From left : Rajesh Joshi, Dr. (Miss) Sharad Singh & Dr. Varsha Singh |
समकालीन कविता के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर राजेश जोशी दिनांक 18.09.2018 को मेरे शहर सागर म.प्र. में मौज़ूद थे। अवसर था शहर की नामचीन संस्था बुनियाद सांस्कृतिक समिति, सागर द्वारा आयोजित विख्यात कवि राजेश जोशी का एकल काव्य-पाठ एवं डॉ. छबिल कुमार मेहेर द्वारा संपादित "कालजयी मुक्तिबोध" और "राजेश जोशी संचयिता" का विमोचन कार्यक्रम।
राजेश जोशी की उपस्थिति के मायने हैं हवाओं में कविता के ध्वनित होने की हलचल को महसूस करना। एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा, नेपथ्य में हंसी, दो पंक्तियों के बीच, चांद की वर्तनी - इन पांच पुस्तकों में हिलोरें लेती कविता की मुखरिता से कितनी ही दफ़ा रू-ब-रू हो चुकी हूं मैं, लेकिन स्वयं कवि के मुख से निकली कविता के रसास्वादन की बात ही कुछ और होती है।
हां, इस एकल काव्यपाठ के दौरान राजेश जोशी ने अपनी उस कविता का पाठ भी किया जिसने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया है.....
सुबह सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण के तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?
क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आंगन
खत्म हो गए हैं एकाएक
तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्यादा यह
कि हैं सारी चीज़ें हस्बमामूल
पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजरते हुए
बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।
राजेश जोशी को सुनना और उनसे मिल कर साहित्यिक विमर्श करना एक अविस्मरणीय अनुभव था।
- डॉ. वर्षा सिंह
©Dr.Varsha Singh
No comments:
Post a Comment