Sunday, January 27, 2019

Window Shopping on Happy Republic Day 2019

Dr. Varsha Singh

प्रिय मित्रों,
        Window Shopping के मज़े ही कुछ और होते हैं.... एक तो Weakened , दूसरे  Happy Republic Day ! ... और उस पर  Extreme Cold Wave.... तो Window Shopping में शाम कब गुज़र गई पता ही नहीं चला। कभी किसी शाम फ़ालतू समय महसूस होने पर आप भी ये नुस्खा आजमायें।






'निर्मल' दादा का आशीर्वाद

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प्रिय मित्रों,
          आज गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर मैंने एवं बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने सागर नगर के वरिष्ठ कवि दादा निर्मलचंद 'निर्मल' के निवास पर उनसे आशीर्वाद लिया।
तस्वीरों में 'निर्मल' दादा एवं उनके परिवारजनों के साथ हम दोनों बहनें।


Happy Republic Day 2019

Dr. Varsha Singh

          प्रिय मित्रों, 🇮🇳 गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ! 🇮🇳 आज 70 वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में मेरी बहन प्रख्यात लेखिका एवं समाजसेवी डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने सरस्वती शिशु मंदिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, मोतीनगर, सागर में ध्वजारोहण किया।         
          🇮🇳  राष्ट्रगान के उपरांत विद्यालय प्रांगण में आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि साहित्य की शक्ति ने स्वतंत्रता प्राप्ति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। साहित्य ही देश व राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत कर सकता है। इस भव्य समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में मुझे यानी आपकी इस मित्र डॉ. वर्षा सिंह को भी काव्यपाठ करने का अवसर मिला।
        🇮🇳 कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि श्री संजीव जड़िया एवं सरस्वती शिशु मंदिर समिति के सहसचिव श्री आशीष द्विवेदी (डायरेक्टर इंक मीडिया), सेवानिवृत्त अध्यापिका सुलोचना मैडम एवं नगर के युवा कर्मठ पत्रकार अतुल तिवारी की उपस्थिति महत्वपूर्ण रही।  विद्यालय के छात्र-छात्राओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रम में बड़ी संख्या में अपनी मनमोहक प्रस्तुतियां दे कर वातावरण में उल्लास का इंद्रधनुष बिखेर दिया।
          🇮🇳  इस गरिमामय समारोह के आयोजन के लिए विद्यालय के प्राचार्य राजकुमार ठाकुर एवं उनकी उत्साही टीम को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🌺 🙏 🌺

Friday, January 25, 2019

गीत ..... माटी मेरे सागर की - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh


मां के आंचल जैसी प्यारी ,  माटी मेरे सागर की ।।
सारे जग से अद्भुत न्यारी,  माटी मेरे सागर की ।।

🔹भूमि यही वो जहां ‘’गौर’’ ने, दान दिया था शिक्षा का
पाठ पढ़ाया  था हम सबको,  संस्कार की कक्षा का
विद्या की यह है फुलवारी , माटी मेरे सागर की ।।
मां के आंचल जैसी प्यारी..................

🔹विद्यासागर जैसे  ऋषि-मुनि की पावनता  पाती है
धर्म, ज्ञान की, स्वाभिमान की अनुपम उज्जवल थाती है
श्रद्धा, क्षमा, त्याग की क्यारी,  माटी मेरे सागर की ।।
मां के आंचल जैसी प्यारी.............

🔹‘वर्णी जी’  की तपो भूमि यह, यही भूमि ‘पद्माकर’ की
‘कालीचरण’ शहीद यशस्वी, महिमा  अद्भुत सागर की
सारा जग इस पर बलिहारी, माटी मेरे सागर की ।।
मां के आंचल जैसी प्यारी.................

🔹नौरादेही   में संरक्षित   वन जीवों का डेरा है
मैया  हरसिद्धी  का मंदिर, रानगिरी  का फेरा है
आबचंद की गुफा दुलारी,  माटी मेरे सागर की ।।
मां के आंचल जैसी प्यारी...........

🔹राहतगढ़  की छटा अनूठी ,झर-झर झरती जलधारा
गढ़पहरा,  धामौनी बिखरा ,  बुंदेली वैभव सारा
राजघाट, रमना चितहारी, माटी मेरे सागर की ।।
मां के आंचल जैसी प्यारी................

🔹एरण पुराधाम विष्णु का , सूर्यदेव हैं रहली में
देव बिहारी जी के हाथों सारा जग है मुरली में
पीली कोठी अजब सवारी , माटी मेरे सागर की ।।
मां के आंचल जैसी प्यारी....................

🔹मेरा सागर मुझको प्यारा, यहीं हुए लाखा बंजारा
श्रम से अपने झील बना कर, संचित कर दी जल की धारा
‘वर्षा’-बूंदों की किलकारी , माटी मेरे सागर की ।।
मां के आंचल जैसी प्यारी...........
                    -डॉ. वर्षा सिंह
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माटी मेरे सागर की - डॉ. वर्षा सिंह

प्रगतिशील लेखक संघ की पाक्षिक कवि गोष्ठी - डॉ. वर्षा सिंह


       
Dr. Varsha Singh
प्रगति शब्द का अर्थ है आगे बढ़ना और उन्नति करना। प्रगतिवाद को हम समाज, साहित्य आदि की निरन्तर उन्नति करते रहने का सिद्धांत कह सकते हैं। साहित्य के संदर्भ में यदि कहें तो यह साहित्य का एक आधुनिक सिद्धांत है जिसका लक्ष्य जनवादी विचारों को संपादित कर भौतिक यथार्थवादी ध्येय की संपूर्ति करना है। हिन्दी सहित्य कोश, भाग 1 में प्रगतिवाद के संबंध में लिखा गया है- ''प्रगतिवाद सामाजिक यथार्थवाद के नाम पर चलाया गया वह साहित्यिक आंदोलन है, जिसमें जीवन और यथार्थ के वस्तु सत्य को उत्तर छायावाद काल में प्रश्रय मिला और जिसने सर्वप्रथम यथार्थवाद की ओर समस्त साहितियक चेतना को अग्रसर होने की प्रेरणा दी। प्रगतिवाद का उद्देश्य था साहित्य में उस सामाजिक यथार्थवाद को प्रतिष्ठित करना, जो छायावाद के पतनोन्मुख काल की विसंगतियों को नष्ट करके एक नये साहित्य और नये मानव की स्थापना करे और उस सामाजिक सत्य को, उसके विभिन्न स्तरों को साहित्य में प्रतिपादित होने का अवसर प्रदान करे। वर्ग-संघर्ष की साम्यवादी विचारधारा और उस संदर्भ में नये मानव, नये हीरो की कल्पना इस साहित्य का उद्देश्य था। इसकी मूल प्रेरणा मार्क्सवाद से विकसित हुई थी।







प्रगतिवाद में व्यक्ति और समाज के आगे बढ़ने, उसकी उन्नति पर बल है। जैसे ठहरा हुआ पानी कुछ समय बाद दुर्गंधयुक्त हो जाता है और प्रयोग करने योग्य नहीं रहता, किन्तु नदी का बहता पानी जहाँ-जहाँ से बहता है वहाँ की भौगोलिक सिथति के अनुसार अपनी जगह बनाता हुआ, आस-पास के लोगों को आनंद देता हुआ आगे बढ़ता जाता है। बहते पानी में गंदगी रुकती नहीं अत: उसका पानी प्रयोग में आने योग्य रहता है। ठीक वैसे ही, जो समाज अपने समय की आवश्यकताओं को नहीं समझता और वर्षों पूर्व बनाये गये सिद्धांतों, नियमों, मान्यताओं और विश्वासों में जकड़ा रहता है वह भी कभी आगे नहीं बढ़ता और रुके हुए पानी की भाँति बदबूदार हो जाता है। प्रगतिवाद उन रूढ़ियों, नियमों, मान्यताओं, पद्धतियों का विरोध करता है जो समाज की प्रगति में बाधक हैं, और उन नियमों-मान्यताओं को अपनाने पर बल देता है जो वर्तमान के अनुकूल हैं। दूसरी बात है सामाजिक यथार्थ और जीवन- यथार्थ के वस्तु सत्य की, अभिव्यक्ति की। हम जिस समाज में रहते हैं, उसकी अच्छाइयों और बुराइयों से प्रभावित होते हैं। गुणदोषोें से भरपूर इस समाज में ही हमारे व्यक्तित्व का निर्माण होता है और अपने व्यक्तित्व, इच्छाओं, आकांक्षाओं के सहारे इस समाज को भी हम बनाते-बिगाड़ते हैं। फिर सामाजिक यथार्थ क्या है? क्या समाज में व्याप्त अच्छाइयाँ, या बुराइयाँ? सामाजिक यथार्थ की बात जब हम करते हैं तो उसके अंतर्गत अच्छाइयाँ और बुराइयाँ दोनों ही आते हैं। साहित्य में यदि केवल अच्छाइयों का ही चित्रण हो तो वह आदर्शवादी साहित्य कहलाता है ओर यदि केवल बुराइयों का ही चित्रण हो, तो नग्न यथार्थवादी । प्रसिद्ध कथाकार प्रेमचंद ने कहा था कि यथार्थ केवल प्रकाश या केवल अंधकार नहीं है, बल्कि अंधकार के पीछे छिपा प्रकाश और प्रकाश के पीछे छिपा अंधकार है। प्रगतिवाद उन स्थितियों को पहचानने पर बल देता है जिनके कारण हमारा समाज अंधकारग्रस्त है और उन स्थितियों को पहचानने पर भी बल देता है जिनके बलबूते पर इस अंधकार को हराया जा सकता है। तीसरी बात प्रगतिवाद का प्रेरक कारण मार्क्सवाद का सिद्धांत हैं। यह सिद्धांत शोषक परिस्थितियों का विरोध करता है और शोषित समाज में चेतना जगाने, उन्हें अपने अधिकारों और समवेत परिस्थितियों के प्रति भरोसा करने पर बल देता है। यह उस सामंतवादी और पूंजीवादी मानसिकता और संस्कृति का विरोध करता है जो शक्ति और धन को कुछ मुट्टीभर लोगों के हाथों में केन्द्रित कर देती है, जिससे वे स्वार्थी और दंभी हो जाते हैं और अपनी शक्ति और धन का दुरुपयोग कर उन लोगों का शोषण करते हैं जिनके परिश्रम के बल पर वे सुख भोगते हैं। प्रगतिवाद भी सामंतवाद और पूँजीवाद का विरोध करता है जो समाज में व्याप्त अंधकार का कारण है और उन गरीबों मजदूरों-किसानों को प्रकाश-पुंज मानता है जिनके बल पर यह अंधकार नष्ट हो सकेगा। प्रगतिवाद की दृष्टि में यही श्रमशील मानव नयामानव और नया हीरो है। चौथी बात, इस उद्देश्य में छायावाद के पतनोन्मुख काल की विपत्तियों को नष्ट कर नये समाज के निर्माण की बात कही है। छायावादी कविता में इतिहास, कल्पना, आदर्श, प्रेम, विरह, प्रकृति की सुंदरता और सुकुमारता पर विशेष बल था। प्रगतिवाद में इतिहास को नकारा नहीं गया, इतिहास अतीत के मोह से मुक्ति की बात की गयी है। इसके लिए व्यक्ति का उन्नयन समाज के सभी वर्गों की समान रूप से उन्नति, रूढ़ियों, अंधविश्वासों से मुक्ति आदि वस्तु सत्य प्रधान हैं इसलिए र्इश्वर, रहस्य, प्रकृति की सुंदरता, वैयक्तिक प्रेम, विरह के लिए वहाँ कोर्इ स्थान नहीं।




हिन्दी कविता में प्रगतिवाद का आरंभ 1936 के आसपास माना जाता है। परंतु कविता के प्रगतिवादी तत्त्वों का समावेश कोई आकसिमक घटना नहीं थी। इसके अंकुर आधुनिक काल के आरंभ में ही भारतेंदु युग से फूटने लगे थे। ब्रिटिश राज्य की जनविरोधी नीतियों, उनके अत्याचारों के परिणामस्वरूप लोगों का ध्यान देश की दुर्दशा, और उसके मूल कारणों की ओर आकृष्ट हुआ। नवजागरण के प्रभाव से भी इस दुर्दशा के मूल कारणों की पड़ताल की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी। अशिक्षा, अंधविश्वासों, रूढि़यों, संप्रदायवाद को प्रगति विरोधी माना जाने लगा। विदेशी दासता से मुक्ति पाने की छटपटाहट जोर पकड़ने लगी।

भारतेंदु और द्विवेदी युग की रचनाओं में जाति और धर्म के बंधनों के प्रति प्रश्नचिहन लगने लगे थे क्योंकि इन्हीं के कारण देश अनेक वर्गों में बंट गया था, कमजोर हो गया था, और समाज का एक बड़ा वर्ग उपेक्षा और अत्याचार सहने को विवश था। हिन्दी में छायावाद युग में साहित्य में प्रेम-विरह की निजी अनुभूतियों, स्वप्नों, रहस्यों को प्रधानता दी गयी। लगभग इसी समय में यूरोप में रह रहे भारतीय साहित्यकारों ने लंदन में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना की। उन्होंने अपने परिपत्रा में रुढ़िवादी, जड़तावादी, परंपरावादी विचारों से समाज को मुक्त कराने पर बल दिया। उन्होंने देश की सामाजिक-आर्थिक अवनति के मूल कारणों को पहचानने पर बल दिया और कहा कि साहित्यकारों को कल्पना-लोक से बाहर निकल कर यथार्थ की भूमि पर खड़े होना होगा। इस संघ पर मार्क्सवाद का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है, जो वंचितों शोषितों और किसान-मजदूरों का पक्षधर था। भारत में सन् 1936 में लखनऊ में इस संघ की बैठक हुर्इ जिसकी अध्यक्षता प्रेमचंद ने की थी। इस नवीन चेतना और प्रगतिशील लेखक-संघ की इस बैठक का प्रभाव हिंदी लेखकों-कवियों पर व्यापक रूप से हुआ। छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाने वाले सुमित्रानंद पंत और सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की रचनाओं में यह परिवर्तन स्पष्ट देखा जा सकता हैं। सुमित्रानंदन पंत जी सन् 1938 में कालाकांकर से प्रकाशित ' रूपाभ ' नामक पत्र के संस्थापक भी रहे । प्रकृति के सुकुमार कवि पंत 'रूपाभ' के संपादकीय में लिखते हैं- ''इस युग में जीवन की वास्तविकता ने जैसा उग्र आकार धारण कर लिया है उससे प्राचीन विश्वासों में प्रतिषिठत हमारे भाव और कल्पना के मूल हिल गये हैं। अतएवं इस युग की कविता स्वप्नों में नहीं पल सकती, उसकी जड़ों को पोषण सामग्री ग्रहण करने के लिए कठोर आश्रय लेना पड़ रहा है। 'जुही की कली और संèया सुंदरी के रचयिता निराला जी 'विधवा, 'वह तोड़ती पत्थर, 'कुकुरमुत्ता और 'गुलाब जैसी कविताएँ लिखने लगते हैं। सन 1936 से आंरभ हुआ प्रगतिवाद का यह दौर सन् 1950 के लगभग तक माना जाता है। उसके बाद प्रगतिवाद आंदोलन के रूप में भले ही न रहा हो, किंतु उसके द्वारा स्थापित मूल्य परवर्ती कविता में भी किसी न किसी रूप में विधमान हैं। मुक्तिबोध, नागार्जुन, धूमिल, त्रिलोचन, केदारनाथ अग्रवाल आदि अनेक कवियों की रचनाओं में यह प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है।





सागर में प्रगतिशील लेखक संघ अनेक वर्षों से सक्रिय है। विगत वर्ष इसकी मकरोनिया इकाई की भी शुरूआत की गई है। जो पाक्षिक गोष्ठियों के जरिये लेखकों, कवियों को प्रगतिशील विचारधारा से जुड़ने के लिए प्लेटफार्म देने का कार्य गम्भीरतापूर्वक कर रही है।




       दिनांक 20.01.2019, रविवार की शीत भरी दोपहरी बड़ी सार्थक बीती। शिक्षा के मंदिर यानी विद्यालय प्रांगण में खुले आसमान के नीचे कुनकुनी धूप में काव्य गोष्ठी का हम सबने भरपूर आनंद उठाया ... जी हां, प्रगतिशील लेखक संघ, सागर की मकरोनिया शाखा द्वारा आयोजित इस काव्य गोष्ठी में ख़ूब कविताएं पढ़ी गयीं, ग़ज़लें गायी गयीं और खुल कर विचार विमर्श किये गये।

Thursday, January 24, 2019

सागर : साहित्य एवं चिंतन 41.... इतिहासबद्धता के साहित्यकार : डॉ. श्याम मनोहर पचौरी - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के साहित्यकार डॉ. श्याम मनोहर पचौरी पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

इतिहासबद्धता के साहित्यकार : डॉ. श्याम मनोहर पचौरी
               - डॉ. वर्षा सिंह
                                     
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परिचय :- डॉ. श्याम मनोहर पचौरी
जन्म   :- 06 मार्च 1956
जन्म स्थान :- गढ़ाकोटा, सागर (म.प्र.)
शिक्षा :- एम.ए., पीएच. डी. (इतिहास)
लेखन विधा :- गद्य
प्रकाशन  :- एक पुस्तक तथा विभिन्न शोध पत्रिकाओं में आलेखों का प्रकाशन।
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                 सागर की यह विशेषता है कि यहां के साहित्यकारों के लेखन में पर्याप्त विविधता है। कोई काव्य की सर्जना करता है तो कोई कथा साहित्य की। कोई छंदबद्ध कविता लिखता है तो कोई ललित निबंध। कुछ रचनाकार ऐसे हैं जिन्होंने इतिहास को आधार के रूप में ग्रहण कर के पुस्तकलेखन का कार्य किया है। ऐसे कृतिकारों में एक नाम है डॉ. श्याम मनोहर पचौरी का।
            सागर के गढ़ाकोटा में 6 मार्च 1956 को जन्में डॉ. श्याम मनोहर पचौरी सागर नगर के निवासी हैं तथा वर्तमान में गढ़ाकोटा के शासकीय महाविद्यालय में प्राचार्य के पद पर पदस्थ हैं। धार्मिक प्रवृति एवं सरल स्वभाव के डॉ. पचौरी का साहित्यकर्म स्वांतःसुखाय है। जिसके संबंध में वे कहते हैं कि ‘‘साहित्य मुझे आनन्द प्रदान करता है। प्रशासनिक व्यस्तताओं के कारण मैं अपने लेखक के प्रति उतना समर्पित नहीं हो पाता हूं जितनी कि मुझे अभिलाषा है किन्तु मानता हूं कि साहित्यिक अभिव्यक्ति से बढ़ कर और कोई माध्यम नहीं होता है जो मन को शांति प्रदान कर सके।’’ गढ़ाकोटा महाविद्यालय में सन् 2018 के 23-24 अप्रैल को ‘रामकथा’ पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय शोधसंगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. पचौरी ने कहा था कि -‘‘श्रीराम जैसे आदर्श चरित्रों पर लिखा गया साहित्य सम्पूर्ण समाज को सही दिशा देने का कार्य करता है। इस संदर्भ में रामायण या रामचरित मानस की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है। क्योंकि ऐसे ग्रंथ जीवन जीने का उचित ढंग सिखाते हैं। ’’
डॉ. श्याम मनोहर पचौरी को धार्मिक संस्कार अपनी माताश्री प्रेमाबाई पचौरी से मिले जो एक  गृहणी का दायित्व निभाने के साथ ही घर में धार्मिक वातावरण बनाए रखने का विशेष ध्यान रखती रहीं। डॉ. पचौरी को अपने बाल्यकाल से जहां एक ओर धार्मिक रुझान अपनी माताश्री से मिला वहीं दूसरी ओर राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा अपने पिताश्री से मिली। वस्तुतः डॉ. पचौरी के पिताश्री शिवदयाल पचौरी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उन्होंने गांधीजी के अहिंसावादी मूल्यों को न केवल अपनाया वरन् उन्हें जिया भी। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। वे सन् 1930 के दांडी आंदोलन तथा 1942 भारत छोड़ो आंदोलन के समर्थन में बुंदेलखंड में अलख जगाते रहे। अंग्रेज सरकार के विरोध करने पर उन्हें जेल यात्राएं भी करनी पड़ीं। देश के स्वतंत्र हो जाने के बाद भी उन्होंने छुआछूत और नशा उन्मूलन का अपना अभियान जारी रखा। वे रहली ब्लॉक के कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे। अपने पिता से विरासत में मिली राष्ट्रसेवा की भावनाएं डॉ. पचौरी को सदैव प्रेरणा देती रहती हैं।
                डॉ. पचौरी ने उच्चशिक्षा डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर से प्राप्त की। इतिहास विषय में एम.एम. करने के उपरान्त उन्होंने डॉ. बैजनाथ शर्मा के निर्देशन में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वे इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस कोलकाता, मदन मोहन मालवीय फाउंडेशन बनारस, बीएचयू तथा मध्य प्रदेश इतिहास परिषद भोपाल के आजीवन सदस्य हैं। इसके साथ ही उन्हें डॉ हरिसिंह गौर  विश्वविद्यालय सागर की शोध पत्रिका ‘मध्य भारती’ की आजीवन सदस्यता प्राप्त है। वैसे वे मध्य प्रदेश अध्यापक संघ भोपाल के भी सदस्य हैं। सन् 1983 में प्राध्यापक के रूप में नियुक्ति के उपरांत 13 वर्षों का प्रशासनिक अनुभव प्रभारी प्राचार्य के रूप में प्राप्त है।
Sagar Sahitya Avam Chintan - Dr. Varsha Singh
       
            ‘‘रहली तहसील का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य :प्राचीन से अर्वाचीन’’ नामक पुस्तक के लेखक डॉ श्याम मनोहर पचौरी के अब तक राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में लगभग 25 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। लगभग 10 पुस्तकों में आपके लिखे हुए अध्याय संकलित हैं। प्रशासनिक दायित्वों के अंतर्गत पाठ्यक्रम निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहते हैं। केंद्रीय पाठ्यक्रम निर्माण समिति उच्च शिक्षा विभाग भोपाल, महाराजा छत्रसाल विश्वविद्यालय छतरपुर के पाठ्यक्रम निर्माण समिति एवं परीक्षा समिति के सदस्य, शासकीय स्वशासी कन्या उत्कृष्टता महाविद्यालय सागर के पाठ्यक्रम निर्माण समिति में सदस्य के रूप में उन्हेंने विद्यार्थियों के लिए ज्ञानवर्द्धक सामग्री का चयन करने में अपना योगदान दिया है।
           डॉ. श्याम मनोहर पचौरी के संरक्षण एवं मार्गदर्शन में कई उल्लेखनीय  पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है। जैसे- ‘‘ग्रामीण विकास समस्याएं चुनौतियां एवं समाधान’’ (सं. एसके सिन्हा), ‘‘व्यक्तित्व भाषा मीडिया : एक अनुशीलन’’ (सं. डॉ. घनश्याम भारती), ‘‘लोकजीवन में राम कथा’’ (सं. डॉ. घनश्याम भारती), ‘‘वैश्विक जीवन मूल्य और राम कथा’’ (सं. डॉ. घनश्याम भारती),‘‘रामकथा का वैश्विक परिदृश्य’’ (सं. डॉ. घनश्याम भारती) आदि। डॉ. पचौरी लघु शोध योजना के अंतर्गत ‘‘मराठा कालीन सांस्कृतिक विरासत : एक सर्वेक्षण’’ जैसे विषय पर सर्वेक्षण कार्य कर चुके हैं।
              डॉ. पचौरी को कई सम्मानों से विभूषित किया जा चुका है। जिनमें प्रमुख हैं- इंडियन इंटरनेशनल फ्रेंडशिप सोसायटी नई दिल्ली द्वारा ‘राष्ट्रीय गौरव सम्मान’ , रायबरेली उत्तर प्रदेश द्वारा ‘राष्ट्रीय गौरव सम्मान’, महामाया प्रकाशन द्वारा ‘अहिंसा सम्मान’, राम कथा के व्यापक प्रसार प्रचार हेतु अमेरिका की विदुषी डॉक्टर नीलम जैन द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है।
                अकादमी स्तर पर शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय गढ़ाकोटा के प्राचार्य के रूप में डॉ. पचौरी ने कई राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों के संरक्षक एवं आयोजक का दायित्व निभाया है। जिनमें ग्रामीण विकास पर आधारित राष्ट्रीय संगोष्ठी उल्लेखनीय है। इसके अतिरिक्त अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी जिसका विषय था- ‘‘वैश्विक जीवन मूल्य ओर राम कथा’’। सन् 2018 में 23-24 अप्रैल को आयोजित की गई इस राष्ट्रीय कार्यशाला में भी संरक्षक का दायित्व निभाया था। डॉ. पचौरी ‘‘व्यक्तित्व, भाषा और मीडिया’’ पर राष्ट्रीय कार्यशाला करवा चुके हैं। उन्हें स्वयं राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय शोधसंगोष्ठियों में व्याख्यान देने का भी गहन अनुभव है। वह अब तक देश के अनेक शिक्षाकेन्द्रों में व्याख्यान दे चुके हैं। उनके लिखे शोध पत्र संगोष्ठियोंं में बड़े चाव से सुने जाते हैं।
                यूं तो डॉ. श्याम मनोहर पचौरी साहित्यिक अभिरुचि के स्वांतःसुखाय साहित्यकार हैं, फिर भी वे  इतिहास और साहित्य का सुंदर समन्वय करते हुए रचनाएं लिखते हैं। रहली तहसील के परिप्रेक्ष्य में प्रकाशित डॉ. पचौरी की पुस्तक ‘‘रहली तहसील का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य :प्राचीन से अर्वाचीन’’ सागर जिले तथा बुंदेलखंड के इतिहास को जानने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक में डॉ. पचौरी ने रहली के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को बखूबी प्रस्तुत किया है। पुस्तक के प्रमुख अध्यायों में से एक है रहली तहसील का संक्षिप्त विवरण। जिसमें उन्होंने यह बताया है कि रहली का नाम ‘‘रहली’’ क्यों पड़ा। रहली के नामकरण के संबंध में एकाधिक मत प्रचलित हैं। इस संबंध में उन्होंने अपनी इस पुस्तक में एक बहुत ही रोचक कथा दी है। कथा के अनुसार राहुल नामक ऋषि ने इस भू-भाग पर वर्षो तपस्या की, जिसके कारण इसका नाम रहली पड़ा। किन्तु वे इस कथा को मात्र कथा ही मानते हैं क्यों कि इस संबंध में कोई इोस प्रमाण प्राप्त नहीं होते हैं। इसी क्रम में वे एक और प्रचलित मत प्रस्तुत करते हैं जिसके अनुसार चंदेल नरेश राहिल के नाम पर इस नगर का नाम रहली रखा गया। फिर वे एक इतिहासवेत्ता होने के नाते इस बात को सामने रखते हैं कि राहिल के समय सागर जिला चंदेल के साम्राज्य के अधीन था इसलिए इस तथ्य पर विश्वास किया जा सकता है। वैसे वे एक किवदंती का भी उललेख करते हैं कि रहली का पूर्व नाम ‘‘रहस्थली’’ था। वे तर्क देते हैं कि गुणाकर जी ने भी ‘‘रहस्थली’’ शब्द का प्रयोग किया है और यह आरम्भ से धार्मिक रहस्यों से परिपूर्ण रहस्य स्थल रही, इसीलिए इसका नाम ‘‘रहस्थली’’ पड़ा और आगे चल कर इसका संक्षिप्त रूप में ‘‘रहली’’ बन गया। इसी पुस्तक में डॉ. पचौरी ने रहली तहसील की भौगोलिक स्थिति ऐतिहासिक रूपरेखा सामाजिक संरचना शिक्षा स्वास्थ्य खेल जगत आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। सांस्कृतिक प्रभाव के अंतर्गत उन्होंने रहली क्षेत्र में किए जाने वाले नृत्यों की जानकारी दी है। जैसे- राई नृत्य, बरेदी नृत्य, जवारा नृत्य, बधाई नृत्य, मोनी नृत्य, ढिमरयाई नृत्य, आदि। रहली की साहित्यिक दृष्टि की व्याख्या करते हुए डॉ. पचौरी ने तहसील के महत्वपूर्ण साहित्यकारों की जानकारी दी है। जिसमें प्रमुख हैं- कवि कारे, पंडित सुखराम चौबे, गुणाकर कवि, पंडित पुरुषोत्तम लाल दुबे, डॉ. संतोष कुमार तिवारी, डॉ श्याम मनोहर सिरोठिया, ,जानकी प्रसाद मिश्र, सुखदेव प्रसाद तिवारी, पंडित लक्ष्मी प्रसाद तिवारी, हरीनारायण तिवारी तथा संजय टोनी आदि। रहली के सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में पचौरी ने उन स्थलों का विवरण दिया है जो धार्मिक एवं पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। जैसे- सूर्य मंदिर, अतिशय क्षेत्र पटना गंज, रानगिर का हरसिद्धि मंदिर, पंढरीनाथ मंदिर, टिकीटोरिया मंदिर, रामेश्वर मंदिर, जगदीश मंदिर, गणेश मंदिर, झाड़ी हनुमान मंदिर, बाबा बादल, ऐतिहासिक किला, छिरारी के मराठा कालीन तलाब, देवलिया मंदिर तथा कचहरी (सिविल कोर्ट) स्थित हनुमान मंदिर आदि। उन्होंने अपनी इस पुस्तक में बुंदेलखंड के क्रांतिवीर सदाशिव राव मलकापुरकर सहित स्वतंत्रता सेनानियों की सूची दी है। साथ ही रहली तहसील में पर्यटन विकास की संभावनाएं नौरादेही अभ्यारण मेला रहस्य आदि के संबंध में भी महत्वपूर्ण जानकारियां दी है। इतनी विविध जानकारी के कारण यह पुस्तक मात्र ऐतिहासिक न हो कर एक सारगर्भित साहित्यककृति बन गई है। डॉ. पचौरी स्वयं भी यह मानते हैं कि इतिहास व्यक्ति को संस्कृति से जोड़ता है और संस्कृति साहित्य का सृजन करने की प्रेरणा प्रदान करती है।
               डॉ. श्याम मनोहर पचौरी जिस तरह सागर के साहित्यिक-सांस्कृतिक परिवेश में ज्ञानसंपादा का समावेश कर रहे हैं, उससे आशान्वित हुआ जा सकता है कि भविष्य में इंतिहास आधारित साहित्यिक कृतियां भी सृजित करेंगे, जिससे सागर का साहित्यजगत् और भी समृद्ध होगा।
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( दैनिक, आचरण  दि. 21.01.2019)
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Sunday, January 13, 2019

हिन्दी- उर्दू मजलिस का कवि सम्मेलन- मुशायरा

   
        सागर नगर की अग्रणी साहित्यिक संस्था हिन्दी-उर्दू मजलिस द्वारा आज दिनांक 13.01.2019 को आयोजित कवि सम्मेलन - मुशायरे में मैंने यानी आपकी इस मित्र डॉ. वर्षा सिंह ने अपनी ग़ज़ल पढ़ी.... Please Listen & Share .








Wednesday, January 9, 2019

सागर : साहित्य एवं चिंतन 40 ... एम. शरीफ : जिनकी ग़ज़लगोई में सादगी है - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के शायर एम. शरीफ पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

एम. शरीफ : जिनकी ग़ज़लगोई में सादगी है
                    - डॉ. वर्षा सिंह
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परिचय :
नाम  : एम. शरीफ
जन्म : 30.08.1954
जन्म स्थान : गौरझामर (सागर)
शिक्षाः हायर सेंकेन्ड्री
विधा : शायरी
पुस्तकें : एक ग़ज़ल संग्रह
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सागर नगर में हिन्दी, उर्दू और बुंदेली की त्रिवेणी एक साथ बहती रही है। विशेषता यह कि इस त्रिवेणी में एक भी भाषाई नदी लुप्त नहीं हैं, अपितु तीनों समभाव से सतत प्रवाहित हैं। सागर नगर में कई ऐसे ग़ज़लकार हुए जिन्होंने दुनिया में सागर का नाम रोशन किया। कुछ ग़ज़लकार ऐसे भी हैं जो दुनियावी तड़क-भड़क से दूर स्वातःसुखाय ग़ज़लकार एम. शरीफ का जन्म 30 अगस्त 1954 को सागर जिले के गौरझामर (खैराना) में हुआ था। पिता स्वर्गीय श्री शेखवली मोहम्मद जो शिक्षा विभाग में प्रधान अध्यापक के पद पर पदस्थ रहे और 1958 में रिटायर होकर सागर आ गए। सागर नगर में उन्होंने शनिचरी टोरी पर अपना निवास स्थान बनाया। एम.शरीफ की स्कूली शिक्षा सागर में हुई।  हायर सेकेंडरी उत्तीर्ण करने के बाद ही लोक निर्माण विभाग में स्थल सहायक पद पर नियुक्ति हो गई। अपने सेवाकाल के दौरान शायर एम.शरीफ को बुंदेलखंड के कई स्थानों में रहने का अवसर मिला। वे सागर के अतिरिक्त पन्ना जिले के अजयगढ़ तथा छतरपुर के बड़ा मलहरा में भी कार्यरत रहे। सन् 2014 में वे सेवानिवृत्त हुए।
 एम. शरीफ को आरंभ से ही साहित्य में रुचि रही। वे शालाओं में होने वाले साहित्यिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। कविता पाठ तथा गीत लेखन में उन्हें कई विद्यालयीन पुरस्कार मिले। इनकी सबसे पहली रचना “ओ मां इतना वरदान दे“ स्थानीय समाचारपत्र “गौर दर्शन“ में सन् 1974 में आगे चलकर उनकी यह अभिरुचि और विस्तृत हुई तथा कविताओं के अतिरिक्त उन्होंने गजलें और कहानियां भी लिखीं। एम. शरीफ अनेक मंचों से अपनी ग़ज़लों का पाठ कर चुके हैं तथा आकाशवाणी सागर से भी उनकी ग़ज़लों का प्रसारण हो चुका है। उनके गीत और ग़ज़लें समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती है उनका एक ग़ज़ल संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है जिसका नाम है-“तस्कीन ए ग़ज़ल“ ।
सागर नगर के मशहूर शायर मास्टर मोहम्मद इस्हाक का एम. शरीफ के साहित्य सृजन के बारे में कहना है कि “एम. शरीफ ने अपने गीत ग़ज़ल के लेखन में कई विधाओं में शेर लिखे हैं। चाहे समाज में हो रही अरजकताएं हों, दहशतगर्दी हो या जो भी ज्वलंत समस्याएं हों, वहीं दूसरी ओर इंसानियत खुलूसो- मोहब्बत और गंगा जमुनी तहजीब पर भी अच्छे शेर लिखे हैं।“
इसी तरह सागर जिले की शाहगढ़ तहसील में निवासरत शायर मोहम्मद रईस अख़्तर “एम. शरीफ ने अपनी गजलों में बेहतरीन लहजे अल्फाजों से संवारा है चाहे वह मुल्क में हो रहे दंगे फसाद हो समाज में हो रहे अपराध की गतिविधियां हो तो वहीं दूसरी तरफ इश्क मोहब्बत और गंगा जमुनी तहजीब पर भी अच्छे शेर कहे हैं यह एम शरीफ की ग़ज़ल कोई की खूबी है की अन्य शायर भी उनकी शायरी को महत्व देते हैं एम. शरीफ की शायरी में राष्ट्र प्रेम और समाज से सरोकार रखने वाली गजलें उभर कर आती हैं । उदाहरण के लिए ये दो शेर देखें-
सदा अनाजों से भरा रहे, हर खेत खलिहान
इल्म मोहब्बत से बने एक अलग पहचान
सोने की चिड़िया को, अब या खुदा
बना कबूतर हीरे का, चमका दे हिंदुस्तान

Sagar Sahitya avam chintan- Dr. Varsha Singh

ग़ज़लगोई को ले कर कई बार यह बात आती है कि ग़ज़ल कहना आसान काम नहीं है। ग़ज़ल के नियम-क़ायदों को निभाए बिना ग़ज़ल कही नहीं जा सकती है। लेकिन कई बार नियम-कायदों से परे भी कुछ अच्छी कहन मिल जाती है। तब उसे कहने वाले की भावना महत्वपूर्ण हो उठती है। शायर एम. शरीफ की यह ग़ज़ल देखें -
बढ़ता ही जा रहा है सेवन शराब का
मतलब नहीं समझते जीवन खराब का
हर कोई नशा करता है उम्र में कभी
दिल को जलाता है ये सेवन शराब का
करके बहाना ग़म का पीता है आदमी
बनती है उसकी मौत कारण शराब का
पीना तो आदमी का, है खुद अख्तियार
खुशहाल जिंदगी को बने, दुश्मन शराब का

मौजूदा वातावरण इंसान को हर तरह से प्रभावित करता है। यदि वातावरण अच्छा हो तो मन भी प्रफुल्ल्ति रहता है लेकिन यदि वातावरण त्रासद हो तो मन उद्वेलित रहता है। इस तथ्य को एम. शरीफ के इन शेरों में देखा जा सकता है-
इंसान को मत तलाशिए, अब आसपास में
शैतानियत के छुप गया वह तो लिबास में
सूरज मेरी गरीबी का ढल जाएगा जरूर
ये उम्र मेरी कट रही  इतनी ही आस में
सच बोलने के मुझको  इनामात मिल गए
पैबंद कितने  लग  गए  मेरे  लिबास में

शायर एम. शरीफ ने रूमानी ग़ज़लें भी लिखी हैं जो कि उनके ग़ज़ल संग्रह ‘तस्कीन ए ग़ज़ल’ में संग्रहीत हैं।  उनकी रूमानी ग़ज़लों में प्रेम का दुनियावी और दार्शनिक दोनों रंग देखे जा सकते हैं-
तेरे चेहरे को ख्वाबों में सजाया फिर भी
करार दिल को हमारे ना आया फिर भी
तेरे जमाल के यूं तो और भी दीवाने हुए
प्यार हमने भी इस तरह जताया फिर भी
ख़त की तहरीरें तो पहुंच गई उन तक
पास हमारे न कोई जवाब आया फिर भी

शम्मा और परवाने का बिम्ब शायरी में बहुधा मिलता है। इसे हर एक शायर अपने-अपने ढंग से बयां करता है। एम. शरीफ शम्मा और परवाने के पारस्परिक संबंध को जिस दृष्टि से देखते हैं, वह इन शेरों में उभर कर आया है-
परवाने बिना मकसद शम्मा से नहीं जलते
अफसाने मोहब्बत के,  बेवज़हा नहीं बनते
कुछ फर्क ही होता है अमीरी ओ गरीबी में
दीवानों पे दुनिया के,खंजर भी नहीं चलते
नादानियां थी उनकी कुछ मेरी ख़ताएं भी
वरना यह फासले भी, दरम्यां नहीं निकलते

यांत्रिकता के प्रभाव से संवेदनाहीन हो चले समाज में प्रेम जैसी कोमल भावनाओं का हताहत होना आम बात हो चली है। ऐसा माहौल शायर के दिल को कचोटता है और वह कह उठता है-
सच्चाई चाहतों की बेकार हो गई है
आजकल मोहब्बत व्यापार हो गई है
इंसानियत की खुशबू गुम है जहां से यारो
गुलशन की सब बहारें मक्कार हो गई हैं
मशहूर जो थी दिल्ली दिलदारी के लिए
अब आबरू भी उसकी जार-जार हो गई है

शायर एम.शरीफ की ग़ज़लगोई में उर्दू के छंदशास्त्र को ले कर उर्दू ग़ज़ल के जानकारों की अलग-अलग राय हसे सकती है किन्तु उनकी ग़ज़लों में निहित भावनाओं पर विवाद की कोई गुंजाइश नहीं है। वे एक सादगी भरी ग़ज़लगोई के शायर हैं और उन्हें उसी तरह स्वीकार किया जा सकता है।
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( दैनिक, आचरण  दि. 09.01.2019)
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पाठकमंच गोष्ठी : और सोच में तुम - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

    कभी- कभी सामान्य सी चर्चा गोष्ठी कुछ अच्छे और सारगर्भित दमदार वक्तव्यों तथा सुधी श्रोताओं की उपस्थिति से एकदम ख़ास बन जाती है.... कुछ ऐसी समीक्षा बैठक रविवार दिनांक 06.01.2019 की जाड़ों की ठंडी दोपहरी को वैचारिक ऊष्मा से भरने वाली सिद्ध हुई। म.प्र.संस्कृति परिषद के अंतर्गत पाठकमंच की सागर ईकाई में वरिष्ठ कवि नरेन्द्र दीपक के गीतों के संग्रह - "और सोच में तुम" पर सम्पन्न हुई । इस समीक्षा गोष्ठी में मैं यानी आपकी यह मित्र डॉ. वर्षा सिंह मुख्य अतिथि के रूप शामिल हुई। विशिष्ट अतिथि डॉ. आशुतोष और अध्यक्ष कवि निर्मलचंद निर्मल थे। प्रश्नकाल में सागर नगर के प्रबुद्धजनों सहित डॉ. सुश्री शरद सिंह ने भी अपने विचार रखे। इस सफल आयोजन के संयोजक थे भाई उमाकांत मिश्र।







गीत वह विधा है जो मां की लोरी के रूप में हमारे जीवन से उस समय से जुड़ जाती है जब हमें शब्दों का भली-भांति बोध ही नहीं रहता है। लेकिन जीवन के अनुभवों के साथ संवेदनाएं घनीभूत होती हैं और भाव सघन हो जाते हैं, तब जो गीत शब्दों में ढलते हैं, वे सरस, भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी होते हैं।





   ऐसे ही सुंदर मर्मस्पर्शी गीतों का गुलदस्ता है  ‘सोच में हो तुम’। यह गीतों की एक बेहतरीन कृति है जो गीत परम्परा के सतत जारी रहने के प्रति आश्वस्त करती है। चूंकि नरेन्द्र दीपक कवि नीरज की परम्परा के गीतकार हैं इसलिए उनके इस गीत संग्रह में वही लयात्मकता है जो नीरज के गीतों में मिलती है।



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