Dr. Varsha Singh |
दीप की यह सहचरी दीपावली
ज्योति की गोदावरी दीपावली
रश्मि का लेपन लगा कर दे हमें
बन गई सोनल परी दीपावली
सांवली मावस- विभा के वस्त्र में
टांकती गोटा- जरी दीपावली
कार्तिक के द्वार आई पाहुनी
ओढ़ चुनर सुनहरी दीपावली
हर तरफ सौंदर्य के चर्चे नये
रूप की है फुलझरी दीपावली
मोहती तन-मन भ्रमित करती हृदय
शरद की जादूगरी दीपावली
गीत में संगीत में श्रम गूंजता
श्रमिक की यह अनुचरी दीपावली
आइए मिलकर जलाएं दीप हम
एकता की अंजुरी दीपावली
खोलती संकल्प के नव द्वार फिर
प्रगति की है देहरी दीपावली
शांति-सुख की कामना फूले फले
जगमगाहट से भरी दीपावली
संस्कारों की परिधि के मूल में
पुण्य कर्मों की धुरी दीपावली
हो रही “वर्षा” सुखद शुभ लाभ की
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