Wednesday, December 26, 2018

सागर : साहित्य एवं चिंतन 38... वरिष्ठ कवि नेमीचंद रांधेलिया ’विनम्र’- डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के वरिष्ठ कवि नेमीचंद रांधेलिया "विनम्र" पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

वरिष्ठ कवि नेमीचंद रांधेलिया ’विनम्र’
                             - डॉ. वर्षा सिंह
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परिचय :- नेमीचंद रांधेलिया ’विनम्र’
जन्म :- 27 जुलाई 1928
जन्म स्थान :- सागर नगर
पिता एवं माताः- पं. मुन्नालाल रांधेलिया एवं दुर्गाबाई
लेखन विधा :- कविताएं
प्रकाशन :- विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में
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        साहित्यिक दृष्टि से सागर की उर्वर भूमि ने सागर नगर को अनेक कवि एवं साहित्यकार दिए हैं। पंडित मुन्नालाल रांधेलिया के घर में 27 जुलाई 1928 को जन्मे नेमीचंद रांधेलिया  सागर के साहित्य जगत में ’विनम्र जी ’ के नाम से जाने जाते हैं। विनम्र जी की माता दुर्गाबाई एक धार्मिक महिला रहीं जिनसे विनम्र जी को अपनी बाल्यावस्था से ही धर्म एवं समाजदर्शन की समझ मिली। विनम्र जी के मन में समाज सेवा और राष्ट्र प्रेम की भावना सदैव रही सन 1942 में स्वतंत्रता सेनानी के रूप में विनम्र जी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया वे बुलेटिन बांटने का कार्य करते थे जो परतंत्र प्रशासन को पसंद नहीं आया और उन्होंने विनम्र जी को गिरफ्तार कर लिया यद्यपि उसी रात उन्हें जेल से रिहा भी कर दिया गया ।             
           विनम्र जी का परिवार धर्म परायण परिवार है उनके परिवार में दीक्षा लेने की उल्लेखनीय परंपरा रही है। विनम्र जी की बड़ी मां आर्यिका अजितमति माताजी थे जिन्होंने आर्यिका धर्म का पालन करते हुए अपना जीवन व्यतीत किया उनके पास विनम्र जी की पुत्री संध्या ने आर्य का की दीक्षा ली और यशोधर माताजी के नाम से विख्यात हुए विनम्र जी के दामाद सुनील कुमार जी यशोधर सागर जी के नाम से जाने गए तथा समधी विश्वात्मा सागर ने भी दीक्षा ग्रहण कर ली थी ।
            नेमीचंद विनम्र गौरा बाई दिगंबर जैन मंदिर ट्रस्ट में तथा दिगंबर जैन महिला आश्रम ट्रस्ट मंत्री हैं। उदासीन आश्रम एवं मोराजी ट्रस्ट के भी ट्रस्टी हैं। जैन छात्र संघ के प्रबंध के वरिष्ठ उपाध्यक्ष का दायित्व निभाते हुए जैन समाज के लिए महत्वपूर्ण कार्य विनम्र जी ने किया है। वरिष्ठ कवि नेमीचंद विनम्र बीमा क्षेत्र में विकास अधिकारी के रूप में लगभग 30 वर्ष सेवारत रहे तक इसके साथ ही साहित्य से जुड़े होने के कारण उन्हें प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष पद का भी दायित्व सौंपा गया जिसे उन्होंने लंबे समय तक पूरी जिम्मेदारी से निभाया। विनम्र जी के दो पुत्र संतोष कुमार और मुकेश कुमार व्यवसायी हैं तथा दवा व्यवसाय में संलग्न हैं ।

         
          सन् 1944 से ही विनम्र जी साहित्य सेवा से जुड़ गए थे। उन्होंने हिंदी साहित्य सम्मेलन के माध्यम से अपनी प्रतिभा को निखारना शुरू किया। प्रगतिशील लेखक संघ  साथ ही वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के भी अनेक वर्षों तक अध्यक्ष रहे। वर्णी स्मृति ग्रंथ समिति में संयोजक-सम्पादक का दायित्व ग्रहण करते हुए उन्हांने वर्णी स्मृति ग्रंथ के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए। विनम्र जी ने पंडित मुन्नालाल रांधेलिया वर्णी स्मृति ग्रंथ के भी संयोजक-सम्पादक रहे। विनम्र जी की कविताएं दैनिक हिंदुस्तान, वीर अर्जुन, जनसंदेश, अनेकांत, आचरण तथा नवदुनिया में प्रकाशित होती रही हैं।
            उनकी कविताओं में शब्दों का सहज प्रवाह एवं सरलता को अनुभव किया जा सकता है। वे कविता लिखते हुए क्लीष्टता से परे आमबोलचाल के शब्दों में अपनी भावनाओं को पिरोते हैं जिनमें आंचलिक शब्द भी सहज ही निबद्ध रहते हैं -
मेरे मित्रो, मेरे मन  में मेल नहीं है
अंतरंग में जलधारा है शैल नहीं है
सेवा के संकल्प दीप को अधिक जगाया
मुक्त हृदय पथ टेढ़ी-मेढ़ी गैल नहीं है

             वरिष्ठ कवि नेमीचंद विनम्र प्रकृति पर आधारित अपनी कविताओं में प्रकृति को भी उलाहना देने से चूकते नहीं हैं। जहां उन्हें लगता है कि प्रकृति अन्याय कर रही है, वे प्रकृति से वार्ता करने लगते हैं और उससे प्रश्न करने लगते हैं। ये पंक्तियां देखें-
 हे सजल घनो, तुम उत्तर दो
क्यों व्यर्थ बने हो कजरारे
आतप से तप्त धरा पर
क्यों दो बूंद धरा पर टपकाया
इन बूंदों से दुख और बढ़ा

Dr. Varsha Singh & Nemi chand Vinamra

              बाहुबली प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र थे। अपने बड़े भाई भरत चक्रवर्ती से युद्ध के बाद वह मुनि बन गए। उन्होंने एक वर्ष तक कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यान किया जिससे उनके शरीर पर बेले चढ़ गई। एक वर्ष के कठोर तप के पश्चात् उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और वह केवली कहलाए। भगवान बाहुबली के प्रति अपनी श्रद्धा भाव व्यक्त करते हुए कवि विनम्र ने अपनी कविता में उन्हें नमन करते हुए लिखा है -
अंतिम लक्ष्य रहे मानव का
तप से ही कर्मों का मर्दन
व्योमदेश के श्री चरणों में
जग का अगणित बार बार नमन

             संत वर्णीजी पर कविता लिखते हुए कवि विनम्र ने जहां एक  और वर्णीजी के व्यक्तित्व को पूज्य ठहराया है, वहीं दूसरी ओर यह भी रेखांकित किया है कि वर्णीजी जैसे महापुरुषों की शिक्षा जीवन के अंधकार को प्रकाश में बदल देती है-
हे पूज्य वर्य, हे गुण निधान
हो गई धन्य वसुधरा
भारत के आध्यात्मिक योगी
तुमने अपने संज्ञान सूर्य से
अज्ञान तिमिर को उहो हरा
स्वीकार करो जग के प्रणाम

Dr. (Miss) Sharad Singh & Nemi chand Vinamra

         बुंदेलखण्ड अंचल में उच्चशिक्षा की ज्योति जलाने का उद्देश्य ले कर विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए अपनी सम्पत्ति दान कर देने वाले महादानी डॉ. हरीसिंह गौर के प्रति अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कवि विनम्र ने लिखा है -
हे युगपुरुष समर्पित तुमको
जन-जन के श्रद्धा प्रसून लो
जो पदचिन्ह तुमने छोड़े हैं
करने को आचरण सभी चुप
जो करते गुणगान अथक
जग की आज यही परिपाटी

          भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की असामयिक मृत्यु ने विनम्र जी के कविमन को झकझोर दिया था। स्व. इंदिरा गांधी के प्रति अपने उद्गार प्रकट करते हुए कवि विनम्र ने लिखा कि -
तुमने दे बलिदान देश को जगा दिया
खंडित करने के कुचक्र को विफल किया
ललकारा उन सबको जो भारत के दुश्मन थे
सागर मंथन से निकला वह जहर पिया

बाएं से : - डॉ. वर्षा सिंह, शायर अखलाक सागरी, नेमीचंद रांधेलिया विनम्र

            विनम्र जी ने अपनी लेखनी के प्रति भी उद्गार व्यक्त किए हैं। उन्होंने कविता के माध्यम से स्पष्ट किया है कि वे गीत और कविताएं क्यों लिखते हैं और उनकी कविताओं में किस प्रकार के भाव निहित रहते हैं। यह काव्यांश देखें -
मित्रों में ने गीत लिखे हैं
अश्रुधार में कलम डुबोकर
जब भी याद करोगे मुझको प्रेम भाव से
उतर गया मैं आज तुम्हारे अंतर्मन में
समा गया हूं आज तुम्हारे अंतर्मन में
मुझको पाओगे मन से, तन से और कर्म से
जो विजय कामना तुमने की
वह बनी प्राण प्रद वायु गहन ऊंचाई पर।

        वात्सल्य भाव के धनी वरिष्ठ कवि नेमीचंद विनम्र हंसमुख और ऊर्जावान  व्यक्तित्व के धनी हैं। वे 91 वर्ष की आयु में आज भी सतत सृजनशील हैं तथा अपनी उर्जास्विता बनाए हुए हैं। उनका लेखन तथा साहित्य के प्रति समर्पित युवाओं के लिए क्रियाशीलता का एक अनुपम उदाहरण है।
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( दैनिक, आचरण  दि. 26.12.2018)
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