Tuesday, December 22, 2020

अख़लाक़ सागरी : जिनके लिए मंदिर की घंटियां भी अज़ान थीं | डाॅ. वर्षा सिंह | पुण्यतिथि पर विशेष | लेख

Dr. Varsha Singh
प्रिय ब्लॉग पाठकों, आज  दिनांक 22.12.2020 को सागर नगर के अंतरराष्ट्रीय ख़्यातिप्राप्त मशहूर शायर मरहूम अख़लाक़ सागरी की दूसरी पुण्यतिथि पर "दैनिक भास्कर" समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ है मेरा यह विशेष लेख "अख़लाक़ सागरी : जिनके लिए मंदिर की घंटियां भी अज़ान थीं"
हार्दिक आभार दैनिक भास्कर 🙏

नमन है सागर के गौरव मरहूम शायर अख़लाक़ सागरी जी को 🙏💐🙏

मरहूम शायर अख़लाक़ सागरी की पुण्यतिथि पर डॉ. वर्षा सिंह का दैनिक भास्कर में प्रकाशित लेख

मेरा यह लेख ब्लॉग पाठकों की पठन- सुविधा के लिए जस का तस प्रस्तुत है :- 

22 दिसम्बर पुण्यतिथि पर विशेष:-


 अख़लाक़ सागरी : जिनके लिए मंदिर की घंटियां भी अज़ान थीं

         - डाॅ. वर्षा सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार


इश्क़ में हम तुम्हें क्या बताएं, किस क़दर चोट खाये हुए हैं।

मौत ने उनको मारा है और हम, ज़िन्दगी के सताये हुए हैं।

ऐ लहद अपनी मिट्टी से कह दे, दाग़ लगने न पाये कफ़न को,

आज ही हमने बदले हैं कपड़े, आज ही हम नहाये हुए हैं।

इस ग़ज़ल से दुनिया भर में छा जाने वाले सागर के शायर अख़लाक़ सागरी किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं। इस ग़ज़ल के पीछे एक दिलचस्प वाक़या रहा। जब वे कक्षा 11वीं में पढ़ते थे, तब उन्हें एक लड़की से प्रेम हो गया। लेकिन उस लड़की ने उन्हें धोखा दे दिया। इससे उनके दिल को गहरी चोट पहुंची और यह ग़ज़ल बन गई।

अख़लाक़ सागरी की ग़ज़लों को बालीवुड के नामचीन गायकों के साथ ही पाकिस्तानी गायक अताउल्ला खां ने भी अपनी आवाज़ दी है। अपने समय में मुशायरों में जान डालने वाले अख़लाक़ सागरी क़ौमी एकता के प्रबल समर्थक थे। मुझे याद है सतना जिले के जैतवारा में हुए कविसम्मेलन की वह घटना, मैं भी उस कविसम्मेलन में काव्यपाठ के लिए आमंत्रित थी। सभी कवियों के ठहरने की व्यवस्था मंदिर के पास एक घर में की गई थी। शाम की चाय के समय मंदिर में जब आरती की घंटियां बजीं तो एक बददिमाग़ कवि ने अख़लाक़ साहब को छेड़ते हुए पूछा- ‘‘आप को इस आवाज़ से परेशानी तो नहीं हो रही है?’’ इस पर अख़लाक़ साहब हंस कर बोले- ‘‘ये आवाज़ तो मेरे लिए पाक अज़ान की तरह है, भला मुझे इससे क्या परेशानी होगी’’ उत्तर सुन कर पूछने वाला कवि अपना सा मुंह ले कर रह गया।

इश्क़ मुहब्बत की शायरी के साथ ही अख़लाक़ सागरी ने मुफ़लिसी पर भी गजलें कही। उनके ये मिसरे बेहद मशहूर हैं -

फुटपाथ पर पड़ा था वो कौन था बेचारा।

भूखा था कई दिन का दुनिया से जब सिधारा।

कुर्ता उठा के देखा, तो पेट पर लिखा था

सारे ज़हां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।


मशहूर शायर अख़लाक़ सागरी ने उर्दू शायरी को एक अलग ही ज़मीन दी। आज उनके पुत्र अयाज़ सागरी अपने पिता की इस विरासत को न केवल सहेज रहे हैं बल्कि अपनी शायरी से समृद्ध कर रहे हैं।

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2 comments:

  1. जनाब सागरी साहब को बहुत अच्छी श्रद्धांजलि दी है वर्षा जी आपने । यह तथ्य सुखद है कि उनके पुत्र उनकी विरासत को सहेज रहे हैं तथा समृद्ध कर रहे हैं ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय माथुर जी 🙏

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