Wednesday, April 10, 2019

होम्योपैथी, इलेक्ट्रो होम्योपैथी और चिकित्सा साहित्य

         
डॉ. वर्षा सिंह

आज विश्व होम्योपैथी दिवस है, जो महान जर्मन चिकित्सक व होम्योपैथी के संस्थापक डॉ सैमुअल हनीमैन  (1755-1843) की जयंती के रूप में दुनियाभर में मनाया जाता है।
होम्योपैथिक पद्धति के जन्मदाता सैमुएल हैनिमैन -Christian Friedrich Samuel Hahnemann (10 April 1755 – 2 July 1843) का जन्म सन 1755 में हुआ था।
वह यूरोप देश जर्मनी के निवासी थे। वे शुरू में ऐलोपैथी के चिकित्सक थे। उनके पिता एक पेंटर थे। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। उनका बचपन गरीबी में बीता।  आज बुधवार 10 अप्रैल 2019 को विश्व होम्योपैथिक दिवस पर मैंने यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह ने  डॉ. हैनिमैन का पुण्य स्मरण किया।
     
सैमुअल हैनिमैन # साहित्य वर्षा
 हैनिमैन को स्कूली शिक्षा और मेडिकल की पढ़ाई करने में अनेक कठिनाइयों से गुजरना पड़ा। मेडिकल की पढ़ाई में एक अध्यापक ने उनका सहयोग किया था। पढ़ाई के बाद वे प्रेक्टिस करने के लिए गांव-गांव जाते थे। प्रेक्टिस के दौरान उनको उस समय की चिकित्सा प्रणाली अच्छी नहीं लगी। उन्होंने प्रेक्टिस छोड़कर शादी कर ली। जीविका चलाने के लिए किताबों का अंग्रेजी से जर्मनी में अनुवाद करने लगे। एक बार वे डॉक्टर कलेन की लिखी किताब का जर्मनी भाषा में अनुवाद कर रहे थे तो उन्हें एक कुनेन नाम की जड़ी के बारे में पता चला। वह जड़ी मलेरिया जैसे रोगों को खत्म करती, लेकिन इसका उपयोग अगर स्वस्थ्य व्यक्ति पर किया जाए तो उसमें मलेरिया जैसे लक्षण होने लगते। उन्होंने सबसे पहले इसका शोध अपने ऊपर किया। उन्होंने जब इसका उपयोग किया तो पाया कि उनमें मलेरिया जैसे लक्षण हैं लेकिन जैसे ही उन्होंने इस जड़ी को खाना बंद किया वह एकदम सही हो गए। उन्होंने अपने दोस्त पर भी जड़ी का उपयोग किया तो उसके साथ वैसा ही हुआ। इस तरह उनको शोध करने का जरिया मिल गया। उन्होंने बहुत सारी जड़ी का प्रयोग अपने ऊपर किया और उनके तरह-तरह के निष्कर्ष निकाले। उन्होंने अपने किए गए शोधो को लिखना शुरू किया। अपने सभी शोध को एक पत्रिका में प्रकाशित करवाया। उनके परीक्षण का लोगों को लाभ मिला, लेकिन कुछ समय बाद उनकी बनाई गई दवा के तरीकों पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई। उनको शहर से निकाल दिया गया। उस समय उनको बहुत सी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। वे दूसरे शहर चले गए वहां पर अपने प्रयोगों को जारी रखा। उनको वहां पर दवा बनाने की इजाजत मिल गई। सन 1831 में इन्हें होम्योपैथी की दवाओं में सफलता मिली। कुछ समय बाद पहला होम्योपैथिक अस्पताल खुला। उस अस्पताल में वे अपना सहयोग देते और रोगी व्यक्तियों को दवाओं से लाभान्वित करवाते थे। लेकिन कुछ समय बाद अस्पताल बंद हो गया। 80 साल के बाद वे फ्रांस गए और वहां पर होम्योपैथिक दवाओं को जारी रखा। सन 1843 में उनकी मौत हो गई।


आज जहां महंगा होता उपचार आम आदमी की पहुंच से बाहर होता जा रहा है, ऐसे में डॉ हनीमैन को श्रेय देना होगा कि उन्होंने वर्षों पहले आमजन के लिए एक बेहतरीन चिकित्सा विकल्प की खोज की.     आज स्वास्थ्य के प्रति लोगों की अवधारणा और समझ तेजी से बदल रही है. आधुनिक चिकित्सा के युग में दुनियाभर में एलोपैथ चिकित्सा पद्धति के बाद यह सबसे अधिक पसंद की जानेवाली और प्रयोग में लायी जानेवाली चिकित्सा पद्धति है. यह औषधियों के विषय में ज्ञान और इसके अनुप्रयोग पर आधारित चिकित्सा पद्धति है, जो इस सिद्धांत पर कार्य करती है कि रोग का प्रारंभ स्थूल शरीर में नहीं, बल्कि उसके सूक्ष्म शरीर में आता है. यदि सूक्ष्म शरीर (जीवन शक्ति) स्वथ्य है, रोग प्रतिरोधक शक्ति मजबूत है, तो रोग का आक्रमण सूक्ष्म शरीर पर नहीं हो सकता और स्थूल शरीर स्वस्थ बना रहता है. यदि उपचार से इस सूक्ष्म शरीर को रोगमुक्त कर दिया जाता है, तो स्थूल शरीर अपने आप ही रोगमुक्त हो जाता है. रोग के लक्षणों को महत्व : जिस प्रकार आयुर्वेद में कफ-पित्त और वायु है, उसी प्रकार होमियोपैथी में सोरा, सिफलिश और सायकोसिस है. 90 प्रतिशत रोगों का मूल कारण सोरा दोष का बढ़ना है. इसी दोष की सक्रियता के कारण शरीर में खाज, खुजली, सोरायसिस, कुष्ठरोग तथा पेट के अन्य रोग होते हैं. सायकोसिस विष के कारण शरीर में अतिरिक्त वृद्धि जैसे- रसौली, गांठ, मस्से, कैंसर आदि हो जाता है और सिफलिश के कारण यौन-रोग आदि होते हैं. यह पद्धति ‘समः समम् समयते’ अर्थात similia similibus Curentur अर्थात् लक्षणों की समानता के आधार पर कार्य करती है. अत: एक ही रोग होने पर भी दो भिन्न व्यक्तियों के लक्षणों के आधार पर दोनों के लिए भिन्न-भिन्न औषधियां भी दी जाती हैं. स्पष्ट है कि इसमें रोग से उत्पन्न शारीरिक और मानसिक लक्षणों के आधार पर ही दवा दी जाती है, यानी बीमारी के आधार पर नहीं, बल्कि रोगी के तन-मन के हालात को देखते हुए चिकित्सा की जाती है.   हालांकि एलोपैथी चिकित्सा इसे हमेशा से खारिज करता रहा है. आज आधुनिक होम्योपैथी के सामने प्रमुख चुनौतियों में से एक है औपचारिक शिक्षा या प्रशिक्षण के बिना अभ्यास करनेवाले लोगों की उपस्थिति. वे गलत दवाइयों, गलत खुराक के साथ रोगियों का इलाज करते हैं, जिससे यह बदनाम होती है. यह एक जटिल विज्ञान और कला है, जिसमें चिकित्सा, खुराक, नुस्खे आदि का पालन करने के बारे में गहरी जानकारी शामिल है. यह स्नातक की डिग्री और उचित प्रशिक्षण के बिना हासिल नहीं की जा सकती. यह प्राकृतिक तौर पर काम करती है. इसकी खासियत है कि इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता.  क्रोनिक रोगों का भी इलाज : इससे क्रोनिक रोगों का भी इलाज किया जा सकता है. यह बहुत ही  सुरक्षित  पद्धति है. सांस की बीमारी, पेट, त्वचा और मानसिक विकार जैसी पुरानी बीमारियों में प्राकृतिक समाधान प्रदान करती है. जो लोग एलोपैथी और सर्जरी के जरिये जल्दी राहत चाहते हैं, वे केवल आधा जीवन ही जीते हैं और जो  स्थायी सुधार के लिए होम्योपैथी को अपनाते हैं, वे पूर्ण जीवन का आनंद लेते हैं. आज भी यह सोच पनप नहीं पायी है कि अगर किसी एक चिकित्सा पद्धति से इलाज संभव नहीं है, तो डॉक्टर दूसरी पद्धति से इलाज कराने की सलाह मरीज को दे सकें. जबकि इंटीग्रेटेड ट्रीटमेंट को अपना लिया जाये तो मरीजों का बहुत भला हो सकता है. जैसे इमरजेंसी में एलोपैथी में ग्लूकोज, इन्जेक्शन से मरीज को बहुत जल्दी और अधिक आराम पहुंचाया जा सकता है, उसके बाद रोग को जड़ से खत्म करने के लिए होम्योपैथी का प्रयोग हो सकता है. अन्य चिकित्सा के मुकाबले यह काफी किफायती भी है. इसे बढ़ावा देने के लिए केंद्र व राज्य सरकारें तेजी से कार्य कर रही हैं.  डॉ रंजना शर्मा, होम्योपैथिक स्नातक, दिल्ली होम्योपैथिक दवाएं सभी पैथियों में दवाइयां मूलतः वही होती हैं, अंतर केवल इनके निर्माण एवं प्रयोग में होता है. होम्योपैथी विधि में औषधि के स्थूल रूप को इतने सूक्ष्मतम रूप में परिवर्तित कर दिया जाता है कि दवा का स्थूल अंश तो क्या, उसके सूक्ष्म अंश का भी पता नहीं चलता. होम्योपैथी की शक्तिकृत दवा 6 शक्ति के बाद 30, 200, 1000, 10000, 50000 तथा 1 लाख पोटेंसीवाली होती है. होम्योपैथी परिषद की रिपोर्ट केंद्रीय होम्योपैथी परिषद की रिपोर्ट के मुताबिक  हर 5वां रोगी होम्योपैथिक इलाज करा रहा है. आपात स्थितियों को छोड़कर करीब 8० फीसदी रोगों के इलाज के लिए होम्योपैथी कारगर है. होम्योपैथी चिकित्सा कम खर्चीली, सुरक्षित, सरल एवं प्रमाणित चिकित्सा पद्धति है. दुनिया के अन्य देशों में यह चिकित्सा  दुनिया के 90 देशों में होम्योपैथिक चिकित्सा को अपनाया जा रहा है. भारत में इसका तेजी से विकास हुआ है. होम्योपैथी महामारियों जैसे स्वाइन फ्लू, डेंगू, खसरा, चिकन पॉक्स, माक्स, कॉलरा, मलेरिया, दिमागी बुखार जैसे खतरनाक रोगों से बचाव में कारगर है.  होम्योपैथी  दवाओं का सेवन कुछ अंगरेजी दवाओं के साथ भी किया जा सकता है, जैसे- जो डायबिटीज रोगी है और इंसुलिन पर निर्भर है, उसका इंसुलिन बंद नहीं किया जा सकता. वहीं वह किसी एक्यूट और क्रोनिक डिजीज जैसे एग्जिमा, सोराइसिस से ग्रसित है, तो बिना इंसुलिन बंद किये होम्योपैथी  दवा का प्रयोग कर सकता है और लाभ पा सकता है. कुछ खास बातें होम्योपैथिक दवा की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती. यदि इन दवाइयों को धूप, धूल, धुंआ, तेज गंध व केमिकल्स से बचाकर रखा जाये तो यह दवा वर्षों तक चलती रहेंगी. इन दवाओं का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता. इन दवाओं से कोई विशेष परहेज नहीं होता. दवा को लेने के आधा घंटा पहले और आधा घंटा बाद तक कुछ खाना-पीना नहीं चाहिए.

इलेक्ट्रो होम्योपैथी वस्तुतः होम्योपैथी चिकित्सा का ही एक हिस्सा है, जिसमें पेड़-पौधों का औषधीय अर्क निकालकर उसका इस्तेमाल विभिन्न रोगों में आल्टरनेट थेरेपी के तौर पर किया जाता है। इस चिकित्सा पद्धति के अनुसार रोग के लक्षण और औषधि के लक्षण में जितनी अधिक समानता होगी, रोगी के ठीक होने की सम्भावना भी उतनी अधिक बढ़ जाएगी। इस थेरेपी का मुख्य काम रक्त में आई अशुद्धियों को दूर कर शरीर को बीमारियों से मुक्त बनाना है।
      
इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा विज्ञान की वह शाखा है। जिसमें सभी प्रकार की बीमारियों के लिये सिर्फ पेड़-पौधों के अर्क का इस्तेमाल किया जाता है। इस पद्धति द्वारा इलाज के दौरान किसी भी जानवर या अन्य किसी प्रकार के खनिज स्रोत का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह पद्धति पूरी तरह प्राकृतिक तरीकों से इलाज करती है। यह पूरी तरह सुरक्षित और बिना किसी साइड इफेक्ट के काम करने वाली थेरेपी है। अवसाद, आर्थराइटिस, माइग्रेन, अल्सर और अन्य अनेक प्रकार की गम्भीर बीमारियों का इलाज इस थेरेपी से सफलतापूर्वक किया जा सकता है।


आयुर्वेदिक ऐलोपैथिक चिकित्सा की तरह अप्रैल 2018 से इलेक्ट्रोपैथी चिकित्सा पद्धति से जुड़े चिकित्सकों को इलाज करने हेतु मान्यता दी गई थी। सालों से चली आ रही इस चिकित्सा पद्धति को अब तक मान्यता नहीं थी। इस चिकित्सा पद्धति को राजस्थान सरकार ने आयुर्वेद, एलोपैथी, होम्याेपैथी, यूनानी के समकक्ष मानते हुए मान्यता दी। विधानसभा में इलेक्ट्रोपैथी चिकित्सा पद्धति विधेयक 2018 पारित किया गया । इलेक्ट्रोपैथी चिकित्सा परिषद के सहयोग से इसके लिए राजस्थान इलेक्ट्रोपैथी चिकित्सा पद्धति बोर्ड का गठन किया गया। जो चिकित्सा पद्धति के विकास, शिक्षा, चिकित्सा व रिसर्च की दिशा में कार्य कर रहा है। राजस्थान पहला ऐसा प्रदेश है जहां इस चिकित्सा पद्धति को मान्यता मिली है। 
काउंट सिजर मैटी # साहित्य वर्षा


इलेक्ट्रो होमियोपैथी के अविष्कारक डॉक्टर काउंट सिजर मैटी Cesare Mattei (1809–1896) थे। मैटी ने विश्व कल्याणार्थ मात्र वनस्पतियों पर आधारित चिकित्सा पद्धति प्रस्तुत कर सराहनीय कार्य किया।इलेक्ट्रो होमियोपैथी की ये औषधियां अनुपम,तत्काल गुणकारी, हानिरहित और विषविहीन होती हैं, इनके प्रयोग से शरीर में किसी प्रकार की हानि नहीं होती है। इलेक्ट्रो होमियोपैथी को राजकीय संरक्षण दिये जाने हेतु अनेकों प्रयास किये जा चुके हैं। उसी कड़ी में 9 जनवरी 2018 का दिन इलेक्ट्रो होमियो पैथी के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ है। डा.मनोज कुुमार भदौरिया के अनुसार आजादी के सात दशक के बाद इलेक्ट्रो होमियोपैथी की मान्यता के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (स्वास्थ्य एवं अनुसंधान विभाग) द्वारा स्वयं पहल करते हुए गत वर्ष डीएचआर  के सचिव व आईसीएमआर के डायरेक्टर जनरल डा.वी.एम. कटोच  की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय 20 सदस्यीय”इंटर डिपार्टमेंटल कमेटी” का गठन किया था। इस कमेटी में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव, केंद्रीय आयुष मंत्रालय के सचिव, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई), सेंट्रल कौंसिल ऑफ होमियोपैथी (सीसीएच), केंद्रीय आयुर्वेद एवं सिद्ध अनुसंधान परिषद (सीसीआर एएस),भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) व अन्य विभागों के प्रमुख वैज्ञानिक एवं अधिकारी शामिल रहे। स्वास्थ्य मंत्रालय भारत सरकार के आमंत्रण पर उपरोक्त कमेटी के समक्ष 9 जनवरी 2018 को देश के 27 इलेक्ट्रो होम्योपैथिक संस्थानों द्वारा सकारात्मक और वैज्ञानिक तरीके से अपने- अपने प्रेजेंटेशन के माध्यम से इलेक्ट्रो होम्योपैथी की वैज्ञानिकता का प्रस्तुतीकरण प्रभावी ढंग से किया गया। मीटिंंग केे दौरान उच्च स्तरीय कमेटी के अध्यक्ष डॉ वी एम कटोच  ने सभी संगठनों व चिकित्सकों के संघर्ष की सराहना करते हुए इलेक्ट्रो होमियोपैथी की मान्यता हेेेतु भारत सरकार के सकारात्मक रूप को भी स्पष्ट किया था ।

हिन्दी भाषा में इन चिकित्सा पद्धतियों पर कुछ अच्छी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। जैसे डॉ डी.वाई. विश्वकर्मा द्वारा लिखित इलेक्ट्रो होम्योपैथी सार संग्रह किताब,डॉ. एम.बी.एल. सक्सेना की  होम्योपैथी चिकित्सा।

2 comments:

  1. आप एक साहित्यानुरागी लेखिका होने के साथ,हिन्दी साहित्य पर अच्छी पकड रखती है ,आपके हिन्दी साहित्य मे किये जा रहे योगदान से तो हम परिचित थे परन्तु हमे यह जानकर आश्यचर्य हुआ की आप इलै.हो.की चिकि.भी है । मै एक होम्योपैथिक चिकि.होने के साथ लेखक भी हूँ मेरी पाँच पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है उनमे एक होम्योपैथिक के चमत्कार ह,जो अमेजान पर उपलब्ध है दुसरी पुस्तक ब्युटी क्लीनिक है जो एक्युपंचर एव होम्योपैथिक की सांझा चिकित्सा पर आधारित है ।

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  2. बहुत अच्छी जानकारी है

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