Dr. Varsha Singh |
एक प्रसिद्ध संस्कृत श्लोक का अंश है... "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी", मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थित विक्रमादित्य का नगर उज्जैन मेरी माता जी डॉ. विद्यावती ‘मालविका’ की जन्मभूमि है। लेखन में उनकी रुचि बाल्यकाल से रही है। माताजी ने अपने पिता यानी मेरे नाना जी संत ठाकुर श्यामचरण सिंह जी के विचारों से प्रभावित हो कर 12-13 वर्ष की आयु से ही साहित्य सृजन आरम्भ कर दिया था। उनकी गहरी साहित्यिक अभिरुचि को पहचान कर उज्जैन के प्रकाण्ड विद्वान, स्वनामधन्य कवि एवं "विक्रम" पत्र के यशस्वी सम्पादक पण्डित सूर्यनारायण व्यास जी ने उन्हें "मालविका" अर्थात् मालव कन्या के उपनाम से विभूषित किया था। "विक्रम" के दिसम्बर 1953 के अंक में प्रकाशित माता जी का यह गीत उन दिनों बहुत लोकप्रिय हुआ था।
अपने विवाह पश्चात माताजी ने मालवा से विदा लेने के उपरांत रीवा और तत्पश्चात अपने जीवन के लगभग 6 दशक बुन्देलखण्ड में व्यतीत किए हैं, जिसमें से लगभग 30 वर्ष पन्ना में और 30 वर्ष से अधिक समय सागर में... वर्तमान में वे मकरोनिया, सागर में निवासरत हैं।
डॉ. विद्यावती "मालविका" युवावस्था में... @ साहित्य वर्षा |
दिसम्बर 1953 में "विक्रम" (उज्जैन) में प्रकाशित डॉ. विद्यावती "मालविका" का गीत "मालव जननी" |
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गीत को आद्योपांत पढ़कर मन आह्लादित हो गया वर्षा जी । सौभाग्यशालिनी हैं आप जो ऐसी विदुषी के गर्भ से जन्म लिया । अब मैं जान गया हूं कि आपकी (और शरद जी की भी) काव्य-प्रतिभा जन्मजात है । कोटि-कोटि नमन आपकी जननी को एवं कोटि-कोटि धन्यवाद आपको इस अनमोल गीत एवं उनके व्यक्तित्व से परिचित करवाने के लिए ।
ReplyDeleteआदरणीय माथुर जी,
Deleteहार्दिक आभार आपका 🙏
मुझे प्रसन्नता है कि आपने मेरा अनुरोध स्वीकार किया और मेरे इस लेख को पढ़ कर अपनी बहुमूल्य टिप्पणी की।
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह