डॉ. विद्यावती "मालविका" 13.03.1928- 20.04.2021 |
Monday, April 26, 2021
अल्विदा मेरी मां डॉ. विद्यावती "मालविका" | डॉ.वर्षा सिंह
Tuesday, April 13, 2021
रानगिर की देवी हरसिद्धि | नवरात्रि की शुभकामनाएं । डॉ. वर्षा सिंह
Wednesday, April 7, 2021
ब्रह्मवादिनी | काव्य संग्रह | समीक्षा | गहोई दर्पण | डॉ. वर्षा सिंह
Dr. Varsha Singh |
प्रिय ब्लॉग पाठकों,
विगत दिनांक 05.04.2021 को ग्वालियर से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र 'गहोई दर्पण' में मेरी लिखी "ब्रह्म वादिनी' पुस्तक की समीक्षा प्रकाशित हुई है।
हार्दिक आभार 'गहोई दर्पण' 🙏
मैं बताना चाहूंगी कि श्री गहोई वैश्य प्रगतिशील समाज द्वारा ग्वालियर| से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र की यह विशेषता है कि इसमें गहोई समाज के व्यक्तियों के कार्य कलापों , उनकी उपलब्धियों आदि के बारे में विस्तृत जानकारी प्रकाशित की जाती है। चूंकि "ब्रह्मवादिनी" काव्य संग्रह की लेखिका डॉ सरोज गुप्ता गहोई समाज की हैं अतः उनकी पुस्तक पर मेरे द्वारा लिखी समीक्षा को "गहोई दर्पण" ने भी मेरी अनुमति से प्रकाशित किया है।
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Sunday, April 4, 2021
पानी बचाओ, झिन पानी बचाओ | बुंदेली वार्ता | डॉ. वर्षा सिंह
Dr. Varsha Singh |
पानी बचाओ, झिन पानी बचाओ
- डॉ. वर्षा सिंह
एक दिना बे हते जब हमई ओरें शान से कहत ते के -
बुंदेलन की सुनो कहानी, बुंदेलन की बानी में
पानीदार इते हैं सबरे, आग इते के पानी में
अब जे दिना आ गए हैं के पानीदार तो सबई हैं, पर पानी खों तरस रए। ताल, तलैया, कुआ, बावड़ी, बंधा-बंधान सबई सूखत जा रये। अपने बुंदेलखण्ड में पानी की कमी कभऊ ने रही। बो कहो जात है न, के -
इते ताल हैं, उते तलैया, इते कुआ, तो उते झिरैया।।
खेती कर लो, सपर खोंर लो, पानी कम न हुइये भैया।।
मगर पानी तो मानो रूठ गओ है। औ रूठहे काए न, हमने ऊकी कदर भुला दई। हमें नल औ बंधान से पानी मिलन लगो, सो हमने कुआ, बावड़ी में कचरा डालबो शुरू कर दओ। हम जेई भूल गए के जे बेई कुआ आएं जिनखों पूजन करे बगैर कोनऊ धरम को काम नई करो जात हतो। कुआ पूजबे के बादई यज्ञ-हवन होत ते। नई बहू को बिदा की बेरा में कुआ में तांबे को सिक्का डालो जात रहो और रस्ते में पड़बे वारी नदी की पूजा करी जात हती। जो सब जे लाने करो जात हतो के सबई जल के स्रोतन की इज्ज्त करें, उनको खयाल रखें।
पानी से नाता जोड़बे के लाने जचकी भई नई-नई मां याने प्रसूता को कुआ के पास ले जाओ जात है औ कहूं-कहूं मां के दूध की बूंदें कुआ के पानी में डरवाई जात हैं। काए से के जैसे मां अपने दूध से बच्चे को जिनगी देत है, ऊंसई कुआ अपने पानी से सबई को जिनगी देत है। सो, प्रसूता औ कुआ में बहनापो सो बन जात है। पर हमने तो मानो जे सब भुला दओ है। लेकिन वो कहो जात है न, सुबह को भूलो, संझा घरे आ जाए तो भुलो ने कहात आए। हमें पानी को मोल समझनई परहे। पानी नईं सो जिंदगानी नईं।
सो भैया, जे गनीमत आए के अब पानी बचाबे के लाने सबई ने कमर कस लई है। कुआ, बावड़ी, ताल, तलैया, चौपड़ा सबई की सफाई होन लगी है। जो अब लों आगे नई आए उनखों सोई आगे बढ़ के पानी बचाबे में हाथ बंटाओ चाइए। वाटर हार्वेस्टिंग से बारिश में छत को पानी जमीन में पोंचाओ, नलों में टोटियां लगाओ, कुआंं, बावड़ी गंदी ने करो औ पानी फालतू ने बहाओ फेर मजे से जे गीत गाओ-
पानी बचाओ, झिन पानी बचाओ ।
कुंइया, तलैया खों फेर के जगाओ।।
मैके ने जइयो भौजी, भैया से रूठ के
भैया जू, भौजी खों अब ल्यौ मनाओ।।
पांच कोस दूर जाके, पानी हैं ल्याई
अब इतइ अंगना में कुंइया खुदवाओ।।
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