Monday, December 28, 2020

कोरोना को साइड इफेक्ट | बुंदेली व्यंग्य | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

बुंदेली व्यंग्य

            कोरोना को साइड इफेक्ट 

                  -डॉ. वर्षा सिंह

                    

     मुदके दिनां से बड्डे भैय्याजी की कछू खबरई सी नई मिली हती, सो हमने सोसी के भैय्याजी को कछू हाल-चाल ले लौ चइये। अब जे कोरोना काल में कहूं आबे-जाबे की तो हो नई रयी है, सो हमने भैय्याजी खों मोबाईल लगा लओ। दो- तीन बेर मोबाईल लगाबे के बाद भैय्या जी की बानी सुनबे खों मिल पाई। भौतई दुखी सी आवाज में भैय्याजी बोले - 'काय बिन्ना, कैसे याद करो।' हमने कही- 'भैय्याजी, कुल्ल दिनन से आपकी कछू खबरई ने मिली हती सो हमने मोबाईल लगा लौ। भौजी और मोड़ा- मोड़े सबई को हाल जानने रहो।'

     भैय्याजी तनक खिजाने से बोले - 'सबई मजे में हैं। तुमाई भौजी हमाई जेबें खाली कराबे में जुटी हैं… और का.. बाकी सबई हाल ठीक है। तुम अपनी सुनाओ बिन्ना। छोटी बिन्ना और अम्मा के हाल सुनाओ।'

'इते को हाल भी ठीक है भैय्याजी, लेकन जे जेबें खाली कराबे वाली बात हमें समझ में नईं आई। आप भौजी के लाने कहबो का चाहत हो।' -हमने पूछी।

'अरे बिन्ना, कछू ने पूछो… कोरोना को साइड इफेक्ट हो रओ है।'

'का कै रये भैय्याजी ? भगवान की किरपा से आप औरन खों अबे लों कोरोना तो भओ नईंया, फिर जे साइड इफेक्ट कैसे हो गओ? हें, भैय्याजी, हमाई समझ में तो कछू नईं आ रओ है आप कह का रये हो ?' हमने अचकचा के पूछी।

'हम जे कहबो चाहत हैं बिन्ना, अभईं दुपारी खों हमाए दोरे पे एक कूरियर वालो आओ। बा तुमाई भौजी खों नाम ले के कहन लगो के मालक उन्हें बुला ल्यौ, उनखों पार्सल आओ है। हमने कूरियर वाले से पूछी के कैसो पार्सल? कहां को पार्सल? कौन ने मंगाओ ? तो ऊने तुमाई भौजी खों नाम लौ औ कहन लगे के ओन लाईन सामान मंगाओ है, ओई समान आओ है पार्सल में।'

    भैय्याजी आगे को किसा बतान लगे -' बिन्ना, हमने तुमाई भौजी को बुलाओ सो वे कहन लगी के हओ, हमने मंगाओ है सामान। पईसा-धेला दे दो कूरियर वाले खों। तुमाई भौजी की बात सुनके हमने कूरियर वाले से पूछी के कित्ते पईसा चाहत हो। सो वो बोलो के - सत्रा हजार दौ सौ आठ - सुनतई हम भौंचक रह गए बिन्ना। हमने कही ऐसो कोन सो सामान है सत्रा हजार दौ सौ आठ रुपईया को ? कूरियर वालो तो चुप रहो, तुमाई भौजी बोलीं के मेकअप को सामान है।'

     भैय्याजी आगे बोले - 'बिन्ना हमने तुमाई भौजी से पूछी के ऐसो कैसो मेकअप को सामान है वो भी सत्रा हजार दौ सौ आठ रुपईया को? तो वो आंखें तरेर के बोलीं के का सब इतई पूछ लै हो, कछू तो खयाल करो। जो बिचारो ठाढ़ो है, पहले ई कूरियर वाले खों पईसा दे के पार्सल ल्यौ फिर करियो इंक्वायरी। जे सुन के कूरियर वालो मुस्क्यान लगो। सो हमने भी सोची के अब ऊके आंगरे हमाई धुलाई को सीन काय क्रियेट होय। सो हमने जल्दी सो ऊको डिजिटल पेमेन्ट करो, काय से के इत्ते पईसा अब घरे तो धरे ना हते।'

      भैय्याजी की जे बात सुन के हमसे भी रहाई ने परी। हमने भैय्याजी से पूछी 'भौजी ने ओन लाईन काय मंगाओ मेकअप को सामान ? कोरोना काल में बिगैर मास्क पहने ऐसो कहूं आबो- जाबो तो होत नईंया। मास्क में मों तो दिखात नईंया अकेले तनक-मनक आंखें भरई दिखात हैं, फिर उनके लाने मेकअप की का जरूरत ?'

     हमाई बात सुनके भैय्याजी बोले -'बिन्ना जेई तो है। कोरोना को साईड इफेक्ट। हमने भी जा बात तुमाई भौजी से पूछी हती। उनको जवाब हतो के अगले हफ्ता मंझले भैय्या की बिटिया की शादी है। उते डिनर खाते टेम मों पे से मास्क हटाने परहे। सो पूरो मों दिखाई देहे। औ फेर डिस्टेंसिंग में सोई मास्क खोलो जा सकत है। दो गज की दूरी से भी मों दिखाई देहे। ईसे मेकअप जरूरी है। और ओन लाईन ऐई से सामान मंगाओ है के तुमई कहत हो के कोरोना से बचबे के लाने घर से बाहरे ने जाओ। '

भैय्याजी आगे बोले -' बिन्ना, तुमाई भौजी पहले लोकल मार्केट में सस्तो मेकअप को सामान, कपड़ा-हुन्ना लेत हतीं, अब कोरोना काल में हरेक चीज में उनकी ब्रांडेड सामान की मंहगी ओन लाईन खरीदी होन लगी है....और हमाई जेबें खाली होन लगी हैं, बिन्ना जेई है कोरोना को साईड इफेक्ट'

    भैय्याजी की बात सुन के हम सोस में पड़ गए - हे भगवान, जे तो हमने सोची ने हती, के कोरोना काल में जे भी हो रहो है।

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Tuesday, December 22, 2020

अख़लाक़ सागरी : जिनके लिए मंदिर की घंटियां भी अज़ान थीं | डाॅ. वर्षा सिंह | पुण्यतिथि पर विशेष | लेख

Dr. Varsha Singh
प्रिय ब्लॉग पाठकों, आज  दिनांक 22.12.2020 को सागर नगर के अंतरराष्ट्रीय ख़्यातिप्राप्त मशहूर शायर मरहूम अख़लाक़ सागरी की दूसरी पुण्यतिथि पर "दैनिक भास्कर" समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ है मेरा यह विशेष लेख "अख़लाक़ सागरी : जिनके लिए मंदिर की घंटियां भी अज़ान थीं"
हार्दिक आभार दैनिक भास्कर 🙏

नमन है सागर के गौरव मरहूम शायर अख़लाक़ सागरी जी को 🙏💐🙏

मरहूम शायर अख़लाक़ सागरी की पुण्यतिथि पर डॉ. वर्षा सिंह का दैनिक भास्कर में प्रकाशित लेख

मेरा यह लेख ब्लॉग पाठकों की पठन- सुविधा के लिए जस का तस प्रस्तुत है :- 

22 दिसम्बर पुण्यतिथि पर विशेष:-


 अख़लाक़ सागरी : जिनके लिए मंदिर की घंटियां भी अज़ान थीं

         - डाॅ. वर्षा सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार


इश्क़ में हम तुम्हें क्या बताएं, किस क़दर चोट खाये हुए हैं।

मौत ने उनको मारा है और हम, ज़िन्दगी के सताये हुए हैं।

ऐ लहद अपनी मिट्टी से कह दे, दाग़ लगने न पाये कफ़न को,

आज ही हमने बदले हैं कपड़े, आज ही हम नहाये हुए हैं।

इस ग़ज़ल से दुनिया भर में छा जाने वाले सागर के शायर अख़लाक़ सागरी किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं। इस ग़ज़ल के पीछे एक दिलचस्प वाक़या रहा। जब वे कक्षा 11वीं में पढ़ते थे, तब उन्हें एक लड़की से प्रेम हो गया। लेकिन उस लड़की ने उन्हें धोखा दे दिया। इससे उनके दिल को गहरी चोट पहुंची और यह ग़ज़ल बन गई।

अख़लाक़ सागरी की ग़ज़लों को बालीवुड के नामचीन गायकों के साथ ही पाकिस्तानी गायक अताउल्ला खां ने भी अपनी आवाज़ दी है। अपने समय में मुशायरों में जान डालने वाले अख़लाक़ सागरी क़ौमी एकता के प्रबल समर्थक थे। मुझे याद है सतना जिले के जैतवारा में हुए कविसम्मेलन की वह घटना, मैं भी उस कविसम्मेलन में काव्यपाठ के लिए आमंत्रित थी। सभी कवियों के ठहरने की व्यवस्था मंदिर के पास एक घर में की गई थी। शाम की चाय के समय मंदिर में जब आरती की घंटियां बजीं तो एक बददिमाग़ कवि ने अख़लाक़ साहब को छेड़ते हुए पूछा- ‘‘आप को इस आवाज़ से परेशानी तो नहीं हो रही है?’’ इस पर अख़लाक़ साहब हंस कर बोले- ‘‘ये आवाज़ तो मेरे लिए पाक अज़ान की तरह है, भला मुझे इससे क्या परेशानी होगी’’ उत्तर सुन कर पूछने वाला कवि अपना सा मुंह ले कर रह गया।

इश्क़ मुहब्बत की शायरी के साथ ही अख़लाक़ सागरी ने मुफ़लिसी पर भी गजलें कही। उनके ये मिसरे बेहद मशहूर हैं -

फुटपाथ पर पड़ा था वो कौन था बेचारा।

भूखा था कई दिन का दुनिया से जब सिधारा।

कुर्ता उठा के देखा, तो पेट पर लिखा था

सारे ज़हां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।


मशहूर शायर अख़लाक़ सागरी ने उर्दू शायरी को एक अलग ही ज़मीन दी। आज उनके पुत्र अयाज़ सागरी अपने पिता की इस विरासत को न केवल सहेज रहे हैं बल्कि अपनी शायरी से समृद्ध कर रहे हैं।

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Saturday, December 19, 2020

सागर: साहित्य एवं चिंतन | पुनर्पाठ 14 | हिन्दी संत साहित्य पर बौद्ध धर्म का प्रभाव | पुस्तक | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

प्रिय मित्रों, स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरे कॉलम "सागर : साहित्य एवं चिंतन " में पुस्तकों के पुनर्पाठ की श्रृंखला के अंतर्गत चौदहवीं कड़ी के रूप में प्रस्तुत है - सागर नगर की प्रतिष्ठित वरिष्ठ लेखिका, कवयित्री एवं कथाकार डॉ. विद्यावती "मालविका" की पुस्तक "हिन्दी संत साहित्य पर बौद्ध धर्म का प्रभाव" का पुनर्पाठ।
यहां यह उल्लेखनीय है कि डॉ. विद्यावती "मालविका" मेरी माता जी हैं।
हार्दिक आभार आचरण 🙏
     
सागर : साहित्य एवं चिंतन

     पुनर्पाठ : हिन्दी संत साहित्य पर बौद्धधर्म का प्रभाव

                                -डॉ. वर्षा सिंह
                                       
      इस बार पुनर्पाठ के लिए मैंने चुना है एक ऐसी पुस्तक को जो आज भी शोधार्थियों एवं पाठकों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है। इस पुस्तक का नाम है - ‘‘हिन्दी संत साहित्य पर बौद्धधर्म का प्रभाव’’, जिसकी लेखिका हैं डाॅ. विद्यावती ‘मालविका’। इस पुस्तक का प्रथम संस्करण हिन्दी प्रचारक पुस्तकालय प्रकाशन, वाराणसी, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित किया गया था। यह मूलतः शोध ग्रंथ है, जिस पर लेखिका विद्यावती ‘मालविका’ को आगरा विश्वविद्यालय द्वारा पी.एचडी. की उपाधि प्रदान की गई थी। 

डॉ. विद्यावती ‘मालविका’ सागर नगर की एक ऐसी साहित्यकार हैं जिनका साहित्य-सृजन अनेक विधाओं में है। जैसे- कहानी, एकांकी, नाटक एवं विविध विषयों पर शोध प्रबंध से ले कर कविता और गीत तक विस्तृत है। लेखन के साथ ही चित्रकारी के द्वारा भी उन्होंने अपनी मनोभिव्यक्ति प्रस्तुत की है। सन् 1928 की 13 मार्च को उज्जैन में जन्मीं डॉ. विद्यावती ‘मालविका’ ने अपने जीवन के लगभग 6 दशक बुन्देलखण्ड में व्यतीत किए हैं, जिसमें 32 वर्ष से अधिक समय से वे मकरोनिया, सागर में निवासरत हैं। डॉ. ‘मालविका’ को अपने पिता संत ठाकुर श्यामचरण सिंह एवं माता श्रीमती सुमित्रा देवी ‘अमोला’ से साहित्यिक संस्कार मिले। पिता संत श्यामचरण सिंह एक उत्कृष्ट साहित्यकार एवं गांधीवादी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। डॉ. ‘मालविका’ ने 12-13 वर्ष की आयु से ही साहित्य सृजन आरम्भ कर दिया था। स्वाध्याय से हिन्दी में एम.ए. करने के उपरांत आगरा विश्वविद्यालय से उन्होंने ‘‘हिन्दी संत साहित्य पर बौद्ध धर्म का प्रभाव’’ विषय में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। 

इस कालजयी पुस्तक की मूल्यवत्ता के संदर्भ में शांतिस्वरूप बौद्ध का यह कथन उद्धृत किया जा सकता है कि ‘‘जब सन् 1966 में यह मौलिक ग्रंथ प्रकाशित हुआ तो पुस्तक की शोधपरक और संदर्भ- सम्मत सामग्राी और प्रमाणिक उद्धरणों के कारण इस पुस्तक ने हिन्दी बौद्ध जगत को अपनी ओर न केवल आकृष्ट किया अपितु उन्हें विदुषी लेखिका के बौद्धिक सामथ्र्य के समक्ष नतमस्तक होना पड़ा।’’ 

संस्कृत एवं जैन धर्म के विद्वान डाॅ. भागचंद जैन ‘‘भागेन्दु’’ ने इस पुस्तक के महत्व पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि - ‘‘संत साहित्य और बौद्ध धर्म के पारस्परिक संबंधों को सूक्षमता से समझने के लिए इस पुस्तक को पढ़ना आवश्यक है।’’


हिन्दी साहित्य में संत साहित्य का बहुत महत्व है। इसके अंतर्गत कबीर, रैदास, दादू, नामदेव जैसे संत कवियों का साहित्य आता है। संत साहित्य की यह विशेषता रही कि उसमें भक्ति से कहीं अधिक जन कल्याण की भावना रही। कबीर और रैदास जैसे संतों ने पाखण्डमुक्त जीवन और सामाजिक न्याय के पक्ष में आवाज उठाई। बौद्ध धर्म भी पाखण्ड को त्याग कर अस्पृश्यता से दूर सामाजिक न्याय की बात करता है। अतः ‘‘हिन्दी संत साहित्य पर बौद्ध धर्म का प्रभाव’’ पुस्तक में संतों के विचारों और बौद्ध धर्म के चिन्तन - दर्शन के पारस्परिक संबंधों को समूचे विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। मूलतः यह पुस्तक एक शोधग्रंथ है जिसमें शोधार्थी लेखिका विद्यावती ‘मालविका’ की अपने शोध के प्रति स्पष्टता और तार्किकता अपने आप में अद्भुत है। इस प्रकार की दृढ़ता और स्पष्टता वर्तमान शोधार्थियों में विरले ही दिखाई देती है। डाॅ. विद्यावती ‘मालविका’ को अपने शोध कार्य में जिन परेशानियों का सामना करना पड़ा और जिस प्रकार उनके कार्य को विश्व के प्रख्यात विद्वानों का मार्गदर्शन मिला वह भी अपने आपमें रोचक है।        

   इस पुस्तक भूमिका की भूमिका में डाॅ. विद्यावती ‘मालविका’ ने लिखा है कि -‘‘प्रस्तुत प्रबंध का उद्देश्य मध्ययुगीन हिन्दी संत साहित्य पर बौद्ध धर्म के प्रभाव का अध्ययन करना है। इस प्रकार के अध्ययन की आवश्यकता रही है। मुझे इस प्रकार के अध्ययन करने की सर्वप्रथम प्रेरणा ठाकुर रणमत सिंह डिग्री काॅलेज, रीवा के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष महावीर प्रसाद अग्रवाल जी से प्राप्त हुई थी। उन्हीं के परामर्श के अनुसार मैंने रूपरेखा बना कर जैन डिग्री काॅलेज, बड़ौत के हिन्दी तथा संस्कृत विभाग के अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध विद्वान डाॅ. भरत सिंह उपाध्याय के पास भेजा। उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक मेरा निर्देशक बनना स्वीकार कर लिया और रूपरेखा के संबंध में महतवपूर्ण सुझावों के साथ अध्ययन की दिशा का भी निर्देश किया, किन्तु कुछ ही दिनों के पश्चात् उनकी नियुक्ति दिल्ली के हिंदू काॅलेज में हो गई। इसी बीच आगरा विश्वविद्यालय से सूचना मिली कि मुझे किसी अन्य निर्देशक की देख-रेख में अपना कार्य करना होगा। मेरे सामने यह विकट परिस्थिति उत्पन्न हो गई। मेरा विषय ऐसा था कि जिसका निर्देशक कोई बौद्ध विद्वान ही हो सकता था। पहले तो मैं विषय की गंभीरता देखते हुए हतोत्साहित हो गई, किन्तु अपने परमपूज्य पिता ठाकुर श्रद्धेय श्यामचरण सिंह जी के आदेशानुसार इस संबंध में अपनी कठिनाइयों को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बौद्ध धर्म के प्रकाण्ड विद्वान पूज्य भिक्षु धर्मरक्षित जी के सामने रखा। उन्होंने मुझ पर दया कर के निर्देशक बनना स्वीकार कर लिया और आगरा विश्वविद्यालय से उनके निर्देशन में शोधकार्य करने की स्वीकृति भी मिल गई। जिसके लिए युवराजदत्त डिग्री काॅलेज, ओयल के पूर्व प्रिंसिपल ठाकुर जयदेव सिंह जी की महती अनुकंपा सहायक हुई।’

डाॅ. विद्यावती ‘मालविका’ को शोधकार्य में मूलगंध कुटी विहार पुस्तकालय, सारनाथ तथा महाबोधी सभा, सारनाथ के मंत्री भदंत संघरत्न नायक स्थविरजी के साथ ही राहुल सांस्कृत्यायन ने भी हरसंभव सहयोग किया था। डाॅ. ‘मालविका’ ने अपनी इस पुस्तक की भूमिका में लिखा है कि ‘‘प्रणामी धर्म के ग्रंथों का अध्ययन करने में अखिल भारतीय प्रणामी धर्म सेवा समाज, पद्मावतीपुरी, पन्ना के मंत्री महोदय से बड़ी सहायता प्राप्त हुई। उन्होंने अपने संप्रदाय के मुद्रित-अमुद्रित सभी ग्रंथों को मुझे पढ़ने की अनुमति दी, जबकि उन्हें केवल प्रणामी लोगों के लिए ही पढ़ने की अनुमति है।’’

"हिन्दी संत साहित्य पर बौद्ध धर्म का प्रभाव" - लेखिका डॉ. विद्यावती "मालविका", पुस्तक के प्रथम संस्करण का मुखावरण पृष्ठ

यूं भी किसी भी धर्म विशेष के बारे में समुचित जानकारी के बिना उससे संबंधित विषयों पर लिखा नहीं जा सकता है और लिखा भी नहीं जाना चाहिए। डाॅ. विद्यावती ‘मालविका’ की इस पुस्तक को पढ़ कर स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने जिन संतों के विचारों के बारे में लिखा, पहले उनके बारे में तथा उनसे संबंधित धर्मों के बारे में विस्तार से अध्ययन किया। इस पुस्तक को पढ़ कर समूची उत्तर भरतीय संत परम्परा को भली -भांति समझा जा सकता है। पुस्तक का सम्पूर्ण कलेवर छः भागों में विभक्त है। पहले अध्याय में ‘‘बौद्ध धर्म का भारत में विकास’’ में पांचवीं शताब्दी ई.पू. से तेरहवीं श्ताब्दी ई.पू. तक बौद्ध धर्म के विकास का विवरण दिया गया है। इस अध्याय के प्रथम खण्ड में ‘‘स्थविरवाद बौद्ध धर्म’’ के अंतर्गत प्राग्बौद्धकालीन भारतीय समाज, धर्म अैर दर्शन का परिचय देते हुए बुद्ध का आविर्भाव, बुद्ध की जीवनी, बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांत, संघ का महत्व, भिक्षु-भिक्षुणी संघ, जनता पर उनका प्रभाव, स्त्रियों का बौद्ध धर्म में स्थान के बारे में विस्तृत विवरण दिया गया है। इसी खण्ड में बौद्ध धर्म के ऐतिहासिक दिग्दर्शन के रूप में स्थविरवाद को सामने रखा गया है। प्रथम अध्याय के दूसरे खण्ड ‘‘महायान का उदय और विकास’’ में प्रथम संगीति, बुद्ध वचनों का संकलन, त्रिपिटक पालि का आकार, द्वितीय संगीति, अशोक के समय में तृतीय संगीति, महायान और हीनयान का पारस्परिक तथा सैद्धांतिक संबंध आदि के साथ ही विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रचार की जानकारी दी गई है।

पुस्तक के दूसरे अध्याय ‘‘संत मत के स्रोत और बौद्ध धर्म’’ में महायान का विकास, बौद्ध धर्म में तांत्रिक प्रवृत्तियों का प्रवेश, वज्रयान का अभ्युदय, सहजयान, सिद्धों का युग, सिद्धों का जनमानस पर प्रभाव, नाथ सम्प्रदाय का जन्म, बौद्ध धर्म की भित्ति पर सिद्ध और नाथ सम्प्रदाय से संत मत के उदय की जानकारी दी गई है। तीसरे अध्याय ‘‘पूर्वकालीन संत तथा उन पर बौद्ध धर्म  का प्रभाव’’ में जो बिन्दु शोध करके रखे गए हैं, वे हैं - पूर्वकालीन संतों का परिचय जिनमें हैं संत जयदेव, संत सधना, संत लालदेद, संत वेणी, संत नामदेव, संत त्रिलोचन आदि। इसके साथ ही बौद्ध धर्म से उनका संबंध तथा बौद्ध धर्म के तत्वों का विवेचन किया गया है। 

इस पुस्तक का चौथा अध्याय भी दो खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड है- ‘‘प्रमुख संत कबीर तथा बौद्ध धर्म का समन्वय’’। इस खण्ड में कबीर के जीवन वृतांत, उनके मत तथा कबीर के समय में बौद्ध धर्म की भारत में स्थिति की चर्चा की गई है। साथ ही कबीर की वाणियों पर बौद्ध विचार पर प्रकाश डालते हुए जिन बिन्दुओं की व्याख्या की गई है, वे हैं- बौद्ध धर्म का शून्यवाद ही कबीर के निर्गुवाद का आधार, विचार स्वातंत्र्य तथा समता में कबीर पर बौद्ध धर्म की छाप, कबीर की उलटवासियां सिद्धों की देन, सत्तनाम पालि भाषा के सच्च नाम का रूपांतर, कबीर की गुरु भक्ति सिद्धों और नाथों की परम्परा, कबीर की सहजसमाधि सिद्धों के सहजयान से उद्भूत, कबीर का हठयोग बौद्धयोग से प्राप्त, अवधूत बौद्ध धर्म के धूतांगधारी योगियों की प्रवृत्ति, सुरति शब्द स्मृति और निरति शब्द विरति के ही रूप, कबीर की शैली सिद्धों की शैली का अनुकरण, बौद्ध धर्म के विभिन्न तत्वों का कबीर साहित्य में अनुशीलन। इन बिन्दुओं में दिए गए सभी तथ्य उदाहरण दे कर प्रमाणिकता से सिद्ध किए गए हैं। चौथे अध्याय के दूसरे खण्ड में ‘‘कबीर के समसामयिक संत और उन पर बौद्ध धर्म का प्रभाव’’ शीर्षक के अंतर्गत कबीर के समकालीन संत सेन नाई, स्वामी रामानंद, राधवानंद, संत पीपा, संत रैदास, संत धन्ना, मीराबाई, झालीरानी तथा संत कमाल के साहित्य में बौद्ध विचारों के समन्वय को उदाहरण दे कर स्पष्ट किया गया है।

पांचवें अध्याय ‘‘सिख गुरुओं पर बौद्ध प्रभाव’’ में सिख धर्म के आदि गुरु नानकदेव का जीवन वृत्तंात, उनकी साधना तथा उनके बौद्ध देशों के भ्रमण का विवरण दिया गया है। डाॅ. विद्यावती ‘मालविका’ के अनुसार -‘‘गुरु नानक की वाणियों का अध्ययन करने से उन पर महायान बौद्ध धर्म का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। शून्य, शून्यसमाधि, अनाहत, दशमद्वार, शून्यमण्डल, सहजगुफा, निर्वाण, निरंजन, सत्यनाम, सहजावस्था, सुरति, कर्म-स्वकता, तीर्थव्रत आदि कर्मकाण्डों का निषेध, गुरु महात्म्य, ईश्वर की घट-घट व्यापकता, निर्वाणपद, ग्रंथप्रमाण का बहिष्कार, जातिवाद का त्याग.... इत्यादि बौद्ध धर्म के तत्व नानकवाणी में आए हुए हैं। इनमें से कुछ ऐसे हैं जो संतों से हो कर नानक तक पहुंचे थे और कुछ बौद्ध विद्वानों के सत्संग, सिद्धों, नाथों एवं वज्राचार्यों की धर्मचर्चा तथा बौद्ध देशों के भ्रमण से प्राप्त हुए थे। ’’ पांचवें अध्याय में ही सिख धर्म के अन्य गुरुओं तथा उनके विचारों का विवरण है। साथ ही श्री गुरुग्रंथ साहिब में बौद्ध मान्यताओं की जानकारी दी गई है।

पुस्तक के छठे एवं अंतिम अध्याय ‘‘संतों की परम्परा में बुद्ध वाणी और बौद्ध साधना का समन्वय’’  में दो खण्ड हैं। पहले खण्ड में संतों के सम्प्रदायों की जानकारी दी गई है जैसे - साध सम्प्रदाय, लालदार्स आर उनका सम्प्रदाय, दादूदयाल तथा उनकी शिष्य परम्परा, निरंजनी सम्प्रदाय, बावरी साहिबा और उनका पंथ, मलूकदास तथा उनका धर्म, बाबालाली सम्प्रदाय, प्रणामी सम्प्रदाय, सत्तनामी सम्प्रदाय, धरनीश्वरी सम्प्रदाय, दरियादासी सम्प्रदाय, शिवनारायणी सम्प्रदाय, चरणदासी सम्प्रदाय, गरीबदासी सम्प्रदाय, पानप सम्प्रदाय तथा रामसनेही सम्प्रदाय। इस खण्ड में जिन संतों का परिचय दिया गया है, उनमें प्रमुख हैं- रज्जबजी, सुन्दरदास, गरीबदास, हरिदास, प्रागदास, बीरूसाहब, यारीसाहब, केशवदास, बूलासाहब, गुलालसाहब, भीखासाहब, हरलालसाहब, गोविन्दसाहब, पल्टूसाहब, जगजीवनसाहब, घासीदास, बिहारी दरियादास, मारवाड़ी दरियादास आदि। दूसरे खण्ड में कुछ अन्य संतों और उनके विचारों का परिचय दिया गया है, जैसे - संत जम्भनाथ, संत शेख फरीद, संत सिंगाजी, संत भीखन, संत दीन दरवेश, संत बुल्लेशाह तथा संत बाबा किनाराम।

मेरे लिए यह अत्यंत सौभाग्य की बात है कि ‘‘हिन्दी संत साहित्य पर बौद्धधर्म का प्रभाव’’ पुस्तक की लेखिका डाॅ. विद्यावती ‘मालविका’ मेरी और मेरी बहन डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह की माता जी हैं और मेरे साथ ही शांतिविहार काॅलोनी, मकरोनिया, सागर में निवासरत हैं। उनके इस ग्रंथ को अनेक बार मैंने पढ़ा है और संत साहित्य को समझने का प्रयास किया है। हिन्दी साहित्य में संत परम्परा और बौद्ध धर्म के विचारों को जानने के लिए यह पुस्तक बारम्बार पढ़ने योग्य है। देश-विदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा अध्ययन केन्द्रों, शोधार्थियों, हिन्दी साहित्य एवं बौद्ध धर्म के अध्येताओं के बीच यह पुस्तक संदर्भ ग्रंथ के रूप में आज भी रुचिपूर्वक पढ़ी जाती है।     

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पुनर्पाठ : हिन्दी संत सहित्य पर बौद्ध धर्म का प्रभाव - डॉ. वर्षा सिंह


( दैनिक, आचरण  दि.19.12.2020)
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Tuesday, December 15, 2020

मेरे नाना संत श्यामचरण सिंह - 6 | डॉ. वर्षा सिंह

Dr Varsha Singh

प्रिय ब्लॉग पाठकों, 
कल मैंने अपने इस ब्लॉग "साहित्य वर्षा" में आप सब से साझा किए थे बौद्ध धर्म के प्रकांड विद्वान भिक्षु धर्मरक्षित जी द्वारा मेरे नाना जी संत श्यामचरण सिंह के जीवन एवं कृतित्व पर लिखी गई पुस्तक "संत श्यामचरण : जीवन तथा कृतित्व" के प्रथम संस्करण के अंश जिसके प्रकाशक थे ममता प्रकाशन, कबीर चौरा, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) और जिसका प्रथम संस्करण सन् 1964 में प्रकाशित हुआ था।
..... और आज शेयर कर रही हूं नाना संत श्यामचरण सिंह के सहित कुछ परिवारिक फोटो। 
आज हमारे बीच मेरे नाना श्रद्धेय संत श्यामचरण सिंह नहीं हैं। उनका निधन 11 जनवरी 1976 को पन्ना, मध्यप्रदेश में गया था। जबकि मेरे प्रिय मामा कमल सिंह "सरोज" का देहावसान सागर, मध्यप्रदेश में 20 जनवरी 2017 को हो चुका है। उन दोनों की सुखद स्मृतियां शेष हैं।

मध्य में मेरे नाना संत ठाकुर श्यामचरण सिंह, पीछे खड़े छोटे नाना ठाकुर प्यारेलाल सिंह, और नाना जी के मित्र की गोद में हैं मेरी माता जी डॉ. विद्यावती 'मालविका' 

मध्य में मेरे नाना संत ठाकुर श्यामचरण सिंह, पीछे खड़े बाएं से - मैं यानी डॉ. वर्षा सिंह, मामा जी कमल सिंह 'सरोज', माता जी डॉ. विद्यावती 'मालविका', बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, स्थान - हिरण बाग, पन्ना, मध्यप्रदेश (सन् 1974)

मध्य में मेरी माता जी डॉ. विद्यावती 'मालविका', साथ में बायीं ओर बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह एवं दाहिनी ओर मैं यानी डॉ. वर्षा सिंह .... और शरद के हाथों में है हमारी पालतू बिल्ली बिल्लोश, स्थान - हिरण बाग, पन्ना, मध्यप्रदेश (सन् 1974)


बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह एवं मैं यानी डॉ. वर्षा सिंह , स्थान - हिरण बाग, पन्ना, मध्यप्रदेश (सन् 1974)


Monday, December 14, 2020

मेरे नाना संत श्यामचरण सिंह - 5 | डॉ. वर्षा सिंह | संत श्यामचरण : जीवन तथा कृतित्व | भिक्षु धर्मरक्षित | पुस्तक

Dr Varsha Singh, Poetess and Author, Sagar M.P.


प्रिय ब्लॉग पाठकों, 

बौद्ध धर्म के प्रकांड विद्वान भिक्षु धर्मरक्षित जी द्वारा मेरे नाना जी संत श्यामचरण सिंह के जीवन एवं कृतित्व पर लिखी गई पुस्तक "संत श्यामचरण : जीवन तथा कृतित्व" के अंश यहां साझा कर रही हूं। दुर्भाग्यवश इस पुस्तक के कई पृष्ठ दीमकों द्वारा नष्ट किए जा चुके हैं।

प्रकाशक - ममता प्रकाशन, कबीर चौरा, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

प्रथम संस्करण का प्रकाशन वर्ष 1964

पांचवा अध्याय    

बौद्ध चिन्तन 

 पृष्ठ 67 से 82 तक


Sant Shyamcharan - Book of  Bhikshu Dharmarakshit

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मेरे नाना संत श्यामचरण सिंह - 4 | डॉ. वर्षा सिंह | संत श्यामचरण : जीवन तथा कृतित्व | भिक्षु धर्मरक्षित | पुस्तक

Dr Varsha Singh, Poetess and Author, Sagar M.P.

 

प्रिय ब्लॉग पाठकों, 

बौद्ध धर्म के प्रकांड विद्वान भिक्षु धर्मरक्षित जी द्वारा मेरे नाना जी संत श्यामचरण सिंह के जीवन एवं कृतित्व पर लिखी गई पुस्तक "संत श्यामचरण : जीवन तथा कृतित्व" के अंश यहां साझा कर रही हूं। दुर्भाग्यवश इस पुस्तक के कई पृष्ठ दीमकों द्वारा नष्ट किए जा चुके हैं।


प्रकाशक - ममता प्रकाशन, कबीर चौरा, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

प्रथम संस्करण का प्रकाशन वर्ष 1964


चौथा अध्याय पृष्ठ 52 

 एवं पृष्ठ 54 से 66 तक


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मेरे नाना संत श्यामचरण सिंह - 3 | डॉ. वर्षा सिंह | संत श्यामचरण : जीवन तथा कृतित्व | भिक्षु धर्मरक्षित | पुस्तक

 

Dr Varsha Singh, Poetess and Author, Sagar M.P.


प्रिय ब्लॉग पाठकों, 

बौद्ध धर्म के प्रकांड विद्वान भिक्षु धर्मरक्षित जी द्वारा मेरे नाना जी संत श्यामचरण सिंह के जीवन एवं कृतित्व पर लिखी गई पुस्तक "संत श्यामचरण : जीवन तथा कृतित्व" के अंश यहां साझा कर रही हूं। दुर्भाग्यवश इस पुस्तक के कई पृष्ठ दीमकों द्वारा नष्ट किए जा चुके हैं।


प्रकाशक - ममता प्रकाशन, कबीर चौरा, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

प्रथम संस्करण का प्रकाशन वर्ष 1964


तीसरा अध्याय पृष्ठ 42 से 51 तक


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