प्रिय ब्लॉग पाठकों, रंग पंचमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं !!!
आज मैं अपने इस ब्लॉग पर बुंदेलखंड के गौरव एवं राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिलब्ध रीतिकालीन कवि पद्माकर के पांच छंद यहां प्रस्तुत कर रही हूं जो मूलतः होली पर केन्द्रित हैं -
1.
फागु के भीर अभीरन तें गहि, गोविंदै लै गई भीतर गोरी ।
भाय करी मन की पदमाकर, ऊपर नाय अबीर की झोरी ॥
छीन पितंबर कंमर तें, सु बिदा दई मोड़ि कपोलन रोरी ।
नैन नचाई, कह्यौ मुसक्याइ, लला ! फिर खेलन आइयो होरी ॥
कृष्ण और गोपियों के बीच होली खेली जा रही है। पद्माकर कहते हैं कि राधा हुरियारों की भीड़ से कृष्ण का हाथ खींचकर राधा भीतर ले जाती हैं और अपने मन की करती हैं। वे कृष्ण पर अंबीर की झोली पलट देतीं हैं फिर उनकी कमर से पीतांबर छीन लेती हैं। कृष्ण को वे यूं ही नहीं छोड़ देतीं। जाते हुए उनके गाल गुलाल से मीड़ कर, नटखट दृष्टि से निहार कर हंसते हुए वे कहती हैं कि लला फिर से आना होली खेलने।
2.
एकै सँग हाल नँदलाल औ गुलाल दोऊ,
दृगन गये ते भरी आनँद मढै नहीँ ।
धोय धोय हारी पदमाकर तिहारी सौँह,
अब तो उपाय एकौ चित्त मे चढै नहीँ ।
कैसी करूँ कहाँ जाऊँ कासे कहौँ कौन सुनै,
कोऊ तो निकारो जासोँ दरद बढै नहीँ ।
एरी! मेरी बीर जैसे तैसे इन आँखिन सोँ,
कढिगो अबीर पै अहीर को कढै नहीँ ।
राधा को कृष्ण ने गुलाल लगा दिया। राधा की चंचल चपल आँखों में गुलाल के साथ-साथ साँवले सलोने कृष्ण भी उतर गए। मानिनी राधा अपनी आँखों को यमुना के जल से धो-धो के हार गईं लेकिन नायक का प्रेम रंग उतारे नहीं उतरा। अब राधा किसको बोले, किससे कहे अपनी विवशता। अंत में थक हार कर राधा कहती हैं – मैंने बहुत प्रयास कर लिया और मेरी आँखों में पड़ा अबीर तो निकल गया पर वो ग्वाला अहीर मेरी आँखों से नहीं निकलता।
3.
आई खेलि होरी, कहूँ नवल किसोरी भोरी,
बोरी गई रंगन सुगंधन झकोरै है ।
कहि पदमाकर इकंत चलि चौकि चढ़ि,
हारन के बारन के बंद-फंद छोरै है ॥
घाघरे की घूमनि, उरुन की दुबीचै पारि,
आँगी हू उतारि, सुकुमार मुख मोरै है ।
दंतन अधर दाबि, दूनरि भई सी चाप,
चौवर-पचौवर कै चूनरि निचौरै है ॥
इस छंद में होली खेलने आई राधा का सुंदर वर्णन है।
4.
घर ना सुहात ना सुहात बन बाहिर हूं ,
बाग ना सुहात जो खुसाल खुसबोही सोँ ।
कहै पदमाकर घनेरे घन घाम त्यों ही ,
चैत न सुहात चाँदनी हू जोग जो ही सोँ ।
साँझहू सुहात न सुहात दिन मौझ कछू ,
व्यापी यह बात सो बखानत हौँ तोही सौं ।
राति हू सुहात न सुहात परभात आली ,
जब मन लागि जात काहू निरमोही सौँ ।
आशय यह कि राधा कह रही हैं कि जब से उस निर्मोही कृष्ण से मन लगा है कुछ भी नहीं अच्छा लगता।
5.
गैल में गाइ कै गारी दईं, फिर तारी दई औ दई पिचकारी,
त्यों पद्माकर मेलि उठी , इत पाइ अकेली करी अधिकारी।
सौंहै बबा की करे हौं कहौं, यहि फागि कौ लेहूंगी दांव बिहारी,
का कबहूं मझि आइहौ ना, तुम नंद किसोर! वा खोरि हमारी।
कृष्ण ने रास्ते में राधा को अकेला पाकर घेर लिया था, गा गा कर गालियां दी थीं, तालियां मार कर मजाक उड़ाया था और पिचकारी मारकर रंग दिया था। इस घटना के बाद ही राधा ने अपने पिता की सौगंध खा कर कृष्ण को चुनौती दे दी थी कि जिस दिन नंदकिशोर तुम हमारे गांव की गलियों में आ गए उस दिन दांव लगा कर इस फाग का बदला लिये बिना में मरूंगी भी नहीं।
महाकवि पद्माकर रीतिकाल के अन्तिम श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। जाति से पद्माकर तैलंग ब्राह्मण थे। इनका जन्म 1753 ई. एवं मृत्यु 1833 ई. में हुई। पद्माकर का जन्म स्थान सागर, मध्यप्रदेश था। सागर नगर स्थित जिस लाखाबंजारा झील तट पर पद्माकर जन्मे, पले-बढ़े, उसका नाम ही भट्टोघाट रख दिया गया था। इनके पिता मोहन भट्ट भी कविताएं लिखते थे। पद्माकर उर्दू के शायर में मीर, नजीर, अकबरावादी और गालिब के समकालीन थे। उन्होंने मेलों, तीज- त्यौहारों यथा होली, दिवाली के वर्णन के साथ ही अपने छंदों में ऋतु वर्णन भी किया है।
बुंदेलखंड सहित राजस्थान और महाराष्ट्र के अनेक स्थानों पर राजाश्रय में रहते हुए पद्माकर ने अनेक रचनाएं की। उन्हें सागर नरेश रघुनाथ राव अप्पा, महाराज जैतपुर, सुगरा निवासी नोने अर्जुनसिंह दतिया के राजा महाराज पारीक्षित, सुजाउदौला के जागीरदार गोसाई, सतारा के रघुनाथराव, उदयपुर नरेश महाराजा भीमसिंह, जयपुर के महाराजा प्रतापसिंह एवं उनके पुत्र जगतसिंह का राजाश्रय प्राप्त था। पद्माकर ग्वालियर के महाराजा दौलतराव सिंधिया के यहाँ पर भी रहे थे।
पद्माकर की कुछ ज्ञात रचनाएं निम्नलिखित हैं -
1.पद्माभरण- 1810 ई. – जयपुर में (अलंकार निरूपण)
2. प्रतापसिंह विरूदावली – जयपुर में महाराजा प्रतापसिंह के आश्रय में
3. हिम्मत बहादुर विरूदावली – सुजाउदौला के सेनापति
4. प्रबोध पचासा
5. कलि पच्चीसी
6. जगद विनोद – 6 प्रकरण, 731 छन्द प्रतापसिंह पुत्र जगतसिंह पर
7.राम रसायन – वाल्मीकी रामायण का आधार लेकर
8.गंगा लहरी – अन्तिम समय में कानपुर में कुष्ठ रोग के निवारण हेतु
सागर नगर में महाकवि पद्माकर की एक कद आदम प्रतिमा लाखाबंजारा झील स्थित चकराघाट में स्थापित है।
सागर के साहित्यकार धुरेड़ी के अवसर पर अपनी परंपरानुसार महाकवि पद्माकर को गुलाल लगाकर होली मनाते हैं। इस हेतु बड़ी संख्या में कवि वहां चकराघाट में एकत्रित हो कर प्रतिमा को स्नान कराते हैं और उनके साथ होली खेलते हैं। साथ ही कवि गण पद्माकर की प्रतिमा के समक्ष अपनी रचनाओं की प्रस्तुति देते हैं। विगत 45-46 वर्षों से यह परम्परा अनवरत चली आ रही है।
इस वर्ष भी कोरोना आपदा में यह परम्परा टूट नहीं पाई। इस वर्ष भी नगर के कुछ साहित्यकारों ने चकरा घाट में पद्माकर की प्रतिमा के समक्ष उपस्थित होकर होली का शुभारंभ किया और अपनी कविताओं का पाठ किया।
बुंदेलखंड में चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी को रंगपंचमी पर्व मनाया जाता है। रंगों का पर्व रंग पंचमी आज शुक्रवार दि. 02 अप्रैल 2021 को सागर जिले में उत्साह और उमंग के साथ मनाया जा रहा है। प्रति वर्ष रंगपंचमी पर नगर में हुलियारों की टोली निकलती है और जमकर रंग-गुलाल बरसता है, लेकिन कोरोना महामारी के चलते इस वर्ष प्रशासन द्वारा लोगों से घर पर ही होली मनाने की अपील की गई है। हालांकि बड़ा बाजार क्षेत्र के कई मंदिरों में फूलों के रंग की होली होती आई है। सागर के बिहारी जी के मंदिर की फूल होली प्रसिद्ध है। राधा-कृष्ण के स्मरण के बिना होली और रंगपंचमी अधूरी है।
सुंदर,रंगों से सजे छंद मन मोह गए,सार्थक संकलन के लिए बधाई हो वर्षा जी ।
ReplyDeleteप्रिय जिज्ञासा जी, बहुत धन्यवाद 🙏
Deleteकवि पद्माकर के व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी बहुत अच्छी लगी । छंदों के साथ सरल व्याख्या ने सृजन की खूबसूरती को और भी सरस और रोचक बना दिया । आपको रंगपंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं वर्षा जी 🙏🌹🙏
ReplyDeleteप्रिय मीना जी , रंगपंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं आपको भी🙏
Deleteमेरा लेख आपको पसंद आया तो लेखन कार्य सफल हो गया।
हार्दिक धन्यवाद 🙏
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (04-04-2021) को "गलतफहमी" (चर्चा अंक-4026) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आदरणीय शास्त्री जी,
Deleteआपकी इस सदाशयता के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मुझे प्रसन्नता है कि आपको मेरी पोस्ट पसन्द आई और आपने इसका चयन चर्चा हेतु किया है।
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
जितने सुंदर शब्द और भाव हैं इस आलेख के, उतने ही सुंदर चित्र भी हैं (विशेष रूप से प्रथम चित्र) । एक कवयित्री एवं शायरा होने के साथ-साथ ज्ञान का अक्षय कोष हैं आप वर्षा जी । ऐसी बहुमुखी प्रतिभा तो सौभाग्यशालियों को ही मिलती है । और सौभाग्य मेरा भी है जो मैं आपकी लेखनी के रस का आस्वादन कर पाता हूँ ।
ReplyDeleteआदरणीय माथुर जी,
Deleteसादर अभिवादन,
आपके द्वारा की गई सराहना ने मुझे निःशब्द कर दिया है.... क्या कहूं !
मैं तो देवी सरस्वती की अदना सी साधिका हूं। आप जैसे विद्वतजन को मेरा सृजन पसन्द आता है यह मेरे लिए गर्व का विषय है।
आपकी कृपा इसी तरह मिलती रहे यही कामना है।
मेरे सभी ब्लॉगस् पर सदैव आपका स्वागत है।
हार्दिक शुभकामनाओं सहित,
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बेहद सुन्दर व प्रभावशाली लेखन। मानो राधा-कृष्ण साक्षात गा उठे हों।
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीया डा. वर्षा जी।
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी 🙏
Deleteआपकी बहुमूल्य टिप्पणी ने मेरा उत्साहवर्धन किया है।
कवि पद्माकर के व्यक्तित्व की जानकारी और खूबसूरत चित्रों के साथ उनके छंदों पढ़कर बहुत अच्छा लगा।बेहद मनमोहक प्रस्तुति 👌
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद अनुराधा चौहान जी 🙏
Deleteमुझे प्रसन्नता है कि आपको मेरा लेख पसंद आया।
वाह ! रंगों के इस अनुपम पर्व पर बहुत ही सुंदर चित्रों से सजी अनूठी रचना !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आदरणीया अनिता जी🙏
Deleteआपकी टिप्पणी ने मुझे सुखद अहसास से भर कर अभिभूत कर दिया है।
बेहद सुन्दर व प्रभावशाली लेखन माननीया।
ReplyDeleteसादर।
हार्दिक आभार प्रिय सधु चन्द्र जी 🙏
Deleteपद्माकर मेरे सर्व प्रिय कवि रहे हैं ।उद्धव शतक मेरी सर्वाधिक प्रिय पुस्तक रही है । आपका लेख पढ़ कर सच बहुत बहुत अच्छा लगा । बहुत सुंदर रूप में sb कुछ लिखा है आपने
ReplyDeleteआपकी प्रशंसा पा कर मेरा लेखन सार्थक हो गया।
Deleteहार्दिक आभार 🙏