Monday, May 6, 2019

रवीन्द्रनाथ टैगोर का स्मरण .... और बुंदेलखंड के सागर का रवीन्द्र भवन - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

07 मई रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म दिवस है, उनका स्मरण हमारे देश की एक महान प्रतिभा का स्मरण है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर पूरे विश्व में वंदनीय हैं। सागर, मध्यप्रदेश में सागर शहर के लगभग हृदय स्थल गोपालगंज में स्थित प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र रवीन्द्र भवन, रवीन्द्रनाथ टैगोर की स्मृति में निर्मित किया गया है।

# साहित्य वर्षा

      पिछले लगभग 30 वर्षों से रवींद्रनाथ टैगोर जयंती पर प्रत्येक वर्ष रवींद्र भवन में साहित्य, संस्कृति, कला आदि से सम्बद्ध अनेक कार्यक्रमों के साथ-साथ म्युजिकल नाइट, पोस्टर प्रदर्शनी, रंगोली प्रतियोगिता, व्याख्यान आदि आयोजित किये जाते हैं। इस वर्ष गुरुदेव की 158 वीं जयन्ती पर 4-5 मई 2019 को सागर के कलाकारों - चित्रकारों द्वारा दो दिवसीय कार्यक्रम " माटी के रंग" का आयोजन किया गया।

रवीन्द्र भवन के प्रांगण में सागर नगर के साहित्यकार # साहित्य वर्षा

शहर की सांस्कृतिक, साहित्यिक संस्थाएं तो इसमें अनेक सफल आयोजन करती ही हैं, अनेक सामाजिक और राजनीतिक समारोह भी यहां सम्पन्न होते हैं। इस ब्लॉग की लेखिका यानी डॉ. वर्षा सिंह को यह कहते हुए गर्व का अनुभव हो रहा है कि मुझे भी अनेक बार रवीन्द्र भवन में आयोजित कार्यक्रमों, समारोहों में मंचासीन होने का अवसर प्राप्त हुआ है। बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने यहां  विभिन्न विषयों पर अनेक व्याख्यान दिये हैं।
रवीन्द्रनाथ के जन्मदिवस के अवसर पर "पत्रिका" समाचारपत्र ने डॉ. (सुश्री) शरद सिंह का व्यक्तव्य 07 मई 2019 के अंक में प्रकाशित किया है :-

http://epaper.patrika.com/c/39169393  # साहित्य वर्षा

"स्त्री स्वतंत्रता के समर्थक थे कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर।
मुझे कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर के काव्य पक्ष के साथ ही उनका कहानीकार पक्ष भी बहुत प्रभावित करता है, इसीलिए मैंने स्त्री विमर्श की अपनी पुस्तक ‘औरत तीन तस्वीरें’ में ‘टैगोर, स्त्री और प्रेम’ शीर्षक से एक विस्तृत लेख लिखा। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर मानवीय भावनाओं के चितेरे कवि ही नहीं वरन् एक संवेदनशील कथाकार भी थे। टैगोर की कहानियों में तत्कालीन समाज, मानव प्रकृति व प्रवृत्ति, एवं मानव मनोविज्ञान अपने समग्र रूप में उभर कर आया है। जैसे ‘माल्यदान’ कहानी की ‘बिन्नी’ को लें, जिसके द्वारा रवीन्द्रनाथ ने प्रेम के प्रति स्त्री की मौन साधना को वर्णित किया। या फिर कहानी ‘प्रेम का मूल्य’ को लें, जिसमें महाभारतकालीन पात्र ‘देवयानी’ के माध्यम से उन्होंने स्त्री गरिमा को स्थापित किया।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
लेखिका एवं समाजसेवी"
https://www.patrika.com/sagar-news/special-on-rabindranath-tagore-jayanti-today-4534610/

रवीन्द्र भवन , सागर,  मध्यप्रदेश # साहित्य वर्षा

रवीन्द्रनाथ टैगोर भारतीय उपमहाद्वीप के एक दैदीप्यमान नक्षत्र के समान थे । कोलकाता के जोड़ासाकों की ठाकुरबाड़ी में एक प्रतिष्ठित और समृद्ध बंगाली परिवार में से एक था - टैगोर परिवार । जिसके मुखिया देवेन्द्रनाथ टैगोर जोकि, ब्रम्ह समाज के वरिष्ठ नेता थे , वह बहुत ही सुलझे हुए और सामाजिक जीवन जीने वाले व्यक्ति थे। उनकी पत्नी शारदादेवी, बहुत ही सीधी और घरेलू महिला थी। 7 मई 1861 को, उनके घर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई , जिनका नाम रवीन्द्रनाथ रखा गया । बड़े होकर यह गुरुदेव के नाम से, भी प्रसिद्ध हुए ।
The bust of Gurudev Ravindranath Tagore in the garden of Shakespeare’s birthplace. Gurudev’s poem on Shakespeare is inscribed on the plinth in the original language, Bengali. A tablet of the poem is part of the collection on display. # Sahitya Varsha

   रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म भारत के कलकत्ता शहर में जोरासंको हवेली में एक बंगाली परिवार में हुआ. यह हवेली टैगोर परिवार का पैतृक घर थी. ये अपने माता – पिता की आखिरी संतान थे. ये अपने पिता की 15 संतानों में से 14 नंबर की संतान थे।. उनके पिता एक महान हिन्दू दार्शनिक और ‘ब्राह्मो समाज’ के धार्मिक आंदोलन के संस्थापकों में से एक थे. इन्हें बचपन में रवि नाम से जाना जाता था. इनकी उम्र बहुत कम थी जब इनका अपनी माँ से साथ छूट गया. और पिता भी ज्यादातर समय घर से दूर रहते थे. इसलिए इन्हें घर की आया एवं घर के नौकरों द्वारा पाला – पोसा गया था.
रवीन्द्रनाथ टैगोर जन्म से ही, बहुत ज्ञानी थे, इनकी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के, बहुत ही प्रसिद्ध स्कूल सेंट जेवियर नामक स्कूल मे हुई . इनके पिता प्रारंभ से ही, समाज के लिये समर्पित थे . इसलिये वह रवीन्द्रनाथ को भी, बैरिस्टर बनाना चाहते थे . जबकि, उनकी रूचि साहित्य में थी, रवीन्द्रनाथ के पिता ने 1878 मे उनका लंदन के विश्वविद्यालय मे दाखिला कराया परन्तु, बैरिस्टर की पढ़ाई में रूचि न होने के कारण , 1880 मे वे बिना डिग्री लिये ही वापस आ गये ।
रवीन्द्रनाथ टैगोर # साहित्य वर्षा

       सन 1883 में उन्होंने 10 साल की उम्र की मृणालिनी देवी के साथ विवाह किया. इनके कुल 5 बच्चे हुए. सन 1902 में उनकी पत्नी की मृत्यु हुई. और अपनी माँ के निधन के बाद टैगोर  की 2 बेटियों रेणुका और समिन्द्रनाथ का भी निधन हो गया.

रवीन्द्रनाथ टैगोर अद्भुत प्रतिभा के धनी थे।  उनकी रूचि अनेक स्थानों को विषयों मे थी, और हर क्षेत्र मे, उन्होंने अपनी ख्यति फैलाई । इसलिये वे एक महान कवि, साहित्यकार, लेखक, चित्रकार, और एक बहुत अच्छे समाजसेवी भी बने। कहा जाता है कि, जिस समय बाल्यकाल मे, कोई बालक खेलता है उस उम्र मे, रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी पहली कविता लिख दी थी । जिस समय रवीन्द्रनाथ टैगोर ने, अपनी पहली कविता लिखी उस समय, उनकी उम्र महज आठ वर्ष थी । किशोरावस्था मे तो ठीक से, कदम भी नही रखा था और उन्होंने 1877 मे, अर्थात् सोलह वर्ष की उम्र मे ,लघुकथा लिख दी थी ।
# Sahitya Varsha

1882 में उन्होंने अपनी सबसे चर्चित कविताओं में से एक ‘निर्जहर स्वप्नाभांगा’ लिखी थी. उनकी एक भाभी कादंबरी उनके करीबी दोस्त और विश्वासी थी। जिन्होंने सन 1884 में आत्महत्या कर ली थी। इस घटना से उन्हें गहरा आघात पहुंचा, उन्होंने स्कूल में कक्षाएं छोड़ी और अपना अधिकांश समय गंगा में तैराकी करने और पहाड़ों के माध्यम से ट्रैकिंग करने में बिताया। सन 1890 में, शेलैदाहा में अपनी पैतृक संपत्ति की यात्रा के दौरान उनकी कविताओं का संग्रह ‘मणसी’ जारी किया गया था। सन 1891 और 1895 के बीच की अवधि फलदायी शाबित हुई, जिसके दौरान उन्होंने लघु कथाओं ‘गल्पगुच्छा’ के तीन खंडो का संग्रह किया।  उनकी कुछ प्रसिद्ध लघु कथाओं में कई अन्य कहानियां जैसे ‘काबुलीवाला’, ‘क्षुदिता पाषाण’, ‘अटोत्जू’, ‘हेमंती’ और ‘मुसल्मानिर गोल्पो’ शामिल हैं. उन्होंने अपने एक उपन्यास ‘शेशर कोबिता’ में मुख्य नायक की कविताओं और रिदमिक पैसेज के माध्यम से अपनी कहानी सुनाई। उनके प्रसिद्ध उपन्यासों में ‘नौकाडुबी’, ‘गोरा’, ‘चतुरंगा’, ‘घारे बैर’ और ‘जोगाजोग’ आदि शामिल है और उनकी कुछ बेहतरीन कविताओं में ‘बालका’, ‘पूरबी’, ‘सोनार तोरी’ और ‘गीतांजली’ शामिल है।
RABINDRANATH TAGORE'S HOUSE IN RILBONG, SHILLONG .. 'SESHER KOBITA' WAS WRITTEN HERE ONLY ..

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने , लगभग 2230 गीतों की रचना की । भारतीय संस्कृति मे, जिसमे ख़ास कर बंगाली संस्कृति मे, अमिट योगदान देने वाले बहुत बड़े साहित्यकार थे । टैगोर ने कविताओं में आधुनिक नज़रिए से अपनी परंपरा का विखंडन और पुनर्नियोजन किया। उन्नीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों में उन्होंने ब्राह्मण, वसुंधरा, कच-देवयानी, देवता का ग्रास, अभिसार, गांधारी का आवेदन जैसी कविताएं लिखकर, कविता के रूप और शिल्प को ही समृद्ध नहीं किया, बल्कि समय के नए आलोक में परंपरा को देखने का उपक्रम भी किया। धृतराष्ट्र, कच-देवयानी और जाबाला पुत्र सत्यकाम की कथाओं के माध्यम से अपने समय के मानवीय विवेक और प्रेम को उन्होंने परंपरा के ज़रिए स्थापित किया। स्त्री की शक्ति को भी नए आलोक में देखा।
 # Sahitya Varsha


रवीन्द्रनाथ टैगोर कभी न रुकने वाले, निरंतर कार्य करने पर विश्वास रखते थे । रवीन्द्रनाथ टैगोर ने, अपने आप मे ऐसे कार्य किये है जिससे, लोगो का भला ही हुआ है । उनमें से एक है, शांतिनिकेतन की स्थापना। शान्तिनिकेतन की स्थापना, गुरुदेव का सपना था जो उन्होंने, 1901 मे, पूरा किया । वे चाहते थे कि , प्रत्येक विद्यार्थी कुदरत या प्रकृति के समुख पढ़े, जिससे उसे बहुत ही अच्छा माहौल मिले । इसलिये गुरुदेव ने, शान्तिनिकेतन में पेड़-पौधों और प्राकृतिक माहोल में, पुस्तकालय की स्थापना की । रवीन्द्रनाथ टैगोर के अथक प्रयास के बाद, शान्तिनिकेतन को विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ । जिसमें साहित्य कला के, अनेक विद्यार्थी अध्यनरत हुए ।
नौका डूबी उपन्यास # साहित्य वर्षा

                      नाव दुर्घटना को केंद्रित कर लिखे गए
गुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर के उपन्यास में "नौका डूबी" पर "कशमकश" नाम से बनी फिल्म काफी सराहनीय रही. करीब 4 साल पहले 2011 में  इस पर फिल्‍म बनाई गई. इस फिल्‍म का निर्माण्‍ा बांग्ला फिल्मकार ऋतुपर्णो घोष ने किया और इसमें सुचित्रा सेन की नातिनों यानी मुनमुन सेन की दोनों बेटियों राइमा व रिया सेन ने मुख्‍य पात्रों हेमनलिनी और सुशीला की भूमिकाएं निभाई।

टैगोर  की अधिकांश कवितायेँ, कहानियां, गीत और उपन्यास बाल विवाह और दहेज जैसे उस समय के दौरान चल रही सामाजिक बुराइयों के बारे में होते थे. लेकिन उनके द्वारा लिखे गए गीत भी काफी प्रचलित थे, उनके गीतों को ‘रवीन्द्र गीत’ कहा जाता था. सभी को यह ज्ञात होगा कि हमारे देश के राष्ट्रीय गान –‘जन गण मन’ की रचना इन्हीं के द्वारा की गई है. इसके अलावा उन्होंने बांग्लादेशी राष्ट्रीय गीत –‘आमर सोनार बांग्ला’ की भी रचना की थी.  जो कि बंगाल विभाजन के समय बहुत प्रसिद्ध था।
Let your life lightly dance on the edges of time like dew on the tip of a leaf. - Rabindranath Taigor

रवीन्द्रनाथ ने 60 साल की उम्र में ड्राइंग एवं पेंटिंग करना शुरू किया. उनकी पेंटिंग्स पूरे यूरोप में आयोजित प्रदर्शनी में प्रदर्शित की गई थी। टैगोर की सौन्दर्यशास्त्र, कलर स्कीम और शैली में कुछ विशिष्टताएँ थी, जो इसे अन्य कलाकारों से अलग करती थीं. वे उत्तरी न्यू आयरलैंड से सम्बंधित मलंगन लोगों की शिल्पकला से भी प्रभावित थे। वे कनाडा के पश्चिमी तट से हैडा नक्काशी और मैक्स पेचस्टीन के वुडकट्स से भी काफी प्रभावित थे। नई दिल्ली में नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट में टैगोर जी की 102 कला कृतियाँ हैं।
चोखेर बाली # साहित्य वर्षा
फिल्म निर्माता सत्यजीत रे टैगोर के कार्यों से गहराई से प्रभावित थे और रे की ‘पाथर पांचाली’ में प्रतिष्ठित ट्रेन के दृश्य, टैगोर जी की ‘चोखेर बाली’ में दर्शाई गई एक घटना से प्रेरित थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर का उपन्यास चोखेर बाली हिन्दी में ‘आँख की किरकिरी’ के नाम से प्रचलित है। प्रेम, वासना, दोस्ती और दाम्पत्य-जीवन की भावनाओं के भंवर में डूबते-उतरते चोखेर बाली के पात्रों-विनोदिनी, आशालता, महेन्द्र और बिहारी-की यह मार्मिक कहानी है। 1902 में लिखा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का यह उपन्यास मानवीय भावनाओं और उस समय के बंगाल के समाज का जीता-जागता चित्रण प्रस्तुत करता है और इसलिए उनका सबसे उत्कृष्ट उपन्यास माना जाता है। जिस पर इसी नाम से फिल्म भी बन चुकी है।
Ravindra Bhavan, Sagar, M.P. # Sahitya Varsha

रवीन्द्रनाथ टैगोर को अपने जीवन मे, कई उपलब्धियों या सम्मान से नवाजा गया परन्तु, सबसे प्रमुख थी “गीतांजलि” . 1913 मे, गीतांजलि के लिये, रवीन्द्रनाथ टैगोर को “नोबेल पुरुस्कार” से सम्मानित किया गया .रवीन्द्रनाथ टैगोर ने, भारत को और बंगला देश को, उनकी सबसे बड़ी अमानत के रूप मे, राष्ट्रगान दिया है जोकि, अमरता की निशानी है । हर महत्वपूर्ण अवसर पर, राष्ट्रगान गाया जाता है जिसमें, भारत का “जन-गण-मन है” व बंगला देश का “आमार सोनार बांग्ला” है ।यह ही नहीं रवीन्द्रनाथ टैगोर अपने जीवन मे तीन बार अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक से मिले जो रवीन्द्रनाथ टैगोर को रब्बी टैगोर कह कर पुकारते थे ।

Geetanjali # Sahitya Varsha

उन राष्ट्रों में जहां अंग्रेजी बोलने वाले की संख्या बहुतायत में थी, गीतांजलि की  लोकप्रियता जो उनके द्वारा की गई रचना थी, ने  रवीन्द्रनाथ को ख्याति दिलाई और उन्हें इसके लिए साहित्य में प्रतिष्ठित नॉबेल पुरस्कार जैसा सम्मान दिया गया। उस समय वे नॉन यूरोपीय और एशिया के पहले नॉबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले विजेता बने।
# साहित्य वर्षा

रवीन्द्रनाथ एक ऐसा व्यक्तित्व थे जिसने, अपने प्रकाश से, सर्वत्र रोशनी फैलाई । भारत के बहुमूल्य रत्न में से, एक हीरा जिसका तेज चारों दिशाओं में फैला। जिसने भारतीय संस्कृति का अदभुत साहित्य, गीत, कथाये, उपन्यास , लेख लिखे । रवीन्द्रनाथ के जीवन के अंतिम चार वर्ष बीमारियों के कारण पीड़ा में व्यतीत हुए । जिसके कारण सन 1937 में वे कोमा में चले गये। 3 साल तक कोमा में ही रहे। तदोपरान्त बाद 7 अगस्त, 1941 को उनका देहवसान हो गया. उनकी मृत्यु जोरसंको हवेली में हुई जहाँ उन्हें लाया गया था। रबिन्द्रनाथ टैगोर एक ऐसा व्यक्तित्व है जो, मर कर भी अमर हैं।

Depth of friendship
does not depend on
length of acquaintance.
मित्रता की गहराई परिचय की लम्बाई पर निर्भर नहीं करती .
- Rabindranath Tagore

If you shut your door to all errors truth will be shut out - RabindraNathTagore 


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