Dr. Varsha Singh |
स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के कवि पुष्पेंद्र दुबे "सागर" पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....
सागर : साहित्य एवं चिंतन
मंचीय काव्य परम्परा के कवि पुष्पेंद्र दुबे ‘सागर’
- डॉ. वर्षा सिंह
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परिचय :- पुष्पेंद्र दुबे ’सागर’
जन्म :- 10 सितम्बर 1973
जन्म स्थान :- ग्राम नेगुवां, सागर (म.प्र.)
पिता :- स्व. गोपीलाल दुबे
शिक्षा :- स्नातक
लेखन विधा :- गीत, गजल
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सागर का मंचीय काव्य जगत नवीन कवियों से निरंतर सुसज्जित होता जा रहा है। जहां एक ओर अनेक युवा कवि प्रकाशन के क्षेत्र में सामने आ रहे हैं, वही कई कवि मंचीय स्तर पर अपनी जगह बना रहे हैं। इसी क्रम में एक नाम है कवि पुष्पेंद्र दुबे ‘सागर’ का।
ग्राम नेगुवां, पो. अमरमऊ, थाना शाहगढ़ तहसील बंडा जिला सागर में 10 सितंबर 1973 को जन्मे पुष्पेंद्र दुबे आज ‘सागर’ उपनाम से रचनाएं लिखते हैं। इनके पिता स्व. गोपीलाल दुबे वन विभाग में पदस्थ थे। उनका निरंतर स्थानांतरण होता रहता था। अपने पिता के साथ रहते हुए विभिन्न स्थानों में उन्होंने शिक्षा ग्रहण की। अंबिकापुर, बैकुंठपुर के अतिरिक्त सागर जिले के पड़रई बुजुर्ग, राहतगढ़ केसली, जैसीनगर, मालथौन आदि स्थानों पर रहने का अवसर मिला। पुष्पेंद्र दुबे ने दसवीं कक्षा राहतगढ़ से उत्तीर्ण की। तदुपरांत 12 वीं कक्षा सागर से उत्तीर्ण की। स्नातक स्तर की शिक्षा डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर से 1995 में पूर्ण की।
कवि पुष्पेंद्र दुबे "सागर" |
काव्य लेखन में रुचि के संबंध में पुष्पेंद्र दुबे बताते हैं कि-‘‘ मुझे स्मरण नहीं है कि मैं कब साहित्य से जुड़ता चला गया। बस, इतना ही बता सकता हूं कि मेरे मित्र मुझसे कविताओं की फरमाइश करते थे और मैं उन्हें कविता रच कर सुनाता रहता था। मेरा यह शौक धीरे-धीरे परवान चढ़ा और मैं साहित्य में और अधिक रमता चला गया।’’
इसके बाद पुष्पेंद्र दुबे स्थानीय काव्य गोष्ठियों में अपनी कविताएं पढ़ने लगे। इस दौरान उनकी मुलाकात सागर नगर के वरिष्ठ कवियों शिवकुमार श्रीवास्तव, कपूरचंद बैसाखिया, निर्मल चंद निर्मल, मणिकांत बेलिहाज से हुई। शायर यार मोहम्मद यार, इशहाक मास्साब तथा साहित्यकार रमेशदत्त दुबे से भी मिलने का अवसर मिला। सन् 1995 से वे आकाशवाणी सागर से रचनापाठ करने लगे। इसके बाद उनके मंचीय जीवन में एक विशेष घटना घटी जब उन्हें दमोह के एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में देश के ख्याति लक्ष्य कवि अशोक चक्रधर एवं कुमार विश्वास के साथ काव्यपाठ करने का अवसर मिला। इससे मंचों के प्रति उनका लगाव और अधिक बढ़ गया। किंतु सन 1998 में उन्हें 10 वीं वाहिनी विशिष्ट सशस्त्र बल सागर में आरक्षक के पद पर नियुक्ति मिल गई, जिसके बाद नौकरी की भाग-दौड़ और व्यस्तताओं के कारण काव्यसृजन थम-सा गया। फिर वर्ष 2016 में प्रतिनियुक्ति पर आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ भोपाल में पदस्थापना हुई। सन 2018 में इसी प्रकोष्ठ की सागर इकाई में स्थानांतरण होने के बाद एक बार पुनः काव्य सृजन में प्रवृत्त होने का अवसर मिला। वर्तमान में पुष्पेंद्र दुबे सागर नगर की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं के अंतर्गत होने वाले कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर शामिल होते हैं तथा अपनी रचनाओं का पाठ करते हैं। मंचों पर काव्यपाठ का सिलसिला भी पुनः जारी हो गया है।
सन् 2015 में उनके माता पिता का देहावसान हो गया जिसके बाद पारिवारिक जिम्मेदारी भी पुष्पेंद्र दुबे के कंधों पर आ पड़ी। किंतु अपनी पत्नी पुष्पा दुबे के सहयोग से अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए अपने काव्य सृजन के प्रति समर्पित बने हुए हैं। उनके दो पुत्र हैं पीयूष और आयुष्मान।
पुष्पेंद्र दुबे की रचनाओं में समसामयिक वातावरण की झलक दिखाई देती है। आज जिस तरह संवेदनाएं घट रही हैं और इंसान स्वार्थी हो चला है, यह परिदृश्य कवि के मानस को झकझोरता है। उनकी यह रचना देखें -
मेरे जीवन में हर क़दम ही उलझन निकले
धरती जिसको समझा मैंने वह गगन निकले
आज निकला जो कल की तरह कल निकले
एक और एक दिन करके ही जीवन निकले
पानी भी गिरा, सैलाब भी आया देखा
मेरी आंखों से ही लगता है सावन निकले
फूल जिसको समझकर के पनाह दी मैंने
उसके दिल में भी मेरे वास्ते पाहन निकले
एक वीराने में लूटा है दरिंदों ने मुझे
मेरे पावों के घुंघरू ही मेरे दुश्मन निकले
Sagar Sahitya Avam Chintan - Dr. Varsha Singh |
कवि पुष्पेंद्र प्रेम की कोमल भावनाओं को उर्दू शायरी के तर्ज़ में बखूबी रखते हैं। एक जमाने में उर्दू शायरी आशिकी के बयान के तौर पर जानी जाती थी। समय के परिवर्तन के साथ जीवन के खुरदरे सच भी शायरी का हिस्सा बनने लगे लेकिन इश्क़ और आशिकी के बयान से उसका नाता नहीं टूटा। पुष्पेंद्र भी इस नाते को बनाए रखने का प्रयास करते दिखाई देते हैं-
मेरे किस्से आशिकी के, अब तो पुराने हो गए
जिसको चाहा मैंने वो, हमसे बेगाने हो गए
तोड़ कर के छोड़ कर के नींव में डाला गया
टूट कर पत्थर के यारों अच्छे ठिकाने हो गए
सुख मिला है दुख मिला, सब कुछ मिला हमको यहां
हम ठोकरों में वक्त की, पलकर सयाने हो गए
मेरे कारण कैसे उनका हो गया है जख्मी दिल
मुझको उनसे बिछड़े मुंसिफ, कई जमाने हो गए
जिसने देखा उनको वह जी गया है मर गया
हम भी ‘सागर’ देखकर उनके दीवाने हो गए
प्रेम के दो पहलू होते हैं संयोग और वियोग। संयोग श्रृंगार की रचनाओं में उतनी दार्शनिकता कम ही देखने को मिलती है जितनी कि वियोग श्रृंगार की रचनाओं में मिलती है। संयोग जहां जीवन के सुखद पक्ष का दर्शन कराता है, वहीं वियोग जीवन के दुखद पक्ष से परिचित कराता है जिससे दार्शनिकता के भाव जागृत होने लगते हैं। इन्हीं भावों पर आधारित यह रचना है पुष्पेंद्र दुबे की-
न दिल कभी टूटता, न आहें भरता
न ये जिंदगी होती, न कोई मरता
धरती होती न ये सूरज भी कभी
डूबता रोज-सा, न ही उभरता
परिंदों को देखकर यह जेहन में आए
मैं उड़ सकता, मैं भी उतरता
मिट्टी जैसा न होता ये जीवन मेरा
तो मैं न ही टूटता, न ही बिखरता
डॉ. वर्षा सिंह के विशिष्ट आतिथ्य में रचनापाठ करते पुष्पेंद्र दुबे "सागर" |
जहां आपनत्व हो वहां वैमनस्य नहीं होना चाहिए किन्तु यथार्थ जीवन में दो दिलों के बीच खाई बनते देर नहीं लगती है। सच बोलना भी कभी-कभी रिश्तों में दरार डाल देता है। कवि पुष्पेंद्र की यह रचना इसी तथ्य को व्याख्यायित करती है-
जो कभी न मिट सके ऐसी खाई हो गई
दो दिलों के बीच में गहराई हो गई
जितना खुलूस था सीने में रख लिया
मेरी जुबान भी अब तो सच्चाई हो गई
हद से ज्यादा हम तो दीवाने हो गए
देखो, खूब अपनी जग हंसाई हो गई
दे के अपना दिल पछता रहे हैं हम
जो चीज अपनी थी वह पराई हो गई
समाज में बढ़ते अपराध एवं अनाचार को देख कर कवि मन व्यथित हो उठता है और तब उसकी रचनाओं में तल्खी बढ़ जाती है-
पहले मासूमों की सिसकियां बेच दी
बाप ने फिर जवान बेटियां बेच दी
आंख बोझिल सी है दिल गमगीन है
आज के कृष्ण ने गोपियां बेच दी
हाल होगा क्या अपना जरा सोचिए
उसने बारूद को चिंगारियां बेच दी
जो भी अपनी बहन की नजर से गिरा
तो उसने खरीदी राखियां बेच दी
कवि पुष्पेंद्र दुबे सागर जिनका मूल उद्देश्य मंचीय काव्य जगत में स्वयं को स्थापित करना है। उस दिशा में निरंतर सजगता के साथ प्रयत्नशील हैं। उनकी रचनाएं श्रोताओं को लुभाती हैं तथा स्मरण रह जाती हैं। यही उनकी रचनाओं की विशेषता है। बहरहाल, अभी उनकी यात्रा बहुत लम्बी है जो उनसे निरंतर सृजनश्रम की मांग करती रहेगी।
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( दैनिक, आचरण दि. 30.05.2019)
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