Dr. Varsha Singh |
स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के कवि प्रभात कटारे पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....
सागर : साहित्य एवं चिंतन
विपुल संभावनाओं के कवि प्रभात कटारे
- डॉ. वर्षा सिंह
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परिचय :- प्रभात कटारे
जन्म :- 13 अगस्त 1982
जन्म स्थान :- ग्राम रजौआ, सागर (म.प्र.)
माता-पिता :- श्रीमती बसंतीदेवी कटारे एवं श्री रघुवर प्रसाद कटारे
लेखन विधा :- गीत, ग़ज़ल
काव्यपाठ : - गोष्ठियों में काव्यपाठ।
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सागर में काव्यधारा अनेक ऐसे कवियों से हो कर बह रही है जो प्रकाशन के क्षेत्र से दूर काव्यसाधना में रत हैं। वे अपनी रचनाओं को कवियों के मध्य प्रस्तुत कर के साहित्यसेवा में संलग्न रहते हैं। वस्तुतः साहित्यसेवा कोई सशर्त कर्म नहीं है। यह तो आरम्भ ही स्वांतःसुखाय से होता है। जो कवि काव्यगोष्ठियों में से जुड़ कर अपनी प्रतिभा का परिचय देते हैं, सागर निवासी कवि प्रभात कटारे भी उनमें से एक हैं। ग्राम रजौआ, जिला सागर में 13 अगस्त 1982 को श्री रघुवर प्रसाद कटारे एवं श्रीमती बसंतीदेवी कटारे के पुत्ररत्न के रूप में जन्में प्रभात कटारे को काव्य संस्कार अपने शिक्षक बाबूलाल राजौरिया से मिले।
कवि प्रभात ने उच्चशिक्षा प्राप्त करते हुए हिन्दी, अंग्रेजी एवं समाजशास्त्र में एम.ए. की उपाधि अर्जित की। तकनीकी दृष्टि से वे समय के साथ चलने में विश्वास रखते हैं, इसीलिए तीन विषयों में स्नातकोत्तर एवं बीएड होने के बावजूद उन्होंने कम्प्यूटर विज्ञान में पीजी डी सीए तथा पत्रकारिता में डिप्लोमा किया। प्रभात कटारे का यूं तो आज कृषि एवं बिल्डिंग मटेरियल सप्लायर के रूप में एक जाना-माना नाम है, वहीं सागर के साहित्य जगत में भी उनकी एक विशेष पहचान स्थापित होती जा रही है।
प्रभात कटारे काव्यगोष्ठियों से अपने जुड़ने का श्रेय देवकीनंदन रावत को देते हैं और उन्हें काव्यसृजन करते हुए लगभग दस वर्ष हो चले हैं। सन् 2010 में पत्रकारिता प्रशिक्षण के दौरान उनकी एक कविता दैनिक जागरण (भोपाल) में प्रकाशित हुई थी किन्तु उसके बाद उन्होंने प्रकाशन की दिशा में कोई विशेष रुचि नहीं रखी।
कवि प्रभात हिन्दी और बुंदेली दोनों में कविताएं लिखते हैं। उनकी कविताओं में समसामयिक परिस्थितियां मुखररूप में दिखाई देती हैं। बेरोजगारी से परेशान युवाओं के पक्ष में वे कविता लिखते हुए कहते हैं-
सुन ले, सुन ले, री सरकार, दे दे हमको रोजगार
बिना नौकरी देखो हमको, हैं कितने लाचार
सुन ले, सुन ले, री सरकार...
लगी नौकरी जिनकी, वे सब हो गए बच्चों वारे
बिना नौकरी देखो, अब लौं घूम रये कुंवारे
कर दे सपने सब साकार,
सुन ले, सुन ले, री सरकार...
घरवारो ने पालो-पोसो, हमखां खूब पढ़ाओ
अपने सबरे नखरे झेले, सबरो खर्च उठाओ
अब हम हो गए उनपे भार,
सुन ले, सुन ले, री सरकार...
Sagar Sahitya Avam Chintan - Dr. Varsha Singh |
युवावर्ग की भावनाओं को आत्मसात करते हुए कवि प्रभाव भावुक हो उठते हैं और उनकी रचना में श्रृंगाररस का एक अलग ही रूप निखर कर सामने आता है-
हर आंख में आंसू है, हर आंख में पानी है।
ये कैसी जवानी है, ये कैसी जवानी है ।
जो यहां नज़रों के तीर से घायल हैं
मेले में भी ये दुनिया, लगती वीरानी है।
ये हवा मोहब्बत की, जाने चली कैसी
हर लड़का दीवाना है, हर लड़की दीवानी है।
दिल मेरा हुआ चोरी, नज़रों से हुआ घायल
जिसको भी यहां देखों, बस, एक कहानी है।
प्रेम, श्रृंगार आदि वह भावनाएं हैं जो कवियों को अपनी ओर सहज ही आकर्षित करती हैं तथा उन्हें अपने काव्य का विषय बनाने के लिए प्रेरित करती हैं किन्तु कवि प्रभात कटारे जहां प्रेम और श्रृंगार को तो अपने सृजन में स्थान देते हैं, वहीं एक सजग कवि की भांति युवाओं को उनके कर्त्तव्य का भी स्मरण कराते हैं-
तुम कहते हो प्रेम करो, अरे प्रेम की क्या परिभाषा है।
सभी ओर मायूसी है बस, चारो ओर निराशा है।।
क्या लैला, मजनूं बन कर ही, कहो प्रेम हो सकता है
और भी रूपों में ईश्वर ने, इंसा को यहां तराशा है।।
क्या नहीं कोई कर्त्तव्य तुम्हारा, जिनने तुमको पाला है
उनसे पूछो, उनके मन में, तुमसे कितनी आशा है।।
प्रभात कटारे मां के प्रति अपने भाव व्यक्त करते हुए मां के महत्व को निरुपित करते हुए कहते हैं कि मनुष्य के जीवन में मां से बढ़ कर और कोई हो ही नहीं सकता है। मां जिस प्रकार अपनी संतान के प्रति समर्पित रहती है, उतना समर्पणभाव और किसी में नहीं हो सकता है। अतः प्रत्येक संतान को अपने मातृऋण को ध्यान में रखना चाहिए। ये पंक्तियां देखिए-
तेरे ऋण से सदी ऋणी है, तेरी ये संतान
कोई नहीं ले सकता जग में, मां तेरा स्थान।
खुद सोई गीले में तू, सूखे में मुझे सुलाया
रात-रात भर सेवा की और अपना दूध पिलाया
फिर भी तेरे होंठों पर, वो बनी रही मुस्कान।
बिन बोले ही समझ ली तूने, मेरे मन की बात
लेकिन मैं ही समझ न पाया, वो तेरे जज़्बात
मैंने समझा मूरख तुझको, और खुद को विद्वान।
घूंघट में मुस्काती मां तू , याद मुझे है आती
झम-झम करती पायल तेरी, कैसा संगीत सुनाती
गूंज रहा है अंतरमन में, वो लोरी का गान।
कवि प्रभात की अभिव्यक्ति में विषय की विविधता है। वे सागर के महान दानवीर डॉ. हरीसिंह गौर के प्रति अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। इस बात को भला कौन विस्मृत कर सकता है कि वे डॉ गौर ही थे जिन्होंने अपनी संपत्ति दान कर के सागर को एक अनुपम विश्वविद्यालय प्रदान किया और इस शैक्षिकरूप से पिछड़े क्षेत्र में शिक्षा का मंदिर स्थापित किया। कवि प्रभात सागर के पितृपुरुष डॉ. हरीसिंह गौर का अभिनंदन करते हुए लिखते हैं कि-
हे गौर तुम्हारे चरणों में, नित वंदन है, अभिनंदन है
हे दानवीर, हे शूरवीर, महक गया तू चंदन है
सागर में हो तुम पुष्प कमल, हे कर्मवीर, हे बुद्धि विमल
मैं आभरी हूं प्रतिपल, सागर आभारी है प्रतिपल
तुम ज्ञानी हो, तुम ध्यानी हो, सागर का अभिमान हो तुम
हर घर शिक्षा दीप जलाया, ऐसा पावन अभियान हो तुम
सागर का श्रृंगार कर गए, इसकी छटा न्यारी है
तेरी इस कृपा करुणा के सागरवासी आभारी हैं
कवि यदि कविताकर्म करता है तो उसके कुछ सामाजिक सरोकार भी रहते हैं। इन्हीं सरोकारों को ध्यान में रख कर वह जीवन से जुड़े उन प्रसंगों को भी अपनी कविता में समाहित करता है जो देश की प्रगति एवं स्वतंत्रता के लिए जरूरी हैं। इसीलिए प्रभात कटारे ने मतदान के महत्व को भी अपनी रचना में पर्याप्त स्थान दिया है। वे लिखते हैं-
चुनाव एक कुंभ है, स्नान कीजिए
गुप्तदान दीजिए, मतदान कीजिए।
मां भारती का यश बढ़े, समृद्ध देश हो
मिल कर सभी ऐसा कोई विधान कीजिए।
फैली है बहुत गंदगी, विकराल रूप है
निर्मल हो राजनीति, कुछ निदान कीजिए।
प्रत्येक साहित्यिक विधा मनुष्य को संस्कारित करती है और उसमें भी काव्य की यह खूबी है कि वह कोमलता के साथ अनुशासित करती है। यदि कवि प्रभात कटारे काव्य के अनुशासन का इसी प्रकार निर्वहन करते रहे तो उनकी रचनाएं और अधिक प्रभावी होती जाएंगी। काव्य भी अभ्यास की मांग करता है। अभ्यास के प्रति लगन बनाए रखने की क्षमता प्रभात कटारे की रचनाओं में स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है जो उनके काव्यात्मक भविष्य के प्रति विपुल संभावनाएं प्रकट करती है।
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( दैनिक, आचरण दि. 07.06.2019)
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