Monday, March 15, 2021

चित्रकला कार्यशाला जहां कला ने जीवन्त किया वैज्ञानिकों को | समीक्षात्मक रिपोर्ट | डाॅ. वर्षा सिंह,

Dr. Varsha Singh

प्रिय ब्लॉग पाठकों, कल दिनांक 14 मार्च 2021 को 'आचरण' समाचार पत्र के सागर संस्करण में चित्रकला वर्कशॉप पर मेरी समीक्षात्मक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। जिसके लिए मैं 'आचरण'  की आभारी हूं। 🙏
    वस्तुतः चित्रकला का हम दोनों बहनों को बचपन से ही शौक रहा है। इसीलिए जब भी मेरे शहर में चित्रकला की कोई एक्जीबिशन या वर्कशॉप होता है, तो हम उसे देखने अवश्य जाती हैं। इस बार शहर के 'रंग के साथी' ग्रुप के असरार अहमद और अंशिता वर्मा ने वर्कशॉप किया जिसकी थीम थी 'विज्ञान में रंग'।

भारतीय चित्रकला का इतिहास बहुत पुराना है। भारतीय कला की लंबी परंपरा है। प्रागैतिहासिक काल की रॉक पेंटिंग्स सबसे पुरानी भारतीय पेंटिंग्स हैं। भीमबैठका (भोपाल), आबचंद (सागर) मध्यप्रदेश के रॉक आश्रयों जैसे स्थानों में पाए जाने वाले पाषाण युग के रॉक चित्रों में अनेक लगभग 30,000 वर्ष पुराने हैं। अजंता गुफाओं की पेंटिंग्स विश्व धरोहर हैं। मुगल चित्रकला, राजस्थानी क़लम आदि पूरी दुनिया में मशहूर हैं। आधुनिक भारतीय चित्रकला का उन्नीसवीं शती के उत्तरार्ध में अधिक विकास हुआ। कोलकाता, मुम्बई और चेन्नई आदि प्रमुख भारतीय शहरों में  यूरोपीय मॉडल पर कला स्कूल स्थापित हुए। त्रावणकोर के राजा रवि वर्मा के मिथकीय और सामाजिक विषयवस्तु पर आधारित तैल चित्र इस काल में सर्वाधिक लोकप्रिय हुए। रवीन्द्रनाथ ठाकुर, अवनीन्द्रनाथ ठाकुर, इ.बी हैवल और आनन्द केहटिश कुमार स्वामी ने बंगाल कला शैली की चित्रकारी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। बंगाल कला शैली ‘शांति निकेतन’ में  रवीन्द्रनाथ टैगोर के सान्निध्य में फली-फूली। टैगोर ने वहां ‘कलाभवन’ की स्थापना की। जहां प्रतिभाशील कलाकार जैसे नंदलाल बोस, विनोद बिहारी मुखर्जी, आदि उभरते कलाकार प्रशिक्षित हुए। नन्दलाल बोस भारतीय लोक कला तथा जापानी चित्रकला से प्रभावित थे और विनोद बिहारी मुकर्जी प्राच्य परम्पराओं में गहरी रुचि रखते थे। इस काल के अन्य चित्रकार जैमिनी राय ने उड़ीसा की पट-चित्रकारी और बंगाल की कालीघाट चित्रकारी से प्रेरणा प्राप्त की। भारतीय महिलाओं में अमृता शेरगिल ने पेरिस, बुडापेस्ट में शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद भारतीय विषयवस्तु को लेकर गहरे चटख रंगों से चित्रकारी की। उन्होंने विशेषरूप से भारतीय नारी और किसानों को अपने चित्रों का विषय बनाया। यद्यपि इनकी मृत्यु अल्पायु में ही हो गई परंतु वह अपने पीछे भारतीय चित्रकला की समृद्ध विरासत छोड़ गई हैं। इन सभी चित्रकारों का योगदान अविस्मरणीय है।
   आज चित्रकला छोटे शहरों में भी लोगों में रुचि उत्पन्न कर रही है।
ब्लॉग पाठकों की पठन-सुविधा हेतु  यहां प्रस्तुत है मेरे प्रकाशित लेख जस का तस..

समीक्षात्मक रिपोर्ट
  चित्रकला कार्यशाला जहां कला ने जीवन्त किया वैज्ञानिकों को
               - डाॅ. वर्षा सिंह, कला समीक्षक
                       
     आज विज्ञान हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। बिना वैज्ञानिक सुविधाओं के हमारा रोजमर्रा का जीवन सुचारु रूप से चल ही नहीं सकता है। विज्ञान से समाज को लाभान्वित करने वाले वैज्ञानिकों को कैनवास पर जीवन्त करने की कार्यशाला का आयोजन किया नगर की संस्था रंग के साथी ने। शासकीय उत्कृष्ट उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, सागर में विगत 08 मार्च से 13 मार्च तक छः दिवसीय कार्यशाला में रंग के साथी ग्रुप के कलाकारों ने विद्यार्थियों के साथ मिल कर 16 वैज्ञानिकों के चित्र कैनवास पर चित्रित किए। इस पोट्रेट पेंटिंग कार्यशाला को नाम दिया गया ‘‘विज्ञान में रंग’’। इस कार्यशाला का उद्देश्य नगर में छिपी प्रतिभाओं को एक मंच देना और विद्यार्थियों को चित्रकला के प्रति रुचि जगाना है। इस कार्यशाला की विशेष बात यह है कि इसमें प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक के वैज्ञानिकों के चित्र बनाए गए जिसे दर्शकों, विद्यार्थियों और कलाप्रेमियों को चरक से ले कर डाॅ.अब्दुल कलाम तक अपने देश के वैज्ञानिकों को स्मरण करने और उनके प्रति आभार प्रकट करने का एक कलात्मक अवसर मिला।

पोट्रेट पेंटिंग चित्रकला की एक ऐसी शैली है जो असीम धैर्य और रंग संयोजन में महारत की मांग करती है। इसमें किसी व्यक्ति के चेहरे, भावभंगिमा के साथ ही उसके देशकाल और समय को भी एकसाथ चित्रित करना होता है। इसमें लाईट और शेड्स की इतने कमाल की प्रस्तुति होनी चाहिए कि पेंटिंग को देखने वाला यह आसानी से समझ सके कि पेंटिंग में जिस व्यक्ति को दिखाया गया है वह कितने उजाले में और किस समय अपना पोज़ दे रहा था। उस समय उसकी मनोदशा और भाव-भंगिमा क्या थी। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है लियोनार्दो द विंसी की मोनालिसा पोट्रेट पेंटिंग। यूं भी यूरोपियन रेनासां काल की पोट्रेट पेंटिंग्स सारी दुनिया के लिए आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करती हैं जबकि भारत में राजा रवि वर्मा ने इस कला को एक अलग ही स्थापना दी। रंग के साथी ग्रुप द्वारा आयोजित ‘‘विज्ञान में रंग’’ कार्यशाला में एक्रेलिक रंगों से कैनवास पर बनाए गए पोट्रेट मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालने में सक्षम रहे। इन पोट्रेट्स में रंगों के कुशल संयोजन ने वैज्ञानिकों के चित्रों को जीवन्त कर दिया।  
 असरार अहमद ने वैज्ञानिक डाॅ. अब्दुल कलाम, अंशिता वर्मा ने होमी जहांगीर भाभा, शालू सोनी ने हरगोविन्द खुराना, अनुषा जैन ने विक्रम साराभाई, रश्मि पवार ने चरक, मोनिका जैन ने विश्वेश्वेरैया, लक्ष्मी पटेल ने सुश्रुत, काजोल गुप्ता ने बाणभट्ट, भूमिका ने सी.वी. रमन, सीमा कटारे ने प्रफुल्लचंद्र राय, मीनाक्षी ने जगदीशचंद्र बोस, हिमानी ने एस. रामानुजम, दिव्या ने कणाद, मुस्कान ने सुब्रमन्यम चंद्रशेखर, दीपिका ने आर्यभट्ट को अपनी तूलिका से कैनवास पर जीवंत कर दिया। गहरे और धूसर रंगों के सुदर संयोजन के साथ ही सभी चित्रों में चेहरे का आनुपातिक सौष्ठव बड़े सुंदर ढंग से प्रदर्शित किया गया।

रंग के साथी ग्रुप के माध्यम से सागर नगर में चित्रकारी की अलख जगाए रखने वाले नगर के सुप्रसिद्ध चित्रकार असरार अहमद ने बताया कि ‘‘इस कार्यशाला के द्वारा हम चाहते हैं कि नगर के कला प्रेमियों के साथ ही छात्र-छात्राओं में भी चित्रकला की बारीकियों के प्रति रुझान बढ़े और वे इस बात को जानें कि चित्रकला में किसी भी विषय को पेंटिंग का विषय बनाया जा सकता है। इसीलिए इस बार हमने भारतीय वैज्ञानिकों के पोट्रेट बनाने का निर्णय लिया। इससे कला और विज्ञान को एक साथ देखा जा सकता है।’’ पूरी तरह सफल रहे इस आयोजन में विद्यालय की छात्राओं ने बताया कि उन्हें चित्रकारी का शौक है किन्तु वे रंगों का सही और संतुलित प्रयोग करना नहीं जानती थीं जो इस कार्यशाला के द्वारा उन्हें पता चला। चित्रकला के प्रति छात्राओं में जो उत्साह देखने को मिला वह इस कार्यशाला के उद्देश्य को पूरा करने में सक्षम रहा।
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6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-03-2021) को    "अपने घर में ताला और दूसरों के घर में ताँक-झाँक"   (चर्चा अंक-4008)    पर भी होगी। 
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    मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --  

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय 🙏

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  2. बहुत ही रोचक और शोध परक कार्य शाला। आपकी समीक्षा बहुत ज्ञान वर्धक तथ्य समेटे हुए है।
    बहुत बहुत बधाई वर्षा जी आप विविध प्रतिभा की धनी हैं।

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीया 🙏
      आपकी आत्मीय टिप्पणी से मुझे नयी ऊर्जा मिलती है।

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  3. लेख के साथ दिए गए छायाचित्रों से ही पता लग रहा है कि कार्यशाला कितने मनोयोग से आयोजित की गई । कला के बिना विज्ञान अधूरा है । चित्रकला एक अनुपम कला है । मेरी पुत्री अपने विद्यार्थी जीवन में काग़ज़ पर चित्रकारी किया करती थी । नवीन कलाकारों को प्रोत्साहित करना सत्य ही एक श्लाघनीय कार्य है । पढ़कर बहुत अच्छा लगा । बधाई और भविष्य के ऐसे ही आयोजनों के निमित्त शुभकामनाएं ।

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    1. मुझे प्रसन्नता हुई है यह जान कर कि आपकी पुत्री भी चित्रकला में रुचि रखती हैं।
      आपकी टिप्पणी सदैव मेरा उत्साहवर्धन करती है। आपकी सहृदयता के लिए हार्दिक आभार आदरणीय 🙏

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