Tuesday, March 31, 2020

प्रतिक्रिया गुलाब कोठरी जी के अग्रलेख पर....आध्यात्मिक चिंतन से दिशाबोध - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

             आज दिनांक 31.03.2020 को पत्रिका समाचारपत्र में राजस्थान पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठरी जी की कल दि. 30.03.2020 को प्रकाशित संपादकीय पर मेरी यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह की प्रतिक्रिया प्रकाशित हुई है।
हार्दिक आभार पत्रिका 🙏



आध्यात्मिक चिंतन से दिशाबोध
       आध्यात्मिक चिंतनधारा मनोमस्तिष्क को निर्मल बनाती है। व्यक्ति की सोच अपने अंतःकरण की सोच से एकाकार हो कर कामनाओं को परिमार्जित करती है।  कोठरी जी के लेख आध्यात्मिक चिंतन को लिपिबद्ध करते हैं और दिशाबोध कराने की सामर्थ्य रखते हैं।
      - डॉ. वर्षा सिंह, साहित्यकार, सागर
 
       .... और यह है कोठरी जी की संपादकीय, जिसमें उन्होंने अपने आध्यात्मिक चिंतन पर कलम चलाई है...


Sunday, March 29, 2020

गुलाब कोठरी के अग्रलेख पर प्रतिक्रिया - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

      गुलाब कोठारी भारत के एक सम्वेदनशील लेखक, पत्रकार तथा संपादक है एवं वर्तमान में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका के प्रधान सम्पादक है।  राजस्थान पत्रिका का सागर संस्करण पत्रिका के नाम से प्रकाशित होता है। कोठरी जी के लेखन के बारे में वेद विज्ञानी और जैन दर्शन के विद्वान दयानंद भार्गव विपुल का कथन है कि "जिस तरह गुलाब के कई रंग होते हैं, उसी तरह गुलाब कोठारी जब साधक होते हैं तो सफेद हो जाते हैं और जब बच्चों के साथ होते हैं तो गुलाबी और गुलाब के साथ कांटा भी होता है, इसलिए जब वे सम्पादकीय लिखते हैं तो कांटे की तरह काम करते हैं और किसी का भी फूला हुआ गुब्बारा पिचका देते हैं।"

गुलाब कोठरी

गुलाब कोठारी प्रत्येक सप्ताह लगभग 3-4 संपादकीय लिखते हैं जो कि अत्यंत महत्वपूर्ण और विचारोत्तेजक होती हैं। इन पर पाठकों की प्रतिक्रियाओं को अग्रलेख पर प्रतिक्रिया के अंतर्गत प्रकाशित किया जाता है।

Saturday, March 28, 2020

लॉकडाउन में कलम और मुखर, क्या खूब लिख रहे हैं साहित्यकार - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

     दैनिक भास्कर ने आज 28 मार्च 2020 के अंक में प्रकाशित किया है कि सागर शहर के साहित्यकारों द्वारा कोरोना संदर्भित कौन सी कविताएं लिखी जा रही हैं... भास्कर ने प्रश्न उठाया है कि.... "अपने शहर और देश के साथ कलम के सिपाही भी इन दिनों लॉकडाउन में हैं। लेकिन क्या उनकी कलम भी लॉक हो गई है? "

   भास्कर ने ही फिर उत्तर देते हुए लिखा है  .... "जी, नहीं।भास्कर ने जब अभिव्यक्ति के इन अधिष्ठाताओं से बात की तो पाया कि आयोजन थमे हैं, कलम तो और भी ज्यादा मुखर हो उठी है। हां , विषय जरूर बदले हुए हैं। साहित्यकार अपने समय को जीता है और उसे ही अभिव्यक्त भी करता है। यही इस समय देखने को मिल रहा है। कोरोना महामारी ने दुनिया को जिस तरह से हलाकान कर रखा है , कवि-साहित्यकारों ने उसे पूरी तीव्रता के साथ अनुभूत किया है और शब्द- शक्ति का लगातार प्रहार भी वे इसेक खिलाफ कर रहे हैं। अलग-अलग रचनाओं में कहीं साहस नजर आता है, कहीं समझाइश तो कहीं भरोसा कि इस संकट से हम जल्द ही उभर जाएंगे।
महिला लेखिकाओं और कवयित्रियों के तेवर भी भी तीखे हैं। चर्चित लेखिका शरद सिंह लिखती हैं-

हो वक़्त बुरा कितना, आख़िर तो बदलता है।
दीवार कोरोना की, जल्दी है इसे ढहना।


वरिष्ठ गजलकार डॉ. वर्षा सिंह इसे एकता के रंग से जोड़तीं हैं और उसी में इसका हल देखतीं हैं-

कोरोना समझे नहीं, रंग, धरम ना जात।
मिल कर लें संकल्प हम, देनी होगी मात।।"



Friday, March 27, 2020

बारह दोहे और एक ग़ज़ल कोरोना से जंग पर - "लॉकडाउन" - डॉ. वर्षा सिंह

   
डॉ. वर्षा सिंह
 
       सावधानी में ही सुरक्षा है। कोरोना वायरस के संक्रमण जन्य महामारी को रोकने के लिए माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने देश में 21 दिनों का लॉकडाउन दिनांक 24 मार्च 2020 से 14 अप्रैल2020 तक के लिए घोषित किया है।

आइए जानते हैं कि लॉक़डाउन में होता क्या है।

1. घर में रहना पड़ेगा
इस दौरान सबको घर में ही रहने होता है। जनता को घर से बाहर निकलने पर रोक है। हालांकि आप अपने जरूरी काम के लिए बाहर निकल सकते हैं। लेकिन दूसरे लोगों से मिलना जुलना, सामाजिक व्यवहार, सैर सपाटा, खाना पीना, दफ्तर इत्यादि सब पर रोक है।

2. क्या क्या बंद रहेगा
इस दौरान सभी प्राइवेट और कॉन्ट्रेक्ट वाले दफ्तर बंद रहते हैं। सरकारी दफ्तर जो जरूरी श्रेणी में नहीं आते, वो भी बंद रहते हैं।

3. क्या नहीं कर सकते
इस दौरान सड़क पर नहीं निकल सकते। पांच या पांच से ज्यादा लोगों के एक साथ एकत्र होने पर रोक है। यदि आप घर से बाहर निकलते हैं तो आपको सड़क पर गश्त कर रहे पुलिस कर्मचारी को बताना होगा कि आप किस काम से जा रहे है।

4.दफ्तर वाले क्या करेंगे
हालांकि लॉकडाउन के दौरान दफ्तर बंद कर दिए गए हैं लेकिन आप दफ्तर का काम घर से कर सकते हैं। सभी दफ्तरों को चाहें वो निजी हों या ठेके पर,  उन्हें घर से ही अपने दफ्तर के काम सुचारू करने होंगे। इसके लिए कंपनी व्यक्ति को सैलरी देने के लिए बाध्य है।


5. क्या क्या बंद होगा
स्कूल, कॉलेज, दफ्तर, मॉल, दुकानें, सिनेमाहाल, धार्मिक स्थल, स्विमिंल पूल व अन्य संस्थान बंद रहते हैं। यहां जाना मना है। अगर ये खुलते हैं तो कार्रवाई होगा।

6. क्या क्या खुला रहेगा
लॉक डाउन के दौरान सबसे अच्छी बात ये है कि इस दौरान राशन, दूध, फल-सब्जी, दवाई की दुकानें खुली रहेंगी। पेट्रोल पंप, सीएनजी पंप, गैस सिलेंडर की आपूर्ति, बिजली पानी की सेवा, डॉक्टर, अस्पताल. फायर सर्विस, म्यूनिसिपल दफ्त, प्रिंट और इलेक्ट्रानिक माडिया के दफ्तर, बैंक के एटीएम, टेलीकॉम सेवाएं पूरी तरह खुली रहेंगी। यानी कि आपको सामान्य जीवन जीने के लिए तमाम तरह की जरूरी चीजों की आपूर्ति होती रहेगी। बस आप घर से बाहर नहीं निकल सकते।

    यहां प्रस्तुत हैं मेरे द्वारा लिखे बारह दोहे कोरोना से जंग पर ....

"लॉकडाउन" में है निहित...
                    - डॉ. वर्षा सिंह

कोरोना समझे नहीं, रंग, धरम ना जात।
मिल कर लें संकल्प हम, देनी होगी मात।।1।।

कोरोना की आपदा, मनुज रहा है झेल ।
रहें एकजुट हम अगर, यह भी होगा फेल।।2।।

सार्स, इबोला से नहीं ,घबराया इंसान।
कोरोना के घात का, हमको है संज्ञान।।3।।

शहर, देश, दुनिया सभी पर संकट की छांव।
बच कर स्वयं, बचाइए, अपनी बस्ती-गांव।।4।।

बहुत बुरा यह संक्रमण, इतना लीजे जान।
टीका इसका है नहीं, जा सकती है जान ।।5।।

मानव हैं हम, ये सदा हमें रहेगा भान।
करना हमें सदैव है नए-नए संधान।।6।।

कोरोना का भी कभी निकलेगा कुछ तोड़।
वर्तमान में दीजिए सभी बुराई छोड़।।7।।

"लॉकडाउन" में है निहित, सबके हित की बात।
इसी तरह दे पायेंगे, कोरोना को मात ।।8।।

वहां सुरक्षित हैं सभी, जहां सतर्क इंसान।
दूर भ्रमों से रह करें सच्चाई का भान ।।9।।

दूरी रखिए आपसी, नहीं घूमने जाएं ।
पालन वह सब कीजिए, जो पी.एम. समझाएं।।10।।

भय मन में मत पालिए, किन्तु न निर्भय होंए ।
सैनेटाइजर से सदा हाथों को मल धोंए ।।11।।

"वर्षा" भारत भूमि पर यह अप्रैल औ मार्च।
जग को पथ दिखला रहा, बन कर जलती टार्च ।।12।।
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       कोरोनावायरस को फैलने से रोकने के लिए माननीय प्रधानमंत्री जी के द्वारा खींची गई एक अदृश्य लक्ष्मण रेखा को महसूस करते हुए मैं, आप, हम सभी भारतवासी 21 दिन के लॉकडाउन का पालन करते हुए अपने घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं ... तो पढ़िए मेरी यह ग़ज़ल ....

ग़ज़ल
दौर है ये आज़माइश का
         - डॉ. वर्षा सिंह

दौर है ये आज़माइश का, ज़रा धीरज धरो
कुछ दिनों की बात है फिर ख़ूब मनचाहा करो

स्याह पन्ने फाड़ कर उजली कथाएं कुछ लिखो
पृष्ठ जो हैं रिक्त, उनमें रंग जीवन का भरो

ख़ुद के दुख की दास्तानों का न कोई अंत है
भूल अपने ग़म सभी तुम पीर ग़ैरों की हरो

वक़्त है एकांत का, रहना स्वयं की क़ैद में
अब मनुजता को स्वयं के धैर्य से तारो- तरो

याद रखना वक़्त रुकता है न अच्छा ना बुरा
खेल सारा कुछ पलों का है तो आखिर क्यों डरो

मृत्यु की तय है घड़ी और ज़िन्दगी के दिन भी तय
सोच कर अंतिम क्षणों को किसलिए प्रतिपल मरो

शुष्कता ने बोरियत से भर दिया वातावरण
बन के "वर्षा"- बूंद, सूखी इस धरा पर तुम झरो
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#ग़ज़लवर्षा
#StayHome
#कोरोनावायरस


Saturday, March 14, 2020

फूलों से खेली गई होली राहगीरी में - डॉ. वर्षा सिंह


https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2818084528287929&id=100002592286536

दैनिक भास्कर और  राहगीरी ग्रुप के संयुक्त आयोजन राहगीरी में फूलों से सूखी होली खेल कर पानी बचाने का संदेश दिया गया। रंगों के बगैर जिंदगी में उल्लास नहीं, रंग हमें खुश रहने और आनंदित रहने का संदेश देते हैं। वे यह भी बताते हैं कि रंगों का आनंद क्या होता है। होली हमें जीवन के रंगों का आनंद लेने का एहसास कराती है।





इस दफ़ा कैमिकलयुक्त रंगों से बचने और पानी की बचत का संदेश देने के उद्देश्य से सागर के संजय ड्राइव पर रविवार को राहगीरी में होली गेंदे, टेसू, जीनिया आदि के फूल, अंबीर और गुलाल से मनाई गई। दैनिक भास्कर और राहगीरी सोशल ग्रुप के संयुक्त आयोजन में रविवार को शहरवासी संजय ड्राइव पर जुटे और बच्चों, बड़ों सभी ने मिल कर जम कर होली का आनंद उठाया।





वैसे मथुरा-वृंदावन में फूलों की होली खेली जाती है। मथुरा में फूलों की होली खेलने की परंपरा काफी पुरानी है। ये होली भी एक सप्ताह तक मनाई जाती है। वृंदावन सहित देश के कई हिस्सों में होली के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इसमें नृत्य के साथ साथ एक दूसरे पर फूलों की बरसात की जाती है। होली से पहले पड़ने वाली एकादशी पर ये होली खेली जाती है।
राहगीरी में उपस्थित सभी बच्चों ने फूलों की पंखुड़ियों से होली खेली। संयोजक ग्रुप के बंटी जैन ,भावेश दर्जी उपस्थित थे। लेखिका डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने कहा कि पर्यावरण एवं जल संरक्षण हेतु यह ज़रूरी है कि हम फूलों की पंखुड़ियों, सूखी हल्दी - चंदन और गुलाल से सूखी होली खेलें। इससे जहां पानी, लकड़ी की बचत होगी. वहीं रासायनिक रंगों से होनी वाली हानि से भी बचा जा सकेगा। इस संदर्भ में उन्होंने अपनी ये पंक्तियां पढ़ीं-
सूखी होली खेलिए, पर्यावरण बचाय।
हरियाली, पानी बचे, मन को यह हर्षाय ।।
मन को यह हर्षाय, करें रक्षा हम जग की।
वायु शुद्ध, जल रहे शेष, खुशियां हों सबकी।।

     मैंने यानी इस ब्लॉग की लेखिका कवयित्री डॉ वर्षा सिंह ने महिलाओं का सम्मान करने और होली के त्यौहार को आपसी सद्भावना से मनाने विषयक अपनी इस कविता के माध्यम से संदेश दिया -
मां,भाभी है, बहन है नारी, सदा इसे सम्मान दो,
मानव जीवन पाया है तो मानवता को मान दो।
होली और दिवाली हमको सदा यही सिखलाते हैं,
धर्म हमारा मानवता है, इसे नई पहचान दो।







Wednesday, March 11, 2020

सागर: साहित्य एवं चिंतन - होली विशेष: होली और सागर के हुरियारे कवि-कवयित्रियां - डॉ. वर्षा सिंह

Dr . Varsha Singh

                  स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के प्रमुख कवियों और होली संदर्भित उनकी कविताओं पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के वर्तमान साहित्यिक परिवेश को ....

सागर: साहित्य एवं चिंतन - होली विशेष:                   
होली और सागर के हुरियारे कवि-कवयित्रियां

- डॉ. वर्षा सिंह

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          कवि पद्माकर की भूमि सागर शहर में कवि-कवयित्रियां होली की उमंग से न भर उठें, ऐसा हो नहीं सकता है। फागुन आते ही फागुनी कविताएं नई-नई कोंपलों की भांति अपने-आप फूट पड़ती हैं। फागुन आते ही जब प्रकृति का रूप मनोरम हो उठता है तो बकौल कवि पद्माकर प्रत्येक व्यक्ति परस्पर एक-दूसरे से कह उठता है कि ‘‘लला, फिर खेलन आइयो होरी’’। इतने मधुर वातावरण का प्रभाव प्रत्येक साहित्यमना को कवि बना देता है। अब देखिए न, सागर नगर के साहित्य जगत को अपने आयोजनों के आह्वान से जगाने वाले श्यामलम संस्था के अध्यक्ष उमाकांत मिश्र क्या कहते हैं, वह भी तब जब कविराज ऋषभ समैया जलज उनसे फागुनी भेंट करने आते हैं और सिर्फ़ अपनी कविता सुना कर चले जाते हैं। देखिए कवि उमाकांत मिश्र की हुरियारी पंक्तियां -   
रंगपंचमी पर वो आए
सबेरे-सबेरे।
खिलाकर भांग
सुनाकर कविता।
चले गए नई ठौर
अकेले-अकेले।

       कई कवि अधिक उदारमना होते हैं और अपने कवि मित्रों द्वारा सताए जाने पर भी होली के रंगों में रंग जाने की सलाह देते हैं। अपनी इस उदारमना प्रकृति को अपनी कविता में भी बखूबी ढाल देते हैं। जैसे कवि कपिल बैसाखिया की यह कविता देखें-
श्वेत श्याम थी जिन्दगी,   आज हुयी रँगीन।
कल को पीछे छोड़कर, मस्ती में अब लीन।।
मस्ती में अब लीन, जो दुख थे जिन्दगी के।
उनको हम भूल कर,   मिलते गले सभी के।।
कहें कपिल कवि राय,    ये होली दे ईनाम।
विविध हों रंग यहाँ,  हो न कोई श्वेत श्याम।।
                             
    होली की पहली शर्त है कि सारी दुश्मनी, वैमनस्यता भुला कर मित्रता का हाथ बढ़या जाए और दोस्ती के बढ़े हुए हाथ को सच्चे दिल से थाम लिया जाए। होली और मित्रता के इस गठबंधन को अटूट बंधन पर कवयित्री डाॅ. शरद सिंह कहती हैं-
मित्रों के स्नेह का,  कभी न उतरे रंग।
होली की शुभकामना, रहे सभी के संग।।
रहे सभी के संग, कि सूखी होली खेलें
करें बचत पानी की, गुझिया के हों मेलें।।
कहे ‘शरद’ ये आज कि खेलो जी भर होली।
भर लो खुशियों से, आज सब अपनी झोली।।

      फागुन की आहट वसंत के आगमन के साथ ही सुनाई देने लगती है। इस आहट को सुनते हुए कवि नलिन जैन का कवि हृदय बोल उठता है -
मधुर बसंत  के  संग  आज होली आई है
रंग  बिखरे है   घटा-मौसमी  तरुणाई है
कोई रंगे अदा से, हम किसी को रंग डाले
घुली हो प्रीत की निर्गुणता यह  दुहाई है।

       मेरे यानी कवयित्री डाॅ वर्षा सिंह के इन दोहों को देखिए जिनमें होली के आगमन पर प्रकृति के परिवर्तन को अनुभव किया जा सकता है -
जब से मौसम ने यहां, बदली अपनी चाल।
बदले-बदले लग रहे, आम, नीम के हाल।।
समझ  गए  नादान भी, होली  का संकेत।
पीले  फूलों से भरे,  सरसों  वाले  खेत।।
सागर साहित्य एवं चिंतन - डॉ. वर्षा सिंह


       होली के रंगों का प्रभाव ही कुछ ऐसा होता है कि हर प्रेमी मन को अपने प्रिय की याद आने लगती है और मनुूहार एवं उलाहनों का दौर चल पड़ता है। इसीलिये तो कवि डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया कहते हैं-
भला क्या भूल पाओगी मुझे ऐसे क्षणों में तुम,
बसन्ती महिना में कोयल कहेगी प्यार की बोली।।
अकेले में किसी अमुआ की छैयां में तुम्हें पाकर,
कोई रंगीन सपना बन कभी जब गुदगुदाऊंगा ।।
ये सच कहता हूँ कि उस वक्त तुमको याद आऊंगा।।

    ....और जब हाथों में रंग-गुलाल भर कर प्रिय सामने आ ही जाए तो दृश्य रूमानियत से भर उठता है और तब कवि हृदय भी श्रृंगार रस की कविताएं कह उठता है। कवि सतीश साहू की ये पंक्तियां देखिए-
रंग हरे नीले पीले और लाल सभी
मुझसे न शर्माओ आओ, होली है
रंगों में मिलकर हो जाओ रंग ‘सतीश’
और हवा में तुम घुल जाओ, होली है

     होली में रंग लगाने का हठ अपने-आप जाग उठता है। ऐसे में युवाकवि आदर्श दुबे भी अगर अपनी इंन पंक्तियों में हठ करते दिखाई देते हैं तो यह सुंदर फागुनी प्रभाव ही तो है-
इस होली को उस होली से
बेहतर मुझे बनाना है।
अब तेरी महफ़िल में आ कर
मुझको रौब जमाना है।
     
      होली एक ऐसा त्यौहार है जो जाति, धर्म और उम्र के बंधनों को स्वीकार नहीं करता है। फिर भी आज के बदलते माहौल और परम्पराओं के प्रति युवा पीढ़ी की बेरुखी को देखते हुए वरिष्ठकवि निर्मल चंद ‘निर्मल’ का चिंतित हो उठना स्वाभाविक है-
कहां नायक व नायिका, पिछड़ा रंग गुलाल।
पश्चिम के रंग में हुआ, पूरा  भारत  लाल।।
      संस्कारों की जननी भारतीय भूमि को देव भूमि कहा गया है। जहां सदियों से देव तत्व अच्छाई को स्थापित करने लिए प्रत्येक बुराई और दुख को सुख में बदलने के लिए भारतीय संस्कृति में प्रयास किए जाते रहें हैं। इन प्रयासों में जब कभी वह सफल हुआ तो इसे एक उत्सव या त्योहार के रूप में मनाया। उसमें भी सबसे बड़ा संस्कार है आपसी-भाईचारा जो पीढ़ियों से भारतीय भूमि पर प्रवाहमान है। इसी आपसी भाई-चारे का संदेश को चरितार्थ करता है होली का त्यौहार। होली जो वास्तव में रंगों, उमंगों का त्यौहार है, उसे आपसी सद्भावना से ही मनाया जाना चाहिये ताकि कवि ‘ईसुरी’ के शब्दों में यह कहा जा सके- ‘‘हिल मिल खेलौं प्रीत की होरी,जा मनसा है मोरी।’’
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( दैनिक, आचरण  दि. 09.03.2020)
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Tuesday, March 10, 2020

होली की हार्दिक शुभकामनाएं - डॉ. वर्षा सिंह

होली ने छेड़ा यहां, फिर ख़ुशियों का राग।
रंगों का मेला लगा, खेल रहे सब फाग ।।
प्रेम-प्यार ऐसा बढ़े, बुझे द्वेष की आग ।
"वर्षा" की है ये दुआ, धुलें क्लेश के दाग़ ।।

होली की हार्दिक शुभकामनाएं
               -डॉ. वर्षा सिंह


Sunday, March 8, 2020

पर्यावरण संरक्षण के लिए खेलिए सूखी होली - डॉ. वर्षा सिंह


अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏💐🙏
      आज 08 मार्च को पत्रिका समाचारपत्र ने प्रमुखता से हमारे संकल्प को स्थान दिया है, यह महत्वपूर्ण है... धन्यवाद पत्रिका 🙏

पत्रिका समाचारपत्र दिनांक 08.03.2020
      होली का पर्व यानी उल्लास-उमंग और सद्भाव का पर्व। इस त्योहार पर आपसी दूरियां कम हो जाती हैं और भाईचारा बढ़ता है। सामाजिक समरसता के प्रतीक इस त्योहार को मनाने के गलत तरीकों से हम अपने साथ ही समाज का भी नुकसान करते हैं। जल का दुरूपयोग भी इसी श्रेणी में आता है, लिहाजा इस बार होली के पर्व पर जल संचय का संदेश भी दें।

होली का पर्व आपसी स्नेह और भाईचारे का प्रतीक है। जरूरी नहीं कि पानी का दुरूपयोग कर ही इस त्योहार का मजा लिया जाए। हमें विगत वर्षों के जल संकट से सबक लेना चाहिए। जल संचय जीवन के लिए बहुत जरूरी है, साथ ही यह शहर के विकास के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। अत: सभी लोग होली के त्योहार पर सूखे रंगों का उपयोग करें और जल के दुरूपयोग से बचें। संत कबीरदासजी ने कहा है कि पानी चला जाने के बाद मोती, मानव और चूना नष्ट हो जाते है। जीवन के लिए आवश्यक पंच तत्वों में प्रधान जल के संचय के लिए प्रति हमें जागरूक होना ही होगा। यह दुर्भाग्य ही है कि पानी बचाने का हम संकल्प तो लेते हैं, पर उस पर गंभीरता से अमल नहीं करते हैं। इस बार सूखी होली खेलकर इस संकल्प की पूर्ति करें। जल रहेगा तो कल सुरक्षित रहेगा।

जल ही जीवन है की तर्ज पर पानी का दुरूपयोग किए बिना ही होली खेलें। सूखी होली खेलने से हम भीषण जल संकट से बच सकेंगे। इसी प्रकार जल संचय करके ही हम अपनी विकास दर निरंतर रख सकते हैं। इस बार की होली पर सिर्फ गुलाल और सूखे रंगों का उपयोग करें, जल के दुरूपयोग और अनावश्यक विवादों से बचें। दोनों ही सतर्कता सुखद भविष्य के लिए जरूरी है। इसलिए सूखी होली खेलना ही सार्थक साबित होगी।

इसीलिए होली के रंग तो खूब उड़ें मगर सूखे...। यदि कल भी हमें सुखी रहना है तो होली के उल्लास में पानी उड़ेंलने के बजाए सूखी होली मनाने का ध्येय रखना चाहिए।

मेरी पंक्तियां हैं.....

मिटा के सारी दुश्मनी, लगाएं आज हम गले
भुला के हर उलाहने, मिटा दें हर सवाल भी ।

ज़रा सी हों शरारतें , ज़रा सी शोख़ हरकतें
रहे न कोई गमज़दा,  मचे  ज़रा  धमाल भी ।

हुआ है फागुनी हवा का, इस क़दर असर यहां
मचल उठी है चाहतें,  बदल गई है चाल भी ।

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Saturday, March 7, 2020

महिला दिवस और कंडों की होली पर केंद्रित हिंदी लेखिका संघ की काव्य गोष्ठी : डॉ.वर्षा सिंह


         हिन्दी लेखिका संघ सागर इकाई की काव्य गोष्ठी महिला दिवस और होली कंडो की  पर केंद्रित रही। जिसमे  होली जलाने का संदेश देती कविताओं के साथ नारी उत्थान को प्रोत्साहित करती कविताओं का पाठ किया गया।  काव्य गोष्ठी सुनीला सराफ की अध्यक्षता में डा. शरद सिंह के मुख्य आतिथ्य में एवं डा. वर्षा सिंह के विशिष्ट आतिथ्य में सम्पन्न इस गोष्ठी का संचालन क्लीम् राय ने किया आभार डा. नम्रता ने माना। काव्य गोष्ठी डा.नम्रता फुसकेले के निवास पर आयोजित हुई।














 महिला दिवस एवं होली पर कैसे बचाये पर्यावरण पर सभी महिलाओं ने कंड़ों की होली जलाने का संदेश दिया एवं नारी के उत्थान को प्रोत्साहित करती हुई कवितायें एवं उद्गार व्यक्त किये।गोष्ठी में निधी यादव, डा. वंदना गुप्ता राज श्री दवे, स्मिता गोडबोले,ऊषा वर्मन,ज्योति झुड़ेले, विनीता केशरवानी,जयंती सिंह ,ज्योति विश्वकर्मा,नंदनी चौधरी, डा. चंचला दवे, पुष्पलता पांण्डे , देवकी नायक ,कंचन केशरवानी,ज्योति तिवारी,शशी दीक्षित, डा. शरद सिंह ,डा.वर्षा सिंह ,सुनीला सराफ, नम्रता फुसकेले ने कावयपाठ किया एवं कंड़ों की होली जलाने की शपथ ली।