Friday, August 28, 2020
सागर : साहित्य एवं चिंतन 71| डॉ. राजेश दुबे : कविता और व्यंग्य के साहित्यकार | डॉ. वर्षा सिंह
Friday, August 21, 2020
बुंदेलखंड में हरितालिका तीज | हरितालिका व्रत | डॉ. वर्षा सिंह
Saturday, August 15, 2020
1943 में हमें मार सकता था सिपाही | डाॅ विद्यावती ‘‘मालविका’’ | आज़ादी के संघर्ष से जुड़ा संस्मरण | डॉ. वर्षा सिंह
Thursday, August 13, 2020
बुंदेली लोकगीतों में स्वाधीनता का स्वर | स्वतंत्रता दिवस | डॉ. वर्षा सिंह
Wednesday, August 12, 2020
बुंदेली लोकगीतों में कृष्ण जन्मोत्सव | शुभ जन्माष्टमी | डॉ. वर्षा सिंह
प्रिय ब्लॉग पाठकों, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
आज दिनांक 12 अगस्त 2020 को हम सभी कृष्ण जन्माष्टमी पर्व मना रहे हैं। जी हां, हमसभी जानते हैं कि श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव भादों यानी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पूरे विश्व में उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। बुंदेलखंड इससे अछूता नहीं है। यहां के आयोजन मथुरा-वृंदावन की याद दिलाते हैं। मध्यप्रदेश के सागर, दमोह, पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी सहित उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड वाले ज़िलों में परम्परागत ढ़ंग से जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है।
संयोग देखिए कि इस वर्ष भी भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को दिन बुधवार ही है। बी.आर. चोपड़ा कृत दूरदर्शन पर "महाभारत" टीवी सीरियल का यह दृश्य प्रासंगिक है ।यह महाभारत नामक एक भारतीय पौराणिक काव्य पर आधारित धारावाहिक था और विश्व के सर्वाधिक देखे जाने वाले धारावाहिकों में से एक था। 94-कड़ियों के इस धारावाहिक का प्रथम प्रसारण 1988 से 1990 तक दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर किया गया था।
पन्ना मुख्यालय स्थित जुगल किशोर मंदिर, सागर स्थित देव बिहारी जी का मंदिर एवं वृंदावन बाग़ क्षेत्र श्रीकृष्ण भक्ति के प्राचीन स्थानों में प्रमुख हैं।
बुंदेली लोकगीतों में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का सुंदर वर्णन देखने को मिलता है।
यह लोकगीत देखें-
मथुरा में जन्मे नंद के कुमार...
खुल गई बेड़ी खुल गये किवाड़
जागत पहरुआ सो गयें द्वार। मथुरा...
गरजे ओ बरसे घटा घनघोर
ले के वासुदेव चले गोकुल के द्वार। मथुरा...
बाढ़ी वे जमुना आई चरणन लाग
छू के चरणाबिंद हो गई पार। मथुरा...
देवकी के मन में आनंद अपार
गोकुल में हो रहो मंगलचार। मथुरा...
इसी क्रम में यह बुंदेली लोकगीत भी बहुत गाया जाता है -
बधाये नन्द के घर आज, सुहाये नन्द के घर आज।
टैरो टैरो सुगर नहनिया, घर-घर बुलावा देय
बधाये...
अपने-अपने महलिन भीतर, सब सखि करती सिंगार
पटियां पारे, मांग संवारे, वेंदी दिपत लिलार।
बधाये...
आवत देखी सबरी सखियां, झपट के खोले किवाड़
बूढ़न-बड़ेन की पइयां पड़त हूं, छोटेन को परणाम।
बधाये...
बाबा नन्द बजारे जइयो, साड़ी सरहज खों ले आओ
पहिनो ओढो सबरी सखियां, जो जी के अंगे भाये।
बधाये...
पहिन ओढ़ ठांड़ी भई सखियां, मुख भर देतीं आशीष
जुग-जुग जिये माई तेरो कन्हैया, राखे सभी को मान।
बधाये...
बधाई के रूप में गाए जाने वाले इन गीतों में भक्ति के साथ ही वात्सल्य का सुंदर चित्रण है -
बधइयां बाजै माधौ जी के
गोकुल बाजें बृंदावन बाजें
और बाजे मथुरैया।
बारा जोड़ी नगाड़े बाजें
और बाजे शहनैया। बधइयां...
गोपी गावें ग्वाला बजावें
नाचें यशोदा मैया। बधइयां...
बहिन सुभद्रा बधाव ले आई
नित उठ अइये जेई अंगना।
बधइयां... नंद बाबा अंगनइयां।
यह बुंदेली लोकगीत अति लोकप्रिय है -
नंद घर बजत बधाए लाल हम सुनकें आए।
मथुरा हरि ने जनम लिया है,
गोकुल बजत बधाए। लाल हम...
कौना ने जाए जशोदा खिलाए,
बाबा नंद के लाल कहाए। लाल हम...
सोरा गऊ के गोबर मंगाए,
कंचन कलश धराये। लाल हम...
चंदन पटली धरायी जशोदा,
चौमुख दियल जलाये। लाल हम...
हीरालाल लुटाए यशोदा,
मनमोहन को कंठ लगाये। लाल हम...
नन्द घर बजत बधाए, लाल हम सुनकें आए।
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Monday, August 10, 2020
सागर : साहित्य एवं चिंतन | पुनर्पाठ 6 | गीतगीता | काव्य संग्रह | डॉ. वर्षा सिंह
प्रिय ब्लॉग पाठकों,
स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर : साहित्य एवं चिंतन " जिसमें पुस्तकों के पुनर्पाठ की श्रृंखला के अंतर्गत छठवीं कड़ी के रूप में प्रस्तुत है - सागर नगर के कवि डॉ. मनीष झा के काव्य संग्रह "गीतगीता" का पुनर्पाठ।
सागर : साहित्य एवं चिंतन
पुनर्पाठ : ‘गीतगीता’ काव्य संग्रह
-डॉ. वर्षा सिंह
इस बार पुनर्पाठ के लिए मैंने चुना है सागर के कवि डॉ. मनीष चंद्र झा की पुस्तक ‘गीतगीता’ को। श्रीमद्भगवद्गीता वर्तमान में धर्म से ज्यादा जीवन के प्रति अपने दार्शनिक दृष्टिकोण को लेकर भारत में ही नहीं विदेशों में भी लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही है। ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ है ही ऐसी कृति जिसने जीवन के बदलते मूल्यों में भी अपनी उपादेयता बनाए रखी है। इस कृति का दुनिया की अनेक भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। गद्य अनुवाद भी और पद्यानुवाद भी। अनुवादकार्य एक कठिन और चुनौती भरा कार्य है। अनुवादक के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है कि वह मूल पुस्तक के मर्म को भली-भांति समझे और फिर उसे उस भाषालालित्य के साथ प्रस्तुत अनूदित करे कि मूल पुस्तक का मर्म जस का तस रहे। अनुवादक के लिए यह भी जरूरी हो जाता है कि वह चयनित पुस्तक के कलेवर के साथ आत्मसंबंध स्थापित करे ताकि उसे भली-भांति समझ सके। अनुवादक के लिए अनुवाद करते समय आत्मसंयम बनाए रखना भी जरूरी होता है। वह अनुवाद में अपनी ओर से कोई भी कथ्य नहीं मिला सकता है, अन्यथा मूलकृति की अनूदित सामग्री की मौलिकता पर असर पड़ता है। किसी भी पुस्तक का गद्यात्मक अनुवाद तो कठिन होता ही है, उस पर पद्यानुवाद का कार्य तो और अधिक धैर्य, ज्ञान, सतर्कता और समर्पण की मांग करता है। पद्यानुवाद करने वाले के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि अनुवादक को इतना प्रचुर शब्द ज्ञान हो कि वह मूल के मर्म को काव्यात्मकता के साथ प्रस्तुत करने के लिए सही शब्द का चयन कर सके। जिससे मूल सामग्री अपने पूरे प्रभाव के साथ पद्यानुवाद में ढल सके। ‘गीतगीता’ ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ का पद्यानुवाद है। डॉ. मनीष चंद्र झा ने ‘गीता’ के श्लोकों को मुक्तछंद में नहीं बल्कि छंदबद्ध करते हुए दोहे और चैपाइयों में उतारा है। छंद अपने आप में विशेष श्रम मांगते हैं और यह श्रम डॉ. झा ने किया है।
महाभारत के 18 अध्यायों में से 1 भीष्म पर्व का हिस्सा है श्रीमद्भगवद्गीता । इसमें भी कुल 18 अध्याय हैं। 18 अध्यायों की कुल श्लोक संख्या 700 है। महाभारत का युद्ध आरम्भ होने के समय कुरुक्षेत्र में अर्जुन के नन्दिघोष नामक रथ पर सारथी के स्थान पर बैठ कर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ‘गीता’ का उपदेश किया था। इसी ‘गीता’ को संजय ने सुना और उन्होंने धृतराष्ट्र को सुनाया। गीता में श्रीकृष्ण ने 574, अर्जुन ने 85, संजय ने 40 और धृतराष्ट्र ने 1 श्लोक कहा है। कुरुक्षेत्र में जब यह ज्ञान दिया गया तब तिथि एकादशी थी। श्रीमद्भगवद्गीता का पहला श्लोक है-
धृतराष्ट्र उवाच:-
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय।।
इसे डाॅ. मनीष चंद्र झा ने इन शब्दों में अनूदित किया है-
कहि राजा धृतराष्ट्र हे संजय कहो यथार्थ।
धर्म धरा कुरुक्षेत्र में, जिन ठाड़े समरार्थ।।
मेरे सुत औ पांडु के, सैन्य सहित सब वीर।
कौन जतन करि भांति के, देखि बताओ धीर।।
इस पर संजय अपनी दिव्यदृष्टि से कुरुक्षेत्र का विवरण देना आरम्भ करते हैं-
संजय कहि देखि भरि नैना, व्यूह खड़े पांडव की सेना।
द्रोण निकट दुर्योंधन जाई, राजा कहे वचन ऐहि नाई।।
ऐसा सरल पद्यानुवाद किसी भी पाठक के मन-मस्तिष्क को प्रभावित कर के ही रहेगा। वस्तुतः कुरुक्षेत्र में जब कौरवों और पांडवों की सेना पहुंच गई तब महाराज धृतराष्ट्र ने संजय से पूछा, संजय मुझे अपनी दिव्य दृष्टि से ये बताओ कि कुरुक्षेत्र में क्या हो रहा है? संजय को भगवान कृष्ण ने दिव्य दृष्टि प्रदान की थी। यह दिव्य दृष्टि संजय को इसलिए दी थी कि वह धृतराष्ट्र को कुरुक्षेत्र में हुई घटनाओ का पूरा वर्णन बता सके।
‘‘श्रीमद्भगवद्गीता’’ का महत्व आज भी प्रसंगिक है। आज के उपभोक्तावादी युग में व्यक्ति कोई भी काम करने से पहले उसका अच्छा परिणाम पाने की कामना करने लगता है और इस चक्कर में वह अपना संयम गवां बैठता है। किन्तु जब अच्छा परिणाम नहीं मिलता है तब वह हताश हो कर गलत कदम उठाने लगता है। अतः आज के वातावरण में ‘गीता’ का यह सुप्रसिद्ध श्लोक मार्गदर्शक का काम करता है-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि ।।
इस श्लोक का सुंदर पद्यानुवाद डॉ. मनीष चंद्र झा ने इन शब्दों में किया है-
कहि प्रभु फल तजि कामना, कर्म करे निष्काम।
संयासी योगी वही, नहिं अक्रिय विश्राम।।
इसी तरह वर्तमान जीवन में दिखावा इतना अधिक बढ़ गया है कि मन की शांति ही चली गई है। यह भी मिल जाए, वह भी मिल जाए की लालसा व्यक्ति को निरन्तर भटकाती रहती है। आज युवा पीढ़ी कर्मशील मनुष्य नहीं बल्कि ‘पैकेज’ में कैद दास बनती जा रही है। दुख की बात यह है कि उन्हें इस दासत्व के मार्ग में माता-पिता और अभिभावक ही धकेलते हैं। जबकि ऐसा करके वे अपने बुढ़ापे का सहारा भी खो बैठते हैं। इस संबंध में ‘‘श्रीमद्भगवद्गीता’’ में कहा गया है -
विहाय कामान्यः कर्वान्पुमांश्चरति निस्पृहः।
निर्ममो निरहंकार स शांति मधि गच्छति।।
अर्थात् मन में किसी भी प्रकार की इच्छा व कामना को रखकर मनुष्य को शांति प्राप्त नहीं हो सकती। इसलिए शांति प्राप्त करने के लिए सबसे पहले मनुष्य को अपने मन से इच्छाओं को मिटाना होगा। तभी मनुष्य को शांति प्राप्त होगी। डॉ. मनीष चंद्र झा के शब्दों में इसी भाव को देखिए -
विषयन इन्द्रिन के संयोगा, जे आरम्भ सुधा सम भोगा।
अंत परंतु गरल सम जेकी, वह सुख राजस कहहि विवेकी।।
आज ‘‘श्रीमद्भगवद्गीता’’ के महत्व को सभी स्वीकार रहे हैं। जीवन को सही दिशा देने वाली ‘‘श्रीमद्भगवद्गीता’’ का सरल भाषा में पद्यानुवाद कर डॉ. मनीष चंद्र झा ने अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य किया है। उन्होंने ‘गीता’ को सामान्य बोलचाल की भाषा में अनूदित कर सामान्य जन के लिए ‘गीता’ के मर्म को गेयता के साथ आसानी से समझने योग्य बना दिया है। इसीलिए ‘गीतगीता’ महत्वपूर्ण पुस्तक है और बार-बार पढ़े जाने योग्य है।
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( दैनिक, आचरण दि.10.08.2020)
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Saturday, August 8, 2020
हलषष्ठी | बलदेव जन्मोत्सव | डॉ. वर्षा सिंह
नीलाचलनिवासाय नित्याय परमात्मने ।
बलभद्रसुभद्राभ्यां जगन्नाथाय ते नमः ।।
भगवान जगन्नाथ अर्थात् श्रीकृष्ण के साथ उनके अग्रज बलभद्र एवं बहन सुभद्रा को भी स्मरण नमन किया जाता है।
बलभद्र, बलराम, बलदेव अथवा बलदाऊ जी का जन्म भाद्र मास के कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि को हुआ था अतः भाद्र मास के कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि को हरछठ मनाया जाता है। इस व्रत - त्यौहार को हलषष्ठी, हलछठ , हरछठ व्रत, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ, ललही छठ, कमर छठ, या खमर छठ भी कहा जाता है। इस दिन को बलराम जयंती भी कहा जाता है। कुछ लोग बलराम जी को भगवान विष्णु का आठवां अवतार मानते हैं। जबकि कुछ इसके विपरित यह मानते हैं कि बलराम जी भगवान विष्णु के शेषनाग के अवतार हैं। जो हमेशा भगवान विष्णु की सेवा में रहते हैं।
हलषष्ठी की प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। दरिद्रता के कारण घर-घर दूध बेचने को मजबूर थी। एक दिन उसकी संतान जन्म लेने वाली थी। लेकिन घर में दूध-दही बेचने के लिए रखा था। उसने सोचा अगर बच्चा हो गया तो वह दूध बेचने नहीं जा पाएगी। इसलिए वह घर से दूध बेचने के लिए निकल गई। वो गली-गली घूम कर दूध बेच रही थी। अचानक उसे प्रसव पीड़ा हुई तो वो झरबेरी के पेड़ के नीचे बैठ गई। वहीं उसने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। लेकिन उसके पास अभी बेचने के लिए दूध-दही बचा हुआ था। इसलिए वो अपने पुत्र को झरबेरी के पेड़ के नीचे छोड़ कर दूध बेचने के लिए चली गई। दूध नहीं बिक रहा था तो उसने सबको भैंस का दूध यह बोलकर बेच दिया कि यह गाय का दूध है। वह हलषष्ठी का दिन था। बलराम जी ग्वालिन के झूठ के कारण क्रोधित हो गए। झरबेरी के पेड़ के पास ही एक खेत था। वहां किसान अपने हल जोत रहा था। तभी अचानक हल ग्वालिन के बच्चे को जा लगा। हल लगने से उसके बच्चे के प्राण चले गए। ग्वालिन झूठ बोलकर दूध बेच कर खुश होते हुए आई। देखा तो बालक में प्राण नहीं थे। ग्वालिन को समझ आया कि उसने गांव वालों के साथ छल किया। उन्हें झूठ बोलकर भैंस का दूध गाय के दूध के दामों पर दिया है। इसलिए ही उसके पुत्र के साथ ऐसा हुआ। ग्वालिन रोती हुई वापस गांव गई। सभी गांव वालों को सच बताकर उनसे माफी मांगी। साथ ही भगवान बलराम से प्रार्थना की कि आज के दिन तो लोग पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत रखते हैं। आप मेरे पुत्र को मुझसे न छींने। बलराम जी ने उसके प्रायश्चित को स्वीकारा। इसके फल से उसका बेटा जीवित हो गया। इसीलिए महिलाएं अपने पुत्रों के दीर्घायु होने की कामना सहित हलषष्ठी का व्रत - पूजन करती हैं।
महिलाएं संतान की लंबी आयु के लिए हरछठ का व्रत रखती हैं। यह पूजन सभी पुत्रवती महिलाएं करती हैं। इस व्रत को विशेष रूप से पुत्रों की दीर्घ आयु और उनकी सम्पन्नता के लिए किया जाता है। इस व्रत में महिलाएं प्रति पुत्र के हिसाब से छह छोटे मिट्टी या चीनी के वर्तनों में पांच या सात भुने हुए अनाज या मेवा भरतीं हैं। जारी (छोटी कांटेदार झाड़ी) की एक शाखा ,पलाश की एक शाखा और नारी (एक प्रकार की लता ) की एक शाखा को भूमि या किसी मिटटी भरे गमले में गाड़ कर पूजन किया जाता है। महिलाएं पड़िया वाली भैंस के दूध से बने दही और महुवा (सूखे फूल) को पलाश के पत्ते पर खा कर व्रत का समापन करतीं हैं।
भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का अस्त्र हल होने की वजह से महिलाएं हल का पूजन करती है। महिलाएं तालाब बनाकर उसके चारो ओर छरबेड़ी, पलास और कांसी लगाकर पूजन करती हैं। साथ ही लाई, महुआ, चना, गेहूं चुकिया में रखकर प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है। हरछठ में बिना हल लगे अन्न और भैंस के दूध का उपयोग किया जाता है। इसके सेवन से ही व्रत का पारण किया जाता है।
मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित पन्ना ज़िला मुख्यालय में श्रीकृष्ण भगवान के अग्रज बलदाऊ का जन्मदिन हलछठ का पर्व अनूठे अंदाज में मनाया जाता है। इस मौके पर यहां के भव्य श्री बल्देव जी मंदिर को विशेष तौर पर सजाया जाता है। पन्ना में इस विशाल मंदिर का निर्माण तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा रूद्रप्रताप सिंह ने 143 वर्ष पूर्व 1876 में करवाया था।
बल्देव जी का मंदिर पूर्व और पश्चिम की स्थापत्य कला का अनूठा संगम है। बाहर से देखने पर यह मन्दिर लन्दन के सेन्टपॉल चर्च का प्रतिरूप नजर आता है। मन्दिर में प्रवेश हेतु 16 सोपान सीढ़ी, 16 झरोखे, 16 लघु गुम्बद व 16 स्तम्भ पर विशाल मंडप है।
इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते कल 9 अगस्त 2020 को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए हलषष्ठी के दिन दोपहर 12.00 बजे श्री बल्देव जी मन्दिर, पन्ना सहित सागर आदि पूरे बुंदेलखंड में भगवान श्री हलधर का जन्म दिन हलछठ के रूप में मनाया जाएगा।