Monday, April 22, 2019

सागर : साहित्य एवं चिंतन 48... भावुकहृदय गीतकार - डॉ. सीताराम श्रीवास्तव ‘‘भावुक’’ - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh       
     स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के कवि सीताराम श्रीवास्तव "भावुक" पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

भावुकहृदय गीतकार - डॉ. सीताराम श्रीवास्तव ‘‘भावुक’’
                         - डॉ. वर्षा सिंह
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परिचय :- डॉ. सीताराम श्रीवास्तव ‘भावुक’
जन्म :-  12 जुलाई 1939
जन्म स्थान :- सागर, मध्यप्रदेश
पिता :-   स्व. बनवारीलाल श्रीवास्तव
लेखन विधा :- गीत
प्रकाशन :- एक गीत संग्रह एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में।
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जिस सागर की माटी में गीतात्मकता की मधुर धारा प्रवाहित होती है। गीतों की यह परम्परा लोकगीतों से मुखर हो कर मुद्रण और श्रवण तक प्रसिद्धि पाती रही है। यहां  विट्ठल भाई पटेल जैसे गीतकार हुए जिन्होंने गंभीर भावों के गीतों के साथ ही हल्के-फुल्के भावों वाले फिल्मी गीत लिख कर इस नगर को ख्याति दिलाई। आज भी सागर नगर में ऐसे कई गीतकार हैं जो अपने सृजन से यहां की गीत विधा में नई-नई कड़ियां जोडते जा रहे हैं। सागर नगर के गीतकारों ऐसा ही एक नाम है डॉ. सीताराम श्रीवास्तव ‘भावुक’ का। स्व. श्री बनवारीलाल श्रीवास्तव के घर 12 जुलाई 1039 को जन्मे डॉ. सीताराम श्रीवास्तव ‘भावुक’ साहित्श्य और चिकित्सा में समान रुचि रही है। उन्होंने विज्ञान विषयों से इन्टरमीडिएअ करने के बाद आयुर्वेद विशारद, आयुर्वेदरत्न तथा आयुर्वेद बृहस्पिति की उपाधि प्राप्त की। वे वरिष्ठ आयुर्वेद चिकित्सक रहे। वे आयुर्वेद महासम्मेलन सागर इकाई के मंत्री रहे तथा सेवानिवृत्ति के उपरांत हिन्दी साहित्य की सेवा में पूर्णतः संलग्न हो गए।
डॉ. वर्षा सिंह के साथ बायें से तृतीय कवि सीताराम श्रीवास्तव "भावुक" # साहित्य वर्षा


डॉ. सीताराम श्रीवास्तव ‘भावुक’ मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के कोषाध्यक्ष तथा अध्यक्ष रहे। वे वर्तमान में बुंदेलखंड हिन्दी साहित्य संस्कृति विकास मंच सागर इकाई के अध्यक्ष हैं। वे स्व. शिवकुमार श्रीवास्तव को अपना काव्यगुरु मानते हैं। उन्होंने अपना प्रथम गीत संग्रह ‘‘गीत प्यार के गाता चल’’अपने काव्यगुरु स्वं यिवकुमार श्रीवास्तव को इन शब्दों के साथ समर्पित किया है कि- ‘‘इस काव्यकृति के प्रकाशन के पूर्व ह, साहित्य मनीषी गुरुवर शिवकुमार श्रीवास्तव जीवन से मुक्त हो कर अंतिम विदाई ले गए। यह कृति उन्हीं के रीचरणों में श्रद्धांजलि सवरूप समर्पित।’’ इसी ‘समर्पण’ में वे आगे यह काव्यात्मक पंक्तियां लिखते हैं कि-
    हमने उनको गुरु बनाया, अब कर्त्तव्य निभाएंगे।
    उनका सृजन और कृतियों को, जन-जन तक पहुंचाएंगे।।
अपने काव्यगुरु के प्रति डॉ. ‘भावुक’ की यह श्रद्धा एवं निष्ठा आज के इस भावनाशून्य हो चले खुरदरे समय में बहुत महत्व रखती है। आज के निष्ठुर समय में कोमल भावनाएं और भावुकता तो मानो खोती जा रही है। किसी दृर्घना के घटने पर हताहतों की सहायता करने से अधिक लोगों का ध्यान इस बात पर केन्द्रित रहता है कि कैसे हताहतों की तस्वीर अपने मोबाईल से खींच कर सोशल मीडिया पर अपलोड करें। ‘सोशल मीडिया’ के समय के ‘असोशल’ माहौल में काव्य की सरस विधाओं की अतिआवश्यकता भी है। डॉ. ‘भावुक’ अपने गीतों के द्वारा संवेदना को जगाए रखने का भरपूर प्रयास करते रहते हैं।
डॉ. वर्षा सिंह एवं  डॉ. (सुश्री) शरद सिंह के साथ बायें से तृतीय कवि सीताराम श्रीवास्तव "भावुक" # साहित्य वर्षा

डॉ. वर्षा सिंह के साथ बायें से तृतीय कवि सीताराम श्रीवास्तव "भावुक" # साहित्य वर्षा


डॉ. ‘भावुक’ के काव्यसृजन के संबंध में डॉ. शिवकुमार श्रीवास्तव ने लिखा था-‘‘डॉ सीताराम भावुक  भावना से आंदोलित सहज व्यक्तित्व वाले अनुरागी कवि हैं वह सीधे पाठक और श्रोताओं को अपनी रचना के माध्यम से संबोधित और प्रभावित करते हैं शुद्ध और असत्य पाठक तथा सामान्य सोता उनके सहज सरल कथन से रस विभोर होकर रस में निमग्न होता है भाव की कविताओं में जहां भावनात्मक समृद्धि है वहीं उनकी कविताओं में वैचारिक निष्ठा भी है मैं उस कविता को अच्छी कविता मानता हूं जिस कविता में भावों विचारों के दिशानिर्देश में प्रस्ताव प्राप्त करती है कभी के फन में उसका सूर्य सदैव जीवित रहता है तथा रहना भी चाहिए परंतु जीवन का अनुभव और सोच उसे लगातार प्रवणता से संपन्न करता है भावुक में यह दोनों गुण संतुलित मात्रा में है डॉ सीताराम श्रीवास्तव भाव की कविताएं किसी वाद की परिधि में नहीं आती वाद के चौथे में फिट होने के लिए जिस बोध से कवि को संपन्न होना चाहिए भाव की चित्त वृत्ति उसके अनुरूप नहीं है वे सीधे व्यक्ति हैं कोई शक कोई दिखावा कोई कृत्रिम व्यवहार उनके जीवन में नहीं है उनकी कविता भी उनके स्वभाव की विशेषता के अनुरूप सहज और सरल है वह भावुक हैं इसीलिए अपने परिवेश से अपने मित्रों से अपने समाज से समाज में और घटने वाली घटनाओं से प्रभावित और उद्वेलित होते हैं और कालांतर में उनको परिष्कृत करके काव्य रचना में व्यक्त कर उस से मुक्त हो जाते हैं।’’

सागर : साहित्य एवं चिंतन- डॉ. वर्षा सिंह # साहित्य वर्षा

नगर के वरिष्ठ कवि मणिकांत चौबे लिहाज सीताराम भाव की काव्य सजना के संबंध में मानते हैं कि- ‘‘डॉ. श्रीवास्तव का भाव अमन हल्की सीट इसलिए समाज की समस्याओं की तरफ पूरी तरह सजग लेखनी के साथ पूरी संवेदना का परिचय देता है ।’’
डॉ भावुक काव्य सृजन कर्म के बारे में मानते हैं कि -‘‘कवि समाज के बीच में रहकर जो कुछ देखता सुनता और अनुभव करता है उसी के आधार पर उसके हृदय में भावनाएं उभरती हैं तब कवि मन ही मन चिंतन करता है और अपने अंतस में अंकुरित विचारों को शब्द देकर काव्य के रूप में डाल देता है इस प्रकार की कविता समाज के लिए दर्पण का कार्य करती है तथा मन को प्रफुल्लित कर एक नई चेतना एवं प्रेरणा प्रदान करती है।’’
डॉ. (सुश्री) शरद सिंह के साथ बायें से तृतीय कवि सीताराम श्रीवास्तव "भावुक" # साहित्य वर्षा

डॉ. वर्षा सिंह के साथ बायें से द्वितीय कवि सीताराम श्रीवास्तव "भावुक" # साहित्य वर्षा


कवि सीताराम भावुक अपने काव्य गुरु के सम्मान में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अपने निवास पर लगभग 15 वर्ष से प्रतिवर्ष निरंतर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन करते हैं जिसमें वह नगर के समस्त साहित्यकारों को सम्मान आमंत्रित करते हैं। डॉ. भावुक आकाशवाणी के सागर एवं छतरपुर केंद्र से अनेक पर काव्य पाठ कर चुके हैं तथा कवि सम्मेलन एवं काव्य गोष्ठियों में सक्रिय रहते हैं। उनकी रचनाओं का प्रकाशन प्रदेश ही नहीं देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में होता रहता है। कवि सीताराम भावुक के गीतों में प्रेम का एक वैश्विक स्वरूप दिखाई देता है। जिसमें वे वैमनस्य को दूर कर परस्पर प्रेम की बात करते हैं। उदाहरण के लिए ये पंक्तियां देखें -
नफरत की खेती मत करना
गीत प्यार के गाता चल
सुविधाओं का गरल न पीना
श्रम की फसल उगाता चल
गीत प्यार के गाता चल .........
रोजी रोटी सबको दिलाना
जन जन के दुख दर्द मिटाना
शोषण की मदिरा मत पीना
स्वारथ को ठुकराता चल
गीत प्यार के गाता चल ......
जन गण मन के गीत बनाना
क्षमता की जलधार बहाना
सत्य अहिंसा प्रेमधरा के
कण-कण में बिखरा था चल
गीत प्यार के गाता चल .......

इस प्रकार की प्रेम के स्वरूप को अपने शब्दों से परिष्कार देते हुए कवि भावुक इस बात से दुखी भी दिखाई देते हैं कि आज विश्वासघातों का दौर चल पड़ा है। अपनी इस भावना को अपनी इस पीड़ा को वे इन शब्दों में व्यक्त करते हैं-
विश्वासों की फसलें खेतों ने खा डाली
राम राज्य के सपने दिल से दूर हो गए
शीश महल आशा के चकनाचूर हो गए .....
नैतिकता का अवमूल्यन कर डाला युग ने
आदर्श और सिद्धांतों से हम दूर हो गए
शीश महल आशा के चकनाचूर हो गए .......
परिभाषाएं बदल रहे हैं, शब्द मौन हैं
संज्ञा नग्न, विशेषण उसके दूर हो गए
शीश महल आशा के चकनाचूर हो गए .......
गांधी गौतम सत्य अहिंसा शब्द पुराने अर्थ नए हैं
संशोधन के नए दौर में संविधान से दूर हो गए
शीश महल आशा के चकनाचूर हो गए ......

डॉ. (सुश्री) शरद सिंह के साथ बायें से प्रथम कवि सीताराम श्रीवास्तव "भावुक" # साहित्य वर्षा

वहीं, जब वे देखते हैं कि देश की शांति और सुरक्षा पर संवेदना का खतरा मंडरा रहा है, तो वे आम जनता का आसान करते हुए अपने गीत के द्वारा आग्रह करते हैं-
आज हमें कुछ बातें भैया जन-जन तक पहुंचाना है
राष्ट्रधर्म ही सर्वोपरि है बात यहीं समझाना है
कोई कहता हम पंजाबी
कोई कहता मद्रासी
लेकिन भूल रहे हो भैया
हम सब हैं भारतवासी
क्षेत्र और भाषा की बातें दिल से दूर हटाना है
आज हमें यह बातें भैया जन-जन तक पहुंचाना है
आजादी के लिए लड़े हम
आजादी के लिए मरे
आंच न आने देंगे इस पर
आओ हम संकल्प करें
एक रंग में रंग कर सबको हिंदुस्तान बनाना है
आज हमें यह बातें भैया जन-जन तक पहुंचाना है।

डॉ. सीताराम श्रीवास्तव ‘भावुक’ अपने जीवनानुभव को अपने गीतों में पिरोते हुए जिस तरह संवदनाओं अह्वान करते हैं वह प्रशंसनीय है और युवा गीतकारों के लिए अनुकरणीय भी है।
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दैनिक, आचरण  दि. 22.04.2019)
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