Dr. Varsha Singh |
धरती हमसे पूछ रही है क्यों इतना बेगानापन।
लगातार क्यों करते जाते, रे मानव मेरा दोहन।
मुझको तुम माता कहते हो, कष्ट मुझे क्यों देते हो
तोड़ -फोड़ पर्वत-चट्टानें, नदियों को देते बंधन ।
वृक्षमित्र होने के दावे, झूठे सब बेमानी हैं
फर्नीचर की भेंट चढ़ गये, शीशम, चंदन औ' अर्जुन।
वक़्त अभी भी शेष तनिक है, चेत सको तो चेतो तुम
वरना कुछ भी नहीं बचेगा, सुनने को मेरा क्रंदन।
मौसम झेल रहे अनियमितता, बेमौसम होती "वर्षा'
शीत, ग्रीष्म सब उच्छृंखल से, करते मनमाना नर्तन।
----------------
Earth Day - Dr. Varsha Singh # Sahitya Varsha |
No comments:
Post a Comment