Tuesday, September 24, 2019

सागर : साहित्य एवं चिंतन 64.... गजल के प्रति प्रतिबद्ध कवि अरुण दुबे - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

                  स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के कवि अरुण दुबे पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

 सागर : साहित्य एवं चिंतन

     गजल के प्रति प्रतिबद्ध कवि अरुण दुबे
                          - डॉ. वर्षा सिंह
                             
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नाम : अरुण दुबे
जन्म : 20 मार्च 1955
जन्म स्थान : ग्राम ढाना, सागर, मध्य प्रदेश
माता-पिता : स्व. श्रीमती नत्थीबाई, स्व. पं. केशव प्रसाद दुबे
शिक्षा  : एमएससी - प्राणिशास्त्र
लेखन विधा : पद्य
प्रकाशित पुस्तक : ‘‘तुम्हारे लिए’’ ग़ज़ल संग्रह
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            काव्य मन की भावनाओं को मुखर करने का सशक्त माध्यम होता है। प्राचीन ग्रंथों में काव्य को एक कला माना गया है। जिस प्रकार प्रत्येक कला सतत साधना की मांग करती है उसी प्रकार काव्य भी कवि से साधना की अपेक्षा रखता है। जो रचनाकार साहित्य की अपनी मनचाही विधा में सतत् प्रयत्नशील रहते हैं तथा रचनाकर्म में संलग्न रहते हैं, वे श्रेष्ठ रचनाओं की सर्जना करते हैं। सर्जना भाषा को जोड़ने और उसे नया रूप देने का भी कार्य करती है जिसका सुन्दर उदाहरण है हिन्दी अथवा खड़ी बोली में लिखी जाने वाली गजल। यूं तो सागर नगर में अनेक गजलकार हैं किन्तु उनमें गजल के प्रति निष्ठा रखने वाले अथवा दूसरे शब्दों में कहा जाए तो गजल को साधने वाले कम ही हैं। गजल के क्षेत्र में सतत् सृजनशील एक नाम लिया जा सकता है - गजलकार अरुण दुबे का।
             20 मार्च 1955 को ग्राम ढाना, सागर में पं. केशव प्रसाद दुबे एवं श्रीमती नत्थीबाई के पुत्र के रूप में जन्में अरुण दुबे को पठन- पाठन एवं अध्यात्म में रुचि अपने माता-पिता से संस्कारों के रूप में मिली। प्राणिशास्त्र में एम.एससी. करने वाले अरुण दुबे का वर्ष 1976-77 में मध्य प्रदेश पुलिस में उप निरीक्षक के पद पर चयन हो गया। उप निरीक्षक के रूप में गुना, भिंड, मुरैना आदि स्थानों में कार्य करते हुए वर्ष 1988 में निरीक्षक के रूप में पदोन्नत होकर धार, दमोह, बालाघाट, छतरपुर, रीवा, विदिशा, सीधी में तैनात रहे। वर्ष 2008 में उप पुलिस अधीक्षक के पद पर पदोन्नत हो कर 2015 में सेवानिवृत्त हुए। वर्तमान में वे सिविल लाइन, सागर में निज निवास में रहते हुए काव्य साधना कर रहे हैं। अनेक साहित्यिक गतिविधियों में भी उनकी उल्लेखनीय उपस्थिति रहती है।
            उनका प्रथम ग़ज़ल संग्रह वर्ष 2013 में प्रकाशित हुआ था जिसका नाम है -‘‘तुम्हारे लिए’’। इस गजल संग्रह का विमोचन विख्यात शायर अखलाक सागरी के कर कमलों से हुआ था। उनका  दूसरा ग़ज़ल संग्रह ‘‘चले आइए’’ शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा उन्हें अनेक सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका  है।
अरुण दुबे की गजलों में कथ्य और सौंदर्य का मिला-जुला भाव मिलता है। उनकी गजलें गजल की शैलीगत शर्तों को पूरा करती हैं। अच्छी गजल कहने के लिए जो निष्ठा ओर समर्पण विधा के प्रति होना चाहिए वह अरुण दुबे की गजलों को पढ़ कर महसूस किया जा सकता है। वे यथार्थ और कल्पना को अपनी गजलों में संतुलित रूप में प्रस्तुत करते हैं। उनकी स्मानी गजलों में भी यह संतुलन देखा जा सकता है। उदाहरण देखें -
हादसों ने खराब कर डाला
मुझको बिगड़ा नवाब कर डाला
जोश सारा खराब कर डाला
रुख पर अपने नकाब कर डाला
नूर जब अपना भर दिया उसने
दीप को आफताब कर डाला
बुत परस्ती नहीं कभी की थी
प्यार ने यह अजाब कर डाला
आज वो शेर कह दिया तुमने
वज्म को लाजवाब कर डाला
हुस्न पर यों  शबाब आया है
छू के पानी शराब कर डाला
ऐ ‘अरुण’ इश्क क्या हुआ तुझको
हाल अपना खराब कर डाला

Arun Dubey

         सलाह यदि उपदेश की जरह दी जाए तो उसमें शुष्कता का भाव रहता है। किन्तु वही सलाह यदि कोमलता से आगाह करते हुए दी जाए तो वह गहराई तक असर करती है और उसमें सरसता भी मौजूद रहती है। जैसे अरुण दुबे ने अपनी इस गजल में खतरों से आगाह करने के लिए कोमलता से काम लिया है -
पत्थरों का शहर है संभल जाइए
दिल न टूटे बचाकर निकल जाइए
रोज लड़ना झगड़ना बुरी बात है
इनको समझाइए के संभल जाइए
आप शम्मा को इल्जाम देते हैं क्यों
प्यार है तो मोहब्बत में जल जाइए
उंगलियां दूसरों पर उठाते हैं क्यों
पहले सच के प्याले में ढल जाइए
दूसरों की निगाहों पे तोहमत न दें
यूं ना हो आप खुद ही फिसल जाइए
सब्र से काम लेना बड़ी बात है
जोश में आकर यूं  न उबल जाइए
ऐ ‘अरुण’ रूठने की अदा छोड़िए
सामने वह है अब तो बहल जाइए

           समाज का एक बड़ा तबका गरीबी और लाचारी से ग्रस्त है। कोई भी संवेदनशील व्यक्ति इस तबके की पीड़ा को अनदेखा नहीं कर सकता है। गरीबी कई बार मनुष्य को इस हद तक विवश कर देती है कि महिलाओं को अपनी देह बेचने के लिए विवश होना पड़ता है। यह स्थिति सुखद तो कदापि नहीं कही जा सकती है। यही भाव अरुण दुबे की इस गजल में बारीकी से उभर कर आया है -
इन गरीबों का कोई ठिकाना नहीं
इनका कोई कहीं आशियाना नहीं
ये तो खुद अपने दुख से परेशान हैं
देखना इनको कोई सताना नहीं
पेट की आग से यह तो चलते ही हैं
इनके झुलसे दिलों को जलाना नहीं
जान तो पहले ही आपको दे दिए
इससे ज्यादा हमें आजमाना नहीं
जिस जगह जिस्म की बोलियां हो रहीं
भूलकर ऐसी बस्ती में जाना नहीं
शाम बर्फीली है रात शर्मीली है
आज घर से निकल दूर जाना नहीं
उसकी खुशबू से खाली हवा चल रही
आज मौसम ‘अरुण’ यह सुहाना नहीं

Sagar Sahitya Avam Chintan- Dr. Varsha Singh

          कहा जाता है कि व्यक्ति ठोकरें खा कर ही सीखता है। जीवन का अनुभव वह पाठशाला है जो सबक देती है उत्तर सुझाती है और परिणाम भी हाथों में रख देती है, जिससे जिन्दगी को जानने- समझने का सलीका आता है। कुछ यही भाव हैं अरुण दुबे की इस गजल में -
जिंदगी को देखने का नजरिया हमको मिला
गर्दिशों की ठोकरों से फलसफा हमको मिला
देर से मिलने का मुझको अब गिला कोई नहीं
शुक्र है यारा कि तुझसा आशना हमको मिला
हार जाता तुम अगर मिलते न मुश्किल दौर में
आपके इस प्यार से ही हौसला हमको मिला
बिक रहा क्या क्या नहीं बस दाम होना चाहिए
पक्ष में था साक्ष्य उल्टा फैसला हमको मिला
फेंक आया आज मैं ईमान रोटी छीन कर
दो दिनों के बाद बेटा खेलता हमको मिला
हो गई है जांच पूरी हो गए नेता बरी
सच जो था कुछ और वो नीचे दबा हमको मिला
ऐ ‘अरुण’ ऐसे खुदा को पा के क्या कर पायेगा
आदमी से दूर जाकर जो खुदा हमको मिला

        इंसान अपने किसी भी दुनियावी रिश्ते को भूल सकता है लेकिन अपनी मां को कभी भूल नहीं पाता है। मां उसके जीवन में वह शख्सियत होती है जो अपनों के लिए पीड़ा सह कर खुश रहना सिखाती है, वह भी शब्दों के माध्यम से नहीं वरन् अपनी जीवन शैली के माध्यम से। मां पर अरुण दुबे की यह गजल देखिए -
कहीं से कुछ भी करके घर के चूल्हे को जलाती है
मगर बच्चों को मां खाना खिला कर ही सुलाती है
हमेशा मुफ़लिसी तकलीफ जिल्लत खुद उठाती है
मगर बच्चों को मां इखलास की चादर बिछाती है
नहीं करता कोई भी त्याग जितना करती है इक मां
लहू छाती का केवल मां ही बच्चों को पिलाती है
बचाती ही नहीं मां अपने बच्चों को बुराई से
बसद तहजीब के रस्ते पे भी चलना सिखाती है
‘अरुण’ मां का बड़ा एहसान है जो अपने बच्चों को
जमीं से आसमां के तख्त पर लाकर बिठाती है

          अरुण दुबे की गजलें इंसानियत के जज्बे से भरी हैं। उनमें जीवन की धूप- छांव भी दिखाई देती है। वे अव्यवस्थाओं पर कटाक्ष करते हैं तो प्रेम और अनुराग की पैरवी भी करते हैं। अरुण दुबे का रचनाकर्म सागर साहित्य जगत के लिए महत्वपूर्ण कहा जा सकता है।

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( दैनिक, आचरण  दि. 23.09.2019)
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