Dr. Varsha Singh |
मशहूर शायर और गीतकार अखलाक सागरी का विगत शनिवार 22.12.2018 को निधन हो गया था। अखलाक लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उन्होंने सागर में शुक्रवारी वार्ड स्थित अपने निजनिवास में अंतिम सांसें लीं थीं। वे 88 वर्ष के थे। 30 जनवरी 1930 में जन्मे स्वर्गीय सागरी का पिछले 70 सालों से हिंदी-उर्दू साहित्य में योगदान रहा है।
Dr. Varsha Singh |
Dr. Sharad Singh |
एजाज़ सागरी |
अयाज़ सागरी |
बायें से :- उमाकांत मिश्र एवं अशोक मिजाज़ |
अखलाक शायरी व गीत लिखते थे। आकाशवाणी और दूरदर्शन पर अक्सर उनकी ग़ज़ल आती रहती हैं। फ़िल्म बेवफा सनम के हिट गाने ‘इश्क में क्या क्या बताएं कि दोनों, किस कदर चोट खाये हुए हैं’ से उन्हें काफी चर्चा मिली थी। उन्होंने बेवफा सनम के अलावा ‘आजा मेरी जान, अफसाना और ये इश्क-इश्क है’ आदि में गाने लिखे हैं। स्वर्गीय अखलाक सागरी के दो पुत्र हैं , एजाज़ सागरी तथा अयाज़ सागरी।
दायीं ओर से :- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, डॉ. वर्षा सिंह |
सागर नगर के साहित्यकार स्व. अखलाक सागरी को श्रद्धांजलि देते हुए |
Dr. Sharad Singh |
Dr. Varsha Singh |
विगत दिनों दिनांक 26.12.2018 को सागर नगर के ही नहीं वरन देश के मशहूर शायर मरहूम अखलाक सागरी को सिविल लाइंस स्थित जे.जे.इंस्टीट्यूट, सागर में विनम्र श्रद्धांजलि देने हेतु नगर की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था श्यामलम तथा जेजे फाउंडेशन की ओर से एक श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें सागर के साहित्यकारों ने मरहूम अखलाक सागरी जी के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। मैंने यानी डॉ. वर्षा सिंह तथा बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने भी शायर अखलाक सागरी जी के प्रति अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए अपने विचार व्यक्त किए तथा उनसे जुड़े अपने संस्मरण साझा किए। इस अवसर पर अखलाक सागरी जी के बड़े सुपुत्र एजाज़ सागरी तथा छोटे पुत्र अयाज़ सागरी जी ने भी अपने पिता अखलाक जी के संस्मरण सुनाए एवं उनकी ग़ज़लों का पाठ किया।
नव दुनिया, सागर दि. 27.12.2018 |
आचरण, दि. 22.12.2018 |
अखलाक सागरी की प्रसिद्ध ग़ज़ल मैं यहां प्रस्तुत कर रही हूं ...
इश्क़ में क्या बतायें कि दोनों किस क़दर चोट खाये हुए हैं
मौत ने उनको मारा है और हम ज़िंदगी के सताये हुए हैं
ऐ लहद अपनी मिट्टी से कह दे दाग लगने न पाये क़फ़न को
आज ही हमने बदले हैं कपड़े आज ही हम नहाये हुए हैं
उसने शादी का जोड़ा पहन कर सिर्फ़ चूमा था मेरे बदन को
बस उसी दिन से जन्नत में हूरें मुझको दूल्हा बनाये हुए हैं
अब हमें तो फ़कत एक ऐसी चलती फ़िरती हुई लाश कहिये
जिन की मैयत में हद है के हम ख़ुद अपना कंधा लगाये हुए हैं
देख साक़ी तेरे मयकदे का कितना पहुँचा हुआ रिन्द हूं मैं
जितने आये हैं मैयत में मेरी सब के सब ही लगाये हुए हैं
Dr. Sharad Singh |
अखलाक सागरी का यह कता भी बहुत मशहूर है....
फुटपाथ पर पड़ा था वो कौन था बेचारा।
भूखा था कई दिन का दुनिया से जब सिधारा।
कुर्ता उठा के देखा, तो पेट पर लिखा था
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।
डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
डॉ. वर्षा सि
एजाज़ सागरी
अयाज़ सागरी
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