Saturday, March 28, 2020

लॉकडाउन में कलम और मुखर, क्या खूब लिख रहे हैं साहित्यकार - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

     दैनिक भास्कर ने आज 28 मार्च 2020 के अंक में प्रकाशित किया है कि सागर शहर के साहित्यकारों द्वारा कोरोना संदर्भित कौन सी कविताएं लिखी जा रही हैं... भास्कर ने प्रश्न उठाया है कि.... "अपने शहर और देश के साथ कलम के सिपाही भी इन दिनों लॉकडाउन में हैं। लेकिन क्या उनकी कलम भी लॉक हो गई है? "

   भास्कर ने ही फिर उत्तर देते हुए लिखा है  .... "जी, नहीं।भास्कर ने जब अभिव्यक्ति के इन अधिष्ठाताओं से बात की तो पाया कि आयोजन थमे हैं, कलम तो और भी ज्यादा मुखर हो उठी है। हां , विषय जरूर बदले हुए हैं। साहित्यकार अपने समय को जीता है और उसे ही अभिव्यक्त भी करता है। यही इस समय देखने को मिल रहा है। कोरोना महामारी ने दुनिया को जिस तरह से हलाकान कर रखा है , कवि-साहित्यकारों ने उसे पूरी तीव्रता के साथ अनुभूत किया है और शब्द- शक्ति का लगातार प्रहार भी वे इसेक खिलाफ कर रहे हैं। अलग-अलग रचनाओं में कहीं साहस नजर आता है, कहीं समझाइश तो कहीं भरोसा कि इस संकट से हम जल्द ही उभर जाएंगे।
महिला लेखिकाओं और कवयित्रियों के तेवर भी भी तीखे हैं। चर्चित लेखिका शरद सिंह लिखती हैं-

हो वक़्त बुरा कितना, आख़िर तो बदलता है।
दीवार कोरोना की, जल्दी है इसे ढहना।


वरिष्ठ गजलकार डॉ. वर्षा सिंह इसे एकता के रंग से जोड़तीं हैं और उसी में इसका हल देखतीं हैं-

कोरोना समझे नहीं, रंग, धरम ना जात।
मिल कर लें संकल्प हम, देनी होगी मात।।"



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