Tuesday, October 30, 2018

सागर : साहित्य एवं चिंतन 32 - डॉ. घनश्याम भारती : एक ऊर्जावान साहित्यकार - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
     स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के युवा साहित्यकार डॉ. घनश्याम भारती पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

डॉ. घनश्याम भारती : एक ऊर्जावान साहित्यकार
                      - डॉ. वर्षा सिंह
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परिचय : डॉ. घनश्याम भारती
जन्म : 16.07.1976
जन्म स्थान : सागर
शिक्षाः हिंदी मैं स्नातकोत्तर एवं पीएचडी की उपाधि
विधा : लेख, निबंध, समीक्षा
पुस्तकें : नौ पुस्तकें प्रकाशित
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                      सागर नगर के स्थापित युवा साहित्यकारों में डॉ. घनश्याम भारती का नाम विश्वास पूर्वक लिया जा सकता है। सागर  नगर में जन्मे  डॉक्टर भारती के पिता श्री बाबूलाल एवं माता श्रीमती पूनम के सुरुचिपूर्ण लालनपालन ने उनके मन में बाल्यावस्था से ही साहित्य के प्रति अनुराग स्थापित कर दिया था। डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर से बी.एड. एवं हिंदी में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के बाद प्रख्यात साहित्यकार  रंगेय राघव के कथा साहित्य में  लोकजीवन पर पीएचडी की उपाधि हासिल की।
             औपचारिक शिक्षा पूर्ण होने के बाद डॉ. भारती गढ़ाकोटा के शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में पदस्थ हुए, जहां वे आज हिंदी विभाग के अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
डॉ. भारती की अब तक नौ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें ‘रांगेय राघव के कथा साहित्य में लोक जीवन’ जो 2007 में प्रकाशित हुआ। यह एक शोध ग्रंथ है। सन् 2015 में ‘शोध और समीक्षा के विविध आयाम’ नामक निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ। सन् 2016 में ‘सत्य से साक्षात्कार के कवि निर्मल चंद निर्मल’ अभिनंदन ग्रंथ संपादित किया। सन् 2016 में ही ‘समय, समाज, साहित्य एक परिसीमन’ नामक पुस्तक प्रकाशित हुई। सन 2017 में ‘व्यक्तित्व, भाषा, मीडिया : एक अनुशीलन’ पुस्तक प्रकाशित हुई। सन 2018 में ‘हिंदी की प्रतिनिधि कहानियां’ का संपादन किया। शोधात्मक कार्यों के दिशा में डॉ. भारती ने कई महत्वपूर्ण सेमिनार आयोजित किए हैं तथा उन पर आधारित पुस्तकों का संपादन कार्य भी किया है। सन् 2018 में उनके संपादन में एक महत्वपूर्ण ग्रंथ प्रकाशित हुआ जिसका नाम है ‘राम कथा का वैश्विक परिदृश्य’। इसी प्रकार 2018 में ही रामकथा पर केंद्रित एक और ग्रंथ प्रकाशित हुआ, जिसका नाम है ‘लोक जीवन में राम कथा’। ये दोनों ग्रंथ राम कथा को समझने में बहुत ही सहायक हैं। इस बात से भी इन ग्रंथों की उपादेयता बढ़ जाती है कि इनमें देश विदेश के विद्वानों के विचार आलेख के रूप में संग्रहित किए गए हैं।
                  डॉ. घनश्याम भारती वार्षिक पत्रिका ‘सृष्टि’ के 11 अंकों का संपादन कर चुके हैं, जिसमें कुछ विशेषांक प्रकाशित हुए हैं। जैसे - बेटी विशेषांक, शोध विशेषांक, पर्यावरण विशेषांक एवं स्वास्थ्य विशेषांक।
Dr. Ghanshyam Bharti
डॉ घनश्याम भारती के लेख एवं समीक्षाएं राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अब तक लगभग 50 लेख, शोध आलेख तथा समीक्षाएं प्रकाशित हो चुकी है। उन्होंने त्रैमासिक समाचार पत्र ‘ई न्यूज लेटर’ का भी संपादन किया है। डॉ. घनश्याम भारती को अब तक लेखन संपादन तथा समाज सेवा हेतु अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। भारतीय परिषद प्रयाग इलाहाबाद में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल पंडित केशरी नाथ त्रिपाठी द्वारा सन् 2014 में ‘सारस्वत सम्मान’ प्रदान किया गया था। सन् 2014 में ही जबलपुर की साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था कादंबरी द्वारा ‘स्व. सरस्वती सम्मान’ उन्हें प्रदान किया गया था। ग्राम विकास प्रस्फुटन समिति गढ़ाकोटा द्वारा ‘साहित्य विभूषण सम्मान’ भी उन्हें प्रदान किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त गुना की साहित्यिक संस्था दृष्टि द्वारा ‘शब्द शिल्पी सम्मान’ (2016), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ द्वारा ‘ज्ञान सागर अलंकार’ (2016), भोपाल द्वारा ‘अंबिका प्रसाद दिव्य स्मृति प्रतिष्ठा सम्मान’ (2016), पश्चिम बंगाल के राज्यपाल पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी द्वारा ‘भारती शिखर सम्मान’ (2016), महामाया प्रकाशन रायबरेली द्वारा ‘प्रबुद्ध खालसा सम्मान’(2016)। इन सम्मानों के साथ ही ‘साहित्य मार्तंड शिखर सम्मान’(2016), ‘महामहोपाध्याय सम्मान उपाधि सम्मान’(2017), ‘साहित्य भारती शिखर सम्मान’(2017), भारतीय परिषद प्रयाग द्वारा ‘प्रज्ञा भारती सम्मान’(2017), सेंट जोन्स स्टेट यूनिवर्सिटी अमेरिका की विजिटिंग स्कॉलर नीलम जैन द्वारा ‘अहिंसा सम्मान’(2018) से डॉ. भारती को सम्मानित किया जा चुका है। ‘भाषा भार्गव सम्मान’ तथा ‘मुंशी प्रेमचंद सम्मान’ भी सन् 2018 में उन्हें प्राप्त हो चुका है।
           डॉ. घनश्याम भारती अंतर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों का सफलतापूर्वक आयोजन करते रहते हैं। हिंदी विभाग शासकीय पीजी कॉलेज गढ़ाकोटा में ‘वैश्विक जीवन मूल्य और राम कथा’ विषय पर अप्रैल, 2018 में संयोजक के रूप में अंतर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन कर चुके हैं। संगोष्ठी और तथा कार्यशाला का आयोजन करते हुए उन्होंने हमेशा विविध विषयों का चयन किया जैसे समाज सेवा लोकतंत्र राजभाषा एड्स जागरूकता व्यक्तित्व भाषा मीडिया आदि विषय।
          डॉ. घनश्याम भारती की वार्ताओं का प्रसारण आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों से होता रहता है। सन् 2012 को आकाशवाणी के सागर केंद्र से विशेष रेडियो वार्ता के अंतर्गत प्रसारित वार्ता ‘रांगेय राघव व्यक्तित्व और कृतित्व’ उनकी एक उल्लेखनीय वार्ता है।

Sagar Sahitya avam Chintan- Dr. Varsha Singh
         साहित्य के संबंध में डॉ घनश्याम भारती का मानना है कि साहित्य अपने समकालीन समाज का दर्पण होता है। समाज में जो भी अच्छा-बुरा घटित होता है, उसकी साहित्य में छवि दिखाई देती है। साहित्य का समाज से घनिष्ठ संबंध है। इसलिए समाज में जो भी घटनाएं घटित होती है उन सभी का जीवंत चित्रण साहित्य में होता है। वे कहते हैं कि साहित्यकार समाज में जो दिखता है उसी को यथार्थ रूप में लेखनी पथ करता है अतः समाज में घटित हो रहे क्रियाकलापों को साहित्यकार अपने साहित्य के माध्यम से समाज के लोगों तक पहुंचाने का प्रयास करता है।
       जहां तक शोध और समीक्षा का प्रश्न है तो डॉ. घनश्याम भारती का मानना है कि शोध और समीक्षा ने हिंदी साहित्य में आज अपना वृहद स्थान निर्मित कर लिया है। साहित्यकार की शोधात्मक दृष्टि जीवन और समाज के उन बिन्दुओं को चुनती है जो प्रायः अनदेखे रह जाते हैं। यही शोध का मूल चरित्र होता है, जो विभिन्न प्रविधियों से गुजरता हुआ समग्र विवेचन और विश्लेषण के साथ अप्रकट को प्रकट कर देता है। शोध साहित्य को समाज से और समाज को साहित्य से परस्पर जोड़ता है। शोध ही वह तत्व है जो साहित्य के कलेवर को विश्वसनीयता प्रदान करता है। वहीं समीक्षा साहित्य को दिशा प्रदान करती है। छूटे रह गये तत्वों, अनावश्यक प्रस्तुति को परिमार्जित करती हुई साहित्य को अधिक से अधिक सारगर्भित बनाने का कार्य समीक्षा द्वारा ही हो पाता है। प्रत्येक साहित्यकार से अपेखा की जाती है कि वह अपने सृजन का प्रथम समीक्षक स्वयं बने। इसके बाद अन्य समीक्षक उसके सृजन की समीक्षा करें। जिससे सृजित रचना उपादेयता की दृष्टि से अपने सर्वांगीण रूप को प्राप्त करे। उल्लेखनीय है कि जब डॉ भारती शोध और समीक्षा के विविध आयाम नामक अपने ग्रंथ पर कार्य कर रहे थे तब हिन्दी साहित्य जगत के प्रख्यात समीक्षक डॉ नामवर सिंह ने शुभकामनाएं देते हुए अपने यह विचार व्यक्त किए थे कि - ‘‘यह ग्रंथ शोध और समीक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले छात्रों हेतु पठनीय एवं संग्रहणीय साबित हो मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।’’ हिंदी समीक्षा जगत में कठोर समीक्षक के रूप में प्रसिद्ध डॉ नामवर सिंह का इन शब्दों में शुभकामनाएं देना भी अपने आप में महत्वपूर्ण है।
        वर्तमान समय संचार माध्यमों का समय है यानी मीडिया का समय है। मीडिया आज व्यक्ति के व्यक्तित्व और भाषा को प्रभावित कर रही है। डॉ भारती यह मानते हैं कि भाषा और मीडिया व्यक्तित्व को विशेषता प्रदान करते हैं। अपनी पुस्तक ‘‘व्यक्तित्व, भाषा, मीडिया : एक अनुशीलन’’ के सम्पादकीय आमुख में उन्होंने लिखा है कि - ‘‘भाषा और मीडिया व्यक्तित्व निखारने के महत्वपूर्ण सोपान हैं। इसलिए व्यक्तित्व, भाषा और मीडिया के अंतर्सम्बन्ध भी हैं। भाषा विचार सम्प्रेषण का मूल हिस्सा है। साथ ही मीडिया भाषा के माध्यम से ही लिखित एवं मौखिक रूप में अपने विचार लोगों तक पहुंचाती है। मनुष्य का जन्म जब शिशु के रूप में होता है तभी उसे किसी न किसी भाषा में बोलने हेतु प्रेरित किया जाता है और कालांतर में उसके भाषाई कौशल के आधार पर उसका व्यक्तित्व संवर्घन होता है। बाद में जब वह मीडिया के क्षेत्र में जाता है तो उसे अपना भाषाई कौशल समाज के समक्ष रखना होता है। फिर जिस व्यक्ति का भाषाई कौशल जितना अच्छा होता है वह व्यक्ति उतना ही उस क्षेत्र में प्रभावी माना जाता है तथा उसका व्यक्तित्व उसके भाषाई कौशल से फलीभूत होता है। अतः व्यक्तित्व, भाषा, मीडिया का घनिष्ठ संबंध है। ’’
डॉ. (सुश्री) शरद सिंह के मुख्य आतिथ्य में आयोजित एक कार्यक्रम में मंच संचालन करते हुए डॉ. घनश्याम भारती
        भारतीय संस्कृति में आदर्श चरित्रों को अत्यंत महत्व दिया गया है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम का चरित्र भारतय संस्कृति का सबसे लोकप्रिय चरित्र है। श्री राम के जीवन की कथा देश के सुदूर ग्रामीण अंचलों से ले कर सात समुंदर पार स्थित देशों तक लोक्रप्रिय है। धार्मिक कट्टरता से परे रामकथा सभी को प्रिय है। डॉ घनश्याम भारती ने प्रोफेसर श्याम मनोहर पचौरी के मार्गदर्श्ान में रामकथा की समग्रता पर केन्द्रित उल्लेखनीय कार्य किया है। उनका यह कार्य उनके द्वारा सम्पादित तीन पुस्तकों के रूप में देखा जा सकता है - ‘‘वैश्विक जीवन मूल्य और रामकथा’’, ‘‘लोक जीवन में रामकथा’’ एवं ‘‘रामकथा का वैश्विक परिदृश्य’’ । इनमें ‘‘वैश्विक जीवन मूल्य और रामकथा’’ में लेखिका इतिहासविद् डॉ (सुश्री) शरद सिंह ने लिखा है - ‘‘रामकथा में जो राजनीतिक और सांस्कृतिक अवधारणायें हैं वे विश्व में व्याप्त आतंकवाद ओर राजनीतिक क्लेश समाप्त कर सकती हैं, यदि उन्हें आत्मसात किया जाये । सच तो यह है कि यह कालजयी कथा सच्चे अर्थों में विश्व को एक सुन्दर एवं संस्कारी ग्लोबल गांव बनाने की क्षमता रखती है। ’’ व्याख्यान के उपरांत रामकथा संदर्भित इस प्रकार के लेखों को संग्रहीत कर पुस्तक के रूप में संजोने का श्रमसाध्य कार्य डॉ भारती ने जिस कुशलता से किया है वह प्रशंसा के योग्य है, क्योंकि किसी एक विषय पर पुस्तक के रूप में सामग्री उपलब्ध होना न केवल पाठकों को जानकारी प्रदान करता है बल्कि नवीन शोधार्थियों के लिए आगे का मार्ग प्रशस्त करता है।
         ‘‘लोक जीवन में रामकथा’’ के ब्लर्ब पर प्रकाशित इलाहाबाद के भाषाविद् समीक्षक मीडिया अध्ययन विशेषज्ञ डॉ पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने लिखा है कि - ‘‘राम एक जीवनधारा है। जिसमें वही मनुष्य अवगाहन करने में समर्थ बन पाता है जो कालुष्य से दूर रहता है। सात्विकवृत्ति का बीजारोपण होने पर ही रामशक्तिपुंज से साक्षात्कार हो सकता हे, जिसे विरले ही कर पाते है। क्योंकि यह एक प्रकार की साधना है। इसी साधना का सारस्वत प्रसाद वितरित करने का कृतसंकल्प शासकीय स्नात्कोत्तर महाविद्यालय, गढ़ाकोटा, सागर, म.प्र. के प्राचार्य डॉ श्याम मनोहर पचौरी जी के संरक्षण में विश्रुत शिक्षाविद् समीक्षक डॉ घनश्याम भारती जी ने किया है, जो कि अनुकरणीय है।’’
          अपने विवेचनात्मक एवं शोध पूर्ण गंभीर लेखन से हिंदी साहित्य को निरंतर समृद्ध कर रहे युवा साहित्यकार डॉक्टर घनश्याम भारती अपनी सक्रियता से उस युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरक छवि स्थापित कर रहे हैं जो युवा पीढ़ी आज लेखन और पठन-पाठन से दूर होती जा रही है। डॉ घनश्याम भारती से प्रेरणा लेकर अनेक युवा गद्य विधा में प्रवृत्त हुए हैं। डॉ भारती एक ऐसे ऊर्जावान साहित्यकार हैं जो अपनी क्रियाशीलता एवं लेखकीय दायित्वों को बखूबी समझते हैं तथा उसी गंभीरता एवं तत्परता से साहित्य सेवा में जुटे हुए हैं।
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( दैनिक, आचरण  दि. 30.10.2018)
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Friday, October 26, 2018

शरद पूर्णिमा पर साहित्यिक आयोजन - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

शरद पूर्णिमा दिनांक 24.10.2018 की संध्या को स्थानीय आदर्श संगीत महाविद्यालय, सागर के सभागार में नवोदित कथाकार श्री आर. के. तिवारी की पहली दीर्घ कथा पुस्तक "करमजली" का विमोचन समारोह नगर की अग्रणीय संस्था श्यामलम् द्वारा मेरी बहन ख्यातिलब्ध लेखिका डॉ. (सुश्री) शरद सिंह के मुख्य आतिथ्य एवं प्रख्यात व्यंग्यकार डॉ. सुरेश आचार्य की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। समारोह के शुभारंभ में मैंने यानी डॉ. वर्षा सिंह ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। समालोचिका डॉ. लक्ष्मी पाण्डेय, श्रीमती निरंजना जैन, कार्यक्रम संयोजक श्यामलम् अध्यक्ष उमाकांत मिश्र एवं सद्यः विमोचित पुस्तक "करमजली" के सृजनकर्ता श्री आर.के.तिवारी ने पुस्तक के संबंध में अपने विचार रखे।








प्राचीन काल से शरद पूर्णिमा को बेहद महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। शरद पूर्णिमा से हेमंत ऋतु की शुरुआत होती है।

कहा जाता है कि इस रात्रि को चंद्रमा अपनी समस्त कलाओं के साथ होता है और धरती पर अमृत वर्षा करता है। रात्रि 12 बजे होने वाली इस अमृत वर्षा का लाभ मानव को मिले इसी उद्देश्य से चंद्रोदय के वक्त गगन तले खीर या दूध रखा जाता है जिसका सेवन रात्रि 12 बजे बाद किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी पूजन किया जाता है।

आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है। इस साल 2018 में शरद पूर्णिमा 24 अक्टूबर को मनाई गई। शरद पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा व्रत और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। कुछ क्षेत्रों में इस व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है।

इस दिन चन्द्रमा व भगवान विष्णु का पूजन, व्रत कथा पढ़ी जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन चन्द्र अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होते हैं। इस पौराणिक एवं प्रचलित कथा के अनुसार एक साहूकार की दो बेटियां थी और दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थी| बड़ी बेटी ने विधिपूर्वक व्रत को पूर्ण किया और छोटी ने व्रत को अधूरा ही छोड़ दिया। फलस्वरूप छोटी लड़की के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। एक बार बड़ी लड़की के पुण्य स्पर्श से उसका बालक जीवित हो गया और उसी दिन से यह व्रत विधिपूर्वक पूर्ण रूप से मनाया जाने लगा। इस दिन माता महालक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

साहित्य जगत में विशेष तौर पर काव्य जगत में शरद पूर्णिमा कवियों के हृदय में परोक्ष रूप से हलचल जगाने का कार्य करती है। अपने सुप्रसिद्ध खण्ड काव्य “पंचवटी“ में कवि मैथिली शरण गुप्त ने शरद पूर्णिमा का बहुत सुंदर वर्णन किया है -
चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
मानों झूम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥

पंचवटी की छाया में है, सुन्दर पर्ण-कुटीर बना,
जिसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर, धीर-वीर निर्भीकमना,
जाग रहा यह कौन धनुर्धर, जब कि भुवन भर सोता है?
भोगी कुसुमायुध योगी-सा, बना दृष्टिगत होता है॥

किस व्रत में है व्रती वीर यह, निद्रा का यों त्याग किये,
राजभोग्य के योग्य विपिन में, बैठा आज विराग लिये।
बना हुआ है प्रहरी जिसका, उस कुटीर में क्या धन है,
जिसकी रक्षा में रत इसका, तन है, मन है, जीवन है!

मर्त्यलोक-मालिन्य मेटने, स्वामि-संग जो आई है,
तीन लोक की लक्ष्मी ने यह, कुटी आज अपनाई है।
वीर-वंश की लाज यही है, फिर क्यों वीर न हो प्रहरी,
विजन देश है निशा शेष है, निशाचरी माया ठहरी॥

कोई पास न रहने पर भी, जन-मन मौन नहीं रहता;
आप आपकी सुनता है वह, आप आपसे है कहता।
बीच-बीच मे इधर-उधर निज दृष्टि डालकर मोदमयी,
मन ही मन बातें करता है, धीर धनुर्धर नई नई-

क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह, है क्या ही निस्तब्ध निशा;
है स्वच्छन्द-सुमंद गंध वह, निरानंद है कौन दिशा?
बंद नहीं, अब भी चलते हैं, नियति-नटी के कार्य-कलाप,
पर कितने एकान्त भाव से, कितने शांत और चुपचाप!

है बिखेर देती वसुंधरा, मोती, सबके सोने पर,
रवि बटोर लेता है उनको, सदा सवेरा होने पर।
और विरामदायिनी अपनी, संध्या को दे जाता है,
शून्य श्याम-तनु जिससे उसका, नया रूप झलकाता है।



Tuesday, October 23, 2018

सागर : साहित्य एवं चिंतन 31- विपुल संभावनाओं के युवा कवि अक्षय अनुग्रह - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
       स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के युवा कवि अक्षय अनुग्रह पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....

सागर : साहित्य एवं चिंतन

विपुल संभावनाओं के युवा कवि अक्षय अनुग्रह
             - डॉ. वर्षा सिंह
                                 
परिचय :- अक्षय अनुग्रह
जन्म :- 27 अप्रैल 1990
जन्म स्थान :- सागर
शिक्षा :- एम.ए.(पॉलिटिकल साइंस)
लेखन विधा :- गद्य एवं पद्य
प्रकाशन :- पत्र-पत्रिकाओं में ।
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             हिन्दी साहित्य जगत में इस समय सबसे बड़ी चिन्ता जिस बात को ले कर है वह है युवाओं में साहित्य के पठन- पाठन और लेखन के प्रति रुझान में कमी। किन्तु सागर नगर के युवा कवि अक्षय अनुग्रह के साहित्यिक सरोकारों को देखते हुए यह चिन्ता धुंधली पड़ती दिखाई देती है। अपनी मां विमला जैन एवं पिता शीलचंद जैन से प्राप्त संस्कारों ने अक्षय अनुग्रह (जैन) को शिक्षा के प्रति समर्पण की भावना प्रदान की। हमेशा पढ़ाई में अव्वल रहने वाले अक्षय अनुग्रह ने बारहवीं कक्षा में प्रदेश की मेरिट लिस्ट में प्रथम स्थान प्राप्त किया। अपनी शिक्षा के प्रति ध्यान केन्द्रित रखते हुए राजनीति विज्ञान में एम.ए. करने के बाद यूनीवर्सिटी ग्रांट कमीशन की जूनियर रिसर्च फोलोशिप प्राप्त की। अक्षय को राजनीतिक विषयों के साथ ही साहित्य और मनोवि़ज्ञान से भी लगाव है। उन्होंने सन् 2016 में योकोहामा, जापान में आयोजित 31वें इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ साइकालॉजी ऑन डायवर्सिटी इन हार्मानी- इनसाइट फ्रॉम साइकालॉजी में ‘‘ट्रांसजेंडर इन इंडिया : सीकिंग पॉलिटिकल इनक्लूजन एण्ड एट्टीट्यूड ऑफ प्यूपिल टूवर्डस् इट’’ विषय का अपना पेपर पढ़ा था। अक्षय राष्ट्रीय सेमीनारों में भी अपने पेपरस् प्रस्तुत कर चुके हैं। श्यामलम् संस्था, सागर द्वारा श्रेष्ठ युवा सम्मान तथा सर्वांगीण विकास संस्थान, सागर द्वारा स्व. सुमि अनामिका स्मृति बहुमुखी प्रतिभा सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।
            अक्षय अनुग्रह की कविताओं में उत्तर आधुनिकता और वैयक्तिकता एक ऐसा समुच्चय दिखाई देता है जो जन और व्यक्ति को एक साथ सम्बोधित करता है। इन कविताओं में गहरी रूमानी भाव ऊर्जा जीवन के अनुभवों एवं अवस्थाओं के विभिन्न स्तरों को रेखांकित करती चलती हैं। अक्षय की कम शब्दों की छोटी कविताओं में भी विचारों और भावनाओं का विस्तार देखा जा सकता है, जैसे एक कविता है ‘अस्तित्व’ -
अपनी अंतिम बूंदों से
एक झिर ने पूछा
क्या तुम अब भी संजोये हो
मेरे नदी होने की स्मृति।
         परम्पराओं का बोध और सृजनशीलता परस्पर मिल कर साहित्य की नवीन अभिव्यक्तियां गढ़ते हैं। अक्षय अनुग्रह ने अपनी कविता ‘ऋणमुक्ति’ लिखते हुए ऐसी ही एक नई इकाई गढ़ने का सुन्दर प्रयास किया है-
फल तोड़ने के लिए फेंका गया पत्थर
जब बुद्ध को लगा था
तब बच्चों को उसके बदले
कुछ न दे पाने के अपराधबोध से
बुद्ध भर गए थे।
मेरे घर के बगीचे में
मिट्टी का एक पहाड़ है
जिस पर अमरूद का एक पेड़ लगा है
और उसके नीचे
ध्यानमग्न बुद्ध की मूर्ति बैठी है
मेरी बेटी अपने दोस्तों के साथ
बुद्ध के कंधों पर चढ़ कर अमरूद तोड़ती है।

           
Akshay Anugrah
  परिवेश में होने वाले परिवर्तनों से साहित्यकारों का सीधा सरोकार रहता है। वे प्रत्येक परिवर्तन के प्रस्थानबिन्दु से ले कर उसके प्रतिफलन तक अपनी दृष्टि जमाए रहते हैं, क्योंकि वे जानना चाहते हैंसमाज पर पड़ने वाले उसके प्रभावों के बारे में। समय का बदलना परिवेश का बदलना ही तो है। बिम्ब बदलते हैं, मानक बदलते है, उपमा और रूपक भी बदल जाते हैं। इस परिवर्तन को अपनी कविता में पिरोते हुए अक्षय अनुग्रह ने लिखा है-
अब कभी नहीं लिखी जा सकेंगी वे कविताएं
जिनमें निर्मल नदी को छूते हुए
संदेश ले जाते मेघों की कल्पना हो
न ही बुना जाएगा नायिकाओं का सौंदर्य
झरनों से बनते इंद्रधनुष के रंगों से
अब नहीं महकेंगी कविताएं
बेला, रातरानी और रजनीगंधा सी
न ही बरसेंगे शब्द
बरसते हुए हरसिंगार से अब नहीं पैदा होंगे
कालिदास, टौगोर, निराला, पंत
अब प्रकृति को देख कलम
सौंदर्य की कविताएं नहीं लिखती
तनाव की रेखाएं गूद देती हैं,
हमने अपने बच्चों को
प्रकृति से ही वंचित नहीं किया
बल्कि कितनी ही सुन्दर कविताएं
जो वे लिख पाते
उनके गर्भ में ही मार दीं
उस खून से वे लिखते रहेंगे
अदालतों में याचिकाएं
सरकार, बाजार और विकास से
पर्यावरण की रक्षा की गुहार की।
Sagar Sahitya avam Chintan  - Dr. Varsha Singh
               अक्षय अनुग्रह की कविताओं में एक सकारात्मक विद्रोह झलकता है। यह विद्रोह वंचितों को उनके अधिकार दिलाने, सोए हुओं को जगाने तथा आंतरिक अग्नि को प्रज्वलित करने का आह्वान है। अनुग्रह का यह विद्रोह उस बिम्ब को रचता है जिसमें लड़कियां अपने प्रकृतिदत्त स्वरूप में आत्मविश्वास के साथ विकसित होती दिखाई देती हैं। कविता का यह अंश देखिए-
मुझे नहीं सुहाती
तुम्हारी अच्छी और सीधी-सादी लड़कियां
वो जो केवल उन्हीं रास्तों पर चलती रहीं
जिन्हें तुमने तय किया था,
मुझे तो पसन्द हैं वो लड़कियां
जिनके चलने से बनती चली जाती हैं
संकरी और घुमावदार पगडण्डियां
जैसे शास्त्रीय अनुशासनों को तोड़ कर
कोई कलाकार अपने कैनवास पर
एक नए ढंग का चित्र उकेरता है
वो जिनका बचपन मटमैले रंग का होता है
जिनकी फ्राक पर चारकोल के दाग लगे रहते हैं
लड़कियों पर केन्द्रित इस लम्बी कविता की अंतिम पंक्तियों में अनुग्रह स्पष्ट कहते हैं कि- ‘‘ऐसी अनगढ़ और खुद को खुद से/तराशने वाली लड़कियां पसन्द हैं मुझे’’।
             अक्षय अनुग्रह की एक और लम्बी कविता है- ‘रिफ्यूजी परिन्दे’। इस कविता का यह मार्मिक अंश देखिए जिसमें कवि ने वाल्मीकि का रूपक रचते हुए उन व्यक्तियों को धिक्कारा है जो पर्यावरण को चोट पहुंचा कर पक्षियों को भी बेघर कर रहे हैं-
कितना सन्नाटा था
आज इस आसमानी कोलाहल में
जो जमीन खो चुकी थी
मांएं चोंच से दाना झटक कर
चींख भी नहीं पायीं
उम्मीद थी चूंजों के मिलने पर
दाना खिलाने की,
अगर स्तन होते
तो बहने लगता दूध बिना चूसे ही
इनके दर्द पर तुम कहां थे वाल्मीकि!
अपना काव्यमय श्राप क्यों नहीं दिया तुमने
एक क्रोंच जब रोयी तो रामायण लिख दिए
इन बेघरों पर क्यों खामोश रहे तुम।
आज के रोबोटिक युग में सम्वेदनाओं पर यांत्रिकता इस तरह प्रभावी हो चली है कि प्रेम अपने दीर्घकालिक अनुभूति होने का स्थान खाने लगा है। प्रेम में कोमलता का स्तर घटता जा रहा है। ऐसे शुष्क समय में युवा कवि अक्षय अनुग्रह की यह छोटी सी कविता प्रेम के सरस भविष्य के प्रति एक आश्वस्ति प्रदान करती है-
यदि तुम नदी होती तो
बारिश की हर बूंद को
चख कर बरसने देता तुम पर
आंसुओं से जब भी तुम्हें भिगाया
पहले उन्हें उबाला है।
             अक्षय अनुग्रह की साहित्य के प्रति प्रतिबद्धता को देखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि वे सागर नगर के युवा साहित्यकारों में विपुल सम्भावनाओं के कवि हैं।
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( दैनिक, आचरण  दि. 23.10.2018)
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Sunday, October 14, 2018

दैनिक भास्कर सागर संस्करण के परिशिष्ट नारी तू नारायणी की गेस्ट एडीटर डॉ.(सुश्री) शरद सिंह


Dr. Varsha Singh
दैनिक भास्कर सागर संस्करण ने आज दिनांक 14.10.2018 को अपनी 12 वीं वर्षगांठ पर नवरात्रि पर्व के मद्देनज़र एक विशेष परिशिष्ट "नारी तू नारायणी " प्रकाशित किया। जिसमें मेरी बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, जो कि सागर में निवास करती हैं और बहुचर्चित साहित्यिक पत्रिका "सामयिक सरस्वती" (नई दिल्ली से प्रकाशित) की कार्यकारी संपादक हैं , उन्हें दैनिक भास्कर सागर ने अपने इस विशेष परिशिष्ट "नारी तू नारायणी " में गेस्ट एडिटर बनाया ।
दैनिक भास्कर, सागर संस्करण दिनांक 14.10.2018
चूंकि शरद स्त्री विमर्श की जानी- मानी विशेषज्ञ हैं, ख़ास तौर पर बुंदेलखंड की स्त्रियों पर उनकी किताबें मील का पत्थर के समान कालजयी कृतियां हैं। एक स्त्री और साहित्यकार होने के नाते शरद सिंह ने परिशिष्ट सम्पादन में सहयोग प्रदान करते हुए दैनिक भास्कर को महत्वपूर्ण सुझाव दिए।
Dr. (Miss) Sharad Singh
डॉ. शरद ने कहा कि “साहित्य समाज का पथ प्रदर्शक होता है। यह सर्वमान्य तथ्य है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है, यह समाज का प्रतिबिम्ब और समाज का मार्गदर्शक होता है । यदि यह कहा जाये कि साहित्य और लोकजीवन दोनों एक दूसरे के पूरक हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह साहित्य ही है जो हमें हमारे संस्कारों और शिक्षा से जोड़ता है। यदि समाज साहित्य को प्रभावित करता है तो साहित्य भी समाज पर प्रभाव डालता है। इन दोनों का संबंध आत्मा और शरीर की तरह है।
नारी तू नारायणी” - डॉ. शरद सिंह
शरद ने यह भी कहा कि “साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं निर्माता भी है। दर्पण केवल प्रतिकृति दर्शाता है जबकि साहित्य तो समाज का मार्गदर्शन करता रहा है। यह सच्चे अर्थों में समाज का निर्माता है। जैसाकि  साहित्य संस्कृत के ’सहित’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ है- “हितेन सह सहित तस्य भवः” अर्थात कल्याणकारी भाव। साहित्य लोककल्याण के उद्देश्य से सृजित किये जाने पर रामचरित मानस की भांति पूज्यनीय हो जाता है। साहित्य का उद्देश्य मनोरंजन करने के साथ समाज का मार्गदर्शन भी करना है । आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने साहित्य को ज्ञानराशि का संचित कोश कहा है और आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार साहित्य को जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिंब है ।”
        
दैनिक भास्कर, सागर विशेष परिशिष्ट नारी तू नारायणी 
डॉ. शरद सिंह आगे कहती हैं कि “साहित्य समाज का मार्ग प्रशस्त करने में अपनी अहम भूमिका निभाता है । आजकल समाज में जो संवेदनशीलता और असहिष्णुता बढ़ती जा रही है उसे साहित्य के द्वारा दूर किया जा सकता है साहित्य परंपराओं और संस्कृति को सहेज कर वर्तमान से होते हुए अतीत से भविष्य तक पहुंचाता है । इसलिए जरूरी है कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति साहित्य से जुड़े साहित्य का पाठक बनी और अपनी संस्कृति को सहजता चली इस दिशा में समाचार पत्रों की भूमिका अहम है।  आज हम देख रहे हैं की बाजार में पश्चिम से अनूदित साहित्य की भरमार है जबकि देश में और देश के अंचल में अच्छे से अच्छा साहित्य सृजन किया जा रहा है। यदि देशज साहित्य अर्थात आंचलिक साहित्य को पर्याप्त प्रश्रय दिया जाए बढ़ावा दिया जाए और मंच प्रदान किया जाए तो यह समाज में विशेष रूप से युवाओं में और महिलाओं में पठन-पाठन की रुचि बढ़ाएगा और संवेनशीलता में भी वृद्धि करेगा। जिसके परिणामस्वरूप आपराधिक मनोवृति में कमी आएगी और अपनी संस्कृति के प्रति लगाव बढ़ेगा। साहित्य समाज को संस्कारित भी करता है। प्रेरक और सद्साहित्य समाज में बढ़ते अपराधों के प्रति एक सकारात्मक क़दम के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, जो समाज में उत्पन्न हो रही मानसिक विकृति का हनन करने में सक्षम है।”
Dr. (Miss) Sharad Singh
लेखिका एवं समाजसेवी डॉ. शरद सिंह को नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका सामयिक सरस्वती के श्रेष्ठ सम्पादन के लिए माधवराव सप्रे स्मृति "रामेश्वर गुरु पत्रकारिता पुरस्कार" भी प्राप्त हो चुका है।
डॉ. शरद सिंह रामेश्वर गुरु पत्रकारिता पुरस्कार ग्रहण करते हुए

      यहां यह बताना मैं ज़रूरी समझती हूं कि दैनिक भास्कर का सागर संस्करण वर्ष 1995-96 में सागर मुख्यालय से जब प्रकाशित होना प्रारम्भ हुआ था तब उसके ब्यूरो चीफ प्रहलाद नायक थे। उस समय सागर संस्करण के मात्र 04 पृष्ठ सागर में छपते थे बाकी सारे पृष्ठ भोपाल से बन कर आते थे। उन चार पृष्ठों में भी 'साहित्य सागर' के शीर्षक से पाक्षिक रूप से प्रकाशित एक पूरे पृष्ठ में स्थानीय साहित्यकारों को भरपूर स्थान दिया जाता था। तब मेरे और शरद के अनेक साहित्यिक आलेख , कविताएं आदि उसमें प्रकाशित हुए थे। मेरी माता जी, जो वरिष्ठ लेखिका एवं कवयित्री हैं, श्रीमती डॉ. विद्यावती मालविका के " बुंदेलखंड की महिला साहित्यकार " विषय पर शोधात्मक धारावाहिक लेख उसमें    लगातार  प्रकाशित हुए थे। पाठकों द्वारा उस साहित्यिक पृष्ठ को बेहद पसंद किया जाता था। 05-06 साल नियमित प्रकाशन.के बाद " साहित्य सागर " का प्रकाशन बंद हो गया। बाद में वर्ष 2006 से दैनिक भास्कर सागर के सम्पूर्ण पृष्ठ सागर में ही बनने और प्रिंट होने लगे।
Dainik Bhaskar News Paper
विगत वर्ष 2017 से अत्याधुनिक संयंत्र की औद्योगिक क्षेत्र चनाटौरिया, सागर में स्थापना के बाद से दैनिक भास्कर ने बेहतरीन प्रिंटिंग के ज़रिए सागर के पाठकोंं के बीच अपना अनन्यतम स्थान बना लिया है। किन्तु स्थानीय साहित्य के लिए "साहित्य सागर" जैसा कोई स्थान नहीं रहा है। वर्तमान में इसका अभाव साहित्य प्रेमियों को खलता है।
प्रहलाद नायक के बाद नरेन्द्र सिंह’अकेला’, विपुल गुप्ता के कार्यकाल में साहित्य समाचारों को दैनिक भास्कर में प्रमुखता से स्थान दिया जाता रहा है। वर्तमान में संस्करण के स्थानीय सम्पादक अनिल कर्मा बख़ूबी यह दायित्व निभा रहे हैं।
दैनिक भास्कर, सागर

Friday, October 12, 2018

मनुष्यता का पर्याय है क्षमा - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

      जैन दर्शन में पर्यूषण या दशलक्षण पर्व आध्यात्मिक तत्वों की आराधना का पर्व है। इसकी समाप्ति के ठीक एक दिन बाद मनाया जाने वाला पर्व क्षमावाणी पर्व कहलाता है।  डॉ. हरी सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सागर स्थित इंडियन काफी हाउस में रोटरी क्लब आफ सागर सेंट्रल एवं इनरव्हील क्लब, सागर द्वारा दिनांक 07.10.2018 को क्षमावाणी महापर्व समारोह 2018 के अंतर्गत एक गरिमामय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें मैंने यानी  डॉ वर्षा सिंह और मेरी बहन डॉ.(सुश्री) शरद सिंह सहित प्रमुख स्थानीय कवियों ने काव्यपाठ किया। इस अवसर पर रोटरी क्लब आफ सागर सेंट्रल की ओर से स्मृतिचिन्ह प्रदान कर सम्मानित भी किया गया।
डॉ. हरी सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सागर स्थित इंडियन काफी हाउस में क्षमावाणी महापर्व एवं कविसम्मेलन

डॉ. वर्षा सिंह स्मृति चिन्ह स्वीकार करते हुए

डॉ. (सुश्री) शरद सिंह स्मृति चिन्ह स्वीकार करते हुए

क्षमा वीरस्य भूषणम् अर्थात क्षमा वीरों का आभूषण होता है।  मानव जीवन में क्षमा का विशेष महत्व है। इसके दो रूप हैं - क्षमायाचना और क्षमादान। एक मांगने वाला और दूसरा देने वाला। परस्पर की जाने वाली क्षमायाचना और क्षमादान अपमान की भावना का निवारण करते हैं। क्षमा की शक्ति अतुलनीय होती है।
सनातन धर्म में क्षमा याचना का सुंदर उदाहरण दुर्गा सप्तशती में मिलता है । दुर्गा शक्ति की महिमा का आख्यान दुर्गा सप्तशती में है जो  मार्कण्डेय पुराणांतर्गत देवी माहात्म्य में है। यही 700 श्लोकों में वर्णित माहात्म्य 'दुर्गा सप्तशती' के नाम से जाना जाता है।
दुर्गा सप्तशती में क्षमा प्रार्थना इस प्रकार दृष्टव्य है -
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्‍वरि॥१॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्‍वरि॥२॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्‍वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे॥३॥
अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत्।
यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः॥४॥
सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके।
इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरू॥५॥
अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्‍वरि॥६॥
कामेश्‍वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्‍वरि॥७॥
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गुहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्‍वरि॥८॥

जैन धर्म में क्षमा का विशेष महत्व है। जाने अनजाने में. हुई त्रुटियों के लिए मांगी गई क्षमा क्षमायाचना करने और क्षमादान करने वाले दोनों पक्षों को आत्मिक शांति प्रदान करती है। जैन क्षमा प्रार्थना का एक अंश यहां वर्णित है-
हे प्रभु ! मेरा किसी के भी साथ राग नहीं है. द्वेष नहीं है |
बैर नहीं है. तथा क्रोध, मन, माया लोभ नहीं है, अपितु सर्व जीवों के प्रति उत्तम क्षमा है |
जब तक मोक्षपद की प्राप्ति ना हो तब तक भव-भव में मुझे शास्त्रों के पठन-पाठन का अभ्यास, जिनेंद्र पूजा, निरंतर श्रेष्ठ पुरुषों की संगति, सच्चरित्र संपन्न पुरुषों के गुणों की चर्चा, दूसरों के दोष कहने में मौन, सभी प्रणियों के प्रति प्रिय और हितकारी वचन एवं आत्मकल्याण की भावना (प्रतीत) ये सब वस्तुएँ प्राप्त होती रहें |
है जिनेंद्र ! मुझे जब तक मोक्ष की प्राप्ति न हो तब तक आपके चरण मेरे हृदय में और मेरा ह्रुदय आपके चरणों में लीन रहे |
हे भगवन ! मेरे दुखों का क्षय हो, कर्मों का नाश हो, रत्नत्रय की प्राप्ति हो, शुभगति हो, सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो, समाधिमरण हो और श्री जिनेंद्र के गुणों की प्राप्ति हो, ऐसी मेरी भावना है, ऐसी मेरी भावना है, ऐसी मेरी भावना है |

बौद्ध धर्म में क्षमा सर्वोपरि है। एक दृष्टांत देखें-
भगवान बुद्ध के जीवन का एक अनोखा प्रसंग है। एक दिन उनसे मिलने के लिये एक युवक लगभग भागता हुआ उनके पास आया। अपने जूते उतार कर यहां वहां फेंक कर दरवाज़े के पल्लों पर आघात करते हुए उत्तेजना से भरा हुआ हांफते हुए वह बुद्ध से कहने लगा कि आपके दर्शन और उपदेश का लाभ उठाने बहुत व्यस्तता के बीच बड़ी मुश्किल से समय निकालकर मैं यहां आया हूं।

बुद्ध ने शांत भाव से कहा कि ‘जाओ, पहले अपने जूतों से क्षमा मांगो, उनको भली भांति यथास्थान पर रखो, फिर इन दरवाजों से क्षमा मांगो, और तब आदर के साथ उन्हें खोलकर अंदर आओ। अपने जीवन में किसी को छोटा समझकर उसका असम्मान मत करो, तुम्हें मेरा यही उपदेश है।’

वस्तुतः प्रत्येक छोटी से छोटी चीज अपने में महत्वपूर्ण होती है। जूता उतना ही मूल्यवान है जितना मुकुट। हर किसी की अपनी-अपनी जगह और उपयोगिता है। किसी को कम आंकना, उसका असम्मान करना है।

बुद्ध की वाणी का तात्पर्य यहां यह है कि क्षमा मांगने और क्षमा करने पर उसके साथ हम अपना अहंकार भी विसर्जित करते हैं। यह आत्मग्लानि से मुक्ति का भी सबसे सरल उपाय है।

ईसाई धर्म में प्रेम, प्रार्थना और क्षमा को विशेष स्थान दिया गया है। दुनिया को पापों से छुटकारा दिलाने के लिए प्रभु यीशु मसीह ने अपना बलिदान क्रूस पर चढ़ कर दिया और क्रूसीफाई करने वाले मनुष्यों के प्रति ईश्वर से कामना करते हुए उन्होंने यह प्रार्थना की कि हे प्रभु तू इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। यीशू इसीलिए मसीहा कहलाये क्योंकि उन्होंने अपने प्रति अत्याचार करने वाले पापी मनुष्यों को भी उदारतापूर्वक क्षमादान दे दिया।
सिख धर्म के पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब का वचन है कि क्षमाशील व्यक्ति को न तो रोग सताता है और न ही यमराज डराता है।

साहित्य में क्षमा पर अनेक रचनाएं मौजूद हैं, यथा कवि रहीम के शब्दों में-
क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।

वहीं कबीर कहते हैं-
भली भली सब कोई कहे,भली क्षमा का रुप।
जाके मन क्षमा नहीं, सो बूड़े भव कूप॥

भली भली सब कोई कहे, रही क्षमा ठयराय।
कहे कबीर शीतल भया, क्षमा जो आग बुझाये।।
जहाँ दया वहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप।
जहाँ क्रोध वहाँ काल है, जहाँ क्षमा वहाँ आप।
शील क्षमा सब उपजे, अलख दृष्टि जब होय।
बिना शील पहुंचे नही, लाख कहे जो कोय।

बाणभट्ट ने हर्षचरित में कहा है-क्षमा हि मूलं सर्वतपसाम्। महाग्रंथ महाभारत में कहा गया है - क्षमा असमर्थ मनुष्यों का गुण तथा समर्थ मनुष्यों का भूषण है।

इस प्रकार क्षमा सर्वधर्म और साहित्य में विद्यमान वह महामंत्र है जो मनुष्यता का पर्याय है, जीवन का आधार है।
डॉ. वर्षा सिंह स्मृति चिन्ह के साथ


डॉ. (सुश्री) शरद सिंह स्मृति चिन्ह के साथ



डॉ. हरी सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सागर स्थित इंडियन काफी हाउस में क्षमावाणी महापर्व एवं कविसम्मेलन

डॉ. (सुश्री) शरद सिंह  का कविता पाठ 
 Dr. (Sushri) Sharad Singh & Dr. Varsha Singh 

Dr. Varsha Singh & Dr. (Sushri) Sharad Singh

डॉ. हरी सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सागर स्थित इंडियन काफी हाउस में क्षमावाणी महापर्व एवं कविसम्मेलन

डॉ. वर्षा सिंह का कविता पाठ

डॉ. वर्षा सिंह का कविता पाठ