दैनिक भास्कर और राहगीरी ग्रुप के संयुक्त आयोजन राहगीरी में फूलों से सूखी होली खेल कर पानी बचाने का संदेश दिया गया। रंगों के बगैर जिंदगी में उल्लास नहीं, रंग हमें खुश रहने और आनंदित रहने का संदेश देते हैं। वे यह भी बताते हैं कि रंगों का आनंद क्या होता है। होली हमें जीवन के रंगों का आनंद लेने का एहसास कराती है।
इस दफ़ा कैमिकलयुक्त रंगों से बचने और पानी की बचत का संदेश देने के उद्देश्य से सागर के संजय ड्राइव पर रविवार को राहगीरी में होली गेंदे, टेसू, जीनिया आदि के फूल, अंबीर और गुलाल से मनाई गई। दैनिक भास्कर और राहगीरी सोशल ग्रुप के संयुक्त आयोजन में रविवार को शहरवासी संजय ड्राइव पर जुटे और बच्चों, बड़ों सभी ने मिल कर जम कर होली का आनंद उठाया।
वैसे मथुरा-वृंदावन में फूलों की होली खेली जाती है। मथुरा में फूलों की होली खेलने की परंपरा काफी पुरानी है। ये होली भी एक सप्ताह तक मनाई जाती है। वृंदावन सहित देश के कई हिस्सों में होली के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इसमें नृत्य के साथ साथ एक दूसरे पर फूलों की बरसात की जाती है। होली से पहले पड़ने वाली एकादशी पर ये होली खेली जाती है।
राहगीरी में उपस्थित सभी बच्चों ने फूलों की पंखुड़ियों से होली खेली। संयोजक ग्रुप के बंटी जैन ,भावेश दर्जी उपस्थित थे। लेखिका डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने कहा कि पर्यावरण एवं जल संरक्षण हेतु यह ज़रूरी है कि हम फूलों की पंखुड़ियों, सूखी हल्दी - चंदन और गुलाल से सूखी होली खेलें। इससे जहां पानी, लकड़ी की बचत होगी. वहीं रासायनिक रंगों से होनी वाली हानि से भी बचा जा सकेगा। इस संदर्भ में उन्होंने अपनी ये पंक्तियां पढ़ीं-
सूखी होली खेलिए, पर्यावरण बचाय।हरियाली, पानी बचे, मन को यह हर्षाय ।।
मन को यह हर्षाय, करें रक्षा हम जग की।
वायु शुद्ध, जल रहे शेष, खुशियां हों सबकी।।
मैंने यानी इस ब्लॉग की लेखिका कवयित्री डॉ वर्षा सिंह ने महिलाओं का सम्मान करने और होली के त्यौहार को आपसी सद्भावना से मनाने विषयक अपनी इस कविता के माध्यम से संदेश दिया -
मां,भाभी है, बहन है नारी, सदा इसे सम्मान दो,
मानव जीवन पाया है तो मानवता को मान दो।
होली और दिवाली हमको सदा यही सिखलाते हैं,
धर्म हमारा मानवता है, इसे नई पहचान दो।
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