Dr. Varsha Singh |
स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरा कॉलम "सागर साहित्य एवं चिंतन " । जिसमें इस बार मैंने लिखा है मेरे शहर सागर के उत्साही रचनाकार आर. के. तिवारी पर आलेख। पढ़िए और जानिए मेरे शहर के साहित्यिक परिवेश को ....
सागर : साहित्य एवं चिंतन
आर.के. तिवारी : एक उत्साही रचनाकार
- डॉ. वर्षा सिंह
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परिचय :- आर. के. तिवारी
जन्म :- 08 फरवरी 1952
जन्म स्थान :- सागर (म.प्र.)
लेखन विधा :- पद्य एवं गद्य
प्रकाशन :- एक भजन संग्रह एवं एक लघु उपन्यास प्रकाशित
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सागर का साहित्यिक वातावरण प्रत्येक संवेदी-हृदय को साहित्यसृजन की ओर उन्मुख करने की विशेषता रखता है। आर. के. तिवारी उर्फ़ राजकुमार तिवारी भी एक ऐसे ही उत्साही रचनाकार हैं। वे अपने लेखन में भावनाओं को प्रधानता से पिरोते हैं। सागर नगर में 8 फरवरी 1952 को जन्मे आर. के. तिवारी को संवेदनात्मक संस्कार अपने पिता स्व. वृंदावन तिवारी एवं माता स्व. रामकली देवी तिवारी से मिले। वे स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद ही जीवकोपार्जन से जुड़ गए। सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया शाखा गोपालगंज से हेड कैशियर के पद से 29 फरवरी 2012 को सेवानिवृत्त होने के बाद वे अपनी साहित्यिक अभिरुचि के विकास में संलग्न हो गए। यद्यपि वे सेंट्रल बैंक के कर्मचारी संगठन में उप महासचिव पद पर जुड़े रह कर अपने विभागीय कर्मियों का सतत् सहयोग करते रहते हैं। सेवानिवृत्ति के उपरांत उनकी अब तक दो कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। उनमें से एक है ‘‘हल्ला कन्हैया का’’, जो कि भजन संग्रह है तथा दूसरी कृति है ‘‘करमजली’’ जिसे लम्बी कहानी अथवा लघु उपन्यास कहा जा सकता है।
अपने भजन संग्रह के प्रकाशन के संबंध में बड़े ही सहज भाव से कवि आर. के. तिवारी ने स्वीकार किया है कि -‘‘वैसे भजन लिखने का शौक मुझे करीब 15 से 20 वर्ष पहले हुआ था। लिखने का अंदाज़ ऐसे जैसे वह एक गीत है ‘नाम न जानू, तेरा देश न जानू’ ठीक वैसे ही ‘राग न जानू मैं, तर्ज़ न जानू’। वास्तव में मेरे लिखे कौन से गीत की क्या राग है, क्या तर्ज़ है, बस लिख दिए और दोस्तों के साथ भजन मंडली या रामायण मंडली के साथियों के सहयोग से गा दिए। पुस्तक की सोच थी ही नहीं, न ख्याल ही आया। इस ओर, इसकी प्रेरणा हमारे पं. श्री उमाकांत मिश्रा (श्यामलम्) ने की है। इन्होंने ही मुझे इसके लिए प्रेरित किया। साथ ही इस पुस्तक को आकार, प्रकाशन योग्य बनाने एवं मुझे प्रोत्साहित करने, समय-समय पर याद दिलाने का पूरा श्रेय मेरी पुत्रवधू श्रीमती अंजना चतुर्वेदी को जाता है जिसने अपने स्वयं के सभी दायित्वों का निर्वहन करते हुए भी इस पुस्तक को आकार दिलाया। इसके साथ हमारे बच्चों का, हमारी पत्नी श्रीमती कमला का योगदान भी बहुत है। मैं गीत लिखता फिर मैं उन्हें सुना था, यदि कुछ बदलाव करना होता या उचित नहीं लगता तो वे सही मार्गदर्शन करतीं। इसके साथ में अपने 15-20 वर्ष पूर्व के उन साथियों का भी आभारी हूं जिन्होंने मुझे सार्वजनिक स्तर पर गाने में पूर्ण सहयोग दिया। मेरी झिझक उन्हीं के द्वारा दूर हुई अन्यथा मैं लिखता तो, पर शायद गा नहीं पाता।’’
‘‘हल्ला कन्हैया का’’ भजन संग्रह त्रिदेव सीरीज का प्रथम संस्करण है। जिसमें भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं को थोड़े चुलबुले ढंग से हंसी खुशी और आनंद योग्य बनाने का प्रयास किया गया है। इन गीतों में बुंदेली बोली का विशेष प्रयोग है, जो इन्हें ना केवल बुंदेली संस्कृति से जोड़ता है, बल्कि मधुरता प्रदान करता है।
Sagar Sahitya Avam Chintan - Dr. Varsha Singh |
अपनी मित्रमंडली में रज्जन तिवारी के नाम से सुपरिचित आरके तिवारी के भक्तिपरक गीतों में जो लालित्य दिखाई देता है, वह कई बार ईसुरी की फागों का स्मरण करा देता है। जैसे यह उदाहरण देखें जिस में राधा जी श्रृंगार कर दही बेचने बाजार जा रही हैं। उन्होंने किस तरह का श्रृंगार किया है इसका विवरण इस गीत में बड़े सुंदर ढंग से दिया गया है -
सज धज देखो राधा रानी
चली है दई ले बजरिया
सर पर धरे है गगरिया
दो दो चुटिया करे गुजरिया
दहिया बेचन जात गुजरिया
बनी ठनी है गुजरिया
सर पर धरे है गगरिया ......
पीली पीली सरसों फूली
जा रही राधा खूबई फूली
छम छम छम छम चलन है उनको
बाजत जा रही पैजनिया
सर पर धरे है गगरिया ......
सब तरफ जलवा है
बूंदा बिंदिया लाख-लाख के
कान के बाला पांच लाख के
नौ लाख की है पूंगरिया
सर पर धरे है गगरिया ......
पांच लाख का गहना उनको
दस गज को है घंघरा उनको
आठ गज की लगे सारी उनको
दस हाथों की चुनरिया
सर पर धरे है गगरिया ......
कवि तिवारी के गीतों में वात्सल्य रस का भी सुंदर वर्णन देखा जा सकता है। जैसे उनका एक गीत है जिसमें मां यशोदा के यहां श्याम सुंदर के जन्मोत्सव का वर्णन है। माता यशोदा के घर बधाइयां गाई जा रही हैं और लोग तरह-तरह के उपहार ले कर आ रहे हैं। चहुं ओर उत्सव का वातावरण है-
अंगना में बाजे पैजनिया
श्यामा की बाजे पैजनिया
यशुदा के दोरे बज रयै बधाये
श्यामा की बाजे पैजनिया ......
कोउ-कोउ लाए टोपी और झंगला
टोपी और झंगला, हां, टोपी और झंगला
कोउ-कोउ लाओ झगुलियां
श्यामा की बाजे पैजनिया ......
कोउ-कोउ लाए हाय और चंदा
हाय और चंदा, हां, हाय और चंदा
कोउ-कोउ लाओ करधनियां
श्यामा की बाजे पैजनिया ......
कोउ-कोउ लाए बारी और झुमकी
कोउ-कोउ लाए पुतरा-पुतरियां
श्यामा की बाजे पैजनिया ......
कोउ-कोउ लाए घुनघुनियां
कोउ-कोउ लाए कंगन और माला
श्यामा की बाजे पैजनिया ......
पुत्रवधू डॉ. अंजना तिवारी चतुर्वेदी, पुत्र अमित तिवारी और पौत्री राजे के साथ कवि आर.के.तिवारी |
बाज़ारवाद से प्रभावित खुरदुरे हो चले समय में भजनों की कोमलता मन-मस्तिष्क पर एक अलग ही प्रभाव छोड़ती है और इससे विचारों में भी स्निग्धता आती है। रचनाकार आर. के. तिवारी ने भजनों के अतिरिक्त विविध विषयों पर गीत और ग़ज़लें भी लिखी हैं जिनका वे साहित्यिक गोष्ठियों में सस्वर पाठ करते हैं। सामाजिक कार्यों से जुड़े रहना और मित्रता का विस्तार करना उनकी विशेष अभिरुचि है। उनकी कृति ‘‘करमजली’’ एक लंबी कहानी एवं लघु उपन्यास का मिलाजुला स्वरूप है।
‘श्यामलम’ संस्था की अध्यक्ष उमाकांत मिश्र ने ’करमजली’ की भूमिका में लिखा है कि -“दो वर्ष पूर्व श्री आर के तिवारी से जब परिचय हुआ तो उनके साहित्य, संस्कृति के प्रति रुझान और उनके द्वारा रचित कविताओं कहानियों और भजनों के बारे में जाना। मेरे परामर्श पर उन्होंने अपनी प्रथम पुस्तक “हल्ला कन्हैया का“ भजन संग्रह प्रकाशन कराया। जिसका विमोचन ’श्यामलम’ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में संपन्न हुआ। विभिन्न कार्यक्रमों में मुलाकातों के सिलसिले के बीच तिवारी जी ने एक कहानी के प्रमुख अंशों के बारे में बताया। कहानी की विषयवस्तु से प्रभावित हो कर, उन्हें इसका लेखन जारी रखने तथा उसे एक लंबी कहानी का स्वरूप देकर प्रकाशित कराने की राय थी लघुकथा से प्रारंभ हुई ’करमजली’ अब लघु उपन्यास का आकार लेकर पाठक जगत में प्रस्तुत हो रही है जो स्वागत इसलिए भी है कि सागर में एक नए कहानीकार का जन्म भी इसके साथ होने जा रहा है।“
’करमजली’ के विषय में स्वयं आरके तिवारी ने आत्मकथन ‘मेरे शब्द’ के अंतर्गत स्वीकार किया है कि -“मैं कोई साहित्यकार नहीं हूं और ना ही कोई पहुंचा हुआ कहानीकार। मैं इस साहित्य जगत में एक जुगनूं की तरह हूं। यह पुस्तक ’करमजली’ मेरी प्रथम कहानी पुस्तक है जिसे आपके समक्ष सरल भाषा में ही प्रस्तुत करने की मेरी कोशिश रही है और मैंने प्रयास भी किया है कि यह कहानी आप सब को रुचिकर लगे।“
ये दोनों कथन बोध कराते हैं कि आर. के. तिवारी अनगढ़ किंतु एक अत्यंत उत्साही रचनाकार हैं, जिन्हें अपनी कृति के उपन्यास या लंबी कहानी होने के बीच का अंतर स्पष्ट था, फिर भी उन्होंने अपनी कृति को पाठकों के समक्ष रखने का साहस किया। वस्तुतः यह साहस सीखने की ही प्रक्रिया का प्रथम चरण है। विशेषता यह कि सीखने के प्रति आर. के. तिवारी में तनिक भी झिझक नहीं है। उनका यही गुण भविष्य में उनहें साहित्य का गंभीर साधक भी बना सकता है।
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( दैनिक, आचरण दि. 09.03.2019)
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