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Dr.Varsha Singh |
स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर की सुपरिचित कवयित्री निरंजना जैन पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....
सागर : साहित्य एवं चिंतन
बहुमुखी प्रतिभा की धनी निरंजना जैन
- डॉ. वर्षा सिंह
परिचय :- निरंजना जैन
जन्म :- 19 नवम्बर 1957
जन्म स्थान :- बीना (म.प्र.)
शिक्षा :- सागर विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक
लेखन विधा :- गद्य एवं पद्य
प्रकाशन :- ‘इकतीसा महीना’ कहानी संग्रह
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सागर नगर की महिला व्यंग्यकार के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुकी निरंजना जैन गद्य और पद्य दोनों विधाओं में लेखन कार्य करती हैं। उनकी व्यंग्य कविताएं विसंगतियों के चरित्र उजागर करती हैं, वहीं उनकी कहानियां सामाजिक एवं पारिवारिक संबंधों का बारीकी से विश्लेषण करती हैं। यूं तो निरंजना जैन ने बाल कविताएं, दोहे और गजलें भी लिखी हैं, किन्तु उनकी छंदमुक्त रचनाएं एक अलग ही तरह का सम्वाद करती हैं। निरंजना जैन की रचनाओं में एक सादगी के साथ दैनिक जीवन से जुड़ी समस्याओं के प्रति चिंतन मिलता है। अपनी कुछ कविताओें में उन्होंने विसंगतियों की व्यापकता दिखाने के लिए बड़े ही सुन्दर क्षेपक का प्रयोग किया है। देखिए उनकी ग्रहण शीर्षक कविता :-
क्षण /प्रतिक्षण ग्रसता जा रहा है
मानवता के/ जगमगाते सूर्य को
कलुषताओं का ग्रहण
इस ग्रहण से गहनतर होते अंधकार में
छटपटा रही है इंसानियत
क्योंकि विकरित होने लगीं हैं
उस सूर्य से
भ्रष्टाचार/ अनैतिकता/अराजकता की
विषैली किरणें
भौतिकता की/ चौधियातीं झांईं
अंधा कर रहीं हैं/आंखों को
जिन्हें बंद किये मैं
इंतज़ार कर रही हूँ
डायमंड रिंग का
जिसके बनते ही/ पुनः जगमगायेगा
मानवता का सूर्य
पर शेष है अभी खग्रास
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Sagar: Sahitya Awm Chintan - Dr. Varsha Singh |
मानवजीवन यूं भी कभी आसान नहीं रहा है, और इतिहास साक्षी है कि मनुष्य उपभोक्तावादी बन कर सुविधाभोगी बना है तबसे दैहिक रूप से भले ही उसे सुविधाएं प्राप्त हो गई हों किन्तु आंतरिक सुख-चैन का विघटन अवश्य शुरू हो गया है। और अधिक पाने का लालच मनुष्य को स्वार्थी तथा आत्मकेन्द्रित बनाता जा रहा है। यही कारण है कि मनुष्य ने अपने सरल-सहज जीवन को कांटों भरा रस्ता बना लिया है। इन भावों को निरंजना जैन ने अपनी कविता ‘‘नागफनी’’ में बड़े ही सार्थक ढंग से पिरोया हैः-
नागफनी के गमले में
पानी डालते वक्त
चुभे तीक्ष्ण कंटकों की पीड़ा से
मैं तिलमिलाई
इन कंटकों का / यहाँ क्या काम सोच
पूरी की पूरी नागफनी
तेज चाकू से काट गिराई
उसके कटते ही/क्षुब्ध होकर
गमले ने प्रश्न उठाया
तुम ने/ मुझमें उगी
इस अचल/ मूक नागफनी का
बड़ी आसानी से/ कर दिया सफाया
पर इंसानी दिलों के / गमले में उगी
स्वार्थ की/ कंटीली नागफनी को
कैसे मिटाओगी ?
और इस बेजुबान की कटे हिस्सों से टपकते
सफ़ेद रक्त की बूंदों का हिसाब
किस तरह चुकाओगी।
पारिवारिक रिश्तों की समस्त परिभाषाएं एवं मूल्यवत्ता मां से ही आरम्भ होती हैं। जिसने मां के साथ अपने मधुर शाश्वत संबंध को समझ लिया वह अंतर्सम्वेदनाओं की गहन अनुभूति को समझने में स्वतः पारंगत हो जाता है। मां का ममत्व मानवीय प्रेम का सबसे निश्चछल और निर्विकार उदाहरण है। एक मां अपने बच्चे को अपना सर्वस्व देने को तत्पर रहती है। निरंजना जैन ने अपनी बाल्यावस्था को याद करते हुए आज के हालात पर बहुत मार्मिक कटाक्ष किया है-
मां/ सुबह-सुबह आंगन में
बिखेर देती थी /अनाज के दाने
जिन्हें चुगने के लिए
तरह-तरह की चिड़ियां आती थीं
मधुर गीत गाती थीं
और भरपेट खाने के बाद
फुर्र से उड़ जाती थीं
कुछ देर को आंगन
चिड़ियों का अभ्यारण्य बन जाता था
मां तब मुझे /अपनी गोद में बिठा कर
दाल-भात खिलाती थी
मेरे मचलने पर/चिड़िया को
झूठ-झूठ का कौर दिखा कर
मुझे बहलाती थी
अब न वह बचपन है
न मां, न आंगन
और न ही वे चिड़ियां
क्योंकि बचपन दब गया है
बस्ते के बोझ तले
मां लोरियां भूल कर सोसाइटी में
स्टेंर्डड मेंटेन करने में बिजी है
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बायें से : डॉ. वर्षा सिंह, डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, डॉ. उर्मिला शिरीष, निरंजना जैन एवं सुनीला सराफ |
कविताएं जहां मन में रागात्मकता पैदा करती हैं वहीं कहानियां विचारों के धरातल पर दृश्यात्मकता की वृद्धि करती हैं। कहानियों का विस्तार मुखर संवाद करने में सक्षम होता है। निरंजना जैन की कहानियां भी वर्तमान जीवन को ले कर मुखर संवाद करती हैं। उनकी कहानियों में वे पात्र मिलते हैं जो हमारे आस-पास मौजूद होते हैं। निरंजना जैन के कहानी संग्रह ‘इकतीसा महीना’ पर अपने एक समीक्षात्मक लेख में देश की चर्चित कथाकार एवं समीक्षक डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने लिखा है कि -‘‘निरंजना जैन ने अपनी कहानियों में पारिवारिक मूल्यों के क्षरण को बहुत ही बारीकी से प्रस्तुत किया है। ‘राखी’ एक बच्चे की एक अदद बहन पाने की ललक की कहानी है। वही ‘मजबूरी’ में कामवाली बाई की आर्थिक विवशता का वर्णन है। ‘चाची’ और ‘रात के बाद’ दुखांत कहानियां हैं जो पढ़ने के बहुत बाद तक मन को मथती रहती हैं। ‘इकतीसा महीना’ संग्रह की कहानियोंं के पात्रों के विचारों में दार्शनिकता का पुट उनके चरित्र को और अधिक मुखर बनाता है। इन कहानियों के द्वारा मध्यमवर्गीय तथा निम्नवर्गीय समाज में संवेदनाओं की स्थिति को क़रीब से जाना-समझा जा सकता है। निरंजना की कहानियों में यूं तो बोलचाल की भाषा है किन्तु बुंदेली संस्कृति और बुंदेली शब्दों का भी समावेश है। .........निरंजना जैन ने अपनी कहानियों के कथानकों को साधने का पूरा प्रयास किया है और प्रथम संग्रह की कहानियों के रूप में इनका तनिक कच्चापन एक सोंधी महक लिए हुए है। भविष्य के प्रति आश्वस्त करता यह संग्रह असीम संभावनाएं संजोए हुए है।’’
निरंजना की कहानियों के संबंध में डॉ संतोष कुमार तिवारी ने लिखा है कि -‘‘अधिकांश कहानियों में आंचलिकता का अच्छा समावेश किया गया है ओर उल्लेखनीय विशेषता यह है कि यह आंचलिकता और क्षेत्रीयता हमारे सोच की व्यापकता को निस्सीमता प्रदान करती है। किसी परिधि में नहीं बंधती।’’
निरंजना जैन की कविताएं, कहानियां, पहेलियां, बालगीत आदि ‘कादम्बिनी’, ‘परिधि’, ‘ईसुरी’, ‘सुखनवर’, ‘ग़ज़ल दुष्यंत के बाद’ जैसी पत्रिकाओं एवं समवेत संग्रहों में प्रकाशित हो चुके हैं। वे एक समर्पित गृहणी के साथ ही साहित्य की जिज्ञासु कलमकार भी हैं। वे कहती हैं कि -‘‘मुझे घर के कामों से जब भी समय मिलता है, मैं कोई न कोई पुस्तक उठा कर पढ़ने बैठ जाती हूं।’’
ग़ज़ल विधा में अपनी अलग पहचान बनाने वाले ‘‘परिधि’’ के सम्पादक डॉ. अनिल जैन की सहधर्मिणी होने के साथ ही साहित्यसेवा के क्षेत्र में निरंजना जैन अपने पति की सहकर्मणी भी हैं। निरंजना जैन और डॉ. अनिल जैन हिन्दी उर्दू मजलिस नामक साहित्यिक संस्था का विगत कई वर्ष से संचालन कर रहे हैं तथा प्रति वर्ष संस्था के वार्षिक आयोजन में दोनों ही समर्पित भाव से अपना पूरा समय और श्रम देते हैं।
स्वभाव से हंसमुख एवं बेहद मिलनसार निरंजना जैन एक कुशल मंच-संचालक भी हैं। वे हिन्दी और बुंदेली के अनेक आयोजनों में सफलतापूर्वक मंच का संचालन कर चुकी हैं।
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( दैनिक, आचरण दि. 24.09.2018)
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