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Dr. Varsha Singh |
प्रगतिशील लेखक संघ की रविवार 18.05.2020 को ऑनलाइन सम्पन्न हुई पाक्षिक गोष्ठी में मैंने प्रवासी मज़दूरों की व्यथा संदर्भित अपनी ग़ज़ल का पाठ किया... "कांधे पर है बोझ गृहस्थी का पांवों में छाले हैं। दर -दर की ठोकर लिक्खी है, खोटी क़िस्मत वाले हैं। गांव, गली, घर छोड़ा था सब, पैसे चार कमाने को, अब जाना ये महानगर भी दिल के कितने काले हैं।"
साहित्यिक आयोजनों के समाचारों को सदैव प्रमुखता से प्रकाशित करने में अग्रणी "दैनिक भास्कर" को बहुत बहुत धन्यवाद 🙏💐
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