Dr. Varsha Singh |
प्रिय ब्लॉग पाठकों, मेरी माता जी, जो कि हिन्दी की जानी-मानी कवयित्री एवं लेखिका हैं - डॉ. विद्यावती "मालविका", वे मालवा क्षेत्र के उज्जैन की बेटी हैं और विवाहोपरांत उनके जीवन की लगभग 60 वर्ष की अवधि बुंदेलखंड के पन्ना और फिर अब सागर में व्यतीत हो रही है। डॉ. विद्यावती जी द्वारा मध्यप्रदेश के मालवा और बुंदेलखंड क्षेत्र की संस्कृतियों के प्रति स्नेहांजलि स्वरूप रचित यह गीत आज यहां प्रस्तुत है -
प्रिय है धरा बुंदेली
- डॉ. विद्यावती "मालविका"
मैं हूं मालव कन्या मुझको, प्रिय है धरा बुंदेली।
शिप्रा मेरी बहिन सरीखी, सागर झील सहेली।।
उज्जैयिनी ने सदा मुझे स्नेह दिया
विक्रम की धरती ने मेरा मान किय,
बुंदेली वसुधा ने मुझे दुलार दिया
गौर भूमि ने मुझे सदा सम्मान दिया,
सदा लुभाती मुझको सुंदर ऋतुओं की अठखेली।
मैं हूं मालव कन्या मुझको, प्रिय है धरा बुंदेली।।
महाकाल के चरणों में बचपन बीता
रहा न मेरा अंतस साहस से रीता,
यहां बुंदेली संस्कृति को अपनाने पर
हुई समाहित मेरे मन में ज्यों गीता,
ऋणी रहूंगी मैं नतमस्तक, बांधे युगल हथेली।
मैं हूं मालव कन्या मुझको, प्रिय है धरा बुंदेली।।
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Dr. Vidyawati "Malvika" |
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