Tuesday, February 23, 2021

देवलचौरी की रामलीला | बुंदेलखंड में एक सांस्कृतिक अनुष्ठान | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
  
        यह सर्वविदित है कि रामलीला रामकथा पर आधारित उत्तर भारत में परम्परागत रूप से खेला जाने वाला नाटक है। यह प्रायः विजयादशमी के अवसर पर आयोजित किया जाता है। दशहरा उत्सव में रामलीला की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है। रामलीला में राम, सीता और लक्ष्मण के जीवन का वृत्तांत मंचित किया जाता है। रामलीला मंचन देश के विभिन्न क्षेत्रों में होता है। मध्यप्रदेश के बुंंदेलखंड क्षेत्र में सागर जिला मुख्यालय से लगे हुए गांव देवलचौरी में एक शताब्दी से ज्यादा अर्थात् 115 वर्ष की परम्परा और विरासत को समेटे जीवंत सात दिवसीय रामलीला महोत्सव का आयोजन वसंत ऋतु में होता है। इस वर्ष इसका शुभारंभ वसंत पंचमी के दिन मंगलवार,16 फरवरी 2021 से हुआ। पहले दिन भगवान श्रीराम की आरती की गई। और उसके बाद बुधवार को भगवान के जन्म से रामलीला का मंचन आरम्भ हुआ। इसी क्रम में कल दिनांक 22 फरवरी 2021 को धनुष यज्ञ का मंचन किया गया। इस पूरी रामलीला में धनुष यज्ञ सबसे लोकप्रिय प्रसंग के रूप में क्षेत्र के ग्रामीणों को लुभाता है।  सबसे ज़्यादा भीड़ भी इसी दिन यहां जुटती है। इस वर्ष भी, कोरोना संक्रमण की आशंका के बावजूद धनुष यज्ञ के दृश्य को देखने के लिए हज़ारों की संख्या में लोग यहां जमा हुए।


पिछली एक शताब्दी पहले गांव के मालगुजार छोटेलाल तिवारी के द्वारा शुरू की गई इस परंपरा को उनका परिवार गांव वालों की मदद से आगे बढ़ा रहा है। इसके लिए रामलीला के सभी पात्र एक माह पहले से अपने संवादों को याद कर रामलीला की तैयारी शुरू कर देते हैं। हर बार की तरह इस बार भी रामलीला में सभी पात्र-अभिनेता गांव के ही स्थानीय कलाकार ही हैं। शाम के समय प्रतिदिन मंदिर में रिहर्सल भी कराया जाता है, जबकि रामलीला का मंचन प्रतिदिन दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक दिन के समय में किया जाता है। ग्राम देवलचौरी के ग्रामीणों में रामकथा के मंचन के प्रति असीम उत्साह देखा जा सकता है। 
यहां रामलीला का आयोजन पिछली शताब्दी के आरंभिक दशक में हुआ था जो आज भी जारी है। रामलीला गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित महान कृति रामचरित मानस पर आधारित एक सांस्कृतिक अनुष्ठान है। बदलते युग में रामलीला का मंचन दूरदर्शन और विभिन्न चैनलों की चकाचौंध में लुप्त होता जा रहा है। लेकिन देवलचौरी की रामलीला बुन्देलखण्ड का सर्वश्रेष्ठ सांस्कृतिक उत्सव है।

    जहां एक ओर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और मीडिया के चलते आधुनिक संचार माध्‍यमों के वर्चस्व वाले वर्तमान समय में पारंपरिक लोकाचारों का अस्तित्‍व लगभग समाप्‍त हो चुका है, बुंदेलखंड के देवलचौरी जैसे छोटे से गांव में आज भी रामलीला जैसी पुरातन लोक परंपराओं को जीवित रखने का सार्थक प्रयास किया जा रहा है। संस्कृति के ह्रास के इस कठिन समय में देवलचौरी गांव में रामलीला न केवल अस्तित्व को बचाए रखने का प्रयास है, बल्कि सही मायने में सांस्कृतिक दृष्टि से सामाजिक जागृति को जीवंत बनाए रखना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। रामलीला का यह आयोजन धार्मिक वातावरण का निर्माण करता है। ऐसे आयोजनों से हमारी सांस्कृतिक निष्ठा और धर्म के प्रति गहरी रूचि जागृत होती है।
   इस साल रामलीला का 115वां साल है। रामलीला में ग्रामीण अंचल के लगभग 20-25 गांवों के लोग भागीदारी करते हैं। रामलीला में राम जन्म से लेकर सीता विवाह तक की लीलाओं का मंचन किया जाता है। सीता स्वयंवर के लिए धनुष यज्ञ का आयोजन बेहद आकर्षक होता है। मंचन के समय धनुष यज्ञ में लगभग दस हजार लोग शामिल होते हैं। रामलीला के पांचवें दिन सीता स्वयंवर, धनुष यज्ञ का मंचन किया जाता है। जनकपुर में सीता के स्वयंवर में ऋषि विश्वामित्र के साथ श्रीराम पहुंचते हैं और उनके द्वारा धनुष का खंडन करने पर सीता उनके गले में वरमाला पहनाती हैं।
बाएं से - डॉ. शरद सिंह , डॉ. वर्षा सिंह एवं डॉ. महेश तिवारी देवलचौरी


      रामलीला में रावण, वाणासुर संवाद, जनक-लक्ष्मण संवाद और परशुराम संवाद में गम्भीरता के साथ ही हास्य का पुट दर्शकों को भावविभोर कर देता है। रामलीला में महर्षि विश्वामित्र, महर्षि वशिष्ठ, लंकापति रावण, वाणासुर सहित विभिन्न देशों के राजाओं का अभिनय, अहिल्या उद्धार, ताड़का वध, पुष्पवाटिका, धनुष यज्ञ, सीता स्वयंवर जैसी लीलाओं का मंचन किया जाता है। रामकथा के इस मंचन में पुरूष और नारी दोनों तरह के पात्रों की आवश्यकता होती है लेकिन यहां यह विशेषता होती है कि सीता और उनकी सखियाें तथा अहिल्या जैसे नारी पात्रों का अभिनय स्त्री वेशभूषा में पुरुष ही करते हैं।

  
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Monday, February 22, 2021

तुम कितनी खूबसूरत हो | नाटक | अन्वेषण थिएटर ग्रुप की बेजोड़ प्रस्तुति | समीक्षात्मक रिपोर्ट | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

प्रिय ब्लॉग पाठकों,   
      यूं तो दृश्य-श्रव्य के मनोरंजन देने वाले अनेक माध्यम हैं, लेकिन निःसंदेह टीवी, सिनेमा, ओटीटी प्लेटफार्म या यू-ट्यूब में किसी ड्रामा को देखने से कहीं सौ गुना ज़्यादा आनंद मिलता है थियेटर में जा कर प्रत्यक्ष किसी ड्रामा या नाटक को देखने पर। सागर शहर में कोरोना लॉकडाऊन के बाद से अभी तक स्थगित नाटकों के मंचन को पुनः मंच देने का कार्य किया कल दिनांक 21.02.2021 को मेरे सागर शहर की अग्रणी संस्था अथग यानी अन्वेषण ग्रुप ऑफ थिएटर ने स्थानीय रवींद्र भवन में यशपाल की कहानी  के अख़तर अली द्वारा किए गए नाट्य रूपांतरण की दो शो में सफल प्रस्तुति के माध्यम से।

   मित्रों, ज़ाहिर है कि मैंने भी इस नाटक को रुचिपूर्वक देखा और इसके मंचन पर मैंने अपनी राय प्रकट की। मैं शुक्रगुज़ार हूं स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" की जिन्होंने मेरी राय... मेरी समीक्षात्मक टिप्पणी को प्रमुखता से प्रकाशित किया।
हार्दिक धन्यवाद आचरण 🙏 
साधुवाद अथग 🙏

जी हां, मेरे द्वारा लिखी नाट्य समीक्षा को आचरण दिनांक 22 फरवरी 2021 में स्थान मिला है, जो जस की तस इस ब्लॉग के सुधी पाठकों के लिए मैं यहां प्रस्तुत कर रही हूं।

समीक्षात्मक रिपोर्ट 

अन्वेषण थिएटर ग्रुप की बेजोड़ प्रस्तुति: नाटक ‘‘तुम कितनी खूबसूरत हो’’ 


          -डॉ. वर्षा सिंह, नाट्य समीक्षक 


किसी भी नाटक की प्रस्तुति कई स्तरों पर समाज को आईना दिखाती है। सुन्दरता समाज में एक टैबू (जुनून) की तरह है। जब बात किसी स्त्री की हो तो उसके व्यक्तित्व की पहली शर्त होती है उसका सुन्दर होना। स्त्री की सुन्दरता के अजीबोगरीब मानक किसी भी स्त्री के लिए डिप्रेशन (अवसाद) का कारण बन जाते हैं। इस डिप्रेशन के चलते वह गम्भीर रूप से बीमार भी पड़ सकती है और उसकी जीने की इच्छा समाप्त भी हो सकती है। वहीं यह नाटक एक संदेश ले कर सामने आता है कि सुन्दरता को ले कर पैदा हुआ डिप्रेशन सुन्दर ढंग से खत्म भी किया जा सकता है। इस केन्द्रीय भावना को ले कर नाटक ‘‘तुम कितनी खूबसूरत हो’’ प्रस्तुत किया गया। रविवार, 21 फरवरी 2021 को दोपहर 3 बजे एवं पुनः शाम 7 बजे  स्थानीय रवीन्द्र भवन, सागर में अन्वेषण थियेटर ग्रुप यानी अथग द्वारा यह नाटक कोरोना संकटकाल के दौरान जनसेवा के लिए जी जान से लगे रहे कोरोना वॉरियर्स के लिये समर्पित किया गया। इस नाटक में डाक्टर, नर्स तथा चिकित्सकीय व्यवस्था का वह मानवीय रूप बखूबी रेखांकित किया गया जो इस कोरोनाकाल में लगभग सभी ने अनुभव किया है। 


दैनिक समाचार पत्र "आचरण", सागर दि. 22.02.2021 


यह नाटक सुप्रसिद्ध कथाकार यशपाल की कहानी का अख्तर अली द्वारा किया गया नाट्य रूपांतरण है जिसका निर्देशन अथग के वरिष्ठ नाट्य निर्देशक जगदीश शर्मा ने किया। सधे हुए कुशल निर्देशन के साथ ही कथानक, अभिनय, मंचसज्जा, संगीत, नाटक में किये गये अभिनव प्रयोग और दर्शकों से लगातार संवाद बनाये रखना ही किसी नाटक की संपूर्ण सफलता का कारण बनते हैं। इस प्रस्तुति में मानसिक हलचल और अंतद्वंद्व को मंच पर बड़ी खूबसूरती से अभिनीत किया गया। मंचसज्जा, लाइट एंड साउंड, बैकग्राउंड साउंड इफेक्ट के खूबसूरत उपयोग से यह नाटक जीवंत हो उठा। नाटक के आरंभ में विषय के अनुकूल प्रस्तुत नृत्य ने एक सम्मोहक शुरुआत की। जिसके बाद नाटक प्रवाहपूर्ण ढंग से अपनी ऊंचाईयों को छूता चला गया।


बुंदेली मिश्रित देशज लहजे में बोले गए चुटीले संवादों ने गंभीर विषय को अत्यंत रोचक बना दिया। लगभग हर दूसरे दृश्य पर तालियों की गडगड़ाहट या हंसी की फुहार ने कलाकारों की हौसला अफजाई जारी रखी। सभी कलाकारों ने शानदार अभिनय किया। मामा के किरदार में वरिष्ठ रंगकर्मी रविंद्र दुबे कक्का ने अपनी दमदार उपस्थिति साबित कर दी। वहीं उमंग के नायकत्व चरित्र में कपिल नाहर ने दर्शकों को प्रभावित किया। नायिका सुगन्धा के चुनौती भरे रोल में करिश्मा गुप्ता ने सब का मन मोह लिया। इनके अतिरिक्त मंच पर विविध भूमिकाओं में दीपक राय, आयुषी चौरसिया, चंचल आठिया, समर पांडेय, प्रवीण कैम्या ने भी अपने अभिनय की छाप छोड़ी। नाटक का सह निर्देशन रिषभ सैनी, मंच प्रबंधन अतुल श्रीवास्तव, गीत-कविता आशीष चौबे, संगीत पार्थो घोष और यशगोपाल श्रीवास्तव, कंपोजर स्व. के.जी. श्रीवास्तव, गायन साक्षी पाण्डेय, कोरस अखिलेश अहिरवार और पार्थो घोष, दृश्य परिकल्पना राजीव जाट, प्रकाश परिकल्पना संतोष दांगी ‘सरस’ का था।  वहीं वस्त्र विन्यास प्रवीण कैम्या,  प्रॉपर्टी नितिन दुबे और आनंद शर्मा, रूप सज्जा कपिल नाहर और नितिन दुबे, ध्वनि प्रभाव सतीश साहू और ऋषभ सैनी की थी। आकर्षक ब्रोशर डिजाइन शहर के मशहूर चित्रकार असरार अहमद ने की थी।


नाटक की मजबूत पटकथा, संवाद एवं कलाकारों के बेजोड़ अभिनय ने नाटक के दौरान दर्शकों को बांधे रखा। कोरोना आपदा के चलते स्थगित रहे नाट्य प्रदर्शन को पुनः मंच प्रदान करते हुए अथग ने एक सफल शुरुआत की है। बड़ी संख्या में दर्शकों ने कोरोना गाइड लाइन का पालन करते हुए इस बेजोड़ नाटक का भरपूर आनंद उठाया। 


नाटक के कुछ रोचक दृश्य जिन्हें नाटक के मंचन के दौरान डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने अपने कैमरे में क़ैद कर लिया।

डॉ (सुश्री) शरद सिंह
डॉ. वर्षा सिंह
डॉ. वर्षा सिंह
डॉ. वर्षा सिंह
डॉ. (सुश्री) शरद सिंह




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