति की महिमा का आख्यान दुर्गा सप्तशती में है जो  मार्कण्डेय पुराणांतर्गत देवी माहात्म्य में है। यही 700 श्लोकों में वर्णित माहात्म्य 'दुर्गा सप्तशती' के नाम से जाना जाता है।
दुर्गा सप्तशती में क्षमा प्रार्थना इस प्रकार दृष्टव्य है -
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्‍वरि॥१॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्‍वरि॥२॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्‍वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे॥३॥
अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत्।
यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः॥४॥
सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके।
इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरू॥५॥
अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्‍वरि॥६॥
कामेश्‍वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्‍वरि॥७॥
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गुहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्‍वरि॥८॥

जैन धर्म में क्षमा का विशेष महत्व है। जाने अनजाने में. हुई त्रुटियों के लिए मांगी गई क्षमा क्षमायाचना करने और क्षमादान करने वाले दोनों पक्षों को आत्मिक शांति प्रदान करती है। जैन क्षमा प्रार्थना का एक अंश यहां वर्णित है-
हे प्रभु ! मेरा किसी के भी साथ राग नहीं है. द्वेष नहीं है |
बैर नहीं है. तथा क्रोध, मन, माया लोभ नहीं है, अपितु सर्व जीवों के प्रति उत्तम क्षमा है |
जब तक मोक्षपद की प्राप्ति ना हो तब तक भव-भव में मुझे शास्त्रों के पठन-पाठन का अभ्यास, जिनेंद्र पूजा, निरंतर श्रेष्ठ पुरुषों की संगति, सच्चरित्र संपन्न पुरुषों के गुणों की चर्चा, दूसरों के दोष कहने में मौन, सभी प्रणियों के प्रति प्रिय और हितकारी वचन एवं आत्मकल्याण की भावना (प्रतीत) ये सब वस्तुएँ प्राप्त होती रहें |
है जिनेंद्र ! मुझे जब तक मोक्ष की प्राप्ति न हो तब तक आपके चरण मेरे हृदय में और मेरा ह्रुदय आपके चरणों में लीन रहे |
हे भगवन ! मेरे दुखों का क्षय हो, कर्मों का नाश हो, रत्नत्रय की प्राप्ति हो, शुभगति हो, सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो, समाधिमरण हो और श्री जिनेंद्र के गुणों की प्राप्ति हो, ऐसी मेरी भावना है, ऐसी मेरी भावना है, ऐसी मेरी भावना है |

बौद्ध धर्म में क्षमा सर्वोपरि है। एक दृष्टांत देखें-
भगवान बुद्ध के जीवन का एक अनोखा प्रसंग है। एक दिन उनसे मिलने के लिये एक युवक लगभग भागता हुआ उनके पास आया। अपने जूते उतार कर यहां वहां फेंक कर दरवाज़े के पल्लों पर आघात करते हुए उत्तेजना से भरा हुआ हांफते हुए वह बुद्ध से कहने लगा कि आपके दर्शन और उपदेश का लाभ उठाने बहुत व्यस्तता के बीच बड़ी मुश्किल से समय निकालकर मैं यहां आया हूं।

बुद्ध ने शांत भाव से कहा कि ‘जाओ, पहले अपने जूतों से क्षमा मांगो, उनको भली भांति यथास्थान पर रखो, फिर इन दरवाजों से क्षमा मांगो, और तब आदर के साथ उन्हें खोलकर अंदर आओ। अपने जीवन में किसी को छोटा समझकर उसका असम्मान मत करो, तुम्हें मेरा यही उपदेश है।’

वस्तुतः प्रत्येक छोटी से छोटी चीज अपने में महत्वपूर्ण होती है। जूता उतना ही मूल्यवान है जितना मुकुट। हर किसी की अपनी-अपनी जगह और उपयोगिता है। किसी को कम आंकना, उसका असम्मान करना है।

बुद्ध की वाणी का तात्पर्य यहां यह है कि क्षमा मांगने और क्षमा करने पर उसके साथ हम अपना अहंकार भी विसर्जित करते हैं। यह आत्मग्लानि से मुक्ति का भी सबसे सरल उपाय है।

ईसाई धर्म में प्रेम, प्रार्थना और क्षमा को विशेष स्थान दिया गया है। दुनिया को पापों से छुटकारा दिलाने के लिए प्रभु यीशु मसीह ने अपना बलिदान क्रूस पर चढ़ कर दिया और क्रूसीफाई करने वाले मनुष्यों के प्रति ईश्वर से कामना करते हुए उन्होंने यह प्रार्थना की कि हे प्रभु तू इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। यीशू इसीलिए मसीहा कहलाये क्योंकि उन्होंने अपने प्रति अत्याचार करने वाले पापी मनुष्यों को भी उदारतापूर्वक क्षमादान दे दिया।
सिख धर्म के पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब का वचन है कि क्षमाशील व्यक्ति को न तो रोग सताता है और न ही यमराज डराता है।

साहित्य में क्षमा पर अनेक रचनाएं मौजूद हैं, यथा कवि रहीम के शब्दों में-
क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।

वहीं कबीर कहते हैं-
भली भली सब कोई कहे,भली क्षमा का रुप।
जाके मन क्षमा नहीं, सो बूड़े भव कूप॥

भली भली सब कोई कहे, रही क्षमा ठयराय।
कहे कबीर शीतल भया, क्षमा जो आग बुझाये।।
जहाँ दया वहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप।
जहाँ क्रोध वहाँ काल है, जहाँ क्षमा वहाँ आप।
शील क्षमा सब उपजे, अलख दृष्टि जब होय।
बिना शील पहुंचे नही, लाख कहे जो कोय।

बाणभट्ट ने हर्षचरित में कहा है-क्षमा हि मूलं सर्वतपसाम्। महाग्रंथ महाभारत में कहा गया है - क्षमा असमर्थ मनुष्यों का गुण तथा समर्थ मनुष्यों का भूषण है।

इस प्रकार क्षमा सर्वधर्म और साहित्य में विद्यमान वह महामंत्र है जो मनुष्यता का पर्याय है, जीवन का आधार है।
डॉ. वर्षा सिंह स्मृति चिन्ह के साथ


डॉ. (सुश्री) शरद सिंह स्मृति चिन्ह के साथ



डॉ. हरी सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सागर स्थित इंडियन काफी हाउस में क्षमावाणी महापर्व एवं कविसम्मेलन

डॉ. (सुश्री) शरद सिंह  का कविता पाठ 
 Dr. (Sushri) Sharad Singh & Dr. Varsha Singh 

Dr. Varsha Singh & Dr. (Sushri) Sharad Singh

डॉ. हरी सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सागर स्थित इंडियन काफी हाउस में क्षमावाणी महापर्व एवं कविसम्मेलन

डॉ. वर्षा सिंह का कविता पाठ

डॉ. वर्षा सिंह का कविता पाठ

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