ये है कल दिनांक 02 मार्च 2020 को "दैनिक भास्कर" में प्रकाशित मेरी रिपोर्ट .... अवसर था.... परसों 01 मार्च 2020 को सागर मुख्यालय स्थित रवींद्र भवन में रतौना आंदोलन के सौ वर्ष के अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के तत्वावधान में सागर के प्रसिद्ध चित्रकार असरार अहमद के 'रंग के साथी' ग्रुप ने पेंटिंग वर्कशॉप का आयोजन किया। जिसमें चित्रकारों द्वारा ऑन स्पॉट चित्र बनाए गए। रतौना आंदोलन पर बनाए गए चित्रों में पं. माखनलाल चतुर्वेदी, अब्दुल गनी तथा गांधी जी के चित्रांकन नयनाभिराम रहे। रतौना में वर्तमान में स्थित गौशाला को भी चित्रकारों ने अपने चित्र का विषय बनाया।
मेरी यह रिपोर्ट जस की तस यहां प्रस्तुत है इस ब्लॉग के सुधी पाठकों की पठनीय सुविधा हेतु....
6 रंगों से उकेरा इतिहास का ख़ूबसूरत दिग्दर्शन
कसाईखाना बंद होने पर जनता की ख़ुशी से
लेकर गोशाला में विचरण करती गायें दिखाई
- डॉ. वर्षा सिंह
रतौना आंदोलन के सौ वर्ष के अवसर पर बुंदेलखंड में स्वाधीनता आंदोलन का स्मरण कर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा सागर मुख्यालय स्थित रवींद्र भवन में स्वाधीनता आंदोलन में गांधीजी के योगदान से संबंधित चित्रों की प्रदर्शनी लगाई गई जिसके साथ ही उसी परिसर में सागर के प्रसिद्ध चित्रकार असरार अहमद के 'रंग के साथी' ग्रुप ने पेंटिंग वर्कशॉप का आयोजन किया। जिसमें चित्रकारों द्वारा ऑन स्पॉट चित्र बनाए गए। रतौना आंदोलन पर बनाए गए चित्रों में पं. माखनलाल चतुर्वेदी, अब्दुल गनी तथा गांधी जी के चित्रांकन नयनाभिराम रहे। रतौना में वर्तमान में स्थित गौशाला को भी चित्रकारों ने अपने चित्र का विषय बनाया। रतौना आंदोलन को प्रमुखता से प्रदर्शित करने वाले इन चित्रों में विषय के अनुरूप नीले, धूसर, लाल, केसरिया, हरे और सफेद रंगों का प्रयोग किया गया। काग़ज़ पर बने इन चित्रों को जलरंगों के स्ट्रेट स्ट्रोक्स ने और अधिक भावप्रवण बना दिया। रतौना आंदोलन के घटनाक्रम को प्रदर्शित करने वाले चित्र असरार अहमद, अनुशा जैन, सीमा कटारे, शेफाली जैन एवं अंशिता बजाज वर्मा ने बनाए वहीं रश्मि पवार ने रतौना में कसाईखाने को बंद करने पर हर्षित जनता का चित्ताकर्षक चित्रांकन किया। जबकि चित्रकार डॉ. निधी मिश्रा, रेशू जैन, दीपिका रैकवार ने रतौना में मौजूद वर्तमान गौशाला को अपने रंगों में उतारा। इसी वर्कशॉप में वंदना नामदेव, मोनिका जैन, उमाकांत मालेवर, अंजनी चौबे, शालू सोनी आदि ने पं. माखनलाल चतुर्वेदी, महात्मा गांधी, अब्दुल गनी के पोट्रेट बनाए। वर्कशॉप में बनाए गए सभी चित्र रतौना आंदोलन की मूल आत्मा को प्रदर्शित करने में पूर्णतया सफल रहे। जैसाकि भारतीय चित्रकला के छः अंग - रूप भेद, प्रमाणम्, भाव, लावण्य योजनम्, सादृश्यम् और वर्णित भंगम् माना गया है, इन छहो अंगों की कसौटी पर रतौना आंदोलन संदर्भित सभी पेंटिंग्स खरी उतरती दिखाई दीं। रंग के साथी चित्रकारों के लिए जहां यह एक नया अनुभव था, वहीं दर्शकों के लिए यह एक नई अनुभूति थी।
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कुछ तस्वीरें ... रतौना आंदोलन के सौ वर्ष के अवसर पर .... चित्रकला वर्कशॉप, चित्र प्रदर्शनी और व्याख्यान माला...
क्या था रतौना आंदोलन -
ब्रिटिश सरकार के विरोध मे भारत मे जून 1920 में रतौना हुआ था। उस समय सर्कार ने डिब्बाबंद गौ -मांस के निर्यात के लिए सागर (मध्यप्रदेश) के पास रतौना ग्राम मे एक कसाईखाना बनाने का प्रयास किया। जिसमे प्रतिदिन 1400 गाय -बैल काटे जाने की सरकार की योजना थी। इसके विरोध में भाई अब्दुल गनी ने सागर में रटना आंदोलन चलाया तथा पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने जबलपुर से निकलने वाले कर्मवीर समाचार माद्यम से इस आंदोलन का प्रचार प्रसार किया। कर्मवीर में इसके विरोध में 1000 से ज्यादा लेख लिखे गए।
लाला लाजपत राय ने भी उर्दू अख़बार वन्देमातरम के माद्यम से भी इसका विरोध किया और इस पर कई लेख प्रकाशित किये। अंग्रेज़ो ने हिन्दू मुस्लिम में फूट डालने के लिए बयान दिया की यहाँ केवल गाय और बैल ही कटे जायेगे सुअर नहीं काटे जायेगे। लेकिन इस कसाईखाने का सर्वाधिक विरोध 19 वर्षीय मुस्लिम युवक भाई अब्दुल गनी ने किया। सागर में समाचार पत्रों का ये आंदोलन इतना तेज़ था की पूरी भारत में इसकी गूंज सुनाई देने लगी। इस प्रकार तीव्र विरोध के कारण अंग्रेजी सरकार पस्त हो गयी और सितम्बर 1920 को उन्होंने अपनी ये योजना त्याग दी।
सागर में 01 मार्च 2020 को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल ने सागर में रतौना आंदोलन के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया। जिसमें रतौना आंदोलन के नायक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अब्दुल गनी भाई के सुपुत्र श्री रफीक गनी ने रतौना आंदोलन और इसमें भाई अब्दुल गनी के संघर्ष की पूरी कहानी बयां की। उन्होंने कहा कि भाई अब्दुल गनी इसलिए गोवंश की रक्षा के लिए अपना सर कटाने के लिए तैयार थे क्योंकि वह दूसरे धर्म की आस्था का सम्मान करते थे।
दरअसल अंग्रेजों ने सागर ज़िले के एक ग्राम रतौना में 1920 ई. में कसाई खाना खोलने की योजना बनाई इसमें 1400 गाय बैल प्रतिदिन काटे जाने थे। 3 जुलाई के बाद समाचार पत्रों में इसका विज्ञापन पूरे 3 पृष्ठों में छापा गया जिसमें कसाई खाने के लाभ दिखाते हुए इसके अधिक से अधिक शेयर लेने की जनता से अपील की गई। इस प्रोस्पेक्टस में स्पष्ट कहा गया कि सिर्फ गाय बैल काटे जाएंगे सूअर कदापि नहीं काटे जाएंगे। यह इसलिए कहा गया ताकि मुस्लिम इसके विरोध से दूर रहें। परंतु अंग्रेजों का दांव उस समय गलत पड़ गया जब इस कसाई खाने का सबसे पहला विरोध ही एक 25 वर्षीय मुस्लिम युवक भाई अब्दुल गनी ने किया। समाचार पत्र के माध्यम से भी इसका विरोध जबलपुर के श्री ताजुद्दीन ताज ने अपने समाचार पत्र के माध्यम से किया। जिस पर सरकार ने उनके विरुद्ध मुकदमा चलाया और उन्हें जेल भेज दिया गया।अब्दुल गनी ने समस्त साथियों को इस आंदोलन में भाग लेने हेतु प्रेरित किया। पंडित माखनलाल चतुर्वेदी खंडवा से मुंबई जा रहे थे तब उन्होंने पायनियर समाचार पत्र में कसाई खाने का विज्ञापन देखकर अपनी आगामी यात्रा स्थगित कर दी और चालीसगांव स्टेशन पर उतर गए। नवीन टिकट लेकर खंडवा होते हुए जबलपुर पहुंचे और इसके पश्चात उन्होंने अपने समाचार पत्र कर्मवीर के माध्यम से कसाई खाने का विरोध किया। 17 जुलाई को पहला लेख लिखा जिसका शीर्षक था गोवध की सरकारी तैयारी। इसके बाद अखिल भारतीय स्तर पर कई नेताओं से मिले। रतौना कसाई खाने के विरोध में आंदोलन उनके प्रयास रंग लाए और लाला लाजपत राय ने अपने समाचार पत्र वंदे मातरम के माध्यम से एवं मदन मोहन मालवीय ने लीडर के माध्यम से इसका विरोध किया। यह विरोध इतना सशक्त था कि ब्रिटिश सरकार घबरा गई।मैसेज सेंड ए रिपोर्ट इन कंपनी जिसे कि इस कसाई खाने का ठेका मिला था उसके मैनेजिंग डायरेक्टर ने त्यागपत्र दे दिया।जब रतन कसाई खाने विरोधी आंदोलन का प्रस्ताव कोलकाता में होने वाले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में रखा जाना था तब सरकार इतनी घबरा गई कि उसने टेलीग्राम के माध्यम से पंडित विष्णु दत्त शुक्ला को सूचना दी कि कसाई खाने की योजना त्याग दी गई है। यह सागर की धरती पर अंग्रेजों की एक नैतिक एवं प्रशासनिक हार थी। इसके पश्चात सागर का नाम ना केवल भारत अपितु इंग्लैंड में भी गूंजने लगा। आगामी स्वाधीनता आंदोलन में सागर को विशेष स्थान मिला। जहां पर अंग्रेज कत्लखाना खोलकर खून की नदियां बनाना चाहते थे उस रतौना में अब गौशाला बन चुकी हैं एवं दूध की नदियां बह रही हैं। रतौना आंदोलन को हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में एक यूनिट के रूप में पढ़ाया जा रहा है। छात्र अत्यंत रुचि के साथ पढ़ रहे हैं। इस महत्वपूर्ण रतौना आंदोलन को स्कूली पाठ्यक्रमों में भी शामिल कराया जाना चाहिए ताकि बच्चों में राष्ट्रीय चेतना का भाव विकसित हो।
कार्यक्रम में वरिष्ठ अधिवक्ता श्री चतुर्भुज सिंह राजपूत ने भाई अब्दुल गनी के एक प्रसंग का जिक्र करते हुए बताया कि भाई अब्दुल गनी के अब्बू ने ही उन्हें प्रेरणा दी थी कि दूसरे धर्म की आस्था और प्रतीकों का सम्मान ही सच्ची धार्मिकता है, इन्हीं आदर्श और संस्कार की वजह से अब्दुल गनी हिन्दुओं की आस्था के मुद्दे पर महा कतलखाने के विरोध के अगुआ बने और सामुदायिक सौहार्द कि मिशाल पेश की।
कार्यक्रम में डॉ सुरेश आचार्य ने भी भाई अब्दुल गनी के संघर्ष और उनके जीवन के अनजाने पहलुओं से अवगत कराया।
इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए दैनिक भास्कर के सेटेलाइट प्रमुख श्री शिव कुमार विवेक ने कहा कहा कि वर्तमान में सोशल मीडिया ताकतवर जरूर है, लेकिन इसके संपादकीय पक्ष को समाज हित में मजबूत करने की आवश्यकता है, जिससे समाज में जाने वाली सूचनाओं पर विचार और एजेंडे को नियंत्रित किया जा सके। कार्यक्रम के आयोजक संस्थान माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल के कुलपति श्री दीपक तिवारी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि विश्वविद्यालय दादा माखनलाल जी की आदर्श पत्रकारिता के स्तर और ध्येय को प्राप्त करने के लिए कार्यरत है। विश्वविद्यालय सोशल मीडिया में आई विसंगतियों और चुनौतियों को दूर करने के लिए भविष्य में वर्कशॉप जैसे कार्यक्रम आयोजित करेगा।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय द्वारा लगाई गई महात्मा गांधी के आदर्श और संघर्षमयी जीवन यात्रा को अभिव्यक्त करने वाले दुर्लभ चित्रों की एक पोस्टर प्रदर्शनी आकर्षण का केंद्र रही, इस प्रदर्शनी में विद्यार्थियों, युवाओं और गणमान्य नागरिको ने राष्ट्रपिता के अनजाने पहलुओं को जाना।
इसी प्रदर्शनी में "रंग के साथी" संस्था के संचालक असरार खान के विद्यार्थियों ने इस आयोजन में रतौना आंदोलन से जुड़े चित्र बनाकर प्रदर्शित किए जिन्हें काफी सराहा गया।
इस कार्यक्रम में मैं यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह, मेरी बहन एवं ख्यातिलब्ध लेखिका, साहित्यकार डॉ. (सुश्री) शरद सिंह सहित सागर नगर के गणमान्य नागरिक पत्रकार बंधु, विद्यार्थी एवम् विश्वविद्यालय के कुलसचिव दीपेंद्र बघेल परीक्षा नियंत्रक डॉ राजेश पाठक एवं सहायक कुलसचिव श्री विवेक सावरीकर सागर , दमोह , टीकमगढ़ , पन्ना औऱ छतरपुर की सम्बद्ध संस्थाओं के संचालक गण भी मौजूद थे।कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार एवं रंगकर्मी विवेक सावरीकर ने किया एवं समापन के उपरांत आभार कुलसचिव दीपेंद्र बघेल ने व्यक्त किया।
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कुछ तस्वीरें ... रतौना आंदोलन के सौ वर्ष के अवसर पर .... चित्रकला वर्कशॉप, चित्र प्रदर्शनी और व्याख्यान माला...
क्या था रतौना आंदोलन -
ब्रिटिश सरकार के विरोध मे भारत मे जून 1920 में रतौना हुआ था। उस समय सर्कार ने डिब्बाबंद गौ -मांस के निर्यात के लिए सागर (मध्यप्रदेश) के पास रतौना ग्राम मे एक कसाईखाना बनाने का प्रयास किया। जिसमे प्रतिदिन 1400 गाय -बैल काटे जाने की सरकार की योजना थी। इसके विरोध में भाई अब्दुल गनी ने सागर में रटना आंदोलन चलाया तथा पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने जबलपुर से निकलने वाले कर्मवीर समाचार माद्यम से इस आंदोलन का प्रचार प्रसार किया। कर्मवीर में इसके विरोध में 1000 से ज्यादा लेख लिखे गए।
लाला लाजपत राय ने भी उर्दू अख़बार वन्देमातरम के माद्यम से भी इसका विरोध किया और इस पर कई लेख प्रकाशित किये। अंग्रेज़ो ने हिन्दू मुस्लिम में फूट डालने के लिए बयान दिया की यहाँ केवल गाय और बैल ही कटे जायेगे सुअर नहीं काटे जायेगे। लेकिन इस कसाईखाने का सर्वाधिक विरोध 19 वर्षीय मुस्लिम युवक भाई अब्दुल गनी ने किया। सागर में समाचार पत्रों का ये आंदोलन इतना तेज़ था की पूरी भारत में इसकी गूंज सुनाई देने लगी। इस प्रकार तीव्र विरोध के कारण अंग्रेजी सरकार पस्त हो गयी और सितम्बर 1920 को उन्होंने अपनी ये योजना त्याग दी।
सागर में 01 मार्च 2020 को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल ने सागर में रतौना आंदोलन के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया। जिसमें रतौना आंदोलन के नायक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अब्दुल गनी भाई के सुपुत्र श्री रफीक गनी ने रतौना आंदोलन और इसमें भाई अब्दुल गनी के संघर्ष की पूरी कहानी बयां की। उन्होंने कहा कि भाई अब्दुल गनी इसलिए गोवंश की रक्षा के लिए अपना सर कटाने के लिए तैयार थे क्योंकि वह दूसरे धर्म की आस्था का सम्मान करते थे।
दरअसल अंग्रेजों ने सागर ज़िले के एक ग्राम रतौना में 1920 ई. में कसाई खाना खोलने की योजना बनाई इसमें 1400 गाय बैल प्रतिदिन काटे जाने थे। 3 जुलाई के बाद समाचार पत्रों में इसका विज्ञापन पूरे 3 पृष्ठों में छापा गया जिसमें कसाई खाने के लाभ दिखाते हुए इसके अधिक से अधिक शेयर लेने की जनता से अपील की गई। इस प्रोस्पेक्टस में स्पष्ट कहा गया कि सिर्फ गाय बैल काटे जाएंगे सूअर कदापि नहीं काटे जाएंगे। यह इसलिए कहा गया ताकि मुस्लिम इसके विरोध से दूर रहें। परंतु अंग्रेजों का दांव उस समय गलत पड़ गया जब इस कसाई खाने का सबसे पहला विरोध ही एक 25 वर्षीय मुस्लिम युवक भाई अब्दुल गनी ने किया। समाचार पत्र के माध्यम से भी इसका विरोध जबलपुर के श्री ताजुद्दीन ताज ने अपने समाचार पत्र के माध्यम से किया। जिस पर सरकार ने उनके विरुद्ध मुकदमा चलाया और उन्हें जेल भेज दिया गया।अब्दुल गनी ने समस्त साथियों को इस आंदोलन में भाग लेने हेतु प्रेरित किया। पंडित माखनलाल चतुर्वेदी खंडवा से मुंबई जा रहे थे तब उन्होंने पायनियर समाचार पत्र में कसाई खाने का विज्ञापन देखकर अपनी आगामी यात्रा स्थगित कर दी और चालीसगांव स्टेशन पर उतर गए। नवीन टिकट लेकर खंडवा होते हुए जबलपुर पहुंचे और इसके पश्चात उन्होंने अपने समाचार पत्र कर्मवीर के माध्यम से कसाई खाने का विरोध किया। 17 जुलाई को पहला लेख लिखा जिसका शीर्षक था गोवध की सरकारी तैयारी। इसके बाद अखिल भारतीय स्तर पर कई नेताओं से मिले। रतौना कसाई खाने के विरोध में आंदोलन उनके प्रयास रंग लाए और लाला लाजपत राय ने अपने समाचार पत्र वंदे मातरम के माध्यम से एवं मदन मोहन मालवीय ने लीडर के माध्यम से इसका विरोध किया। यह विरोध इतना सशक्त था कि ब्रिटिश सरकार घबरा गई।मैसेज सेंड ए रिपोर्ट इन कंपनी जिसे कि इस कसाई खाने का ठेका मिला था उसके मैनेजिंग डायरेक्टर ने त्यागपत्र दे दिया।जब रतन कसाई खाने विरोधी आंदोलन का प्रस्ताव कोलकाता में होने वाले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में रखा जाना था तब सरकार इतनी घबरा गई कि उसने टेलीग्राम के माध्यम से पंडित विष्णु दत्त शुक्ला को सूचना दी कि कसाई खाने की योजना त्याग दी गई है। यह सागर की धरती पर अंग्रेजों की एक नैतिक एवं प्रशासनिक हार थी। इसके पश्चात सागर का नाम ना केवल भारत अपितु इंग्लैंड में भी गूंजने लगा। आगामी स्वाधीनता आंदोलन में सागर को विशेष स्थान मिला। जहां पर अंग्रेज कत्लखाना खोलकर खून की नदियां बनाना चाहते थे उस रतौना में अब गौशाला बन चुकी हैं एवं दूध की नदियां बह रही हैं। रतौना आंदोलन को हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में एक यूनिट के रूप में पढ़ाया जा रहा है। छात्र अत्यंत रुचि के साथ पढ़ रहे हैं। इस महत्वपूर्ण रतौना आंदोलन को स्कूली पाठ्यक्रमों में भी शामिल कराया जाना चाहिए ताकि बच्चों में राष्ट्रीय चेतना का भाव विकसित हो।
कार्यक्रम में वरिष्ठ अधिवक्ता श्री चतुर्भुज सिंह राजपूत ने भाई अब्दुल गनी के एक प्रसंग का जिक्र करते हुए बताया कि भाई अब्दुल गनी के अब्बू ने ही उन्हें प्रेरणा दी थी कि दूसरे धर्म की आस्था और प्रतीकों का सम्मान ही सच्ची धार्मिकता है, इन्हीं आदर्श और संस्कार की वजह से अब्दुल गनी हिन्दुओं की आस्था के मुद्दे पर महा कतलखाने के विरोध के अगुआ बने और सामुदायिक सौहार्द कि मिशाल पेश की।
कार्यक्रम में डॉ सुरेश आचार्य ने भी भाई अब्दुल गनी के संघर्ष और उनके जीवन के अनजाने पहलुओं से अवगत कराया।
इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए दैनिक भास्कर के सेटेलाइट प्रमुख श्री शिव कुमार विवेक ने कहा कहा कि वर्तमान में सोशल मीडिया ताकतवर जरूर है, लेकिन इसके संपादकीय पक्ष को समाज हित में मजबूत करने की आवश्यकता है, जिससे समाज में जाने वाली सूचनाओं पर विचार और एजेंडे को नियंत्रित किया जा सके। कार्यक्रम के आयोजक संस्थान माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल के कुलपति श्री दीपक तिवारी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि विश्वविद्यालय दादा माखनलाल जी की आदर्श पत्रकारिता के स्तर और ध्येय को प्राप्त करने के लिए कार्यरत है। विश्वविद्यालय सोशल मीडिया में आई विसंगतियों और चुनौतियों को दूर करने के लिए भविष्य में वर्कशॉप जैसे कार्यक्रम आयोजित करेगा।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय द्वारा लगाई गई महात्मा गांधी के आदर्श और संघर्षमयी जीवन यात्रा को अभिव्यक्त करने वाले दुर्लभ चित्रों की एक पोस्टर प्रदर्शनी आकर्षण का केंद्र रही, इस प्रदर्शनी में विद्यार्थियों, युवाओं और गणमान्य नागरिको ने राष्ट्रपिता के अनजाने पहलुओं को जाना।
इसी प्रदर्शनी में "रंग के साथी" संस्था के संचालक असरार खान के विद्यार्थियों ने इस आयोजन में रतौना आंदोलन से जुड़े चित्र बनाकर प्रदर्शित किए जिन्हें काफी सराहा गया।
इस कार्यक्रम में मैं यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह, मेरी बहन एवं ख्यातिलब्ध लेखिका, साहित्यकार डॉ. (सुश्री) शरद सिंह सहित सागर नगर के गणमान्य नागरिक पत्रकार बंधु, विद्यार्थी एवम् विश्वविद्यालय के कुलसचिव दीपेंद्र बघेल परीक्षा नियंत्रक डॉ राजेश पाठक एवं सहायक कुलसचिव श्री विवेक सावरीकर सागर , दमोह , टीकमगढ़ , पन्ना औऱ छतरपुर की सम्बद्ध संस्थाओं के संचालक गण भी मौजूद थे।कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार एवं रंगकर्मी विवेक सावरीकर ने किया एवं समापन के उपरांत आभार कुलसचिव दीपेंद्र बघेल ने व्यक्त किया।
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